कावेरी को सांस्कृतिक महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और जीवनदायिनी जलस्रोत के रूप में तो सब जानते हैं पर 1902 में इस पर बने जलविद्युत संयन्त्र ने भारत में सर्वप्रथम किसी नगर में विद्युत पहुँचायी, यह तथ्य संभवतः बहुतों को ज्ञात न हो। बंगलोर प्रथम नगर था जहाँ पर 1906 में ही विद्युत पहुँच गयी थी।
बंगलोर से 130 और मैसूर से 65 किमी दूर, देश का दूसरा और विश्व का सोलवाँ सर्वाधिक ऊँचा जलप्रपात, कर्नाटक के माण्ड्या नगर में है। वर्षा ऋतु में इसके विकराल रूप का दर्शन, प्रकृति की अपार शक्ति में आपकी आस्था को बढ़ा जायेगा, हर क्षण निर्बाध। नास्तिकों को यदि अपना दर्शन संयत रखना है तो कृपया इसका दर्शन न करें। यात्रा की थकान, प्रपात की जलफुहारों के साथ हवा में विलीन हो जाती है। विज्ञान और प्रकृति के स्वरों को भिन्न रागों में सुनाने और समझने वालों को यह स्थान भिन्न भिन्न कारणों से आकर्षित करेगा किन्तु समग्रता के उपासकों के लिये यह स्थान एक सुमधुर लयबद्ध संगीत सुनाता है।
वहाँ पहुँच कर निर्णय लिया गया कि सर्वप्रथम जलविद्युत संयन्त्र देखा जाये। हम सब ऊँचाई पर थे और संयन्त्र पहाड़ के नीचे। जाने के लिये कोई लिफ्ट नहीं, बस रेलों पर रखी एक ट्रॉली, लगभग खड़ी दीवार पर, लौह-रस्से से बँधी। देखकर भय दौड़ गया मन में। बच्चों के सामने भय न दिखे अतः तुरन्त ही जाकर बैठ गये। बच्चों का उत्साह देखने लायक था, एक बड़े खिलौने जैसी गाड़ी पर पहाड़ों से उतरना। दो ट्रॉलियाँ थीं, जब एक नीचे जाती थी तब दूसरी ऊपर आती थी। लौह-रस्से पर जीवन का भार टिका था, जब प्राण पर बनती है तब ही यह विचार आता है कि हे भगवान, इस रस्से को बनाने में कोई भ्रष्टाचार न हुआ हो, कोई मिलावट न हुई हो। जैसे जैसे नीचे पहुँचे, हृदयगति संयत हुयी।
जब बहुत बड़े पाइप में जल सौ मीटर तक नीचे गिर, टनों भारी टरबाइनों को सवेग घुमाता है, तब हमें विद्युत मिलती है। प्रकृति और विज्ञान, दोनों ही मनोयोग से लगे हैं, अपने श्रेष्ठ पुत्र की सेवा में, पर विद्युत का दुरुपयोग कर हम उस भाव का नित ही अपमान करते रहते हैं। पाइप से निकल रहे जल का नाद एक विचित्र ताल पैदा कर रहा था, हृदय की धड़कनों से अनुनादित।
वापस चढ़ने में ही प्राकृतिक सौन्दर्य को ठीक से निहार सके हम सब। गाइड महोदय ने बताया कि इसकी पूरी संरचना मैसूर के दीवान सर शेषाद्री अय्यर ने बनायी थी। मन उस निष्ठा, ज्ञान, गुणवत्ता और लगन को देख श्रद्धा से भर गया। संयन्त्र अभी भी निर्बाधता से विद्युत उत्पन्न कर रहा है।
यहाँ पर कावेरी एक पहाड़ीय समतल पर फैल कर दो जलप्रपातों के माध्यम से गिरती है, पश्चिम में गगनचुक्की व पूर्व में भाराचुक्की।
भोजनादि के बाद सायं जब भाराचुक्की देखने पहुँचे, पश्चिम में सूर्य डूब चुके थे और परिदृश्य पूर्ण रूप से स्पष्ट था। हरे जंगल के बीच दूधिया प्रवाह बन बहता जल का लहराता, मदमाता स्वरूप। जल-फुहारें नीचे से ऊपर तक उड़ती हुयीं, उस ऊँचाई को देखने को उत्सुक जहाँ से गिरकर उनका निर्माण हुआ। बताया गया कि अभी इसका रूप सौम्य है, मनोहारी है, शिव समान। जब यह प्रपात अपने पूर्ण रूप में आता है, लगता है कि शिव अपनी जटा फैलाये, रौद्र रूप धरे दौड़े चले आते हों। पता नहीं इस प्रपात का नामकरण कैसे हुआ पर वहाँ पहुँचकर शिव का स्मरण हो आया।
वह दृश्य देखने में सारा समय चला गया और हम सब दूसरा प्रपात देखने से वंचित रह गये।
प्रकृति, विज्ञान और इतिहास की यात्रा कर सब के सब मुग्ध थे। यात्रायें हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं और हमें एक नयी दृष्टि दे जाती हैं अपने अतीत को समझने के लिये, हर बार।
शुक्र है भगवान, उस रस्से को बनाने में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ ?ना कोई मिलावट हुई ।
ReplyDeleteयात्रायें हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं और हमें एक नयी दृष्टि दे जाती हैं अपने अतीत को समझने के लिये, हर बार।
सहमत
मुझे जलप्रपात सदैव ही आकर्षित करते रहे हैं... सुंदर चित्र और आपका सशक्त लेखन दोनों उत्तम हैं... आभार
ReplyDeleteजानकारी मे इजाफ़ा.......शुक्रिया..........सुन्दर जगह ...देखने का मन है ....
ReplyDeleteआपके द्वारा हमने भी दर्शन कर लिये मानव निर्मित अज़ूबे के . धन्य्वाद . ट्राली फोटो मे देखने पर भी डर लग रहा है
ReplyDeleteबढ़िया लगा जलप्रपात के बारे में जानकर | चित्र भी अति सुन्दर |
ReplyDeleteसुन्दर चित्रमय जानकारी ने हमें भी इधर गद् गद् कर दिया ....
ReplyDeleteफोटो सब बहुत अच्छे हैं...बच्चे भी बड़े क्यूट और स्वीट लग रहे हैं.. :)
ReplyDeleteवैसे हम नाराज़ हैं आपसे, कम से कम एक फोन ही कर दिया होता..हम भी साथ साथ हो लेते :) :) हा हा
शिवसमुद्रम् के बारे में काफी सुन चूका हूँ...कुछ मेरे दोस्त दो तीन बार जा चुके हैं..लेकिन मुझे जाने का मौका नहीं लगा...
उन लोगों की तस्वीरें देख के ही ये सोच लिया था की जाऊँगा जरुर..अब देखिये कब जाना होता है...
प्रकृति की अपार शक्ति में आस्था न रखता हो, ऐसा भी आस्तिक-नास्तिक कोई हो सकता है, शायद नहीं.
ReplyDeleteकाश आपकी पोस्ट आज के पाँच वर्ष पूर्व पढी होती तो मैसूर यात्रा के समय शिवसमुद्रम् भी जाने का अवसर मिल जाता। बहुत ही सुंदर और मनोहारी जगह है। भारत में पर्यटकीय दृष्टिकोण नहीं है, नहीं तो भारत में एक से एक सुंदर स्थान हैं जो पर्यटकीय महत्व को दुनिया के समक्ष प्रथम पंक्ति में रखते हैं।
ReplyDelete.
ReplyDeleteसुन्दर एवं उपयोगी जानकारी के लिए आभार।
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शिवसमुद्रम की यात्रा आपके वृतांत के साथ हमारी भी हो गई. बहुत सुन्दर चित्रण. बच्चे भी पापा की तरह स्मार्ट हैं.
ReplyDeleteलौह-रस्से पर जीवन का भार टिका था, जब प्राण पर बनती है तब ही यह विचार आता है कि हे भगवान, इस रस्से को बनाने में कोई भ्रष्टाचार न हुआ हो, कोई मिलावट न हुई हो।
ReplyDeleteहाहाहा... बिलकुल सही कहा आपने ... :)
बहुत अच्छा लगा आपका लेख पढ़ कर ... आखों में पूरा चित्र उतर आया ... भगवान् ने चाहा तो ज़रूर दर्शन करेंगे इस स्थान के ...
आपके लगाये चित्र भी बहुत पसंद आये ... बहुत प्यारे बच्चे हैं ... भगवान् उनपे सदा अपनी कृपा बनाये रखे ..
शुभकामनाएं ...
जल प्रपात तस्वीरों मे ही देखा है। आपकी पोस्ट पढ कर देखने की इच्छा हो रही है।पृकृति अपने मे कितने सुन्दर अद्भुत नजारे समेटे हुये है, कई बार देख कर उसकी सत्ता पर हैरानी होती है। रोचक पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDeleteसुंदर चित्र के साथ इतनी बढिया रिपोर्ट .. महसूस हुआ सफर में हमलोग भी आपके साथ हैं !!
ReplyDeleteहमारे लिए भी बहुत जानाकरी परक है आपकी यह यात्रा........ सभी फोटोस बहुत अच्छे हैं.....
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट ! शुक्रिया !!
ReplyDeleteसुन्दर चित्रमय जानकारी
ReplyDeleteखूबसूरती को बहुत सुन्दर कैद किया है
ReplyDeleteकर्नाटक के माण्ड्या नगर का यह जल प्रपात रोमांचित कर रहा है ....आपने अच्छा विवरण दिया है !
ReplyDeleteकावेरी पर बना जल बिद्युत संयंत्र , भारत का पहला ऐसा संयंत्र है , सचमुच नहीं पता था . जल प्रपात का चित्र देखकर अच्छा लगा . अच्छी घुम्म्कड़ी .
ReplyDeleteअरे यह वही कावेरी है ना जो कर्नाटक और तमिलनाडु को लड़वा रही है :)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया जानकारी.....सहज लेखन और इतने सुन्दर चित्रों के साथ...शुक्रिया
ReplyDeleteयात्रायें हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं और हमें एक नयी दृष्टि दे जाती हैं अपने अतीत को समझने के लिये, हर बार
ReplyDeleteसब कुछ समेट लिया अपने इस कथन में .घुमक्कडी की जय हो.
आप हमेशा कुछ नया लेकर आते हैं , आज की जानकारी हम जैसे प्रकृति प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण है, आपके लेखन का दृष्टिकोण हर बात को सुगम बना देता है ...आगे भी ऐसी जानकारियां देते रहिये तस्वीरें लाजबाब हैं , ....शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जगह दिखाई है | इसे धरती का स्वर्ग कहे तो कोइ अतिशयोक्ति नहीं होगी |
ReplyDeleteप्रवीण भाई मेरा साला तीन साल तक बंगलौर में रहा, वह हम लोगों को बुलाते बुलाते थक गया, पर हम नहीं गये। अब आपकी पोस्ट पढ कर वहॉं न जाने का दुख हो रहा है।
ReplyDelete---------
इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
बहुत अच्छी लगी शिवसमुद्र्म की यात्रा और चित्र.सशक्त लेखन
ReplyDeleteसुंदर चित्र।
ReplyDeleteयात्रायें हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं...अनुभव बाटने का मजा ही कुछ और है।
..आभार।
बहुत ही सुंदर जगह है. धन्यवाद् चित्रों के लिए.
ReplyDeleteआपका आलेख पढ़ते समय मुझे हर बार शिवानी या आचार्य चतुरसेन या हजारी प्रसाद द्विवेदी की याद आ जाती है। आपकी भाषा-शैली में उन्ही की भाषा-शैली की तरह सौंदर्य है।...बधाई।
ReplyDeletea nice travelogue. and the fotos are just awesome. water in natural surroundings is just fabulous
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ अच्छी जानकारी ....आभार
ReplyDeleteअद्भुत दृश्य और शानदार वर्णन। कमाल का जादू है। आभार।
ReplyDeleteबड़े मनोरम दृश्य हैं...
ReplyDeleteमजा आ गया इतना रोचक विवरण पढ़कर। आभार।
ReplyDeleteचित्रों ने पोस्ट को शब्द दे दिए। चित्र नहीं होते तो ढलान के बारे मे लिखी आपकी बातों पर विश्वास नहीं होता।
ReplyDeleteसब कुछ सुन्दर। अति सुन्दर।
यात्रायें हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं और हमें एक नयी दृष्टि दे जाती हैं अपने अतीत को समझने के लिये।
ReplyDeleteसही कहा आपने। आलेख सरस रोचक और पढने में आनंद प्रदान करता है।
प्रस्तुति करन उम्दा।
तस्वीरें लाजवाब हैं।
बढ़िया सुंदर चित्रों के साथ यह पोस्ट पूरी पढ़ी और आनंद लिया ...शुभकामनायें प्रवीण जी !
ReplyDeleteप्रवीणजी, आप के दिखाने से हमने भी घूम लिया, शुक्रिया।
ReplyDelete"यात्रायें हमारा ज्ञान बढ़ाती हैं और हमें एक नयी दृष्टि दे जाती हैं अपने अतीत को समझने के लिये, हर बार।"
ReplyDeleteबहुत ही रोचक, जानकारीभरा और काव्यात्मक आलेख।
आपकी आंखों से हमने भी देखा इसे। आभार।
प्रकृति,विज्ञान और इतिहास का एक साथ सामंजस्य बैठना बड़ा ही सुखद रहता है,इस मामले में आप भाग्यशाली हैं की आपने इसे अनुभूत किया !
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2010/11/blog-post_11.html
ReplyDeleteGreat pictures.
ReplyDeleteBeen there once only.
Due to your post and pictures, my interest has been rekindled and I will plan another trip.
Caution:
The foot of the falls is a dangerous place.
The rocks are slippery.
I have known two persons who ventured to take risks and got washed away.
Otherwise an excellent place to go on a picnic.
Try Pearl Valley, Big Banyan tree, Hogenakal falls, etc. All are within a few hours of driving time from Bangalore. You can go early morning and come back by late evening.
Regards
G Vishwanath
बहुत ही रोचक और आनन्दमय रहा आपके साथ शिवसमुद्रम की यात्रा करना |
ReplyDeleteआभार
जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,
ReplyDeleteचित्र बहुत सुन्दर हैं।
manmohak drishya meri pasand ke .prakrati ki harek vastu mujhe apni aur aakarshit karti hai aur unme jal prapat ko dekhna ek anokha anubhav hai .aapki lekhni ne ise aur khoobsurat bana diya .dhnyabaad is sundar jaankaari ke liye
ReplyDelete@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
ReplyDeleteइस तरह की कठिन परिस्थितियों में कई बार ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं।
@ पद्म सिंह
गिरता जल या उड़ती फुहारें, दोनों ही आकर्षण हैं।
@ Archana
बंगलोर आ जायें, घुमवाने की व्यवस्था करवा देते हैं।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
पहली बार देख कर तो बैठने का मन नहीं किया पर बच्चों के सामने फजीहत न उड़े अतः बैठना पड़ा।
@ Ratan Singh Shekhawat
संयन्त्र में पानी निकलने के चित्र और भी सुन्दर थे, तकनीकी कारणों से नहीं डाले।
@ राम त्यागी
ReplyDeleteआपको बंगलोर आने का एक और बहाना दे दिया है।
@ abhi
आपको सूचित न करने की भूल हमारी है पर अभी तक आप घर नहीं आये हैं भोजन पर, यह आपकी भूल है। आप जल्दी सुधारें अपनी भूल।
@ Rahul Singh
प्रकृति की अपार शक्ति को बिना किसी आधार के मान बैठना तो और संशयों को जन्म देता है।
@ ajit gupta
भारत में ऐसे स्थान भरे पड़े हैं जहाँ आप बैठकर पूरा दिन काट सकते हैं रम कर। न हमने ऐसे स्थानों का आश्रय लिया है न ही सरकार ने इन्हे बहुत प्रश्रय दिया है।
@ ZEAL
बहुत धन्यवाद।
@ अरुण चन्द्र रॉय
ReplyDeleteप्रत्यक्ष देखेगें तो मिलेगा पूरा आनन्द। बच्चों ने तो निर्विकार भाव से दृश्यों का आनन्द उठाया।
@ क्षितिजा ....
आप चाहेंगी तो दर्शन अवश्य होंगे पर बंगलोर तक की यात्रा करनी पड़ेगी उसके लिये।
@ निर्मला कपिला
प्रकृति गतिशील है, बलशील है। संयत संदोहन किया जाये तो बहुत कुछ दे जाती है।
@ संगीता पुरी
पर प्रत्यक्ष अनुभव अतुल्य है।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
सुन्दरता स्थान में ही थी, किसी ओर भी क्लिक कर देता तो अच्छी फोटो ही आती।
@ अमिताभ मीत
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ संजय भास्कर
चित्र तो सीमित लगा सका, प्रत्यक्ष का अनुभव पोस्ट से सहस्त्र गुना अधिक होता।
@ Arvind Mishra
इस बार आपके आगमन में इसे भी व्यस्तता सूची में डाल दिया जायेगा।
@ ashish
वहाँ के बारे में वहीं ही जाकर पता लगा। भ्रमण ज्ञान का सर्वोत्तम स्रोत है।
@ cmpershad
जल का बटवारा बड़ा भावनात्मक मुद्दा है यहाँ पर।
@ rashmi ravija
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ shikha varshney
हर यात्रा के बाद उस स्थान के बारे में एक नया दृष्टिकोण विकसित हो जाता है। अब मन में शिवसमुद्रम बस गया है।
@ केवल राम
आप दक्षिण भ्रमण का योग बनाईये, आपका प्रकृति प्रेम अपनी संतृप्ति पा जायेगा। बिखरा पड़ा है प्राकृतिक सौन्दर्य यहाँ पर।
@ नरेश सिह राठौड़
इस सौन्दर्य के सामने समय जाकर ठहर गया था।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
कोई बात नहीं, अभी हम बुला रहे हैं आपको। समय निकाल कर आ जायें।
@ रचना दीक्षित
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
लेखन में वास्तविक अनुभव का शतांश भी नहीं आ पाता है।
@ एस.एम.मासूम
चित्र पूरे स्थान की भरपाई नहीं कर पाते हैं।
@ mahendra verma
इतने ऊपर चढ़ा देंगे तो गिरने में फुहारवत हो जायेंगे।
@ Manoj K
जंगल, जल और प्रपात, संगम अवर्णनीय सुख दे रहा था।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
हम तो वर्धा आये थे, अब बारी आपकी है।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ऐसे मनोरम दृश्यों से दक्षिण भारत भरा पड़ा है।
@ मो सम कौन ?
पठनीय सुख को दर्शनीय में भी बदल लें।
@ विष्णु बैरागी
वह ढलान अभी भी सिरहन पैदा करती है।
@ मनोज कुमार
ReplyDeleteस्थान के बारे में दृष्टिकोण तो अवश्य बदल जाता है।
@ सतीश सक्सेना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Tarun
प्रत्यक्ष में और भी आनन्द आयेगा।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
शिवसमुद्रम में जा शिव के दर्शन हो गये। स्थान का नाम सिद्ध हो गया।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
सारे तत्व एक साथ अवतरित हो गये थे वहाँ पर।
@ रश्मि प्रभा...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ G Vishwanath
आपके बताये और स्थानों में होगेनेकल जा चुके हैं। शेष सब सूचीबद्ध हैं।
@ शोभना चौरे
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
चित्र तो पूर्ण सत्य का शतांश ही है।
@ ज्योति सिंह
जल प्रपात में कुछ तो ऐसा है जो मन्त्रमुग्ध कर देता है।
"जब प्राण पर बनती है तब ही यह विचार आता है" बात तो सही है पर इस कांसेप्ट का इस्तेमाल कर ये विचार लोगों के मन में भरा जा सकता है क्या ? :)
ReplyDeleteक्या बात है!! आप तो जन्नत के दर्शन कर लिये.. पढ़ाई के सिलसिले में कभी न कभी वहाँ का दर्शन जरूर होगा.
ReplyDeleteआपके बच्चों को पहली बार देखा. मुझे पता नही था.. सिर्फ आपके कमेंट्स ही बार बार देखे.. "दर्शन की याद दिलाते कमेंट्स.."
धन्यवाद...जब भी आयेंगे .आपको जरूर बतायेंगे...
ReplyDeletenice pics...पर आखरी वाली नहीं....मानो जल ये बता रहा है भयानक रूप भी ले सकता है...
ReplyDelete@ अभिषेक ओझा
ReplyDeleteबात में आपकी दम है, इस धारणा का उपयोग कर भ्रष्ट आचरण को सुधारा जा सकता है।
@ Manish
आप घूमने आईये, यह स्वर्ग आपको दिखाने की व्यवस्था की जायेगी।
@ Archana
प्रतीक्षा रहेगी।
@ डिम्पल मल्होत्रा
अन्तिम वाली भयावह है, दूसरी पोस्ट से ली है। मुझे तो शिवसमुद्रम सौम्य ही मिला।
बबुत खूबसूरती से कैद किया है इन जल प्रतापों को आपने कैमरे में ..
ReplyDelete@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteप्राकृतिक सौन्दर्य तो वहाँ बिखरा पड़ा था, जहाँ भी कैमरा घुमा देते, सुन्दरता आ जानी थी।