कई दिनों से बैडमिन्टन खेल रहा हूँ और नियमित भी हूँ। शारीरिक श्रम के अतिरिक्त क्या और सीखने को मिल सकता है, इस खेल से? खेल के बीच में जो विश्राम के क्षण होते हैं, उस समय जब शरीर ऊर्जा एकत्र कर रहा होता है, अवलोकन अपने प्रखर रूप में होता है। पहले से ही लगने लगता है कि कौन सा खिलाड़ी अब कैसा शॉट मारने वाला है।
कुछ खिलाड़ी परिश्रमशील होते हैं और सारे के सारे शॉट्स कोर्ट की पिछली रेखा पर खेलते हैं। यह बिना किसी विशेष कलात्मकता के खेल में बने रहने का गुण है, अपनी ओर से कोई भूल न करते हुये, सामने वाले को भूल करने के लिये विवश करने का। कुछ खिलाड़ी प्रारम्भ से ही ताबड़तोड़ तेज शॉट्स मारकर विरोधी को हतप्रभ करने में लग जाते हैं, पर उसमें स्वयं भूल की संभावनायें भी उतनी ही बढ़ जाती हैं। दोनों ही शैलियों में ही थकान बहुत होती है और ऊर्जा और कलात्मकता को अन्त तक बचा कर रखना कठिन हो जाता है। धीमे खेल में विशेष कलात्मकता आवश्यक होती है और थकान निसन्देह बहुत कम होती है। चतुर खिलाड़ी धीमे और तेज खेल या कहें तो कलात्मकता और गति का समुचित मिश्रण रखकर जीत पाते हैं। साथ ही साथ युगल खेल में जहाँ एक ओर आपकी सम्मिलित पहुँच पूरे कोर्ट में हो, वहीं दूसरी ओर समन्वय प्रतिपूरक हो।
रोचक तथ्य पर यह है कि खिलाड़ियों की खेलशैली के बारे में अवलोकन जाना पहचाना सा लगता है। संक्षेप में कहें तो खेलशैली उनकी कार्यशैली से मिलती जुलती लगती है। कार्यक्षेत्र का व्यवहार, करने की गति, निहित कलात्मकता, आपसी समन्वय और योजित परिश्रम, उसी मात्रा में उनकी खेलशैली में परिलक्षित दिखता। परिश्रमी अधिकारी खेल में भी उतना ही परिश्रम करते हुये दिखे, जितना वे अपने कार्य क्षेत्र में लगाते हैं। यह बहुत संभव है कि किसी का बैडमिन्टन का खेल देख कर मैं उसकी कार्यशैली के बारे में बड़ी सटीक भविष्यवाणी कर सकूँ।
कार्यशैली और खेलशैली में भले ही एकात्मक सम्बन्ध दिखे, जीवनशैली और कार्यशैली में वह एकात्मकता नहीं दिखी। तथ्य दो दिखायी पड़े। कुछ अधिकारियों का यह निश्चय रहता है कि कार्यक्षेत्र की किसी भी बात को वे घर के अन्दर नहीं लायेंगे और उसी प्रकार कार्यालय से अपने घर को दूर रखेंगे। उन अधिकारियों की कार्यशैली व जीवनशैली, गति, परिश्रम, कलात्मकता और समन्वय में एक दूसरे की पूरक दिखी। वहीं दूसरी ओर जो अधिकारी अपनी शैली सब जगह एक सी रखना चाहते हैं और उनमें अन्तर करने को अपने व्यक्तित्व पर एक कृत्रिम आवरण के रूप में मानते हैं, इन तीनों क्षेत्रों में एक जैसा व्यवहार करते दिखे।
क्या उचित है, इस पर एक स्वस्थ बहस हो सकती है। इस बहस से यदि मेरे खेल का स्तर बढ़ सके तो और भी अच्छा।
खेल में यदि भूल करने से मेरा अंक जाता है तो बड़ा क्रोध आता है स्वयं पर, वहीं दूसरे के अच्छे खेल पर उत्साहवर्धन भी करना अच्छा लगता है। इससे खेल निखर रहा है। कार्यशैली व जीवनशैली में यह गुण लाने का प्रयास है, जिससे कार्य व जीवन भी पल्लवित हो सके।
'कार्यशैली और खेलशैली में भले ही एकात्मक सम्बन्ध दिखे, जीवनशैली और कार्यशैली में वह एकात्मकता नहीं दिखी।'
ReplyDeleteनिश्चय ही खेलशैली एक निश्चित समयावधि (अल्प समय)के लिये अपनानी होती है पर कार्यशैली की समयावधि विस्तृत है. खेलशैली का आंशिक प्रभाव होते हुए भी इसलिये कार्यशैली की एकात्मकता भंग होती प्रतीत होती है.
सटीक विश्लेषण!!
ReplyDeleteखेलशैली शायद कार्यशैली और जीवनशैली में परिवर्तन का कारण बन सकती है
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण। अगर हम अपने रिसीविंग एंटीना को तवज्जोह दें तो शायद हर चीज से बहुत कुछ सीख सकते हैं। बैडमिंटन मुझे भी बहुत पसंद रहा है। शारीरिक श्रम और दिमागी कसरत का शायद बैस्ट कांबो है, और डबल्स में तो इस सबके अलावा आपसी ट्यूनिंग, सामंजस्य जैसी बहुत सी चीजें ह सीख सकते हैं। दूसरे खेलों में आमतौर पर शारीरिक या दिमागी श्रम में से एक दूसरे पर हावी हो जाता है, इसमें ऐसा नहीं है।
ReplyDeleteमुझे बहुत पसंद आया आपका ये लेख। हर चीज में से सारतत्व निकाल रहे हैं आप, और ये पोजिटिव नजरिये को दिखाता है।
सीखने को अगर हम तैयार हैं तो किसी भी चीज से सीख ले सकते हैं। ताश जैसे बदनाम खेल को खेलते हुये सामने वाले का माईंडसैट पढ़ना आपके जीतने की प्रतिशत तय करता है।
बस करता हूँ, हा हा हा।
बढ़िया विश्लेषण
ReplyDeleteखेलशैली यक़ीनन जीवनशैली और कार्यशैली को सही और सकारात्मक दिशा दे सकती है..... इन दोनों क्षेत्रों में गति, परिश्रम, कलात्मकता और समन्वय आ जाये तो फिर बचता ही क्या है ?..... एकदम सटीक और प्रभावी विश्लेषण
ReplyDeleteखेल शैली पर जीवन शैली प्रभावी होती है -बिना बुद्धि चातुर्य के जीवन का शायद कोई भी खेल जीता नहीं जा सकता .
ReplyDeleteआज तो खेल-खेल में बड़ी खुली-खिली-घुली-मिली सी बात हो गई।
ReplyDeleteओविड से बात शुरु करें "खेल में हम प्रकट कर देते हैं कि हम किस प्रकार के लोग हैं।"
और अरस्तु द्वारा उद्धृत वाक्य लें तो मेरा भी मानना है कि "खेलो ताकि तुम गंभीर बन सको।"
सब तरह के खेलों के बीच जायसी मुझे याद आते हैं कि
"धनि सो खेल खेलहिं रस पेमा।
रौताई औ कूसल खेमा।"
अर्थात् वह खेल धन्य है जो प्रेम रस से खेला जाए। ठकुराई और कुशल क्षेम साथ-साथ नहीं रहती। (दफ़्तरों में भी)
इसलिए प्रवीण जी, ...
"बुझि खेल खेलहु एक साथा।
हारु होइ न पराएं हाथा।
आजुहि खेल बहुरि कित होई।
खेल गएं कत खेलै कोई।"
गांधी जी कहते थे "हमारे देश में निर्दोष और कम ख़र्च वाले बहुत से खेल हैं"... पर आज जब हम दिल्ली से लेकर हमारे गांव देसुआ तक नज़र डालते हैं तो कितने खेल पाते हैं जो निर्दोष हैं.........!
खेलशैली , कार्यशैली और जीवनशैली का सटीक और प्रभावी विश्लेषण
ReplyDeleteरोचक तर्कपूर्ण विचार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख, हमारे देश में खेल कूद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए .. जो नहीं हो रहा है ...
ReplyDeleteतीन तरह के होते हैं, काम करने वाले, न करने वाले और दूसरे को भी न करने देने वाले.
ReplyDeleteघूस लेने वाले, न लेने वाले और दूसरे को लेने के लिये उकसाने वाले.
फाइल पर हस्ताक्षर करने वाले, न करने वाले और प्लीज डिस्कस लिख महीनों-सालों लटकाने वाले.
आपका लेख पढ़ा तो ये चीजें मन में आ गयीं..
खेल खेल में आपने जीवन के खेल की बात कह दी। सहज,सरल तरीके से। अपना अनुभव आखिर अपना ही होता है।
ReplyDelete... shubh diwaali !!!
ReplyDeleteबहुत खूब प्रवीन जी .... कार्यशैली , जीवनशैली और खेलशैली ... ये तो तीनों अलग अलग है ... परन्तु व्यक्ति तो एक ही है ... और ये उसका व्यक्तित्व है जो इन तीनों शैलियों पर असर डालता है ... किस शैली को किस तरह निभाता है ...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ही सटीक विश्लेषण ! क्रमबद्धता, समय का सही प्रयोग हर क्षेत्र में बहुत जरूरी हैं. मैं यही बात ऑफिस में कहता हूँ, कि काम कैसा भी हो अगर आप उसको सही ढंग से करेंगे तो परिणाम जरूर संतुष्टि वाला होगा ...चाहे गड्ढा खोदो, रोटी बेलो या फिर कोडिंग करो - लोजिकल और विश्लेष्णात्मक सोच और क्रमबद्धता, समय का सही प्रयोग , मेहनत और लगन अनिवार्य हैं !
ReplyDeleteकार्यशैली और खेलशैली में एक तो फर्क है ... कार्यशैली में व्यायाम नहीं हो पाता ... ये तो खैर मज़ाक की बात है .... पर हाँ मेरा ये मानना जरूर है की कुछ बातें ऐसी जरूर हैं जो तीनों ही शैलियों में सामान रूप से उतारी जा सकती है ... जैसे भावना ... कार्य करने की गति, चुनौती लेने की कला .... इमानदारी .... इत्यादि ... और सुचारू जीवन के लिए कुछ बेसिक सिद्धांत एक ही रखने चाहियें हर परिस्थिति में .. ...
ReplyDeleteबैडमिन्टन के कोर्ट से जीवन शैली को जोड़ती आपकी लेखन शैली प्रभावपूर्ण है .आज हम तो ये सोचने लगे है की येन केन प्रकारेण विजय श्री का वरण करे चाहे हमे इसके लिए झन्नाटेदार शाट मरना हो या फिर ड्रॉप शाट. .
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteखेल कोई भी हो हमे चुस्त बनाता हे, बहुत सुंदर विश्लेषण किया आप ने धन्यवाद
ReplyDeleteखेल शैली और कार्य शैली का समय निश्चित होता है ..जब कि जीवन शैली जीवन पर्यंत चलती है ...
ReplyDeleteखेलों से एकाग्रता आती है जो कार्य करने में भी सहायक होती है ...इस लिए दोनों में शैली की समानता होना संभव है ...
अच्छी विचारणीय पोस्ट
संग्रहणीय पोस्ट। बहुत अच्छी प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई! राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी पर – कविता में बिम्ब!
व्यक्ति की एक शैली होती है जो प्रत्येक स्थान पर दिखायी देती है। आलेख अच्छा है, बधाई।
ReplyDeleteज्ञानी लोग कहते हैं खेल जीवन का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और खेल शैली में ही जीवन का सार.खेल हमरे व्यक्तित्व निर्माण में बहुत सहायक होते हैं..
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण किया है आपने .
खेलशैली-- कार्यशैली व जीवनशैली दोनो से प्रभावित होती है और दोनों पर असर डालती है।
ReplyDeleteकार्यशैली-- जीवनशैली व खेलशैली दोनों से प्रभावित होती है और दोनों पर असर डालती है।
जीवनशैली-- खेलशैली व कार्यशैली दोनों से प्रभावित होती है और दोनों पर असर डालती है।
अब कई गुण हैं जिनके होने न होने से ये तीनों या तो स्वयं प्रभावित होते हैं या दूसरे को प्रभावित करते हैं--जैसे--श्रम,नियम,संयम,उत्साह,धैर्य,क्रोध,क्षमा,आलस,स्फ़ूर्ती,गति,चातुर्य,सामंजस्य,कलात्मकता आदि आदि....और भी कई...सारे..
और एक बात --जरा सोचिये तो--बिना कार्य के खेल और जीवन/बिना खेल के कार्य और जीवन/बिना जीवन के .....हा हा हा....
बहुत सुंदर विश्लेषण किया आप ने धन्यवाद
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...
एक खेल के माध्यम से जीवन दर्शन बदल दिया आपने... मज़ा आ गया!!
ReplyDeleteमुझे क्यों लग रहा है कि मैं आपको किसी 'मानव मनोविज्ञान विश्व विद्यालय'के कुलपति की कुर्सी में बैठे देख रहा हूँ? जिन पक्षों में किसी ने कोई अन्तर्सम्बन्ध्ा नहीं देख उन पर इतनी विशद् औ सुस्पष्ट पोस्ट?
ReplyDeleteसाधु। साधु।।
अब आप सच्चे और पक्के ब्लॉगर के रूप में ब्लॉगरी के मर्म तक पहुँचकर लिखने लगे हैं। शानदार। अपने आसपास के निजी अनुभव के आधार पर निकली सहज अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteखेल और कार्यक्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अंतर मैंने यह पाया है कि खेल खेलते समय आप सिर्फ़ उस खेल के बारे में ही सोचते हैं जबकि ऑफ़िस में काम करते समय नाना प्रपंच आपका ध्यान बँटाते रहते हैं।
खेल हमें यह सिखाता है कि किसी काम को एकाग्रता से करने पर ही सफलता मिलती है। इधर-उधर ध्यान विचलित होने पर खेल में हार का मुँह देखना पड़ता है और अपना काम भी ठीक नहीं हो पाता।
नियमों का अनुपालन, पारदर्शिता, सहिष्णुता, सतर्कता और अनुशासन जैसे तत्व हमें अच्छा खिलाड़ी बनाते हैं, एक अच्छे कर्मचारी/अधिकारी के लिए भी ये गुण आवश्यक हैं।
बहुत ही सटीक और प्रभावी विश्लेषण कर डाला, इस खेल के बहाने
ReplyDeleteखेल में यदि भूल करने से मेरा अंक जाता है तो बड़ा क्रोध आता है स्वयं पर, वहीं दूसरे के अच्छे खेल पर उत्साहवर्धन भी करना अच्छा लगता है। इससे खेल निखर रहा है। कार्यशैली व जीवनशैली में यह गुण लाने का प्रयास है, जिससे कार्य व जीवन भी पल्लवित हो सके।
ReplyDeleteआमीन.
bahut hee sahee vishleshan..
ReplyDeletedeepawalee kee hardik shubh kamnayen
शायद किसी का व्यक्तित्व मालुम करना हो तो गोल्फ सबसे अच्छा खेल है।
ReplyDelete@ M VERMA
ReplyDeleteअल्प समयावधि और थका देने की स्थितियों में अपना सत्य स्वरूप सामने आ जाता है। कार्यशैली में में आप निर्विकार हो सकते हैं। जीवनशैली में हमें आत्मीय सम्बन्धों को भी साथ में लेकर चलना पड़ता है। मनुष्य का मूल स्वभाव बदलता नहीं है, भले ही उस पर कुछ समय के लिये कृत्रिमता ओढ़ ली जाये।
@ रंजन
बहुत धन्यवाद।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
खेल खेलने से आपके अन्दर खेल भावना विकसित होती है। जब आप हार और जीत का क्षणिक प्रभाव देखते हैं जीवन में, आपका चिंतन एक नयी ऊँचाई पा जाता है।
@ मो सम कौन ?
यदि सीखने का मन बना लिया जाये तो प्रकृति अपने किसी भी तत्व से गूढ़तम ज्ञान दे देती है। जब हम ज्ञाता के आसन पर बैठ जाते हैं तो हमारी ओर आने वाले सारे ज्ञानप्रवाह अपना उत्साह खो बैठते हैं।
@ Ratan Singh Shekhawat
बहुत धन्यवाद।
अच्छा विश्लेशण। आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।।
ReplyDelete.
ReplyDeleteजम के खेलिए प्रवीण जी ।
.
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
ReplyDeleteखेल खेलने से हार जीत के दंभ का सही स्वरूप पता लग जाता है और अन्ततः प्रयास और स्वास्थ्य पर ही जीवन केन्द्रित हो जाता है। हम सबको खेल अवश्य खेलना चाहिये, मनोरंजन, स्वास्थ्य और भावना, तीनों को लाभ मिलता है।
@ Arvind Mishra
बुद्धि चातुर्य हर ओर आवश्यक है, खेलों में भी। अन्य भी कई गुण हैं जो तीनों शैलियों में एकसमान अन्तर्निहित हैं।
@ मनोज कुमार
आपकी तो टिप्पणी संग्रहणीय हो गयी है। मुझे ज्ञात नहीं था कि महान विचारकों ने खेल के बारे में इतने सुलझे हुये विचार रखे हैं।
खेल के संग संग सारे कार्य प्रेम रस में ही करने हैं।
@ Sunil Kumar
एक ही व्यक्ति की तीनों क्षेत्रों में उपस्थिति कुछ तो एकात्मकता लायेगी।
@ Rahul Singh
रोचक अवलोकन है बस।
@ Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
ReplyDeleteखेलकूद से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, एक खेल तो आवश्यक हो सबके लिये।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
न करने वालों से भी अधिक भयानक हैं, न करने देने वाले। इसी प्रकार घूस लेने के लिये उकसाने वालों से और महीनों फाइल लटकाने वालों से देश सर्वाधिक त्रस्त है। क्या कीजियेगा?
@ राजेश उत्साही
जीवन को खेल भावना से जी लेने से अन्ततः विजय ही होती है।
@ 'उदय'
आपको भी हार्दिक शुभकामनायें।
@ क्षितिजा ....
सही कह रहीं हैं, विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तित्व में बदलाव आ जाये तो जीवन की लयबद्धता खो जाती है। एक निश्चित शैली तो अपनानी पड़ेगी। कार्यालय और घर में बॉसों का सव्भाव अलग हो तो?
@ राम त्यागी
ReplyDeleteपूर्णतया सहमत हूँ, जो भी करना हो पूर्ण तन्मयता से करना चाहिये। अनमनेपन से न केवल समय व्यर्थ होता है अपुति ऊर्जा और विश्वास भी ढलता है।
@ दिगम्बर नासवा
कुछ बातें जो इन तीनों शैलियों में समान भाव से आ जायें तो जीवन नये अध्याय लिख डालेगा। परिस्थितिजन्य कृत्रिमता पर पीछा नहीं छोड़ती है।
@ ashish
कार्यक्षेत्र में झन्नाटेदार शॉट मारने वालों को अन्ततः ऊर्जारहित हो ढलते देखा है।
@ गिरीश बिल्लोरे
आपको भी बहुत शुभकामनायें।
@ राज भाटिय़ा
खेल तन और मन, दोनों को चुस्त बनाता है। आपको सपरिवार दीवाली की शुभकामनायें।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteइन शैलियों पर कालखण्ड का प्रभाव निश्चय ही एक रोचक अध्ययन हो सकता है। स्थान बदलने से कार्यक्षेत्र में भी परिवर्तन आ जाता है।
@ राजभाषा हिंदी
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ajit gupta
हर व्यक्ति की एक शैली होती है पर परिस्थितिजन्य कृतिमता के कारण व्यवहार अलग अलग हो जाता है।
@ shikha varshney
खेल व्यक्तित्व निर्माण में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, पूर्णतया सहमत।
@ Archana
व्यक्ति एक ही होने के कारण सब शैलियाँ एक सीमा तक सम्बन्धित हैं। सर्वोत्तम क्या हो, यह व्यक्ति को ही निर्धारित करना होता है।
@ संजय भास्कर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद और दीवाली की शुभकामनायें।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
जीवनों को खेल समझ कर खेल रहे नेताओं से तो अच्छा है कि जीवन को खेल भावना से जियें।
@ विष्णु बैरागी
खेलते खेलते बीच के समय का कैसे सदुपयोग हो, उसका निष्कर्ष है यह पोस्ट। कुछ उपयोगी निकल आया हो, तो मेरा अहोभाग्य।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
जब नाना प्रपंच कार्यक्षेत्र में हमें घेर लेते हैं तो हमारे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होने लगती है। नियमों का अनुपालन, पारदर्शिता, सहिष्णुता, सतर्कता और अनुशासन जैसे गुण हमें हर क्षेत्र में ऊँचा उठाते हैं, अन्ततः।
@ rashmi ravija
खेल तो कुछ बौद्धिक भी निकल आये, इससे अच्छा और क्या हो सकता है भला?
@ वन्दना अवस्थी दुबे
ReplyDeleteकाश यह गुण बना रहे।
@ VIJAY KUMAR VERMA
बहुत धन्यवाद आपको। दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें।
@ उन्मुक्त
सुना है कि गोल्फ गहराईयुक्त खेल है। अनुभव अवश्य करना चाहूँगा।
@ निर्मला कपिला
बहुत धन्यवाद आपको। दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें।
@ ZEAL
उत्साहवर्धन का आभार।
देर से पहुंचने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
ReplyDeleteआपने टिप्पणीयों का उत्तर भी दे दिया।
इस टिप्पणी के उत्तर के अपेक्षा नहीं कर रहा हूँ। कृपया कष्ट न करें।
कुछ और विचार:
खेल में हम नियम नहीं तोडते।
नियमों को हम बाधा या अडचन नहीं मानते।
पर कार्य में हम ऐसा क्यों नहीं करते?
नियमों को अडचन समझकर उससे समझौता करने की कोशिश करते हैं।
कार्यशैली और जीवनशैली की बात की आपने।
हमने यह भी देखा है कि कुछ लोग कार्यालय में शेर होते हैं पर घर में मियाऊं करती बिल्ली ही नजर आते हैं
यह उच्च पदों पर काम करने वाले अफ़सरों का हाल है।
निम्न स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी, कार्यालय में अपनी धाक तो नहीं जमा पाते पर घर में अवश्य शेर बनकर रहते हैं
दीपावली के अवसर पर शुभकामनाएं
Kya bat hai har wishay par maharat hasil hai aapko to. Kis cheej se kya seekha ja sakta hai yah bhee. mera to is khel se nata jab bachpan me gende ka fool aur note book ka puttha leke jo khelate the wanhee tak seemit hai. Han bete jaroor ab tennis khelate hain.
ReplyDeleteखेल संबंधी आपका आलेख किसी साहित्यिक पुस्तक की समीक्षा से कम नहीं
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं।
खेलशैली रखे तो जीवन शैली में अपने आप सुधार आ जाता है !
ReplyDeleteआपको दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाये !
आज के युग में सफलता के लिये हर क्षेत्र में अच्छा खिलाडी होना आवश्यक है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteदीपावली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....
भविष्य में सायना नेहवाल से खेलने का शुभावसर मिले :) दीपावली की शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteहूं.......... यानि खेलना ज़रूरी है.... वैसे माँ यह तो पढ़ ही चुकी हैं.... :)
ReplyDeleteआपको दिवाली की शुभकामनायें... सादर
कई दिनों से बैडमिन्टन खेल रहा हूँ और नियमित भी हूँ।...
ReplyDeleteतो आप बैडमिन्टन भी खलते हैं ....?
कभी योगा तो कभी बैडमिन्टन....वाह .....!!
शरीर को चुस्त रखने के सारे श्रम करते हैं आप ....
स्कूल के दिनों में हमने भी खूब खेला ...और घर पे भी कोर्ट बनाया हुआ था ..
पापा बड़ी दीदी और भाई हम चारो मिल के खूब खेलते ....
वो दिन तो बस अब यादें ही हैं ....
आपने खेलशैली, कार्यशैली और जीवनशैली.तीनों को मिलकर अच्छा विश्लेष्ण किया है तथा
इस पर एक स्वस्थ बहस हो सकती है।
दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!
ReplyDeleteआप सभी को खासकर इमानदार इंसान बनने के लिए संघर्षरत लोगों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें....
ReplyDeleteआप को और इस ब्लॉग के सभी पाठकों को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सही बात कही है। हम जैसे भी होते हैं, हर कहीं वैसे ही होते हैं जैसा कि एक पुराने गीत के बोल हैं:
ReplyDeleteसच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से
खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से
दीवावली मंगलमय हो!
@ G Vishwanath
ReplyDeleteखेलों में हम नियम नहीं तोड़ते क्योंकि जानते हैं कि जीतने और हारने का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। कार्यक्षेत्र में यह ज्ञान बादलों में छिप जाता है। कुछ वर्षों बात वही बातें बचकानी लगने लगती हैं। जीवन के साथ भी वही है। हम हार जीत से ऊपर उठ जायें तो हम जो हैं, वही दिखेंगे।
@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteखेल के बीच विश्राम में थोड़ा सा समय मिल जाता है चिंतन को। खेल भी आवश्यक है, ब्लॉग भी, तो क्यों न दोनों सम्मलित प्रयास करें।
@ mahendra verma
बहुत धन्यवाद आपका। आपको भी दीवाली की शुभकामनायें।
@ Coral
खेल भावना जीवन पर बहुत प्रयास डालती है।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
कार्यक्षेत्र में हारजीत को मन में लेने से तनाव बढ़ता है। खेल भावना उसे शमित करती है।
@ महेन्द्र मिश्र
आपको भी हार्दिक शुभकामनायें।
@ cmpershad
ReplyDeleteअहा तब तो आनन्द आ जाये। प्रतिदिन खेलने का सुख अवर्णीय है।
@ चैतन्य शर्मा
आप तो खूब खेला करो, पढ़ाई लिखाई में तो अभी बहुत समय है।
@ हरकीरत ' हीर'
खेलों के माध्यम से शरीर और मन का विकास आगे तक काम आता है, अच्छा प्रभाव पड़ता है।
@ जी.के. अवधिया
आपको भी इस त्योहार की हार्दिक शुभकामनायें।
@ honesty project democracy
बहुत धन्यवाद, आपकी दीवाली मंगलमय हो।
@ नरेश सिह राठौड़
ReplyDeleteआपको भी इस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
सच है, कृत्रिमता में वह आनन्द कहाँ।
दीपावली की असीम-अनन्त शुभकामनायें.
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteआप, आपके परिवार और ब्लोगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं।
ReplyDeleteअपने सही कहा प्रवीन भाई, जिन्दंगी और खेल दोनों में महत्वपूर्ण हैं कि, उर्जा बचाई जाये. शायद कछुए और खरगोश कि पुरातन कहानी यही महत्वपूर्ण पाठ सिखाती हैं.
ReplyDeleteयह पूरा जीवन ही पूरा एक खेल है और जो इसे खेल की तरह खेल गया,वह असल ज़िन्दगी जी गया !
ReplyDelete@ वन्दना अवस्थी दुबे
ReplyDeleteआपको भी दीवाली की शुभकामनायें।
@ Ratan Singh Shekhawat
आपको भी दीवाली की शुभकामनायें।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
आपको भी दीवाली की शुभकामनायें।
@ Rahul Kumar Paliwal
शैलियों में कलात्मकता लाने से ऊर्जा भी बचेगी।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
जीवन को खेल मान, खेल भावना से ही खेलना होगा तभी आनन्द आयेगा।
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