आप के मन में कोई योजना है। आप प्रारम्भ करना चाहते हैं। दुविधा है कि अभी प्रारम्भ करें या थोड़ा रुककर कुछ समय के बाद। संशय में हैं आपका मन क्योंकि दोनों के ही अपने हानि-लाभ हैं।
अभी करने से समय की हानि नहीं होगी पर क्रियान्वयन के समय ऐसी समस्यायें आ सकती हैं जिन पर आपने पहले भलीभाँति विचार ही नहीं किया हो। ऐसा भी हो सकता है कि समस्यायें इतनी गहरी हों कि आपकी योजना धरी की धरी रह जाये।
वहीं दूसरी ओर भलीभाँति विचार करने के लिये समय चाहिये। जितना अधिक आप विचार करेंगे, भावी बाधाओं को उतना समझने में आपको सहायता होगी। आप विस्तृत कार्ययोजना बनाने लगते हैं पर जब तक कार्य प्रारम्भ करने का समय आता है तो बहुत संभावना है कि कोई अन्य व्यक्ति उस विचार पर कार्य प्रारम्भ कर चुका हो या परिस्थितियाँ ही अनुकूल न रहें। आपका विचार और उससे सम्बन्धित बाज़ार आप के हाथ से जा चुका होगा।
तैयारी इसे ही कहते हैं कि पकने से टपकने तक के समय में हमारी बौद्धिक, मानसिक और शारीरिक क्षमता इतनी अधिक हो कि हम फल तोड़ सकें। इसको ही संभवतः भाग्य कहते हैं। हममें से लगभग सभी ने कभी न कभी या तो समय के पहले फल तोड़ लिया या उसे टपक जाने दिया।
अभी करने से समय की हानि नहीं होगी पर क्रियान्वयन के समय ऐसी समस्यायें आ सकती हैं जिन पर आपने पहले भलीभाँति विचार ही नहीं किया हो। ऐसा भी हो सकता है कि समस्यायें इतनी गहरी हों कि आपकी योजना धरी की धरी रह जाये।
आपका क्या निर्णय होगा? यह एक ऐसा निर्णय है जिस पर आपके कार्य की सफलता निर्भर करती है।
मूलतः दो प्रश्न हैं। किसी कार्य को प्रारम्भ करने का कौन सा समय सर्वोत्तम है? और कितना समय उपलब्ध है हमारे पास निर्णय के लिये?
मन में किसी नयी योजना का विचार आना एक दैवीय संकेत है और बिना समय गँवाये उस पर तत्परता से हानि-लाभ का विश्लेषण प्रारम्भ कर देना चाहिये। किसी भी विचार को लिखकर रख लेने से और विचारों के प्रवाह में स्थान दे देने से सम्बन्धित विचार द्रुतगति से आने लगते हैं। उनको लिखते जायें और अन्य पक्षों पर चिन्तन का मार्ग खोल दें। आधार जब इतना सुदृढ़ हो जाये कि मन को सन्तोष सा होने लगे तो मान लीजिये कि कार्य प्रारम्भ करने का समय आ गया है।
विचार प्रक्रिया यदि बहुत लम्बी चलने दी तो केवल बौद्धिक प्रकल्प बन कर रह जायेगी आपकी योजना। फल के पकने के बाद से टपकने तक का समय होता है हमारे पास। इसी कालखण्ड में निर्णय लेना पड़ता है हमें। प्रकृति इससे अधिक समय नहीं देती है फल तोड़ने को। आप को कैसा लगेगा कि आप जिस पके फल को तोड़ने के लिये डाल पर चढ़ने का श्रम कर रहे हैं, वह टपक जाये और कोई और उसका लाभ उठा ले। इस तरह के उदाहरणों से उद्योगों का इतिहास भरा पड़ा है।
तैयारी पूरी रखी जाये, खिड़की सबके लिये कभी न कभी खुलती ही है।
एप्पल व पिज्जा हट का उदाहरण तो यह बताता है कि यदि आप के मन में योजना आयी है तो प्रारम्भ कर ही दें। आये विचार का को सम्मान दें, हो सकता है पुनः न आये।
सलाह काम की है गांठ बांध ली है।
ReplyDeleteएकदम सही लिखा है, पाण्डेय साहब। दूर क्यों जायें, यहाँ ब्लॉग पर ही कई बार ऐसा हो चुका है कि किसी सब्जैक्ट पर लिखने की मन में आती है और थोड़ा सा समय निकल जाये तो देखते हैं कि उसी सब्जैक्ट पर हमसे पहले ही और हमसे अच्छा ही किसी ने लिख दिया है। कई बार ऐसा हुआ है।
ReplyDeleteमनन जरूरी है लेकिन सिर्फ़ इसीसे काम नहीं चलता, शुरूआत करनी जरूरी है।
मेरे मन में कभी कभी कुछ लिखने के विचार आते यदि कुछ लिख लूं तब पूरे हो जाते हैं लेकिन जब विचार आता है कि ठीक से समझ कर लिखूंगा तो बस छूट जाते हैं।
ReplyDeleteमेरे मन में कुछ पुसतक लिखने के विचार बस इसी लिये पीछ रह गये।
काल करे सो आज , आज करे सो अब
ReplyDeleteहम तो इसे आत्मसात किये हुए है |
"मन में किसी नयी योजना का विचार आना एक दैवीय संकेत है और बिना समय गँवाये उस पर तत्परता से हानि-लाभ का विश्लेषण प्रारम्भ कर देना चाहिये।"
ReplyDeleteप्रेरणात्मक विचार ! शुभ प्रभात प्रवीण भाई !
चलो - टिप्पणी के बारे में क्या सोचा जाए - कर हे देते हैं - टेकिंग एक्सन :)
ReplyDelete... बहुत सुन्दर ... प्रभावशाली पोस्ट!
ReplyDeleteतैयारी इसे ही कहते हैं कि पकने से टपकने तक के समय में हमारी बौद्धिक, मानसिक और शारीरिक क्षमता इतनी अधिक हो कि हम फल तोड़ सकें।
ReplyDeleteसत्य वचन ।
एकदम सही बात..
ReplyDeleteहम जो लिखना चाहते थे, मो सम कौन ने लिख दिया।
सही है !
ReplyDeleteपर हम तो अपने को आज का काम कल पर टालने के एक्सपर्ट माने बैठे हैं ...उसका क्या ?
इन दिनों कुछ दुविधा में थे, मार्गदर्शन मिल गया और योजना क्रियान्वित करने की ठान ली है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद एक अच्छे मार्गदर्शक लेख के लिये।
बिल्कुल ठीक कहा है प्रवीणजी.
ReplyDeleteमक्सिमा घडी बनाने वाली कंपनी के मालिक ने एक बार कहा था की fast and ok is better than late and perfect.
जहाँ तक मैं समझता हूँ बिज़नस में तुरंत फैसला लेना बहुत महत्वपूर्ण है. आपका लेख इस बात के विवेचना करता है.
मनोज खत्री
प्रेरणादायी पोस्ट. आभार.
ReplyDeleteकुछ काम ऐसे भी हैं जिन्हें हमें करना ही होता है,यह जानते हुए भी की उसमें हानि की आशंका अधिकतम है !
ReplyDeleteकाल करै सो आज कर आज करै सो अब
ReplyDeleteआप समय की ज़रूरत समझने वाले रचनाकार हैं। आप पाठक और रचनाकार के रिश्ते के लगाव को समझते हैं। इस रिश्ते से कुछ पा लेने की चाहत नहीं बल्कि आपके शिल्प में वह आस्वाद है जो पाठक को आपकी रचना के प्रति आत्मीय बना देता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
फ़ुरसत में …बूट पॉलिश!, करते देखिए, “मनोज” पर, मनोज कुमार को!
हम सोचते है , विश्वास रखते है लेकिन क्रियाशील नहीं होते . महात्मा गाँधी ने कहा था "what is faith worth if it is not translated into action". प्रेरणाप्रदआलेख
ReplyDeleteबहुत सुंदर ओए अच्छी बात कही आप ने जी, धन्यवाद
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा अपने...मेरे साथ तो इसी ब्लॉग पर ऐसी घटना हो चुकी है...मैने सोच रखा था अपने मॉर्निंग वाक के अनुभवों को मय तस्वीरों के लिखूंगी...और मैं दूसरे विषयों में उलझी रही और आपने लिख डाला ..हा हा..
कोई नहीं... फिर भी, लिखूंगी, जरूर ...:)
पहली बार आपके ब्लॉग के दर्शन हुए, वाकई दमदार लेखों से सजा है आपका दरबार. बहुत कुछ सीखने को मिला..
ReplyDeleteपाण्डेय जी, बढिया लिखा है आपने.
ReplyDeleteएक बात -
अच्छा सोचो - और तुरंत करो.......
यही सूत्र रहा.
bahut ahchci post...kai baar mauke bus sochte sochte hi haath se nikal gye...
ReplyDeleteबस यही तो ....कहा था ..आपसे...
ReplyDeleteThere is no point in delaying anything.
ReplyDeleteमैं तो फ़ौरन ही एक्ज़िक्युशन में यकीन रखता हूँ....
ReplyDeletebhai pandey ji namskar
ReplyDeleteaap ki baat bahut theek hai
kabirdas ji ne keha hai
kal kare so aaj kar
aur aaj kare so aab ------
प्रेरणाप्रद आलेख है, एक एक वाक्य अनुकरणीय।
ReplyDeleteताऊ पहेली ९५ का जवाब -- आप भी जानिए
ReplyDeletehttp://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_9974.html
भारत प्रश्न मंच कि पहेली का जवाब
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_8440.html
सोचने समझने में ज्यादा वक़्त गुजारने पर उस काम की अहमियत भी ख़त्म हो चुकी होती है ...
ReplyDeleteउत्साह का संचार कर रही है ये पोस्ट ...!
हमारी अधिकतर पोस्ट्स इसी तरह बस सोची, फोन पर विचार किया और लिख डाली.. फिर लेखन पर विचार किया, कुछ सुधार और पब्लिश... दो एक बार सोचा कुछ टाल दें और देखा कि दूसरी पोस्ट पर वह लिखी जा चुकी है (संजय भाई मो सम कौन ने जैसा कहा).. तब हमें वे पोस्टें फिर से लिखनी पड़ीं उन बातोंको लेकर जो दूसरे पोस्ट में न रही हो..पर जो भी हो अधूरापन तो रहता है..बहुत साल पहले स्व. शफी ईनामदार की एक फिल्म दिखाई गई थी दूरदर्शन पर.. विषय था प्रोक्रस्तिनेशन.. काम टालने (शुरुआत करने में विलम्ब) की प्रवृत्ति.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सीख देती रचना!!
वो सब तो ठीक है जनाब, पर इस खुराफाती दिमाग का क्या करा जाए; कमबख्त ऐसे ऐसे अंट संट विचार आते है की अगर पूरे हो जाए तो आधी दुनिया तबाह होना तो तय समझिये ...
ReplyDeleteहममें से लगभग सभी ने कभी न कभी या तो समय के पहले फल तोड़ लिया या उसे टपक जाने दिया।
ReplyDeleteतैयारी पूरी रखी जाये, खिड़की सबके लिये कभी न कभी खुलती ही है
बहुत सटीक बात कही है ....सुन्दर लेख
बहुत बढ़िया सलाह दी है |
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट पांडे जी ... मैं इतना कहूँगी की जब जागो तब सवेरा ... अगर एक मौका निकल भी जाए तो दुसरे के लिए देरी नहीं करनी चाहिए...किसी ने अच्छा कहा है 'life always give second chance ' but i feel it gives chance after chance ..:)and its never too late ... शुरुआत के लिए कोई उम्र ,कोई समय नहीं होता ...
ReplyDeleteजहां तक मेरी बात है मैं समझती हूँ की कुछ भी करने , बोलने से पहले एक बार विचार अवश्य कर लेना चाहिए ...no 'फ़ौरन एक्ज़िक्युशन'....
विषय की गंभीरता से कुछ हटकर:
ReplyDeleteएक boss ने अपने कार्यालय में एक पोस्टर लगाया था
"DO IT NOW!"
नतीजा?
उसी दिन कर्मचारियों ने वेतन-वृद्धी की माँग की।
उसका ड्राइवर उसकी पत्नि के साथ भाग गया।
Cashier, cash box से हजारों रुपये चुराकर फ़रार हो गया।
कई मित्रों ने कबीरदास का वह दोहा याद किया
काल करे सो आज कर ..
इसके विपरीत, हम ने यह भी पढा है, मजाक में:
आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों
इतनी जल्दी क्या है , जीना है अब बरसों
नवरात्रि के अवसर पर आपको, आपके परिवार को और आपके सभी पाठकों को हमारी हार्दिक शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
एकदम उचित सलाह...आप यहाँ क्या कर रहे हैं..हमें लगा था कि आप वर्धा में होंगे.
ReplyDeleteआपसे बहुत कुछ सीख रहा हू मैं .
ReplyDeleteहुत ही अच्छी और सच्ची सलाह दी है आपने... गाँठ पक्की कर ली है.. धन्यवाद
ReplyDeleteA work well begun is half done :)
ReplyDeleteप्रवीण जी,आपने बहुत ही तार्किक ढंग से जीवन की सार्थकता के लिये कुछ सूत्र बताये हैं---बहुत अच्छा लेख नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनायें स्वीकारें।
ReplyDeleteएक दृष्टिकोण है, लेकिन समग्र नहीं. काम और परिस्थिति के कारक आपकी स्थापना के थम्ब रूल बनने के प्रतिकूल है. एक काव्यात्मक सचाई की दृष्टि है- 'एक लालटेन के सहारे' यानि आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं अगले कदम के लिए राह रोशन होती जाती है तो कभी कैलकुलेटेड रिस्क और रिस्क कैलकुलेशन पर पर्याप्त एक्सरसाइज जरूरी होता है. यों भी मनुष्य के लिए नियम बनाना यानि 'दस तमाचा सहन कर लेने वाला' 'तमाचा सहन कर लेता है' नहीं होता क्योंकि वह ग्यारहवें तमाचे का मुंहतोड़ जवाब दे सकता है.' चलिए, यहीं रूकता हूं 'बीएस टिप्स' की क्या कमी है. पोस्ट एक गंभीर विचार का महत्वपूर्ण संकेत है, यह औपचारिकता इसलिए कि ऐसा न मान लिया जाए कि यह हमारा कोई निजी विवाद की परिणिति है.
ReplyDeleteयहाँ तो बहुत कुछ सीखने को मिला...
ReplyDeleteसंक्षेप में - जीवन में गति बनाए रखें, दिशा स्वतः ही मिल जायेगी |
ReplyDeleteफिर भी विचार करना उचित है ।
ReplyDeleteलेख प्रशंसनीय ।
विचार करना तो ज़रूरी है जिससे आप अपनी क्षमताओं को पहचान सकें .... फिर दरिड निश्चय से उसे पूरा करने को जुट जाना चाहिए ...
ReplyDeleteदेखिये हम तो विश्वास करते हैं " काल खाये सो आज खा, आज खाये सो अब्ब" "गेंहू मंहगा हो रहा फेरि खायेगा कब्ब" :)
ReplyDeleteवैसे आपका लेख उत्तम है... धन्यवाद..
लो जी मैने तो शुरु कर दिया। अभी कोई कविता मन मे आयी तो कमेन्ट करने से पहले लिख ली कल भी एक भूल गयी थी। बहुत उपयोगी मश्वरा है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत बढिया सलाह :)
ReplyDeleteमेरे एक जूनियर मित्र हैं. जब वह सिविल सेवा ज्वायन करने निकले तो उनके पिता (जो स्वयं वरिष्ठ नौकरशाह रहे हैं) ने बस एक सलाह दी कि "बेटा, जब तुम पर दबाव सर्वाधिक होगा, वही तुम्हारा सर्वाधिक रचनात्मक समय होगा. अगर तुम समझते हो कि समय मिलने पर कुछ रचनात्मक करोगे तो, जान लो - या तो वह समय कभी नहीं आएगा या तुम रचनात्मक नहीं होओगे." मुझे यह कथ्य सदा उद्वेलित करता है.
ReplyDeleteबहुत सही बात प्रवीणजी...
ReplyDeleteइसीलिए कहा गया है की.... कर्म बिना हमारी वैचारिक शक्ति भी भार समान है.... प्रेरणादायी पोस्ट
3/10
ReplyDeleteok
मैंने भी शुरुआत कर दी है पर केवल सोचने की ....अब भई सोचने का कम पूरा हो तो आगे चलें है न ..हा हा
ReplyDeleteप्रवीण जी, बहुत ही सकारात्मक सोच वाला लेख है आपका। इससे सभी को प्रेरणा मिलेगी।
ReplyDeleteबात तो सही की है ..पर ये मुआं आलस...
ReplyDeleteतैयारी इसे ही कहते हैं कि पकने से टपकने तक के समय में हमारी बौद्धिक, मानसिक और शारीरिक क्षमता इतनी अधिक हो कि हम फल तोड़ सकें। इसको ही संभवतः भाग्य कहते हैं। हममें से लगभग सभी ने कभी न कभी या तो समय के पहले फल तोड़ लिया या उसे टपक जाने दिया।
ReplyDeleteBehad sahi baat kahi aapne! Maine shayad pahli baar aapka lekhan padha lekin ab follower ban rahi hun.
बच्चों के लिए यह बात बहुत सही है.... हमारे लिए तो हर चीज़ नयी है...
ReplyDeleteशुरुआत तो करनी ही होगी.....
अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
ReplyDeleteहज़ामत पर टिप्पणी के लिए आभार!
अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
ReplyDeleteतीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)-2 पर टिप्पणी के लिए आभार!
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
ReplyDeleteचलिये, तब तो शुरुआत हो गयी।
@ मो सम कौन ?
यही तो मेरे साथ कई बार हो चुका है, सारी की सारी अच्छी पोस्टें मैं एक बार सोच चुका हूँ पर लिख नहीं पाया।
@ उन्मुक्त
पुस्तक अवश्य लिखिये। विचार कहीं पर लिख अवश्य लें।
@ Ratan Singh Shekhawat
संभवतः इसी में हम सबका भला है।
@ सतीश सक्सेना
यही सोचने लगता हूँ बहुधा कि यह विचार मन में आया क्यों?
@ राम त्यागी
ReplyDeleteचलिये संवाद बह निकला।
@ 'उदय'
बहुत धन्यवाद।
@ Mrs. Asha Joglekar
भाग्य हमारी तैयारी व अवसर पर ही निर्भर करता है।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
तो अब अवसर न गवायें, जो लिखना है, लिख डालें।
@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
तब तो आप कल को महत्वपूर्ण बना रहे हैं पर वह कभी आयेगा नहीं।
@ Vivek Rastogi
ReplyDeleteनिश्चय कर लीजिये और कर डालिये, आप पछतायेंगे नहीं।
@ Manoj K
अब तो fast and Ok रहना है जीवन में।
@ P.N. Subramanian
बहुत धन्यवाद।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
करे जाने वाले काम तो निर्विकार हो कर ही डालें।
@ मनोज कुमार
आपका बहुत धन्यवाद। मैं ही लिख पाता हूँ जो अपने लिये अनुभव करता हूँ।
@ ashish
ReplyDeleteमन की आस्था को कर्म में बदलना आवश्यक है।
@ राज भाटिय़ा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ rashmi ravija
प्रभातीय अध्याय में विचार से छापने के बीच केवल दो घंटे लगे हमें।
@ somadri
अतिशय धन्यवाद आपका।
@ DEEPAK BABA
यदि सम्यक सोच लिया तो कर डालना ही सर्वोत्तम।
@ शुभम जैन
ReplyDeleteमन में कोई विचार आये तो लिख अवश्य लें।
@ Archana
शायद याद ही नहीं रहा।
@ ZEAL
यदि निश्चय कर लिया तो देर करने का कोई निष्कर्ष नहीं।
@ महफूज़ अली
आप जैसा त्वरित क्रियाशील तो मिला ही नहीं। आप स्वस्थ हो हम सबके बीच पुनः आयें।
@ Poorviya
कबीर और उनके सिद्धान्तों को सुविधानुसार भुला बैठे हैं हम।
@ mahendra verma
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ बंटी चोर
आने का आभार।
@ वाणी गीत
बहुत अधिक सोचने से उत्साह भी कम हो जाता है।
@ सम्वेदना के स्वर
टालने की प्रवृत्ति के कारण बहुत सी चीजें जीवन से जा चुकी हैं।
@ Majaal
तभी तो ज्ञाता कहते हैं कि हानि लाभ का पूर्ण विचार कर लें।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteतैयारी पूरी तो रखनी ही पड़ेगी।
@ नरेश सिह राठौड़
बहुत धन्यवाद।
@ क्षितिजा ....
बीती बातों से परेशान होने में कोई लाभ नहीं, हर समय को एक नया प्रारम्भ मान जीने की आदत डालनी होगी।
@ G Vishwanath
सच है, कुछ घटनायें तो अपनी गति से ही होंगी।
@ Udan Tashtari
हम पोस्ट कर वर्धा खिसक लिये।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
ReplyDeleteपर आपसे सीखने की शुरुआत हम बहुत पहले ही कर चुके हैं।
@ Shekhar Suman
बहुत धन्यवाद शुरुआत करने की।
@ cmpershad
शुरुआत अच्छी तभी होगी जब सोच विचार कर किया जाये।
@ JHAROKHA
अतिशय धन्यवाद।
@ Rahul Singh
दूरदर्शी व सूक्ष्मदर्शी, दोनों सोचों की आवश्यकता है हमें।
@ Akshita (Pakhi)
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद पाखीजी।
@ hem pandey
सच है, गतिशील जीवन दिशा पा ही जाता है।
@ अरुणेश मिश्र
सम्यक विचार कार्य को सरल कर देता है।
@ दिगम्बर नासवा
एक बार निश्चय कर पूरी शक्ति से लग जाना चाहिये।
@ indian citizen
सस्ता गेहूँ खा कर स्वास्थ्य बना लिया जाये, पता नहीं, कल मिले न मिले।
@ निर्मला कपिला
ReplyDeleteजो भूलने वाली पंक्तियाँ हों, तुरन्त लिख लेते हैं हम।
@ वन्दना अवस्थी दुबे
बहुत धन्यवाद।
@ काजल कुमार Kajal Kumar
थोड़े दबाव से कार्य में गुणवत्ता आती है।
@ डॉ. मोनिका शर्मा
सच है और यह भोझ बहुधा हमें शान्ति से जीने नहीं देता है।
@ उस्ताद जी
बहुत धन्यवाद आकलन का। 7 की गुंजाइश अभी भी है।
@ रचना दीक्षित
ReplyDeleteसोचने की शुरुआत भी नहीं कर पा रहे हैं हम।
@ हेमंत कुमार ♠ Hemant Kumar
आपका अतिशय धन्यवाद।
@ shikha varshney
हमारी भी यही बीमारी है।
@ kshama
बहुत धन्यवाद आपके उत्साहवर्धन का।
@ चैतन्य शर्मा
आप लोग तो शैतानी करना बन्द ही नहीं करते हो।
@ हास्यफुहार
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
प्रभुजी, ऐसा संबोधन देते हैं एक घुमक्कड़ कवी कलाकार बाबा सत्य नारायण मौर्य,
ReplyDeleteतो प्रभु प्रवीणजी
शुरू करने से पहले 'परिणाम' का चिंतन भी व्यावहारिक दृष्टि से अनिवार्य है
फिर जब कई विचार आते हैं तो प्राथमिकता का विचार भी अनिवार्य हो जाता है
कई बार अपनी स्वयं से तथा कार्य से अपेक्षाओं के बारे में 'दो मत' हो जाते हैं
बहरहाल
बात शुरू करने की है, इसलिए विलम्ब से ही सही, शुरू कर दी
सीखने के लिए जीवन में सभी समय उपयुक्त हैं, कुछ नया सीखने और सीखे हुए को दृढ करने में आपका 'ब्लॉग' सहायक है
धन्यवाद और शुभकामनाएं
@ Ashok Vyas
ReplyDeleteजीवन में हर समय यह क्षोभ बना रहा कि कई कार्य जो पहले ही प्रारम्भ कर देने थे, अभी तक नहीं कर पाया। इसी क्षोभ में डूबा रहा और कभी नहीं कर पाया। अब संभवतः क्षोभ का आवरण उतर जायेगा, जो समय जाना था, चला ही गया है।