गांधीजी, विनोबा भावे और हिन्दी, इन तीनों का प्रेम मेरे आलस्य पर विजय पा चुका था, जब मैंने स्वयं को वर्धा हिन्दी विश्वविद्यालय के सभागार में खड़ा पाया। परिचय की प्रक्रिया में सारे ब्लॉगरों को उनके चित्र के सहारे पहचान लेने का विश्वास उस समय ढहने लगा जब त्रिविमीय आकृतियाँ स्मृति को धुँधलाने व उलझाने लगीं। चित्र में सजे मुखमण्डल सजीव रूप में और भी आकर्षक, सहज व भावपूर्ण लगे। चित्रों का सीमित संप्रेषण तब तक स्मृति पटल से नहीं हटा, जब तक बार बार देख कर यह निश्चय नहीं कर लिया कि, हाँ, यही अमुक ब्लॉगर हैं। पीछे चुपचाप बैठ कर मुलक मुलक के कई बार, बाल-सुलभ फिर भी उन्हें देखता ही रहा।
विचित्र सा लग रहा था। बौद्धिक परिचय था पहले से, पोस्टों के माध्यम से, साक्षात उपस्थिति में उनकी कई पोस्टों के शीर्षक उछल उछल कर आँखों के सामने आ रहे थे। बौद्धिक से शारीरिक ढलान में लुढ़कने के बाद जब संयत हुआ तब लगा कि इन महानुभावों के बीच स्वयं को पाना किसी महाभाग्य से कम नहीं है।
तल्लीनता में विघ्न तब आया जब सिद्धार्थ जी ने मेरे द्वारा कुछ विचार व्यक्त करने की सार्वजनिक घोषणा कर दी, वह भी बिना बताये। घर्र घर्र हो रही गाड़ी यदि सहसा पाँचवें गियर में डाल दी जाये तो जो प्रयास उसे सम्हालने में लगेंगे, वही प्रयास मुझे हृदयगति को सामान्य करने में लग रहे थे। विषय पर तब तक ध्यान ही नहीं दिया था, बड़े पोस्टर पर आचार-संहिता लिखा देख, विचार भी भाग खड़े हुये क्योंकि विचार तो सदा ही आवारगी-पसन्द रहे हैं। मैं तो ब्लॉगर दर्शन करने आया था, आचार-संहिता से दूर दूर का सम्बन्ध नहीं रहा, कभी भी।
यद्यपि सभाओं को सम्बोधित करने का अनुभव रहा है पर यशदीपों के सामने खड़ा, जुगनू सा टिमटिमाता, कौन सा ज्ञान उड़ेल दूँ, नहीं समझ में आ रहा था। जब घटनाओं का प्रवाह गतिशील हो, नदी का ही उदाहरण सूझता है, वही बहा कर जब मंच से उतरा तभी वास्तविकता में पुनः लौट पाया।
सभी ब्लॉगरों से बात करने का अवसर मिला जो संक्षिप्त ही रहा। अनीता कुमार जी के अतिरिक्त किसी से पहले का परिचय नहीं था अतः मुख्यतः कुशलक्षेम व ब्लॉग की प्रविष्टियों के सम्बन्ध में ही चर्चा हुयी। चर्चा भोजन के समय भी चलती रही जिससे भोजन और भी सुस्वादु हो गया था। तत्पश्चात शेष दो प्रेम-दायित्वों का निर्वाह करने निकल पड़ा।
हिन्दी के प्रति समर्पित योद्धाओं से मिलकर, साहित्य के प्रति मेरी आस्था का बल बढ़ा है। हिन्दीवर्धन में यह सम्मेलन एक सशक्त हस्ताक्षर सिद्ध होगा। सभी की अनुभूति उनकी लेखनी को और प्रबल बनायेगी और साहित्यसंवर्धन भी होगा। आयोजकों, विशेषकर कुलपति महोदय व सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी के प्रयासों को अतिशय साधुवाद, इस उत्कृष्ट आयोजन के लिये जिसकी विषयान्तर उपलब्धियाँ कहीं अधिक रहीं।
हिन्दी सम्मानम् वर्धति स वर्धा।
किसी व्यक्तित्व को कुछ पंक्तियों में व्यक्त करना कठिन है पर अपने अवलोकन को न कहना उनके प्रति अपराध माना जा सकता है अतः सबके नाम सहित लिख देता हूँ। न्यायालय की भाँति पूर्ण निर्णय सुरक्षित रख रहा हूँ, व्यक्तिगत भेंट के बाद ही निर्णय बताया जायेगा। अतः आप सभी बंगलोर आमन्त्रित हैं।
अनीता कुमार
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देवीरूपा, संयत, गरिमा,
ब्लॉग जगत की एक मधुरिमा
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अजित गुप्ता
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अब तक तो गाम्भीर्य दिखा है,
एक प्रफुल्लित हृदय छिपा है
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कविता वाचक्नवी
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हिन्दी-महक, बयार लिये,
परदेशी बन प्यार लिये
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रचना त्रिपाठी
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आवृत गांधी खादी,
एकल ही संवादी
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गायत्री शर्मा
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मेधा-अर्जित आस,
रूपमयी-विश्वास
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अनूप शुक्ल
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मौज लेने में अपरिमित आस्था,
उसी रौ में सुना डाली दास्ता
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विवेक सिंह
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हाथ कैमरा, झोंके फ्लैश,
विद्वानों से क्योंकर क्लैश
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सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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दिवस दो काँधों सकल ब्लॉगिंग टिकी,
जी गये पल, पर जरा भी उफ नहीं की
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डॉ महेश सिन्हा
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देखकर स्मित सी मुस्कान,
उड़न छू परिचय का व्यवधान
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हर्षवर्धन त्रिपाठी
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उद्यमिता की बात कही,
सब सुधरेंगे, देर सही
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संजीत त्रिपाठी
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एक कुँवारा इस शहर में,
मिला उसे दोपहर में
|
यशवन्त सिंह
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जो विचार मन में आयेगा,
यहीं अभी वाणी पायेगा
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अविनाश वाचस्पति
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कलमाडी की कृति अद्भुत,
पर ब्लॉगिंग में मजा बहुत
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जय कुमार झा
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स्वच्छ व्यवस्था करे विधाता,
हम घूमेंगे लिये पताका
|
रवीन्द्र प्रभात
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मन बसी परिकल्पना,
शब्द दिखते अल्पना
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संजय बेगाणी
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छोटा तन, गुजरात बसा,
हिन्दी का विश्वास बसा
|
सुरेश चिपलूनकर
|
तिक्त शब्द, भीषण संहार,
हृदय किन्तु विस्तृत आकार
|
विनोद शुक्ल
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निज आह्लादित, शान्त, सुहृद-नर,
है अनामिका विजयित पथ पर
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जाकिर अली रजनीश
|
जहाँ ब्लॉग और हिन्दी वर्धित,
दिख जाते रजनीश समर्पित
|
अशोक कुमार मिश्र
|
हम पहले थे मिले नहीं,
भाव किये संवाद कहीं
|
प्रियन्कर पालीवाल
|
परिचय में संवाद सिमटकर,
थे वर्धा में एक प्रियन्कर
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शैलेष भारतवासी
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परिचय दृष्टि रहा बनकर,
है भविष्य-आशा तनकर
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वन बिहारी बाबू
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हम सम्मेलन में उन्मत थे,
आप व्यवस्था में उद्धृत थे
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आलोक धन्वा
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हुआ हमारा मेल नहीं,
सुना आप संग रेल रही
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विभूति नारायन राय
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गूँज रहा बस एक संदेशा,
ब्लॉगिंग में ही लक्ष्मण-रेखा
|
रवि रतलामी
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गोली मारो, जियो कलन्दर,
मायावी हो घूम घूम कर
|
पवन दुग्गल
|
बच के रहना बाबा जी,
उत्श्रंखल मन बाधा जी
|
श्रद्धा पाण्डेय
|
लख ब्लॉगिंग की मदमत धार,
संग रहीं बनकर पतवार
|
प्रवीण पाण्डेय
|
जिन्दगी अलमस्त हो,
चुपचाप बहना चाहती है
|
हिंदी पर पक्की पकड़ और दूसरों के लिए सम्मान देख और फिर सबका अद्वितीय परिचय देख हम भी इधर मन ही मन प्रफुल्लित हो रहे हैं , पर भूलिए मत कि आपको सिद्धार्थ शंकर जी ने एक वक्ता के रूप में विश्व भर से कुछ चुनिन्दा लोगों में चुना है, अवश्य ही ये उनकी कोई व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि आपकी लेखनी रही है ! और कोई हो ना हो , हम तो आपकी लेखनी के कायल है , कहूँगा कि आप भी बहुतों के लिए हिंदी के प्रेरणाश्रोत हैं ! तो बस इसी वेग से लगे रहिये ! और भी कई सम्मलेन आपका इन्तजार कर रहे हैं !
ReplyDeleteचलिए, एक आप से सुनना बाकी था सो वो भी पूरा हुआ. :)
ReplyDeleteवैसे पधारे व्यक्तित्वों का आंकलन आपकी पंक्तियों के आधार पर बैठा रहे हैं. कुछ से तो मिला ही हूँ इनमें से.
बेहतरीन.
वर्धा सम्मलेन पर ब्लॉगर्स के एक लाईना परिचय के साथ संक्षिप्त वर्णन भी ...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...!
आपके काव्यमय लेखन से इन विभूतियों का परिचय सुबह को सुहानी बना गया। लगा आपके साथ सभागार में हैं और आप एक-एक कर सबसे मिलवा रहे हैं। सुंदर, अतिसुंदर!!
ReplyDeleteव्यक्तित्व को बताती पंक्तियाँ बढ़िया लगी
ReplyDeleteभाई आज तो प्रवीण पांडे का दिन है ...प्रतिभा अमित अपरिमित ...
ReplyDeleteआज की यह पोस्ट इतनी अच्छी लगी कि श्रीमति जी को भी पढ़ाया।
ReplyDeleteथोड़ा अलग. लोग कहते हैं कि हिन्दी में संस्कृत निष्ठ शब्दों के प्रयोग से दुरूह हो जाती है, क्लिष्ट हो जाती है. लेकिन अंग्रेजी के बारे में यह बात नहीं दोहराई जाती. बात सिर्फ इतनी सी है कि जिन शब्दों का प्रयोग बन्द कर दिया जाता है वह क्लिष्ट लगने लगते हैं. और जिनका प्रयोग अनवरत चलता रहता है वे नहीं लगते. आप का योगदान सराहनीय है. वर्धा में जो भी धूम मचाई आप लोगों ने, उसकी जानकारी बांटने के लिये धन्यवाद..
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteभाषा के प्रवाह पर आपकी पकड के हम कायल हैं। काश कभी ऐसा हम भी लिख पायें :)
नीरज
प्रवीण जी आप बाजी मार ले गए। मैं भी कुछ इसी प्रकार के लेखन का सोच रही थी, बस लिख नहीं पा रही थी। बेहद अच्छी प्रस्तुति। आपसे मिलना अधूरा सा रहा। पहले दिन आप नहीं आए और दूसरे दिन मैं लंच के बाद चले गयी। खैर लम्बा है सफर इसमें मुलाकात तो होगी। पुन: बधाई।
ReplyDeleteAapke liye is sabha me waktrutv karna nishchay hee sammanjanak tha!
ReplyDeleteSab kaa parichay bade anoothe tareeqese diya hai aapne!
वाह प्रवीण जी, क्या कहने...राम जी ने बिलकुल सही बात कही.."हम तो आपकी लेखनी के कायल है , कहूँगा कि आप भी बहुतों के लिए हिंदी के प्रेरणाश्रोत हैं ! तो बस इसी वेग से लगे रहिये ! और भी कई सम्मलेन आपका इन्तजार कर रहे हैं !"
ReplyDeleteअंतिम में सबका परिचय बड़ा अच्छा लगा...
बहुत अच्छे से आपने हर इ बात बताई
दुर्गा नवमी पूजा की बहुत बधाई आपको....फ़िलहाल बैंगलोर में ही हैं क्या....किधर घूमने का इरादा है ?? बैंगलोर में हों तो बताइयेगा...आपसे मिलने की कोशिश करूँगा नवमी या विजयदशमी को
ReplyDeleteआपने तो आँखों देखा हाल अच्छा प्रस्तुत किया ....और यह ब्लोग्गर्स का संक्षिप्त परिचय तो बड़ा प्रभावी बन पड़ा......
ReplyDeleteआश्चर्य है कि जो व्यक्ति सबकी तुक मिला देता है वह स्वयं बेतुका रह जाता है |
ReplyDeleteसुन्दर....
ReplyDelete.
ReplyDeleteएक नए अंदाज में आपने सभी का परिचय कराया। बहुत अच्छा लगा। कल्पना कर सकती हूँ कैसा लग रहा होगा सभी ब्लोगर्स का आपस में मिलना। निश्चय ही एक सुखद अनुभूति।
आभार आपका।
.
अच्छा लगा पढकर.
ReplyDeleteविवेक सिंह के ब्लॉग पर जाकर सबके के चेहरे से भी परिचित हुआ।
हम तो outsider हैं जी।
क्या कभी टिप्पणीकारों का एक सम्मेलन आयोजित किया जाएगा?
अवश्य वहाँ पहुँच जाएंगे।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
हमेशा की तरह अच्छी और सकारात्मक प्रस्तुती के लिए आभार लेकिन मैं पारदर्शिता का पक्षधर हूँ इसलिए आपके प्रति सच्चा आरोप लगा रहा हूँ की आपने इस ब्लोगर संगोष्ठी को सभी उपस्थित ब्लोगर से सबसे कम समय दिया इसके लिए आपको बेंगलोर में एक ब्लोगर संगोष्ठी आयोजित करने का दंड दिया जाता है और हुक्म दिया जाता है की उस संगोष्ठी में आप ब्लोगरों के बीच ज्यादा से ज्यादा वक्त दें ....साथ ही इस बात के लिए आपकी प्रशंसा भी की जाती है की आपने इतने कम समय में सबके विचारों को नजदीक से परख लिया और लिखने का साहस भी कर डाला ...यही सच्ची ब्लोगिंग है ....
ReplyDeleteआपका अवलोकन बेहतरीन है… और लेखन शैली भी :)
ReplyDeleteआप कि सजग, सहज , प्रवाहमयी भाषा , इस हिंदी ब्लॉग जगत को एक दिशा निर्देश देती है . निराला है आपकी ब्लोग्गेर्स के बारे में अंदाजे बयां .
ReplyDeleteभेंटना अच्छा लगा था, पढ़ना अच्छा लगा है.
ReplyDeleteवाह गज़ब हम तो ऊपर लिखी रिपोर्ट पढकर ही सोच रहे थे कि कैसे तारीफ करेंगे इतना बेहतरीन और रोचक लिखे हुए की.आपने तो परिचय में और भी कमाल दिखा दिया.
ReplyDeleteसहज,सरल,रोचक,भावपूर्ण ,प्रभावपूर्ण.आदि आदि आदि.
वर्धा सम्मेलन की सच्ची तस्वीर आपकी चिर परिचित शैली में आभार |
ReplyDeleteब्लोगर के व्यक्तित्व के हर पहलू को उजागर किया अपने.
ReplyDeleteबढिया लगा.
चकाचक है। अगले भाग का इंतजार है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा, सब का परिचय पा कर,एक दो को छोड मै मै इन मे से किसी से नही मिला, चलिये अगले महीने मिलते हे रोहतक मे, धन्यवाद
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteयद्यपि समय बहुत था क्षीण
फिर भी गदगद किए प्रवीण
अपनी पोस्ट में इसका लिंक जोड़ रहा हूँ।
अद्वितीय शैली एवं विवरण
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteप्रवीणजी
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके इस अंदाज में सभी ब्लागर से मिलना |ऐसा लगा मानो सबके साथ हम भी है |
आभार
प्रवीन बाबू, अभी तक वर्धा से लौटे महानुभावों के माध्यम से ज्ञान वर्धन कर रहे थे... पहली बार आपने ब्यक्तिगत परिचय दे डाला...बहुत बढिया लगा!
ReplyDeleteवाह ! ......आपका अंदाज -ए-बयाँ ही कुछ अलग है | ....वैसे यह आपका निजी आमंत्रण उपर्युक्त लिस्ट से बाहर वालों के लिए भी वैध है कि नहीं? ....आखिर हमनाम होने का इतना लाभ तो ....!
ReplyDeleteदोनों चित्र, प्रोफाइल और पोस्ट के, एक ही व्यक्ति के हैं क्या.
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट मैंने आज सुबह पढी है और उस पर टिप्पणी भी की है। लगता है मेरी टिप्पणी विलापित कर दीग ई है।
ReplyDeleteअब समझ में आया जब 'बज' देखा। मैंने वहीं अिप्पणी की थी। उसे ही 'कॉपी-पेस्ट' कर रहा हूँ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ कर लगता है, किसी भी आयोजन को लेकर तत्काल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करना शायद ठीक नहीं। उत्साह का अतिरेक कभी-कभी विचित्र स्थिति पैदा कर देता है। आयोजन के दो-चार दिन बाद लिखने पर भावनाओं की ऑंधी चूँकि ठकर चुकी होती है इसलिए अधिक सन्तुलित और संयत स्वरूप में बात सामने आती है।
आपकी यह पोरट, वर्धा-मिलन का एक और आत्मपरक पक्ष उजागर करती है।
प्रवीण जी आप से तो बैंगलोर में मिलना भी एक अत्यंत सुखद अनुभव था, अभी तक उसके बारे में लिख नहीं पायी , जल्द ही लिखूंगी। हां वहां एक कमी रह गयी थी वो वर्धा में पूरी हुई कुछ हद्द तक, आप की पत्नी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, पर मन तृप्त नहीं हुआ, आप बहुत कम समय ले कर आये थे। अब हमें उनके ब्लोग का इंतजार है।
ReplyDeleteवाह अलग सी थी आपकी ये वर्धा ब्लॉगकार सम्मेलन वार्ता । और सबके लिये बनाये गये दोपाये भी अच्छे लगे । आपको वक्ता चुन कर सम्मेलन में एक चांद तो लग ही गया होगा ।
ReplyDelete`हिन्दी के प्रति समर्पित योद्धाओं से मिलकर, '
ReplyDeleteएक और योद्धा ने जन्म ले लिया :)
... भावपूर्ण अभिव्यक्ति ... सुन्दर पोस्ट !
ReplyDeleteआपने लोगों को शायद सही ही पहचाना.
ReplyDeleteबधाई!
वाह. आपका अंदाज़-ए-बयान देखना रह गया था और वह भी उम्मीद के मुताबिक ही रहा. बहुत बढ़िया. काश वहां होता तो अपना नाम भी इस टेबल में देखकर पुलकित होता. फिर कभी देखा जायेगा. अब बहुत मन करता है कि बाहर निकलूँ, लोगों से मिलूँ.
ReplyDeleteचरण स्पर्श भैया,
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपको बहुत बधाई की आपको चुनिन्दा लोगों में चुना गया. देखिये ना, हमेशा की तरह यहाँ भी सभी आपकी हिंदी और स्वाभाव के कायल हो रहे हैं..
दूसरी खुशी इस बात की हुई की मेरे प्रिय मित्र संजीत जी से आपकी मुलाकात हुई. अभी उनसे आपकी ही चर्चा हुई है.
आशा है कि आप इसी तरह हिंदी और देश सेवा में अपना योगदान देते रहेंगे. हम छोटे भाइयों को आप पर गर्व है..
आपका - अखिल
सुन्दर बात , सुन्दर परिचय.
ReplyDeleteतीर्थयात्रा की बधाई!
ReplyDeleteसबके बारे में जान कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteकार्यक्रम में न पहुंचकर भी लगा जैसे वहीँ हैं.सोने पे सुहागा यह कि सबके चित्र भी खींच दिए --मन की आँखों से....धन्य हो प्रभु !
ReplyDelete@ राम त्यागी
ReplyDeleteसब लोग अपनी व्यस्तता छोड़ ब्लॉगार्थ व हिन्दी विकासार्थ वहाँ पर उपस्थित थे। इस स्थिति में सम्मान के अतिरिक्त और भाव भी क्या आ सकता था, उन सबके प्रति। लेखक और कवि वैसे ही विचारक व संवेदनशील होता है, यही उसकी प्रेरणा है लिखते रहने की।
हर ब्लॉगर की विचार-प्रक्रिया व लेखन-शैली अनूठी होती है। ऐसे सम्मेलन कितना लाभ पहुँचा जाते हैं आगन्तुकों को, उसका पता वहाँ से वापस आने के बाद ही पता चलता है।
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteमैं भी किसी से मिला नहीं था पर पोस्टों के माध्यम से व संक्षिप्त भेट के आधार पर कुछ लिखने का साहस कर बैठा हूँ। आशा है कि लोग अन्यथा नहीं लेंगे इस धृष्टता को।
@ वाणी गीत
बहुत धन्यवाद आपका।
@ मनोज कुमार
एक पंक्ति से सबका एक ही पक्ष दिखा पाया, यहीं पर ही सीमित रह गया जबकि कहने के लिये और कुछ भी था।
@ Ratan Singh Shekhawat
बहुत धन्यवाद।
@ Arvind Mishra
हमारा दिन तो सबका परिचय करा कर ही बन चुका है।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
ReplyDeleteइतना मत चढ़ाईये कि उतरने में घुटने काँपने लगें।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
आप सच कह रहे हैं और मैं भी उससे सहमत हूँ, कोई भी शब्द क्लिष्ट नहीं होता है, होता है तो उसका प्रयोग। प्रयोग होने लगेगा तो वह शब्द सरल हो जायेगा।
@ Neeraj Rohilla
आपका लिखा पढ़ने में पर हमें तो बहुत आनन्द आता है।
@ ajit gupta
आशा है कि पुनः शीघ्र मिलें। आप तो आदरणीय हैं, आपसे बाजी क्या मारना?
@ kshama
बहुत धन्यवाद आपका। बोलने का अवसर पाना सच में मेरे लिये सम्मानजनक था।
@ abhi
ReplyDeleteहिन्दी में लिखना मुझे अच्छा लगता है, कभी कभी संक्षिप्त कर लिखने के कारण शब्द क्लिष्ट हो जाते हैं। पर शब्द यदि प्रयोग में रहें तो क्लिष्टता उड़ जाती है।
दशहरा में बंगलोर में रहूँगा। मुझे ईमेल पर अपना ईमेल पता भेज दें, मैं आपको अपना पूरा पता बताता हूँ।
@ डॉ. मोनिका शर्मा
बहुत धन्यवाद आपका, जैसा हो सका है, व्यक्त कर दिया।
@ विवेक सिंह
स्वयं अपनी ही रस्सी में बँध लिये तो क्या मज़ा? जिन्दगी को अलमस्त बहने दिया जाये।
@ संजय बेंगाणी
बहुत धन्यवाद।
@ ZEAL
ब्लॉगरों से मिलना एक बहुत ही सुखद अनुभूति, संभवतः उसकी मात्रा शब्दों में व्यक्त न हो पायी हो।
aapke dwaara diye gaye sankshipt parichay se bhi kafi jankaari mili ..aabhaar
ReplyDelete@ G Vishwanath
ReplyDeleteआप पोस्ट लिखते हैं तो आप ब्लॉगर ही हुये। आपकी उपस्थिति तो किसी भी सम्मेलन में चार चाँद लगाने के लिये बहुत है।
@ honesty project democracy
आरोप स्वीकार करता हूँ, बंगलोर में सबको ही आमन्त्रण है। यहाँ पर किसी हिन्दी संस्था से बात करता हूँ ब्लॉगर मीट आयोजित करने के लिये।
@ Suresh Chiplunkar
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ashish
बहुत धन्यवाद पर दिशा निर्देश बनने का प्रयास एक जुगनू से अधिक अपेक्षा करने जैसा होगा।
@ डॉ.कविता वाचक्नवी Dr.Kavita Vachaknavee
बहुत धन्यवाद इस उत्साहवर्धन का।
@ shikha varshney
ReplyDeleteउत्साह के सागर में मत डुबोईये, तनिक साँस ले लेने दीजिये।
@ नरेश सिह राठौड़
ब्लॉगरों को उनके द्वारा अपने सहयोगियों के बारे में लिखना कठिन कार्य है पर साहस कर के लिख ही दिया।
@ DEEPAK BABA
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अनूप शुक्ल
अगले भाग में लगे हैं, रात भर जगे हैं।
@ राज भाटिय़ा
रोहतक में जमेगा रंग ब्लॉगरों का।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
ReplyDeleteआपके चारों ओर घूमा वर्धा का ब्लॉगर चक्र।
@ डॉ महेश सिन्हा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ काजल कुमार Kajal Kumar
बहुत धन्यवाद।
@ शोभना चौरे
हमें तो चार घंटों में ही वर्षों की आत्मीयता हो गयी थी।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
सबसे मिल ज्ञान भी बढ़ा और आत्मीयता भी।
@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
ReplyDeleteआमन्त्रण तो सबके लिये है, पूर्ण निर्णय सुनाने का बाध्यता केवल सूचीबद्ध व्यक्तियों के लिये है।
@ Rahul Singh
दोनों चित्र मेरे ही हैं, खूँटीं पर टाँगे जाने का चित्र लगाना भी आवश्यक था।
@ विष्णु बैरागी
पिछले चार दिनों से सोच रहा था कि क्या लिखूँ, क्या न लिखूँ? इसीलिये देर हो गयी।
@ anitakumar
श्रद्धाजी तो अभी ब्लॉग न लिख पायेंगी, अभी तो हमें भी विचारात्मक दृष्टि से देख रही हैं। आप से अधिक समय के लिये मिलने की इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है उनकी।
@ Mrs. Asha Joglekar
वक्ता बनाकर जो भी परीक्षा ले ली हो हमारी पर हमें तो वहाँ आनन्द आ गया।
@ cmpershad
ReplyDeleteजुझारूपन तो बना रहेगा।
@ 'उदय'
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ऋषभ Rishabha
आप से व्यक्तिगत रूप से क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपका नाम संदर्भ से छूट गया। लग रहा था कि कुछ छूट रहा है, आपकी टिप्पणी देख कर ही स्मृति में आया।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
वहाँ पहुँच कर तो आनन्दमयी स्थिति हो गयी थी। भोपाल से निकलते समय आपसे भेंट अवश्य होगी।
@ अखिल तिवारी
अनुजों का इतना विश्वास हिन्दी के लिये सौभाग्य लेकर ही आयेगा।
@ आभा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
बहुत धन्यवाद।
@ उन्मुक्त
मुझे भी इतना ही आनन्द मिला था वर्धा में।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
बहुत धन्यवाद आपका पर इस परिचय से भी परे वृहद व्यक्तित्व है ब्लॉगरों का।।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
बहुत ही धन्यवाद आपका।
अरे,यह क्या [आप से व्यक्तिगत रूप से क्षमाप्रार्थी हूँ]?
ReplyDeleteलेकिन यह बात मज़े दार लग सकती है सभी को कि एक ही कमरे में तहरे होकर भी हम दोनों का परिचय तक नहीं हो सका.
खैर, आप दोनों [संभवतः आपकी श्रीमतीजी का नाम श्रद्धा है - मैं गलत भी हो सकता हूँ.]को विजय दशमी की शुभ कामनाएँ!
"बड़े पोस्टर पर आचार-संहिता लिखा देख, विचार भी भाग खड़े हुये क्योंकि विचार तो सदा ही आवारगी-पसन्द रहे हैं।"
ReplyDeleteवाह... एकदम एक नम्बर की रिपोर्ट . वर्धा से जुड़ी अब तक की तमाम रपटों में यशवंत जी की रपट के बाद आपकी रिपोर्ट का नम्बर..... ( कोई बुरा न मानना भाई...)
विजयादशमी की अनन्त शुभकामनाएं.
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .
विजय दशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा ख़ास तौर पर परिचय
यशदीपों के सामने खड़ा, जुगनू सा टिमटिमाता, कौन सा ज्ञान उड़ेल दूँ, नहीं समझ में आ रहा था।
ReplyDeleteसच की कुछ-कुछ ऐसी ही अनुभूति होती है..........
चन्द्र मोहन गुप्त
पढकर अच्छा लगा ..आपका परिचय करने का अंदाज़ पसंद आया ...आभार
ReplyDeleteओह तो आप भी हमें निपटाने के चक्कर में लग गए दीखते हैं ;)
ReplyDeleteवैसे परिचय का यह तरीका अद्भुत है. वर्धा में इस बात का अफ़सोस रहा की न तो आपको ज्यादा सुन सके न ही ज्यादा आपके संसर्ग का लाभ उठा सके,
फिर कभी...
आशा है यह विजयादशमी आपके जीवन में विजय और सफलता के नए सोपान लेकर आएगी
बधाई और शुभकामनाएं
बहुत ही सजीव विवरण..
ReplyDeleteअच्छा हुआ हम नहीं गए...वरना पता नहीं आज मेरे लिए दो पंक्तियों में क्या लिखा होता :)
जस्ट जोकिंग....मिस किया...सबकुछ.
@ ऋषभ Rishabha
ReplyDeleteआपसे एक भेंट अब निश्चित रही। समय की कमी आड़े नहीं आयेगी। हैदराबाद का कार्यक्रम अब शीघ्र ही बनेगा।
@ वन्दना अवस्थी दुबे
लेखन ने कभी न मर्यादा के बाहर ही आना सीखा और न ही आचार संहिताओं में बँधकर रहना। पता नहीं अन्य ब्लॉगर इसे किस रूप में लेते हैं।
@ अशोक बजाज
बहुत बहुत धन्यवाद।
@ इस्मत ज़ैदी
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Mumukshh Ki Rachanain
जिन महानुभावों की रचनायें पढ़कर ब्लॉगिंग करना सीखा उनके सामने उस विषय पर बोलने के लिये सकुचाना ही संभव है।
@ Coral
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Sanjeet Tripathi
आपसे कई प्रश्न पूछने का मन था, सब समय खा गया। निश्चय ही बहुत ही शीघ्र मिलना तय है आपसे।
@ rashmi ravija
आपके ब्लॉग पढ़कर दो पंक्तियाँ तो सोच रखी हैं।
आपने जो मोबाइल बताया . वही खरीद लिया . पहली टिप्पणी आपके नाम .
ReplyDeleteअच्छा है हम तो घर बैठे ही मज़ा ले रहे है
ReplyDeleteआभार
प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteस्वागतं!
इस फोटो में आप बिल्कुल अलग लग रहे हो.... दशहरे की शुभकामनाये...
ReplyDelete@ विवेक सिंह
ReplyDeleteचलिये, अब तो आनन्द ही आ गया।
@ रचना दीक्षित
तब तो एक छोटा सा फोटो व वीडियो भी लगा देना था।
@ ऋषभ Rishabha
इति आनन्दं।
@ चैतन्य शर्मा
आप से ही सीख रहे हैं कि अलग अलग फोटो में भी कैसे स्मार्ट लगा जा सकता है।
आपके बहाने हमारा भी परिचय हो गया सबसे.. सुंदर चरित्र -चित्रण!
ReplyDeleteरोचक संस्मरण, जिवंत प्रस्तुति। और दोहात्मक परिचय ... सोने में सुहागा।
ReplyDeleteAapka parichay dene ka andaz utkrusht raha...man khush ho gaya....
ReplyDeleteaisa lag raha hai jaise hum bhee vahee the.
Bangalore vasee apna phone no dena koshish karenge kabhee milne kee.
शानदार रहा आपका यह अंदाज, सचमुच छा गये आप।
ReplyDelete................
..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?
बड़ा ही अफ़सोस हो रहा है कि मैं इस सम्मलेन में सम्मिलित न हो पायी...
ReplyDeleteइतने कलात्मक और सुन्दर ढंग से आपने ब्यौरा दिया....आभार !!!
@ arun c roy
ReplyDeleteसबका पूरा परिचय देने में अध्याय भर जायेंगे, बड़ा ही सूक्ष्म परिचय ही दिया है।
@ हास्यफुहार
कवित्व व्यक्तित्वों का दोहात्मक परिचय तो बनता ही है।
@ Apanatva
परिचय तो पूर्ण नहीं रहा बस एक एक पक्ष ही बता पाया सबका।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
हर सम्मेलन में छाने का प्रभार तो आपको ही मिला है, हम तो उस छाँह में सुस्ता लेते हैं।
@ रंजना
आप आतीं तो संभवतः अधिक लिख जाता आप पर।
@ Apanatva
ReplyDeleteआप praveenpandeypp@gmail.com पर अपना ईमेल भेज दें, मैं सारा पता बता देता हूँ।
gadya bhaw me padhe an-gin
ReplyDeletepadya bhaw me bas ek pravin.....
pranam.
बहुत सुंदर और निराले ढंग से आपने वर्धा की रिपोर्ट सामने रखी। हिन्दी का सहज संस्कार और प्यार झलकता है आपकी लेखनी से। वर्धा आना तय था, पर यह साकार नहीं हो पाया। देखते हैं, कब मिलना होता है। अगली कड़ियों तक पहुंचता हूं।
ReplyDelete@ sanjay
ReplyDeleteबहुत आभार इस उत्साहवर्धन का।
@ अजित वडनेरकर
आपसे मिलने की उत्कट इच्छा मेरे मन में भी है।
" ब्लॉगिंग को मैं नदी के रूप में मानता हूं। जिसके दोनों किनारों पर एक समाज होता है।
ReplyDelete+ + + +
... तेज चलने वाले नदी के बीचोबीच प्रवाह में होते हैं....
+ + + +
ज्यादा से ज्यादा पढें, कम से कम लिखें, आचार संहिता अपने-आप बनी रहेगी...."
....वर्धा के ब्लॉगिंग सम्मेलन में ये थे आपके प्रमुख विचार।
बधाई।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद, यही विचार ब्लॉग यात्रा में उठे हैं अभी तक।
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २ पोस्ट आई हैं.-हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस और गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार .इन दोनों में इतनी ग़लतियाँ हैं कि लगता है यह किसी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय का ब्लॉग ना हो कर किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे का ब्लॉग हो ! हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस पोस्ट में - विश्वविद्यालय,उद्बोधन,संस्थओं,रहीं,(इलाहबाद),(इलाहबाद) ,प्रश्न , टिपण्णी जैसी अशुद्धियाँ हैं ! गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार- गिरिराज किशोर पोस्ट में विश्वविद्यालय, उद्बोधन,पत्नी,कस्तूरबाजी,शारला एक्ट,विश्व,विश्वविद्यालय,साहित्यहकार जैसे अशुद्ध शब्द भरे हैं ! अंधों के द्वारा छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जा रहे किसी ब्लॉग में इससे ज़्यादा शुद्धि की उम्मीद भी नहीं की जा सकती ! सुअर की खाल से रेशम का पर्स नहीं बनाया जा सकता ! इस ब्लॉग की फ्रॉड मॉडरेटर प्रीति सागर से इससे ज़्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती !
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