कुछ लोगों की सहनशक्ति अद्भुत होती है। उनका अन्तस्थल इतना गहरा होता है कि छोटी मोटी हलचल कहाँ खो जाती है, पता ही नहीं चलता है। वाक्यों की बौछार हो या समस्या का प्रहार, मुखमण्डल में प्रखर साम्य स्थापित। उनसे इतना सीखता रहा जीवन भर कि अब तो दर्पण के सामने खड़े होकर स्वयं को पहचान नहीं पाता हूँ। जीवन जीने में वह गुण अधिक प्रयोग हुआ हो या न हुआ हो पर एक क्षेत्र में यह गुण सघनता से उपयोग में आया है, वह है नखरे सहने में। अब तो बड़े बड़े नखरे पचा ले जाता हूँ, बिना तनिक भी विचलित हुये।
सहजीवन की एक कला है, यह नखरे सहने का गुण। कभी बच्चों के, कभी उनकी माँ के, कभी समाज के कर्णधारों के, कभी यशदीप के तारों के। यह अपार सहनशक्ति यदि जल बन सागर में प्रवाहित हो जाये तो केवल मनु ही पुनः बचेंगे, वह भी हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, भीगे नयनों से प्रलय-प्रवाह देखते हुये।
जब तक हमारी नखरे सहने की कुल क्षमता, नखरे करने वालों की क्रियाशीलता से अधिक रहती है, परिवेश में शान्ति बनी रहती है। जैसे ही सहनशक्ति क्षरित होने लगती है, हुड़दंग मचने लगता है। दो कार वाले सम्पन्न जीव, बेकार सी बात के लिये, साधिकार द्वन्दयुद्ध में उद्धृत दिखाई दे जायेंगे। परिवेशीय संतुलन का यह विशेष गुण शान्तिप्रिय जनों की अन्तिम आशा है, जीवन में स्थायित्व बनाये रखने के लिये। अभ्यास मात्र से यह गुण कितना भी बढ़ाया जा सकता है। अपने अपने जीवन में झाँककर देखिये तो आपको यह तथ्य सिद्ध होता दिख जायेगा।
नखरे सहने का गुण पर इतना परमहंसीय भी नहीं है। प्रेम के समय नखरों को क्षमता से अधिक सहन करने का क्रम अन्ततः किसी विस्फोट के रूप में निकलता है। नेताओं के नखरे पाँच वर्षों बाद सड़कों पर निरीह खड़े दिखते हैं। नखरे न केवल सह लेना चाहिये वरन उसे पचा भी ले जाना चाहिये, सदा के लिये। जो नहीं पचा पाते हैं, विकारग्रस्त होने लगते हैं, धीरे धीरे। इस गुण को या तो कभी न अपनायें या अपनायें तो उस पर कोई सीमा न रखें। बस सहते जायें नखरे उनके, एक के बाद एक, निर्विकार हो।
नखरे सहने के गुण में प्रवीणता पाने के लिये नखरे करने वालों की भी मनोस्थिति समझना आवश्यक है। अपने एक गुण के आधार पर पूरा व्यक्तित्व ढेलने के प्रयास को नखरे के रूप में मान्यता प्राप्त है। यदि प्रेमी बहुत सुन्दर हो तो उसके विचार, उसके परिवार, उसके बनाये अचार, सभी की प्रशंसा आपका कर्तव्य है। एक भी क्षेत्र में बरती कोताही का प्रभाव व्यापक और त्वरित होता है। यदि कोई बड़ा नेता बन गया, किसी भी कारण से, तो उसके व्यवहार का अनुकरण और उसके प्रति बौद्धिक समर्पण दोनों ही आपके लिये आवश्यक है। व्यक्तित्व के प्रति पूर्ण समर्पण ही नखरे सह लेने की योग्यता का आधार स्तम्भ है।
आत्मज्ञान जहाँ एक ओर आपकी सहनशक्ति बढ़ाता है वहीं दूसरे पक्ष की क्रियाशीलता कम भी करता है। भारत में आत्मज्ञानी साधुओं और गृहस्थों की अधिक संख्या, विश्वशान्ति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हैं।
नखरे सहने में और मूर्खता करने में कुछ तो अन्तर हो। नखरे सहते सहते स्वयं ही कश्मीर बना लेना कहाँ की बुद्धिमत्ता है? नखरे सहने की राह सदा ही मूर्खता के गड्ढों से बचा कर रखें, हम सब। कभी न कभी तो दो टूक उत्तर का भी स्थान हो हमारे वचनों में।
धन्य भये प्रभु..इस अध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त कर:
ReplyDeleteसहजीवन की एक कला है, यह नखड़े सहने का गुण
-आप अखण्ड ज्ञानी हैं. :)
गूढ़ ज्ञान दिया, गृहस्थाश्रम में प्रवेश के समय ग्रहण करेंगें। :)
ReplyDeleteनखरों की सुंदर विवेचना है। वक्त जरूरत काम में ली जाएगी।
ReplyDeleteसहजीवन की एक कला है, यह नखड़े सहने का गुण।
ReplyDelete..आज तो आपने फाईन आर्ट की चर्चा छेड़ दी. दर्द बताया घटना छुपा लिया! यह भी एक आर्ट है। दुसरे बहाने से मर्ज की दवा जुटा लो!
..इसका कोई इलाज नहीं है। सहना तो पड़ेगा ही। जो बलवान है, जिसके मोह-पाश में हम बंधे हुए हैं, उनके नखड़े तो जीवन भर सहने पड़ेंगे। कहते हैं न दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती हैं। मोह-माया से मुक्त हो नहीं सकते तो नखड़े का रोना क्या रोया जाय।
इसका नाम ही है नखड़े.. अर्थात न खड़े..रेंगने के लिए विवश करा देने वाली शक्ति।
..जाने क्या लिख गया..अच्छा ना लगे तो गाली ना दें, कृपया मिटा दें।
नखरे सहने के गुण पढ कर नखरे सहने से होने वाले लाभो का लाभ अब मै भी उठाउंगा .
ReplyDeleteऔर नखरे तो सब दिखाते है जनता वोट देते समय और नेता वोट लेने के बाद
नखरा पुराण पढ़कर दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ महा प्रभु . नखरा , उद्दीपन भी हो सकता है नखरा सहने वालो की सहनशक्ति के लिए . बढ़िया आलेख
ReplyDelete"जब तक हमारी नखड़े सहने की कुल क्षमता, नखड़े करने वालों की क्रियाशीलता से अधिक रहती है, परिवेश में शान्ति बनी रहती है"
ReplyDeleteबिलकुल सही, कई बार हमें घर में समझाया जाता है कि सामनेवाला हमारे मुंह पर ही इतना कुछ कहकर चला गया और हम खीसें निपोरते रहे. तब हमें समझ में आया कि हमारे भीतर कोई मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है जिसकी वजह से हमारी श्रीमती जी जो समझ जाती हैं उसे समझने में हमें कई युग लग जाते हैं.
बढ़िया नखरा पुराण ! शुभकामनायें
ReplyDeleteमेरा ख्याल है नखड़ा की जगह नखरा होना चाहिए !
ज्ञानवर्धन हुआ. आभार.
ReplyDeleteनखरे कुछ समय तक की जचतें है, जवानी में औरत के नखरे तो आदमी मजे ले ले कर सहता है, और बुढ़ापे में उन्हीं नखरों को सनक कहता है ... 'क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो ...' ऐसा की कुछ था न... थोड़े व्यंगात्मका रूप से यही बात नखरे करने वालों पर भी लागू हो सकती है ..
ReplyDeleteआत्मसात कर रहा हूँ -बस एक अल्प संशोधन -नखरे सहते सहते खुद को अयोध्या बना लेना कहाँ तक उचित है -यह बात आगे चरितार्थ होनी है ..अब कश्मीर के बाद !
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteक्या अद्भुत लिखा है, प्रवीण जी. पढ़कर बहुत आनंद आया.
महाराज,नखरे पर व्याख्यान अच्छा है,पर मेरी अल्प-बुद्धि के मुताबिक नखरा केवल आत्मीयों के बीच में ही होता है,बाहरी दुनिया में (सड़क या कार्यालय)में जो होता है वह कभी शमन करके सहन करने व कभी उसका उत्तर देने में ही ठीक होता है. सड़क पर झगड़ा करने से बचना निहायत ज़रूरी है,पर बाबुओं या अन्य के द्वारा भ्रष्टाचार सहते रहना गलत होगा.पत्नी,बच्चे,प्रेमिका व दोस्तों के नखरे प्यार से सहो उसी में जीवन की शांति है.
ReplyDeleteपर अगर कोई हद से आगे बढ जाये तो..आखिर सहने की भी हद होती हॆ
ReplyDelete"अभ्यास से यह गुण कितना भी बढाया जा सकता है, पर क्षमता से अधिक सहन करने का क्रम विस्फोट भी कर सकता है।"
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी जी यह पोस्ट
प्रणाम स्वीकार करें
आजकल मेरा कंप्यूटर भी नखरे करना लगा है।
ReplyDeleteइलाज स्टैन्डर्ड है।
बस, reboot करो, नखरे बन्द।
काश पत्नि, छोटे बच्चे, वृद्ध पिताजी/माताजी, कार्यालय के problematic कर्मचारी, हमारे कुत्ते वगैरह के नखरों का भी ऐसा आसान हल होता।
क्या नखरे और लोग ही करते हैं ? क्या हम स्वयं निर्दोष हैं?
हमारी पत्नियाँ या दफ़्तर में हमारे बॉस साहब बता सकेंगे हम खुद नखरें कित्ना करते हैं कभी कभी।
जब नखरे सफ़ल होते हैं तो नखरे बढने लगते हैं।
बढिया लेख। अच्छा लगा पढकर.
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
जब तक हमारी नखरे सहने की कुल क्षमता, नखरे करने वालों की क्रियाशीलता से अधिक रहती है, परिवेश में शान्ति बनी रहती है। जैसे ही सहनशक्ति क्षरित होने लगती है, हुड़दंग मचने लगता है.
ReplyDeleteये पंक्तियाँ हर परिपेक्ष में एकदम सटीक बैठती हैं :)
आज तो गज़ब का टोपिक चुन कर लाए हैं आप ..
और आखिरी पंक्तियाँ ..महा ज्ञान.
बहुत अच्छा लगा आपका चिंतन.
नखरे सहने की आपकी अद्भुत क्षमता ज़रूर आपको अपने जीवन में उचित फल देती होगी. हम कोशिश में रहते हैं की कैसे नखरे सह लें. आपने बताया नहीं इसके लिए क्या प्रयोग (exercises) करनी होगी..
ReplyDeleteआभार
मनोज खत्री
सहजीवन की एक कला है, यह नखरे सहने का गुण। .....saath hi nakhre uthane ka gun bhi.... rochak lekh
ReplyDeleteजय हो नखरा पुराण की……………अच्छा आलेख्।
ReplyDeleteक्या बात कही है आपने....चिंतनीय है...
ReplyDeleteएक लाइन संजोग कर रख ले रही हूँ अपने पास...
"नखरे सहते सहते स्वयं को कश्मीर बना लेना कहाँ की बुद्धिमत्ता है?"
ये कथा अच्छी रही. पर मैं सिर्फ इतना ही कहूँगी नखरे वो ही करेगा जिसके सहे जायेंगे, जैसे मैं.
ReplyDeleteबहुत बढिया ... ग्यन भी है.. विग्यान भी है...हास्य भी है.. व्यन्ग भी है... जीवन की कला है नखडा करना और सहना... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआप कैसे सामान्य सी बातों को दार्शनिक पुट दे देते हैं. आपकी ये विशेषता आपकी पोस्ट को विचारों के उच्च धरातल पर ले जाती है.
ReplyDeleteवैसे कुछ लोगों को इससे व्यावहारिक ज्ञान हुआ है कि नखरे सहने की कला जीवन में शान्ति और समन्वय बनाए रखती है.:-) पर सच बात तो ये ही है कि सारे नखरे सह लेने पर सामने वाला कश्मीर हो जाता है, तो अंतिम बात याद रखने लायक है कि कभी-कभी दो टूक जवाब भी दे देना चाहिए.
प्रवीण जी, बड़ा अच्छा विषय चुन कर ज्ञान गंगा में स्नान करवाया, अब इस पर भी टिप्पणी करें,
ReplyDeleteक्या संसार में दो तरह के लोग हैं, एक वो जो नखरे करते हैं और दूसरे वो, जो नखरे सहते हैं?
कौन किस श्रेणी में रहे, ये ऊपर वाला तय कर देता है या निर्णय हमारा है ?
नखरे करने का मज़ा क्या जब नखरे उठाने वाला ही न हो तो ? वैसे ये कला तो सोलह कला से अवतरित श्रीकृष्ण में भी नहीं थी...आप धन्य हैं प्रभु। !
ReplyDeleteअब प्रतिक्रिया पढ़ कर फिर मुखरित होने में नखरा ना करते हुए,
ReplyDeleteरचना जी ने ठीक कहा की नखरे वो ही करेगा, जिसके सहे जायेंगे.
और नखरे के साथ कश्मीर का सन्दर्भ आने के बारे में मुझे लगता है, नखरा शब्द में थोड़ी नजाकत है, उसे लेकर 'आतंकवाद' तक खींच दिया, तो सन्दर्भ का मैदान बदल गया, मुझे लगता है प्रवीणजी की सीख लेकर हम संभावित बड़े संघर्षों के लिए उर्जा संचित कर सकते हैं - धन्यवाद के साथ 'ब्लॉग जगत' में इस परिवार की उपस्थिति के प्रति विस्मय्युक्त नमन
प्रवीन्नानंद महाराज की जय |
ReplyDeleteनखरो का अच्छा विश्लेष्ण |
नखरे तो नखरे हैं - न खरे न खोटे :)
ReplyDeleteनखरों की उम्र बहुत कम होती है...चाहे नखरे सहने वाला कितना भी सहनशील क्यूँ ना हो
ReplyDeleteजिसने जिन्दगी में नखरे उठाना नहीं सीखा उसने भला क्या सीखा? पुरुषों काम ही है नखरे सहना और महिलाओं का नखरे करना। हा हा हा हां
ReplyDeleteआप संत 'इन द मेकिंग' हैं, सर! बहुत अच्छी और सच्ची पोस्ट!
ReplyDeleteज़बरदस्त, एक अलग दृष्ठि कोण, वैसे बुरा न माने तो भाभीजी को मेरा नमस्ते कहिएगा :)
ReplyDeleteजहां सहन शक्ति की सीमा खत्म वही अशांति और झगडा शुरू |
ReplyDeleteनखरा पुराण क्या बात है गूढ चिन्तन। चलिये आज से हम तो कम से कम नखरे नही करेंगे। कुछ जीव बहुत दुखी हैं त्रस्त हैं शायद । क्या हमारी बहु रानी ने पढा ये आलेख? अगर पढ लिया तो पता नही कितने नखरे आपको और सहने पडें। देखते हैं क्या होता है।
ReplyDeleteशुभकामनायें
क्या बात है,लेकिन आप ने नखरे ओर धोंस को मिला दिया, नखरो मै तो प्यार ओर अपना पन होता है, ओर धोंस मै..... धमकी, तो बाबा हम तो धमकी नही सहते, ओर नखरो पर हम मरते है चाहे बच्चो को हो या उन की अम्मा के.
ReplyDeleteधन्यवाद इस नखरा कथा के लिये
जब तक हमारी नखरे सहने की कुल क्षमता, नखरे करने वालों की क्रियाशीलता से अधिक रहती है, परिवेश में शान्ति बनी रहती है। जैसे ही सहनशक्ति क्षरित होने लगती है, हुड़दंग मचने लगता है.
ReplyDelete---------------------------------
यह पंक्तियाँ पढ़कर चहरे पर मुस्कराहट आयी पर सचमुच यही गूढ़ रहस्य है.... इस नखरा पुराण का ......
हम बच्चों के नखरे और हुडदंग तो सबको बहुत परेशान करते है....
ReplyDeleteआज तो अच्छी बात बताई आपने ...सोचना पड़ेगा....
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ReplyDelete.
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अपन तो नखरे सहने की इस कला के उस्ताद हैं जी... तभी तो दिन में एक घंटा नैट पर बैठने को और तीन टाइम भोजन भी मिल पाता है... बताइयेगा मती किसी से भी... ;)
...
... saarthak abhivyakti !!!
ReplyDeleteनखरे सहने में और मूर्खता करने में कुछ तो अन्तर हो। नखरे सहते सहते स्वयं ही कश्मीर बना लेना कहाँ की बुद्धिमत्ता है? नखरे सहने की राह सदा ही मूर्खता के गड्ढों से बचा कर रखें, हम सब। कभी न कभी तो दो टूक उत्तर का भी स्थान हो हमारे वचनों में।
ReplyDeletematlab ab riste bhee nakharo ki prathamikta par tai honge.
बड़ा ही ग़ज़ब का ज्ञान दिया है आपने.... मैंने तो इतने नखरे सहे हैं ... कि पूछिए मत... एक साथ मैं इतनी लड़कियों को संभालता था.... कि आज भी अपने टैलेंट पर प्राउड होता है... सात-आठ के तो अभी भी नखरे सह ही रहा हूँ.... वैसे एक बात तो है... कि नखरे सहना भी एक आर्ट है... ही ही ही .... एक बात तो है.... आपमें ग़ज़ब का सेन्स ऑफ़ एक्सप्रेशन है.... ग़ज़ब का.... सचमुच ............बहुत ही ग़ज़ब का....
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteदेसिल बयना-नदी में नदी एक सुरसरी और सब डबरे, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
Epandit urf shreesh maasaab se 100 feesdi sehmat hu mai to
ReplyDeleteबात सोलह आने सही बोल रहे हैं पर जब काम आना चाहिए तब सहन शक्ति की बात भूल जाते है ...शब्दों का सही उपयोग आपकी हिंदी की उत्कृष्टता सिद्ध कर रहा है जनाब !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
ReplyDeleteमध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें
bahut hi gehre gyan ki bat kahi bandhu bar, aapki gyansheelta ke hum kayal ho gaye..
ReplyDeletesundar lekh
जो नखरे करके तनते हैं
ReplyDeleteवे खरे बहुत ही बनते हैं
झूठा गुस्सा दिखलाते हैं
अपनी बातें मनवाते हैं
टेड़ी करते हैं कभी नाक
गीली करते हैं कभी आँख
नख दिखा डराते कभी कभी
रे चमकाते फिर दबी दबी
नखरा सहने में मजे बड़े
क्या नखरे जब तक नख न लड़े
बहुत खूब!
ReplyDeleteप्रवीण जी. पढ़कर बहुत आनंद आया.
बहुत खूब
ReplyDeleteनखरा पुराण पढ़कर दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ
आभार
मिलिए ब्लॉग सितारों से
बातों ही बातों में बहुत कुछ कह गये आप ... परिवार से लेकर राजनीति तक ... सच है नखरे सहते रहना .... लगातार सहते रहना विस्फोटक स्थिति को जनम देता है और इससे जितना बचा जा सके बचना चाहिए ....
ReplyDeleteया फिर नखरे सहने का मादा दोनो तरफ होना चाहिए ....
ऐसे पढ़े लिखे होने से अनपढ़ होना अच्छा विकल्प था. कहना गलत न होगा कि अनपढ़ों के चलते ही आजादी मिल सकी...
ReplyDeleteऐसे पढ़े लिखे का मतलब आप अपने लिये या औरों के लिये न लीजियेगा. मेरा मतलब ऐसे विखंडनीयता पसंद तत्वों के लिये है जो अपनी योग्यता से दूसरों के लिये कांटे बोने का काम करते हैं...
ReplyDeletePraveen ji,
ReplyDeleteEk achchhe aur sargarbhit lekh ke liye badhai.
Poonam
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteआप के अन्दर से सहसा अहा का स्रोत फूटा। इससे पता चलता है कि एक महासागर तो आप के अन्दर भी बसता है।
@ ePandit
गृहस्थाश्रम में प्रारम्भ में ही आपको इतने पहाड़ चढ़ने पढ़ेंगे कि पर्वतारोहण आपकी अभिरुचि ही बन जायेगी।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
क्या पचपन तक भी चलता है यह नखरास्त्र।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
घटना बताने में ग्रन्थ भरने की संभावना थी, पीड़ा तो एक पोस्ट में उतारी जा सकती है। रेंगने पर तो विवश हैं, लेटे लेटे ही यह पोस्ट भी लिखी है।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
आप चाह के भी इतने नखरे नहीं कर पायेंगे। उतनी मारक क्षमता नहीं होती है उनमें, जिन्हें ज्ञात होता है कि वे नखरे कर रहे हैं।
@ ashish
ReplyDeleteदेश की सहनशक्ति बढ़ती रहे उसका प्रशिक्षण हम तो समुचित पा रहे हैं, आप लोग भी उसे अनिवार्य समझ कर ग्रहण करें, विवशता समझ कर नहीं।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
आपकी यह सहनशीलता तो आपको शान्ति के नोबुल पुरस्कार के योग्य बनाती है। नखरे सहने के लिये पता नहीं कब मिला रेगा पुरस्कार।
@ सतीश सक्सेना
त्रुटि सुधार ली है। अब आपको समझ में आया कि नखरे सहते सहते शब्द भी साथ छोड़ देते हैं।
@ P.N. Subramanian
हमें यह ज्ञान तो अनुभव में ही प्राप्त हो जाता है।
@ Majaal
नखरों को सहते सहते उसकी सीमा ढूढ़ने की शक्ति नहीं रहती, वह स्वभाव ही बन जाता है।
@ Arvind Mishra
ReplyDeleteहम तो सोच रहे थे कि आप के रूप में बड़ी नदी मिलेगी पर आप अपने नखरे सहने का आकार भी छिपाने लगे।
@ Shiv
अभी तक तो हम समझते थे कि सहकर ही आनन्द आता है।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
जब नेताओं और अभिनेताओं को अपना मान ही लिया है तो उनके नखरे सहने में क्या आपत्ति।अपनों के तो बिना माने ही सहने पड़ते हैं।
@ Ashish (Ashu)
इसीलिये तो कहते हैं कि प्यार में लोग हर हद से गुज़र जाते हैं।
@ अन्तर सोहिल
विस्फोट की प्रक्रिया में हैं कि हो चुका है। बहुत धन्यवाद।
@ G Vishwanath
ReplyDeleteनखरे बन्द करने का कोई क्रैश कोर्स हो, हम भी कर लेते हैं। अपने गिरेबान में झाँक कर देखते हैं तो बड़ा खतरनाक नखरेबाज़ दिख जाता है। कभी कभी अनचाहे ही लोगों को कष्ट पहुँचाने का क्रम भी हो जाता है।
@ shikha varshney
चिंतन तभी फूटता है जब घड़ा भर जाता है। देश का भी भर रहा है।
@ Manoj K
ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या मान कर सब नखरे सह जायें। नखरे का जन्म हुआ है तो अन्त भी होगा, निर्द्वन्द हो सह लें।
@ मेरे भाव
यही गुण पता नहीं कितने परिवारों को जोड़े हुये है।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद।
@ रंजना
ReplyDeleteकश्मीर का इतिहास उठा कर देख लें, नखरे सहने का पूरा का पूरा ग्रन्थ लिखा पायेंगी। किस किस के नखरे नहीं सहे गये हैं?
@ रचना दीक्षित
उन महान के दर्शन करा दीजिये जो सह रहे हैं, प्रणाम कर लेंगे।
@ arun c roy
पर इस पोस्ट की जड़ों में पीड़ा है, वह नहीं देख पाये आप।
@ aradhana
हमारे तो पता नहीं कितने कश्मीरवत सम्बन्धी हो गये हैं, टोकना व रोकना तो हमको आया ही नहीं। बस अनाड़ी फिल्म का गाना गुनगुना लेते हैं - सब कुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी...
@ Ashok Vyas
अध्ययन करने से पता लगा है कि यह एक दैवीय गुण है। सृष्टि रचते समय पृथ्वी में पर्याप्त दाँय मची रहे, इसके लिये कई नखरे करने वालों को एक सहने वालों के साथ अवतरित किया जाता है। अपने परिवेश में ध्यान से देखिये।
@ ZEAL
ReplyDeleteकृष्णजी ने जितने नखरे किये, उससे अधिक सहे भी।
@ शोभना चौरे
दर्द ही दवा बन गया है, अब चाहे नाम के आगे आनन्द लगायें या गिरि लगायें।
@ cmpershad
नखरों की श्रेणी नहीं हो सकती। प्रभाव व उत्पत्ति विशुद्ध एकसूत्रीय है।
@ rashmi ravija
कम को कैसे परिभाषित करेंगी, एक या दो दशक।
@ ajit gupta
हम भी अपना प्रारब्ध मान कर ही सहते हैं, पीड़ा कम हो जाती है।
@ Anjana (Gudia)
ReplyDeleteयदि नखरे सहते सहते संत हुआ जा सकता है तो शीघ्र ही नखरामार्गी सम्प्रदाय प्रारम्भ करना पड़ेगा, आधी आबादी तो अनुयायी अवश्य हो जायेगी।
@ पी.सी.गोदियाल
नमस्कार पहुँचा कर प्वाइण्ट भी स्कोर कर लिये हैं।
@ नरेश सिह राठौड़
सच कह रहे हैं आप, ऐसे कितने ही झगड़ों के मुहाने से बचा कर लाया हूँ स्वयं को।
@ निर्मला कपिला
आप कर लीजिये, आपकी बहू अपनी बहू से अपना हिस्सा निकाल लेगी। शुभकामनायें स्वीकार करने के लिये।
@ राज भाटिय़ा
नखरे और धौंस में इतना महीन फर्क दिखता है हमें कि हम दोनों का परमहंसीय सेवन करते रहते हैं।
@ डॉ. मोनिका शर्मा
ReplyDeleteकभी कभी मन ने विद्रोह के स्वर उठाये पर उसे भी शान्ति के नोबल पुरस्कार का लोभ दे फुसला लिया।
@ चैतन्य शर्मा
आप लोगों के नखरे देख कर तो आनन्द आता है। आप सीरियस मत होना।
@ प्रवीण शाह
हमारा भी स्वास्थ्य बना है और ब्लॉगिंग भी हो रही है। यही तो गण है इस कला में।
@ 'उदय'
बहुत धन्यवाद।
@ Poorviya
प्राथमिकता पर नहीं पर सीमा पर तो तय हो सकते हैं।
@ महफूज़ अली
ReplyDeleteअब समझ में आया कि जिम में जाकर इतनी सहनशीलता क्यों बनायी जा रही है। आप कक्षायें कब प्रारम्भ कर रहे हैं, हम आ जायेंगे विद्यार्थी बने।
@ संगीता पुरी
बहुत धन्यवाद।
@ मनोज कुमार
बहुत धन्यवाद।
@ Sanjeet Tripathi
देवप्रदत्त सुख की शुभकामनायें। हम पर इतने प्रसन्न कभी नहीं रहे देव।
@ राम त्यागी
सहते सहते अब तो न सहने वाली जगहों पर भी सह जाते हैं।
@ राजभाषा हिंदी
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ ALOK KHARE
सहने से उत्पन्न है यह कहने का ज्ञान।
@ विवेक सिंह
हर दिल जो नखरा सहेगा, वह गाना गायेगा।
नखरा करने वाला भी तब पहचाना जायेगा।
आप धन्य हैं जो इतना अन्दर तक डूबे हैं।
@ संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद।
@ क्रिएटिव मंच-Creative Manch
आपका दिव्यज्ञान नखरे सह कर विश्वशान्ति में सम्यक योगदान दे, ईश्वर से प्रार्थना है।
@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteनखरे करने वाले में सहने का भी माद्दा होना चाहिये, शत प्रतिशत सहमत।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
सच कह रहे हैं, पढ़ाई अधिक करने के साथ साथ नखरे सहने की क्षमता बढ़ती जाती है।
@ JHAROKHA
बहुत धन्यवाद।
हास्य भी, गंभीरता भी और चिंतन भी.. यानी आल इन वन.. कुछ भी मतलब निकालो पोस्ट का.. :)
ReplyDeleteइतनी देर से पढ़ी इतनी अच्छी पोस्ट ...!
ReplyDeletebilkul satik chitran kiya hai aapne nakhare bhare jeevan ka......great cintan....thanks archana
ReplyDeleteनखरे सहने में और मूर्खता करने में कुछ तो अन्तर हो
ReplyDeleteकरामाती पकड़ है आपकी................ काश्मीर भी पहुंचा ही दिया आपने...........
हार्दिक बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
wah sunder vivechanaa....
ReplyDeletesarvopyogee.......
Aabhar
@ दीपक 'मशाल'
ReplyDeleteआप तो पर सब मतलब निकाल लेंगे।
@ वाणी गीत
बहुत धन्यवाद, पढ़ तो ली।
@ zindagi-uniquewoman.blogspot.com
यह तो नखरे सहने वाले की कहानी है।
@ Mumukshh Ki Rachanain
कश्मीर में तो नखरों का सागर तैयार कर लिया है।
अब तो बड़े बड़े नखरे पचा ले जाता हूँ, बिना तनिक भी विचलित हुये।
ReplyDeleteकैसे कर पाते हैं यह ? या यह गुण सिर्फ ाप लोगों को ही मिला है ?
१-इस गुण को या तो कभी न अपनायें या अपनायें तो उस पर कोई सीमा न रखें। बस सहते जायें नखरे उनके, एक के बाद एक, निर्विकार हो।
ReplyDelete२-कभी न कभी तो दो टूक उत्तर का भी स्थान हो हमारे वचनों में।
इन दोनो बातों को एक साथ साध लेना किसी भी नखरे को सहने से ज्यादा होशियारी की मांग करता है। आप वाकई प्रवीण हैं।
vrihad gyaan deta aalekh......
ReplyDeletejaati kya , vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay aur tasweer ke saath
बहुत ही सुन्दर पोस्ट .बधाई !
ReplyDelete@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteपरिस्थितिजन्य गुण हैं, कभी अभिमान होता है, कभी विवशता लगती है।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
हमने अपने चारो ओर कश्मीरवत संबन्धियों की सेना बना ली है, नखरे सहते सहते। बहुधा मनाने के लिये सर्वदलीय वार्तामंडल भेजना पड़ता है।
@ रश्मि प्रभा...
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अशोक बजाज
बहुत धन्यवाद आपका।
नखरे सहने में और मूर्खता करने में कुछ तो अन्तर हो।
ReplyDeleteबरसों सहा पर आह भी निकली नहीं कभी
अब सह नहीं सकता हूँ कमी इतनी रही है
सहते हुए मैं समझा था वे सुधरेंगे कभी
खुशफहमी में ऐसी यकीं अब तो नहीं है।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteदमदार पंक्तियाँ। नखरे सहते सहते क्या से क्या हो गये?
कभी-कभी नखरा भी बहुत अखरा है,
ReplyDeleteजितना समेटो, उससे ज्यादा बिखरा है|
@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
ReplyDeleteसमेटने का प्रयास व्यर्थ है, सहनशक्ति ही फैला लें।