समय के पीछे भागने का अनुभव हम सबको है। यह लगता है कि हमारी घड़ी बस 10 मिनट आगे होती तो जीवन की कितनी कठिनाईयाँ टाली जा सकती थीं। कितना कुछ है करने को, समय नहीं है। समय कम है, कार्य अधिक है, बमचक भागा दौड़ी मची है।
समय बहुमूल्य है। कारण विशुद्ध माँग और पूर्ति का है। समय के सम्मुख जीवन गौड़ हो गया है। बड़े बड़े लक्ष्य हैं जीवन के सामने। लक्ष्यों की ऊँचाई और वास्तविकता के बीच खिंचा हुआ जीवन। उसके ऊपर समय पेर रहा है जीवन का तत्व, जैसे कि गन्ने को पेर कर मीठा रस निकलता है। मानवता के लिये लोग अपना जीवन पेरे जा रहे हैं, मानवता में अपने व्यक्तित्व की मिठास घोलने को आतुर। कुछ बड़ी बड़ी ज्ञानदायिनी बातें जो कानों में घुसकर सारे व्यक्तित्व को बदलने की क्षमता रखती हैं। उनको सुनने के बाद कहाँ विश्राम, एक जीवन कम लगता है उस पर लुटाने को। समय के साथ लगी हुयी है दौड़। जीवन की थकान को उपलब्धि का लॉलीपॉप। मानसिक सन्तोष कि आप के सामने गाँव की नहरिया नहीं, होटल ललित अशोक का स्वीमिंग पूल है। खाने को दाल रोटी नहीं, वाइन व श्रिम्प है। भूख, गरीबी, बेरोजगारी के मरुस्थल नहीं, विकास व ऐश्वर्य की अट्टालिकायें हैं। आप भाग रहे हैं समय के पीछे।
कभी कभी आनन्द व ध्यान के क्षणों में आपने अनुभव किया होगा कि समय रुका हुआ सा है। आप कुछ नहीं कर रहे होते हैं तो समय रुका हुआ सा लगने लगा। अच्छा लेख, कविता, ब्लॉग व पुस्तक पढ़ना प्रारम्भ करते हैं समय रुका हुआ सा लगता है, पता नहीं चलता कि छोटी सुई कितने चक्कर मार चुकी है। न भूख, न प्यास, न चिन्ता, न ध्येय, न आदर्श, न परिवार, न संसार। आपके लिये सब रुका हुआ। अब इतनी बार समय रोक देंगे तो जीवन को सुस्ताने का लाभ मिल जायेगा। प्रेम में पुँजे युगलों से पूछता हूँ कि क्या भाई ! मोबाइल पर 3 घंटे बतिया कर कान व गला नहीं पिराया? अरे, पता ही नहीं चला। सम्मोहन किसमें है? मोबाइल में है, प्रेमी में है, आप में है या होने वाली बात में है। विवाहित मित्र उचक के उत्तर देंगे, किसी में नहीं। वह समय कुछ और था, रुका हुआ लगता था अब तो लगता है बलात् कढ़ील के लिये जा रहा है।
सम्मोहन तो जीवन का ही है, समय का नहीं। जीवन जीने लगते हैं और समय नेपथ्य में चला जाता है। आकर्षण व्यक्तित्व का होता है, आयु का नहीं। महान कोई एक विचार बना देता है, बेचारी व्यस्तता नहीं।
मैं कल्पना करता हूँ कि मैं बैठा हूँ समय से परे, अपने अस्तित्व के एकान्त में। दरवाजे पर आहट होती है, आँखें उठाता हूँ। भंगिमा प्रश्नवाचक हो उसके पहले ही आगन्तुक बोल उठता है। मैं समय हूँ, आपके साथ रहना चाहता हूँ, आपकी गति से चलना चाहता हूँ, मुझे स्वीकार करें। पुनः माँग हुयी और पूर्ति भी, बस दिशा बदल गयी। जीवन समय से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
काल की अग्नि में सबको तिरोहित होना है। मैं दौड़ लगा कर आत्मदाह नहीं करूँगा। अपना जीवन अपनी गति से जीकर आगन्तुक से कहूँगा।
" आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ "
कभी कभी आनन्द व ध्यान के क्षणों में आपने अनुभव किया होगा कि समय रुका हुआ सा है। आप कुछ नहीं कर रहे होते हैं तो समय रुका हुआ सा लगने लगा। अच्छा लेख, कविता, ब्लॉग व पुस्तक पढ़ना प्रारम्भ करते हैं समय रुका हुआ सा लगता है, पता नहीं चलता कि छोटी सुई कितने चक्कर मार चुकी है। न भूख, न प्यास, न चिन्ता, न ध्येय, न आदर्श, न परिवार, न संसार। आपके लिये सब रुका हुआ। अब इतनी बार समय रोक देंगे तो जीवन को सुस्ताने का लाभ मिल जायेगा। प्रेम में पुँजे युगलों से पूछता हूँ कि क्या भाई ! मोबाइल पर 3 घंटे बतिया कर कान व गला नहीं पिराया? अरे, पता ही नहीं चला। सम्मोहन किसमें है? मोबाइल में है, प्रेमी में है, आप में है या होने वाली बात में है। विवाहित मित्र उचक के उत्तर देंगे, किसी में नहीं। वह समय कुछ और था, रुका हुआ लगता था अब तो लगता है बलात् कढ़ील के लिये जा रहा है।
सम्मोहन तो जीवन का ही है, समय का नहीं। जीवन जीने लगते हैं और समय नेपथ्य में चला जाता है। आकर्षण व्यक्तित्व का होता है, आयु का नहीं। महान कोई एक विचार बना देता है, बेचारी व्यस्तता नहीं।
मैं कल्पना करता हूँ कि मैं बैठा हूँ समय से परे, अपने अस्तित्व के एकान्त में। दरवाजे पर आहट होती है, आँखें उठाता हूँ। भंगिमा प्रश्नवाचक हो उसके पहले ही आगन्तुक बोल उठता है। मैं समय हूँ, आपके साथ रहना चाहता हूँ, आपकी गति से चलना चाहता हूँ, मुझे स्वीकार करें। पुनः माँग हुयी और पूर्ति भी, बस दिशा बदल गयी। जीवन समय से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
काल की अग्नि में सबको तिरोहित होना है। मैं दौड़ लगा कर आत्मदाह नहीं करूँगा। अपना जीवन अपनी गति से जीकर आगन्तुक से कहूँगा।
" आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ "
बमचक भागा दौड़ी के बीच आपका प्रवचन सुना-बड़ा अच्छा लगा...अब फिर निकलते हैं बमचक भागा दौड़ी के लिए.
ReplyDelete...at my back I always hear
ReplyDeleteTime's winged chariot hurrying near;
And yonder all before us lie
Deserts of vast eternity.
.
.
.
The grave's a fine and private place,
But none I think do there embrace.
- from To his Coy Mistress by Andrew Marvell
सुबह के चार बजे से ही आँखों से नींद उड़ी हुई थी. पांच मिनट पहले उठकर झक मारकर कम्प्युटर चालू कर कनेक्ट किया तो आपकी पोस्ट को सबसे ऊपर पाया.
सचमुच ठहरा हुआ सा है समय. दफ्तर में एक टेबल से दूसरे टेबल तब भागमभाग के बीच समय के में तो इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि अपना जीवन भी कही किसी दराज में कागजों के बीच रखकर भूल आये हैं. घर वापसी पर दोनों छोटे बच्चे किलकारियों से स्वागत करते हुए दोनों कन्धों से झूल जाते हैं और समय पीठ पीछे लौट जाता है. फिर वह अपनी आमद रात के इन्ही क्षणों में देता है जब बाहर-भीतर सन्नाटा पसरा हुआ हो और मनन करने के लिए समय तो बहुत हो पर साहस न हो यह भी पूछने का कि 'यह सब क्या... और क्यों... कब तक... और उसके बाद?'
समय का पहिया, समय की चक्की... बहुत सुंदर प्रतीक गढ़े मनुष्य ने. किसी ने नदी कहा, किसी ने हवा. किसी ने खंज़र कहा, किसी ने दवा.
अब इस प्रतीक्षा में हूँ कि द्वार पर आहट हो और समय का साक्षात्कार करूं. आपका निमंत्रण स्वीकार कर चुका हूँ.
जीवन समय से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
ReplyDeleteयही करना है हम में से हरेक को । कहना है आगन्तुक समय को, " आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ "
बहुत सार्थ लेख ।
निबंध की प्रांजल शैली का अपना एक चिरन्तन आकर्षण होता है -आज के लेख को पढ़ते हुए जैसे समय ठहर सा गया ..काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम ..महापुरुष कह गए हैं ...काल बली होता है ..सृजनात्मकता से जैसे उसे होड़ है जलन है ..फिर भी कुछ लोग समय के पृष्ठ पर अपने होने का हस्ताक्षर कर अमरता का वरण कर जाते हैं ...
ReplyDeleteसमय के पृष्ठ पर हमने लिखी थी मोर पंखों से ऋचायें ....काल बली है ..वह अटल है ..कालो न याता वयमेव याता..हम ही उसकी अटलता के आगे दम तोड़ देते हैं ...अटल काल को टालने के दूजा कोई और उपाय नहीं बस वह अकूत अनन्त सृजन से घबराता है ....पराजित हो जाता है ....सृजन के आयाम उसे जैसे आवेष्ठित कर लेते हों ..पर अनवरत सतत सृजन ...विघ्न हुआ जहाँ तो काल बली हो उठता है .....यम हो उठता है ....
सही कहा पण्डे जी जीवन की गति का अंदाजा तो उसीको होगा जो जीवन कष्ट प्रद जीवन व्यतीत कर रहा होगा अच्छा लगा बधाई
ReplyDeleteसमय ............ एक मदारी है जो सब को अपने हिसाब से नचाता है .
ReplyDeleteकुछ समय पहले तक मै अपनी जिन्दगी को बहुत आराम से काट रहा था पर समय की बलिहारी है आज मै बहुत बिज़ी हूं . तीहरी जिन्दगी जी रहा हूं .म्रगमारिचिका मे फ़स कर .
इस भागदौड में ऐसे चिंतन आते रहते हैं और फिर से भागमभाग में सब कुछ भूल समय के चक्र को भूल जाते हैं ....
ReplyDeleteYeah praveen ji, Time is precious magar kitne log ise seriously lete honge nahee maaloom .
ReplyDeleteसचमुच कुछ ब्लॉग तो ऐसे हैं जिन्हें पढने बैठो तो समय का एहसास ही नहीं होता ...एक के बाद एक कई रचनाएँ पढने के बाद पहले अपने इन्टरनेट लिमिट का ध्यान आता है और फिर समय का ...
ReplyDeleteअंधी दौड़ से बचकर अपना जीवन अपनी गति से जीना ही जीवन की सार्थकता है ...सचमुच !
ये सुईं के चक्कर में ही फ़ँसे हैं, सुईं तो अपनी जगह बिल्कुल समय से घूमती रहती है पर आदमी इसके फ़ेर में पड़कर घनचक्कर बन जाता है, काश कि दस मिनिट काम या ज्यादा करने का प्रावधान प्रकृति ने हमें दिया होता, तो बहुत सी मुश्किलें खड़ी होती और उससे ज्यादा मुश्किलें आसान हो जातीं।
ReplyDeleteसमय के सामने जीवन गौड़ हो गया है ...
ReplyDeleteनिश दिन लक्ष्य की फूहड़ दौड़ हो गया है
समय की दाँव पर लगा है सबकुछ
जीना भी जैसे घुड़दौड़ हो गया है
... सार्थक पोस्ट.. बधाई
http://padmsingh.wordpress.com
bhagdaud ke bich hi to swaagat hai ... bahut badhiyaa
ReplyDeleteउस आगंतुक के आने की आहट मात्र से लोग चौक जाते है | आप स्वागत करना चाहते है |
ReplyDeleteकाल की अग्नि में सबको तिरोहित होना है। मैं दौड़ लगा कर आत्मदाह नहीं करूँगा। अपना जीवन अपनी गति से जीकर आगन्तुक से कहूँगा।
ReplyDelete" आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ "
भाग दौड करते हुए भी समय का स्वागत करना ...और किसी न किसी आकर्षण में बंध समय का ध्यान न रहना ...एक सार्थक लेख ...पढते हुए जैसे वक्त ठहर गया ...
बहुत सच कहा है आपने ....
ReplyDelete------------------
एक ब्लॉग में अच्छी पोस्ट का मतलब क्या होना चाहिए ?
मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।
ReplyDeleteअपने समय को सर्वोत्तम ढंग से प्रयोग करने के लिए बडी शक्ति आवश्यकता होती है। इसलिए धैर्यता, नम्रता और सहनशक्ति धारण करो।
फ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!
sundar post.
ReplyDelete"समय बड़ा बलवान है "
ReplyDeleteहमेशा अपने बडो के मुख से यह सुनते आये है |जीवन की सकारात्मकता को निर्दिष्ट करता सशक्त आलेख |
sir ji, bahut hi achi post...
ReplyDeleteमैं दौड़ लगा कर आत्मदाह नहीं करूँगा। अपना जीवन अपनी गति से जीकर आगन्तुक से कहूँगा।
ReplyDelete" आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ "
और यह संकल्प ज़िन्दगी खुशनुमा बना देगा.
सुन्दर पोस्ट. कुछ स्वागत में बैठे लोग घडी की गति को १०/२० मिनट तेज रखे होते हैं!
ReplyDelete"अच्छा लेख, कविता, ब्लॉग व पुस्तक पढ़ना प्रारम्भ करते हैं समय रुका हुआ सा लगता है,...."
ReplyDeleteब्लाग पढते ऐसे लगा कि समय रुक गया :)
सुन्दर दर्शन है प्रवीण जी.. समय भी ठहर के या फिर चलते-चलते ही पढ़ ही लेगा ये तो..
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteबमचक तो आज यहाँ भी मचा रहा। पुनः पढ़ा तो लिखने बैठ गये, समय को प्रतीक्षारत रख कर।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
ReplyDeleteआपके लेख का प्रवाह पोस्ट से कहां भारी था। आपको कहीं कुरेद कर मैं ही लाभान्वित हो गया। बहुत सच है आपका सन्नाटा। अपने अन्दर बहुधा यही सन्नाटा गूँजने लगता है, घबराकर किसी काम में लगा लेता हूँ स्वयं को। समय तो नित ही आहट करता है और हम हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं, मरने के पहले कितनी और बार मर जाते हैं।
@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteहमें जीवन जीना है, समय नहीं काटना है। समय काटने लगते हैं तो अन्तः बहुत धिक्कारता है। उस धिक्कार को सह ले जाने से कष्टकर कुछ नहीं हो सकता है। जैसे ही हम जीवन को महत्व देने लगते हैं, समय मिलने लगता है।
आवश्यकता है तो विचारों को जीवन पर केन्द्रित करने की। सम्यक और साम्य जीवन सदा ही समय पर हावी रहेगा।
अरे वाह, बहुत ही बेहतरीन बातें लिखी हैं आपने.
ReplyDelete@ Arvind Mishra
ReplyDeleteहर बार विश्वास रहता और साथ में लोभ भी कि विचारपूर्ण लेख लिखकर आपकी विद्वता को ऊर्जान्वित कर दूँगा। इस बार भी वही हुआ। आपकी टिप्पणी पोस्ट पर आभूषणसम बिराजे हैं।
सृजनात्मकता पर बहुत विचार किया है, उसमें समय की विमा सिकुड़ सी जाती है या उसमें छेद हो जाता है। यदि प्रायिकता का सिद्धान्त लगायें तो इतनी सृजनात्मकता हमारे हिस्से में नहीं आती। आप सहमत भले होंगे इससे पर, हॉकिंग का भगवान रहित मस्तिष्क का जन्म प्रायिकता से नहीं सिद्ध हो सकता।
जिसका काल पर जोर हो, उसी को भगवान मान लें हम!
@ Sunil Kumar
ReplyDeleteदौड़ते दौड़ते जब सुस्ताते हैं तब लगने लगता है कि भागादौड़ी की मूर्खता क्यों कर रहे हैं?
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
सच कह रहे हैं, काल की गति किसी को समझ नहीं आती है।
@ राम त्यागी
समय की विस्मृति करा देने का गुण कभी कभी लाभदायक भी है ओर कभी कभी हानिकारक भी।
@ पी.सी.गोदियाल
समय को जो चढ़ाकर रखते हैं, समय उनपर चढ़ा रहता है। जो परवाह नहीं कर मगन हो अपनी लगन में जीते हैं, उनको सारी सुविधा उपलब्ध कराता रहता है समय।
@ वाणी गीत
समय यदि ठहरता है तो जीवन सँवरता है।
.
ReplyDelete.
.
याद आया सापेक्षता का सिद्धान्त...पर वह हम पर लागू होता है समय के मामले में...हमें कभी लगता है कि वह कट ही नहीं रहा और कभी हम हैरान होते हैं कि इतनी जल्दी कैसे इतना समय कट गया...
पर समय निरपेक्ष है हम सबसे...या यों कहिये किसी भी चीज से...वह तो अपनी ही गति से चलेगा...
...
@ Vivek Rastogi
ReplyDeleteपता नहीं कितने मिनट हम जीते हैं पर सदैव ही वही दस मिनट धोखा दे जाते हैं।
@ पद्म सिंह
और घोड़े हैं हम सब। चाबुक लगता है और अधिक गति से हम दौड़ने लगते हैं।
@ रश्मि प्रभा...
भागदौड़ के बीच तो समय हम पर सवारी करता रहता है।
@ नरेश सिह राठौड़
जिस दिन समय प्रबल होगा, सब सह लेंगे। पर उस दिन के लिये मन को दुर्बल क्यों होने दूँ?
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
भागदौड़ करते समय केवल जीवन का ख्याल रखना है, केन्द्रबिन्दु तो वही है।
@ Coral
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ मनोज कुमार
सच है, इस प्रवाह को नियमित करना मानसिक शक्ति का कार्य है।
@ Divya
बहुत धन्यवाद।
@ शोभना चौरे
जीवन प्राथमिकता में ऊपर खड़ा हो, समय अपना स्थान ढूढ़ लेगा।
@ Ashish (Ashu)
बहुत धन्यवाद।
@ rashmi ravija
ReplyDeleteअपनी गति रहने पर जीवन पर नियन्त्रण रहेगा। बेलगाम जीवन का क्या मूल्य।
@ P.N. Subramanian
एक बार घड़ी 10 मिनट तेज कर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने का प्रयास किया था, सफल नहीं हुआ।
@ cmpershad
इस क्षेत्र में मैं अधिक लाभान्वित हुआ हूँ, मुझे बहुत सुन्दर साहित्य पढ़ने को मिला है ब्लॉग पर।
@ दीपक 'मशाल'
समय वैसे भी हार नहीं मानेगा और पटतने की कोशिश भी करेगा। जीने का मजा तो तभी आयेगा।
जीवन के पृष्ठ पर समय के हस्ताक्षर और उसपर आपने अपने हस्ताक्षर टाँक दिए हैं... समय रुका नहीं तो ठिठक सा गया है, देखने को कि किसने पुकारा उसे! अचिंत्य रचना!!
ReplyDelete@ Shah Nawaz
ReplyDeleteआपको बेहतरीन लगीं तो समय रोकना सफल हो गया।
@ प्रवीण शाह
सापेक्षता तो उसको लगेगी जो मुख में उभरती चिन्ता औप भाल से टपकता पसीना नहीं देख पाका है। निर्दयता से कढ़ीले जाने से तो अच्छा है कि ससम्मान जियें।
@ सम्वेदना के स्वर
समय से बतियाने का मेरा भी अनुभव प्रथम ही था।
पिछले दो सौ सालों में जिस तेजी से तमाम वैज्ञानिक चीजों का अविष्कार हुआ वह देखकर कहीं समय को भी खुद से पिछड़ जाने का डर सता रहा है शायद... तभी वह भी तेज तेज चल रहा है:)
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट।
आपके इतनी व्यस्तता के बाद समय बोध पर ऐसा लिख पाना सचमुच कमाल है। आनन्द आ गया।
ReplyDeleteआपके इतनी व्यस्तता के बाद समय बोध पर ऐसा लिख पाना सचमुच कमाल है। आनन्द आ गया।
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर पोस्ट के लिए धन्यवाद. समय की कमी और मन में संजोये अनगिनत काम और निश्चयों का संतुलन बनाने की कोशिश में हर जिंदगी तेज रफ़्तार से बीती जा रही है.
ReplyDeleteआपकी जिंदगी जीने और काटने की बात और फिर अंतर्मन के धिक्कार का दर्द परिचित लगा और मन को छू गया.
बेहतरीन दर्शन ...कमल की पोस्ट है .
ReplyDeleteप्रवीण्ा जी, आपका आलेख भी कम मूल्यवान नहीं है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteक्या आप SAINWINIAN है
ReplyDeleteमैं समय हूँ, आपके साथ रहना चाहता हूँ, आपकी गति से चलना चाहता हूँ, मुझे स्वीकार करें। पुनः माँग हुयी और पूर्ति भी, बस दिशा बदल गयी। जीवन समय से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख...सब के जीवन चक्र में घूमता ...फिर भी समय के साथ नहीं चलना चाहते.
समय तुम चलो क्योंकि यही तुम्हारा धर्म है । मेरा धर्म जिस समय पता चल गया, फिर पता नहीं ........
ReplyDeleteसमय की गति तो हमेशा से एक ही रहती है पर हमारी मानसिक स्थिति अनुसार हम समय की गति का आंकलन करने लग जाते हैं .... बहुत ही चिंतन से उपजी पोस्ट है ये .... बहुत अच्छी लगी ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विचारणीय प्रस्तुति ... आभार
ReplyDelete@ सतीश पंचम
ReplyDeleteमनुष्य ने सब यन्त्रों का आविष्कार कर समय की गति तो बढ़ा दी, अब पीछे पीछे भाग रहा है। आगे आगे देखिये होता है क्या?
@ इलाहाबादी अडडा
व्यस्तता के क्षोभ से निकला हुआ उद्गार है यह।
@ rakesh ravi
जब तेज भागते भागते हाफने लगता हूँ तो यही लगता है कि दौड़ किसलिये रहे थे? प्रश्नों के दलदल में उत्तर के कमल खिल ही जाते हैं।
@ shikha varshney
बहुत धन्यवाद आपको।
@ Ashok Pandey
जीवन का महत्व उद्घोषित करने वाला हर लेख सुहाता हैं हमें।
@ हास्यफुहार
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ अरुणेश मिश्र
बहुत धन्यवाद।
@ हिमांशु पाण्डेय
SAINWINIAN ?
@ अनामिका की सदायें ......
यदि कार्य बहुत अधिक कर लेंगे तो समय के पीछे भागते रहेंगे।
@ डॉ महेश सिन्हा
समय भागे अपनी गति से, यह उसका धर्म है। हम जीवन जियें अपनी धुन में, यह हमारा धर्म है।
@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteमानसिक स्थिति ठीक रहने से समय की गति दिखायी पड़ती है, नहीं तो भड़भड़ में कुछ समझ में नहीं आता है।
@ महेन्द्र मिश्र
बहुत धन्यवाद।
समय की गति ? कुछ पता ही नही चला आपकी पोस्ट पढ कर ध्यान आया कि 61 साल? इतनी जल्दी चले गयी पता ही नही चला। अभी बहुत कुछ करना है---- मगर समय है कि भागा जा रहा है। सुन्दर दर्शन । क्या करें ऐसे प्रवचन सुनने का समय नही मिला मगर लगता है ब्लागिन्ग करना सफल रहा कम से कम ज़िन्दगी की सच्चाई को तो पडः लेते हैं। बधाई।
ReplyDeleteaaya, padhaa lekin kuchh sikhkar jaa rahaa hu bhaai sahab....aapki aur apne Gyaan dadda ki blog post aksar sochne par majbur karti hain.....
ReplyDeletechaliye dekhte hain mujhe gadhe ke bheje me kitni aasaani se ye sab baatein ghusti hain....
shukriyaa.
सच ही कहा है समय से बड़ा बलवान कोई नहीं.
ReplyDeleteकितनी सहजता से आपने इतनी महत्वपूर्ण बात को अपनी पोस्ट में समझाया है...वाह...आपके शब्द कौशल की जितनी तारीफ़ की जाए कम है...मेरे मित्र राजेश रेड्डी का ये तब शेर है जब उन्हें कोई जानता था...देखिये कितना सही कहा है उन्होंने :-
ReplyDeleteज़िन्दगी का रास्ता क्या पूछते हैं आप भी
बस उधर मत जाइये भागे जिधर जाते हैं लोग
नीरज
समय के प्रति नयी सोच। राहत देने वाली। अद्भुत लिखा है आपने।
ReplyDeleteअद्भुत व्याख्या समय के सापेक्ष। मन को राहत पहुँचाती।
ReplyDeleteप्रशंसनीय प्रस्तुति..... सच कहा है .... "समय बड़ा बलवान है " सार्थक पोस्ट..
ReplyDeleteप्रकृति समय का पालन बिना किसी आप-धापी के करती है, इन्सान क्यों तनाव ग्रस्त रहता है आप-धापी में शायद उसे जल्दी ज्यादा है प्रारंभ में, अंत कब होगा पता ही नहीं रहता........................
ReplyDeleteधीरे - धीरे रे मना , धीरे ही सब होए
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होए
एक अत्यंत सम्यक ज्ञानवर्धक, प्रेरक पोस्ट
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
@ निर्मला कपिला
ReplyDeleteसमय को पता हमें तब चलता है जब हम उससे ऊपर उठकर जीवन पर ध्यान केन्द्रित कर देते हैं। लक्षेयों के पीछे भागते रहने से तो थकान ही प्रप्त होगी।
@ Sanjeet Tripathi
आपका अनुभव मेरे चिन्तन को दृढ़ ही करेगा। हृदयाद्गारित आभार उत्साहवर्धन का।
@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
समय बलवान है, केवल इस कारण से थक हार कर नहीं बैठा जा सकता है।
@ नीरज गोस्वामी
बहुत सही कहा है रेड्डीजी ने। भागने वालों की भीड़ का हिस्सा बनना स्वीकार नहीं है।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
जीवन को समय से बड़ा मानना ही पड़ेगा। मूल्यवान जीवन है, इसमें समय के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है।
@ डॉ. मोनिका शर्मा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ Mumukshh Ki Rachanain
बहुत सटीक उदाहरण दिया है। हमें भी प्रकृति का अनुसरण करना चाहिये, इस विषय में।
जीवन समय से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
ReplyDeleteकाल की अग्नि में सबको तिरोहित होना है। मैं दौड़ लगा कर आत्मदाह नहीं करूँगा। अपना जीवन अपनी गति से जीकर आगन्तुक से कहूँगा।
" आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ "
प्रशंसनीय प्रस्तुति
सच है की हम सब समय का ही रोना रोते हैं. स्वयं समय के साथ न चलकर समय को अपने साथ चलाना चाहते हैं और फिर व्यथित होते हैं
आपने सही लिखा है-"सम्मोहन तो जीवन का ही है, समय का नहीं। जीवन जीने लगते हैं और समय नेपथ्य में चला जाता है। आकर्षण व्यक्तित्व का होता है, आयु का नहीं। महान कोई एक विचार बना देता है, बेचारी व्यस्तता नहीं।"
ReplyDeleteजीवन में शरीर की उपस्थिति समयबद्ध होती है। शरीर है तो इसका अन्त भी है। लेकिन प्रत्येक शरीरधारी अपने कर्म से अमर हो सकता है।
निश्चित रूप से आपके ग्यान का स्पेक्ट्रम बहुत बडा है; तभी तो आप विभिन्न विषयों पर इतने सुन्दर ढंग से अपने पाठकों को इतना कुछः और इतना अद्भुत दे पाते हैं। बधाई।
@ रचना दीक्षित
ReplyDeleteजीवन की गुणवत्ता ही समय ती व्यग्रता को कम करती है।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
कर्म अमर बनाते हैं, आयु नहीं। सच कहा है आपने।
आज आपके घर आकार बहुत अच्छा लगा, बहुत ही प्रेरक सोच, उम्दा वाणी और सकारात्मक सद्विचार. शुक्रिया .
ReplyDeleteसम्मोहन तो जीवन का ही है, समय का नहीं। जीवन जीने लगते हैं और समय नेपथ्य में चला जाता है। आकर्षण व्यक्तित्व का होता है, आयु का नहीं। महान कोई एक विचार बना देता है, बेचारी व्यस्तता नहीं।
ReplyDeleteबहुत खूब
@ सागर
ReplyDeleteहमें आपका आना बहुत अच्छा लगा। आपकी विचार श्रंखला बिना असर डाले नहीं जाती है।
@ anitakumar
आपसे भेंट में मेरा समय भी नेपथ्य में चला गया था।
मैं कल्पना करता हूँ कि मैं बैठा हूँ समय से परे,
ReplyDeleteसरल भाषा के बीच एक स्ट्रोक..
यह पंक्ति कमाल है
@ Manoj K
ReplyDeleteसमय से व्यवहार करने के लिये उससे परे तो जाना ही पड़ेगा।
भागादौड़ी में अचानक समय सामने आ खड़ा हुआ , हमने भी उसका स्वागत किया और दोनो ने मिलकर ब्लॉगजगत की ओर रुख किया और यहाँ आ पहुँचे...
ReplyDeleteसमय का स्वागत करने पर ही इतना प्रभावशाली लेख पढ़ पाए...
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