बचपन में विद्वता का विलोम पढ़ा था, मूर्खता। ज्यों ज्यों अनुभव के घट भरता गया तो लगा कि शब्दकोष यदि अनुभव के आधार पर लिखा जाता तो संभवतः मूर्खता शब्द का इतना अवमूल्यन न होता। यह एक स्वनामधन्य शब्द है और एक गुण के रूप में आधुनिक समाज में विकसित हुआ है। मैं जानता हूँ, "शब्दों का सफर" मेरी खोज को महत्व नहीं देगा। मैं उद्गम और स्थान विशेष से सम्बन्ध ढूढ़ने से अधिक इस शब्द को जी लेने का पक्षधर हूँ। आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है आप भी इस शब्द को हृदयांगम करने के पश्चात ही इसके उपकारी पक्ष को समझ पायेंगे।
अनेक परिस्थितियों में मूर्खता के अश्वमेघ यज्ञ होते देख मेरे अन्दर की मूर्खता ने विद्रोह कर दिया। कहने लगी कि लोकतन्त्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। आप हर बार विद्वता का सहारा लेकर अपने आप को सिद्ध करने में लगे रहते हैं और मुँह लटकाये घर चले आते हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 का मान न रख पायें तो, मन बदलने के ही नाते मुझे भी एक अवसर प्रदान करें।
इतना आत्मविश्वास देख तो बहुत दिनों तक यह निश्चय नहीं कर पाया कि मूर्खता को विकलांगता की श्रेणी में रखा जाये या क्षमता की श्रेणी में। स्वार्थवश और सफलता की प्यास में डूबा मैं भी ढीला पड़ गया और मूर्खता को जीवनमंचन में स्थान प्रदान कर दिया। इतने दिनों के सयानेपन का हैंगओवर हटाने के लिये मूर्खता ने ही 6 सरल सूत्र सुझाये।
1. किसी के दुख को देखकर बुद्ध बने रहिये। मुख में विकार का अर्थ होगा कि आप विद्यता को भुला नहीं पा रहे हैं।
2. जब तक पूछा न जाये, स्वतःस्फूर्त प्रश्नों के उत्तर न दें। पूछने पर भी, समझने का समुचित प्रयास करते हुये से तब तक प्रतीत होते रहिये जब तक प्रश्नकर्ता स्वयं ही उत्तर न दे बैठे।
3. विश्व के ज्ञान का प्रवाह अपने ओर बहने दें। निर्लिप्त जो स्वतः ही धँस जाये, उसके अतिरिक्त कुछ भी लोभ न करें।
4. उत्साह सबका बढ़ायें, बिना ज्ञान दिये। ज्ञान देने में विद्वता और उत्साह न बढ़ाने में विरोध प्रकट होता है। विरोध भी विद्वता का दूसरा सिरा है।
5. न्यूनतम जितना करने से जब तक रोटी मिलती रहती है, खाते रहें।
6. जीवन के लक्ष्यों को अलक्ष कर दें। ये आपको शान्ति से बैठने नहीं देंगे।
अभ्यास से क्या संभव नहीं और जब मैंने स्वयं अनुभव कर जानने का निश्चय किया तो मूर्खता के अभ्यास का कष्ट भी सह लिया। वर्षों से अर्जित ज्ञान और अनुभव को एक काजल की डिबिया में बन्दकर सुरक्षित रख दिया था। आनन्द की अनुभूति इन सूत्रों के अनुपालन से बढ़ती गयी। मूर्खत्व की खोज में परमहंसीय जीवन हो गया आदि और अन्त से परे। कर्मठ प्राणी माया के पाश में छटपटाते दिखे।
ब्रम्हा की तरह ही एक प्रश्न मेरे मन में भी उठा कि हे भगवन मैं इस सुख में डूब गया तो सृष्टि कैसे चलेगी?
आकाशवाणी होती है,
बालक ! अपने मूर्खत्व की रक्षा कर।
और
बने रहो पगला,
काम करेगा अगला।
....
....
उठिये, उठिये, इण्टरसिटी से चलना है।
(हुँह, यह उमर है सपना देखने की। इतना मुस्कराते तो पहले कभी नहीं देखा। बच के रहना, सुबह का सपना सच हो जाता है। हो जाये तो?) चेहरा देख कर ऐसा लगा कि श्रीमती जी ने यही सोचा होगा।
मैं चला स्टेशन का निरीक्षण करने। आप एक डुबकी तो मारिये।
इतना आत्मविश्वास देख तो बहुत दिनों तक यह निश्चय नहीं कर पाया कि मूर्खता को विकलांगता की श्रेणी में रखा जाये या क्षमता की श्रेणी में। स्वार्थवश और सफलता की प्यास में डूबा मैं भी ढीला पड़ गया और मूर्खता को जीवनमंचन में स्थान प्रदान कर दिया। इतने दिनों के सयानेपन का हैंगओवर हटाने के लिये मूर्खता ने ही 6 सरल सूत्र सुझाये।
1. किसी के दुख को देखकर बुद्ध बने रहिये। मुख में विकार का अर्थ होगा कि आप विद्यता को भुला नहीं पा रहे हैं।
2. जब तक पूछा न जाये, स्वतःस्फूर्त प्रश्नों के उत्तर न दें। पूछने पर भी, समझने का समुचित प्रयास करते हुये से तब तक प्रतीत होते रहिये जब तक प्रश्नकर्ता स्वयं ही उत्तर न दे बैठे।
3. विश्व के ज्ञान का प्रवाह अपने ओर बहने दें। निर्लिप्त जो स्वतः ही धँस जाये, उसके अतिरिक्त कुछ भी लोभ न करें।
4. उत्साह सबका बढ़ायें, बिना ज्ञान दिये। ज्ञान देने में विद्वता और उत्साह न बढ़ाने में विरोध प्रकट होता है। विरोध भी विद्वता का दूसरा सिरा है।
5. न्यूनतम जितना करने से जब तक रोटी मिलती रहती है, खाते रहें।
6. जीवन के लक्ष्यों को अलक्ष कर दें। ये आपको शान्ति से बैठने नहीं देंगे।
अभ्यास से क्या संभव नहीं और जब मैंने स्वयं अनुभव कर जानने का निश्चय किया तो मूर्खता के अभ्यास का कष्ट भी सह लिया। वर्षों से अर्जित ज्ञान और अनुभव को एक काजल की डिबिया में बन्दकर सुरक्षित रख दिया था। आनन्द की अनुभूति इन सूत्रों के अनुपालन से बढ़ती गयी। मूर्खत्व की खोज में परमहंसीय जीवन हो गया आदि और अन्त से परे। कर्मठ प्राणी माया के पाश में छटपटाते दिखे।
ब्रम्हा की तरह ही एक प्रश्न मेरे मन में भी उठा कि हे भगवन मैं इस सुख में डूब गया तो सृष्टि कैसे चलेगी?
आकाशवाणी होती है,
बालक ! अपने मूर्खत्व की रक्षा कर।
और
बने रहो पगला,
काम करेगा अगला।
....
....
उठिये, उठिये, इण्टरसिटी से चलना है।
(हुँह, यह उमर है सपना देखने की। इतना मुस्कराते तो पहले कभी नहीं देखा। बच के रहना, सुबह का सपना सच हो जाता है। हो जाये तो?) चेहरा देख कर ऐसा लगा कि श्रीमती जी ने यही सोचा होगा।
मैं चला स्टेशन का निरीक्षण करने। आप एक डुबकी तो मारिये।
बड़ा सटीक और विद्वतापूर्ण लगा आपका यह व्यंग।
ReplyDeleteमुझे तो इससे कई सीख मिल गयी हैं।
अच्छी पोस्ट..... आभार
मूर्खता गुण धारण करने के सात्विक उपायों को बुद्धिमत्ता पूर्वक प्रकट करने के लिये आभार.
ReplyDelete7. हमें बहुमत मिलेगा तब सोचेंगे (न नौ मन तेल होगा न सोचना पडेगा)।
ReplyDelete8. हमारी किताब में तो यही लिखा था (लिखने वाले ने ही नहींक सोचा तो हम ही क्यों सोचें?
9. सोच सोच के दिमाग का दही हो गया (फिर और दिमाग का रायता क्यों खराब करें?)
Wa bhaiya moorkhata to widwatta ko mat diye de rahi hai.
ReplyDeleteआज तो परम ज्ञान प्राप्त हो गया. छःओं सूत्र गांठ बाँध कर रख लिए हैं.
ReplyDeleteएक भर अब तक मालूम था वो:
. उत्साह सबका बढ़ायें, बिना ज्ञान दिये। ज्ञान देने में विद्वता और उत्साह न बढ़ाने में विरोध प्रकट होता है। विरोध भी विद्वता का दूसरा सिरा है।
-इसका लगातार पालन भी किया है. आज से बाकी पांच भी.
बहुत आभार स्वामी पाण्डे जी.
जिस दिन से अपनी मूर्खता के गूढ़ ज्ञान को स्वीकार कर लिया , कोई छटपटाहट नहीं रही ...!
ReplyDeleteबुद्धूत्व बुद्धत्व से आगे की स्थिति है शायद।
ReplyDeleteसही है.. मुझे लगता है मूर्खता भी एक गुण है... आप आसानी से मुर्ख नहीं बन सकते.. ये कला है...
ReplyDeleteहरी ओम तत्सत :)
ReplyDeleteविद्वता और मूर्खता दोनों साथ चलती हैं। दोनों के बिना काम नहीं चलता। कभी-कभी विद्वता भी मूर्खता का रूप धारण कर लेती है।
ReplyDeleteवैसे विद्वता इस आलेख में कुछ स्थानों पर विद्यता हो गई है।
बाई गोड प्रवीण भाई मज़ा आ गया ...अजीत वडनेरकर को इस मूर्खता पूर्ण पोस्ट पर विद्वता पूर्वक गौर करना चाहिए :-))
ReplyDeleteमगर यह तो अनूप शुक्ल जी के पैदायशी विषय में, बड़ी शक्तिशाली घुसपैठ कर दी आपने......यह तो गलत बात है !
हा..हा...हा....हा....
शुभकामनायें भैया ..
विद्वतापूर्ण !
ReplyDeleteआपने तो बहुत अच्छा लिखा....बधाई.
ReplyDelete______________________
"पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'
आकाशवाणी होती है,
ReplyDeleteबालक ! अपने मूर्खत्व की रक्षा कर।
और
बने रहो पगला,
काम करेगा अगला । .......
उठिये, उठिये, इण्टरसिटी से चलना है....
कभी कभी उपरोक्त जुमला भी बड़े काम का साबित होता है ..
मन से वचन से कर्म से सुख में मत डूबिये ... ...
अच्छी प्रस्तुति...
वो तो ठीक है, महोदय, कि मूर्खता जब छटपटाने लगे तो उसे दबोच लें. पण जो मूरखता बिणा छटपटाए खुद से दण्ण से णिकल जावे, रक्षा करने का समय ही न दे, उसका क्या?
ReplyDeleteऐसी दन्न से निकली मूर्खता पर अनगिनत बार पछताए हैं हम भी:)
यह छ: सूत्रीय कार्यक्रम काफी विद्वतापूर्ण रहा ...:)
ReplyDeleteमूर्खता को विकलांगता की श्रेणी में रखा जाये या क्षमता की श्रेणी में।
ReplyDelete--- हमरे त ऊ कहते हैं तुम्हरे आगे मूर्खे बने रहने में फ़ायदा है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
:: हंसना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
अच्छा लगा छ: सूत्रीय कार्यक्रम
ReplyDeleteज्ञानी का विलोम अज्ञानी ही होगा न तो फिर मूर्खता को बदल कर अज्ञानता क्यों न कर लिया जावे. अंग्रेजी का यह उदगार "Ignorance is blissful " सार्थक बन जाएगा.
ReplyDeleteबहुत सही पकड़ा आपने...मूर्ख बने रहने...और कुछ न तो कम से कम मूर्ख दीखने के बड़े फायदे हैं...
ReplyDeleteसटीक व्यंग,
ReplyDeleteआभार...
क्रम संख्या 5 को अलग कर दें तो शेष सिर्फ़ वही मूढ़ता-जनक गुण हैं जो तत्वज्ञानियों की पहचान हैं और तत्वज्ञान दिलाने वाले साधन भी!
ReplyDeleteजियो!
बड़े काम के हैं ये छः सूत्र....
ReplyDeleteअरे वाह क्या टिप्स दिए हैं :) शुक्रिया.
ReplyDeleteमराठी शब्द ऐड़ा (पागल ,मूर्ख ) बनकर peda खाने का |
ReplyDeleteऐसा ही सोचने लगे है विद्वान् भी आजकल |
सूत्र बहुत अछे लगे |
बहुत जबर्दस्त।
ReplyDeleteमूर्खता यकीनन एक क्षमता है।
6 सूत्र ग्रहण के योग्य है |
ReplyDeleteइस उच्च कोटि के ज्ञानवर्धन के लिए मुर्खता का धन्यवाद और आपका आभार !:)
ReplyDeleteमूर्खता द्वारा सुझाए गए ६ सूत्रीय उपायों को पढ़ते वक्त अपने MMS की शक्ल आँखों में घूम रही थी :)
ReplyDeleteकांय कू इतना सर खपाना जी, अपन तो सूत्र १ और सूत्र ६ ही उपयोग में लाते हैं और नतीजे आश्चर्यजनक! आप ने भी सीक्रेट का ओपन सीक्रेट बना दिया जी।
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबढ़िया है!
बने रहो पगला,
ReplyDeleteकाम करेगा अगला।
....
ye to hamne sarkaree naukree me aane se pahle hee seekh liya tha...
.
ReplyDeleteजबसे पतिदेव ने 'मुर्ख' का certificate दिया है, तबसे बड़े चैन से गुज़र-बसर हो रही है । कोई भी गुस्ताखी करती हूँ, वे मुझे मुर्ख जान क्षमा कर देते हैं।
अब जब पब्लिक में accept कर ही रही हूँ तो आशा है आप सभी, मुझ मूढ़-अज्ञानी की मुर्खता को सदैव क्षमा करते रहेंगे।
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ReplyDeleteवैसे सपने की कोई उम्र थोड़े ही होती है। हम भी गाहे-बगाहे मुस्कुराते है तो पतिदेव पूछते हैं ॥" कौन सी मूवी चल रही है ? " हम भी कह देते हैं...." आप नहीं समझेंगे " ।
.
विद्वता और मूर्खता दोनो ही एक सिक्के के पहलू है जी जब तक हम गलतिया नही करेगे तब तक ग्याण नही आयेगा, बाकी आप के बताये सुत्र हम ने अपने पर्स मै रख लिये( धोती तो पहनते नही जो गांठ मै बांध ले)....:)
ReplyDeleteशत प्रतिशत मूर्खता तो निर्लिप्ति का भाव ही लाएगी
ReplyDeleteहम उतनी ही टिप्पणी कर रहे हैं जितनी उपस्थिति के लिये जरूरी है
ReplyDelete-Tarun
'Moorkh' ki power ko to vidvan hi samajh sakta hai. Sochiya moorkhta ke bina vidvta kaisi. Moorkhta odhe rahane vale 'Baklol' ya 'Bhakua' to sabse bade vidvan hain. ;-)
ReplyDeleteमूर्ख जब अपने को ज्ञानी कहता है तो हँसी और उपेक्षा का पात्र बनता है. ज्ञानी जब अपने को मूर्ख कहता है तो (अपनी विनम्रता के कारण ) श्रद्धा का पात्र बनता है.
ReplyDeleteबड़ा सटीक और विद्वतापूर्ण लगा, आपका यह मूर्खतापूर्ण पोस्ट सारी मूर्खता पर लिखी पोस्ट :-)))
ReplyDeleteमूर्खता पर सुन्दर आख्यान...बढ़िया है.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर जोधपुर की एक कपडा फेक्ट्री के मुनीम का डायलोक याद गया - " जै सुख चावै जीवड़ा ,तो मुरख बण कै जिव "
ReplyDeleteदफ्तर में इस नीति का पर्याप्त प्रचार-प्रसार होना चाहिए. वैसे भी कलि काल में चाणक्य नीति के स्थान पर दूसरी विकसित नीति की खोज चल रही थी.
ReplyDeleteप्रवीण नीति..! नया भाग्योदय हुआ! मूर्खता की छटपटाहट कम हुई.
..आभार.
@ डॉ. मोनिका शर्मा
ReplyDeleteकई सीख तो आपको मिल गयी हैं। आपको कुछ सुख-अनुभव हो तो हमें अवश्य बतायें।
@ M VERMA
मूर्खता के सात्विक पहलू हैं ये 6 उपाय। अहिसात्मक मूर्खता, हिंसात्मक मूर्खता से कम घातक है।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
आपके तीनों उपाय भी गाँठ बाँध लिये। अधिक सोचना ही सब समस्याओं का ईधन है।
@ Mrs. Asha Joglekar
तभी तो यह मत रखा था कि मूर्खता शब्द का अति अवमूल्यन हुआ है।
@ Udan Tashtari
यदि स्वामी बना देंगे तो अपने सूत्रों का पालन करना कठिन हो जायेगा। अभी तो अपनी पूँछ पकड़ने के लिये नहीं दौड़ना है।
@ वाणी गीत
ReplyDeleteआपको बधाई हो। हमारी तो विद्यता हार मानने को तैयार ही नहीं। बहुत समझाना पड़ रहा है।
@ अनूप शुक्ल
बुद्धत्व-बुद्धूत्व
इस संसार में दुख है-बना रहे।
उस दुख का कारण है-वो भी बना रहे।
वह कारण तृष्णा है-हरे कृष्णा, हरे कृष्णा।
उस पर विजय पाना है-चलते हैं,अभी नहाना है।
@ रंजन
कोई और मूर्ख बनाना चाहे तो कठिन है। स्वयं अपने आप को मूर्ख बना पाना और भी कठिन है।
@ अभिषेक ओझा
ज्ञान दे रहे हैं कि ले रहे हैं?
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
जब जीवन में दोनो साथ साथ रहते हैं तो विलोम कैसे हुये? वही तो मेरा भी अनुभव है।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteमूर्खता हम सबका जन्मसिद्ध अधिकार है और वह हम सबको पाकर रहना चाहिये। अरे, यह तो विद्यतापूर्ण वक्तव्य हो गया।
@ Arvind Mishra
एक शब्द से हमारा सारा ज्ञान घोल दिया।
@ Akshita (Pakhi)
बेटा, आप सदैव परिश्रम करते रहिये। यह सपने में देखा हमने।
@ महेन्द्र मिश्र
इस प्रकार के सुख के ओवरडोज़ का कोई साइड इफेक्ट तो नहीं?
@ Raviratlami
स्वयं ही निकल भागी मूर्खता का उपाय तो ढूढ़ना पड़ेगा।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteपर तब हम अपने लेख को कैसे जी पायेंगे।
@ हास्यफुहार
सच है कि क्यों बताया जाये कि यह क्षमता है कि विकलांगता? चलिये सबको हँसाया जाये।
@ Mithilesh dubey
बहुत धन्यवाद।
@ P.N. Subramanian
मूर्खता के ऊपर अलग अध्याय लिखे जायें तब।
@ रंजना
सच में, औरों को फायदा उठाते देख बड़ी कोफ्त होती है।
@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ Himanshu Mohan
हमको तो तत्वज्ञान समझने में दिमाग का फिचकुर निकलता सा प्रतीत होता है।
@ rashmi ravija
जिसके सामने इनका उपयोग हो, उसे पता न चले।
@ shikha varshney
बहुत धन्यवाद।
@ शोभना चौरे
यदि विद्वान भी इस जाने लगे तो मूर्खता तो विद्यता की पराकाष्ठा हुयी।
@ अजित वडनेरकर
ReplyDeleteआपका मत आ गया, अब तो विश्वास हो गया कि मूर्खता एक क्षमता है।
@ नरेश सिह राठौड़
सच में, ग्रहणीय और संग्रहणीय।
@ पी.सी.गोदियाल
जब मैं लिख रहा था तो एक ऐसे ही व्यक्तित्व का चेहरा मेरे सामने घूम रहा था।
@ मो सम कौन ?
सार्वजनिक रूप से लिख देने से पालन करने का दबाव बना रहेगा जीवन भर।
@ Shah Nawaz
बहुत धन्यवाद।
@ शेफाली पाण्डे
ReplyDeleteआप बड़ी भाग्यशाली हैं। हम तो मूढ़सम हैं, सुनकर भी नहीं सीख पा रहे हैं।
@ Divya
स्वयं को मूर्ख मान लेने से कोई अपेक्षा ही नहीं रह जाती है किसी को। मुस्कराने का आनन्द तब ही है जब सामने वाला समझ न पाये।
@ राज भाटिय़ा
गलती कर के ज्ञान आया, ज्ञान से कष्ट हुआ, कष्ट से वैराग्य हुआ, अब सामने वाला कहता है तो कहता रहे कि गलती कर रहे हो।
@ डॉ महेश सिन्हा
यही निर्लिप्तता तो अध्यात्म की पहली सीढ़ी है।
@ Readers Cafe
आप तो अभी से अमल में लाना प्रारम्भ कर दिये हैं।
@ rajiv
ReplyDeleteमूर्ख होना मूर्खता हो सकता है, मूर्ख दिखना तो विद्वता है।
@ hem pandey
बहुत ही गहरी बात है आपकी।
@ neelima sukhija arora
लिखने की हिम्मत तो आ गयी, अपनाने में कठिनाई हो जायेगी।
@ KK Yadava
बहुत धन्यवाद।
@ Ratan Singh Shekhawat
ReplyDeleteबताईये, यह ज्ञान कब से बिखरा पड़ा है, हमें अब समझ में आया।
@ बेचैन आत्मा
कई लोग चला रहे हैं पहले से यह यह पद्धति। ज्ञान-प्राप्ति के बाद उनकी विद्वता को प्रणाम किया जा सकता है। पहले तो क्रोध ही आता था।
बने रहो पगला,
ReplyDeleteकाम करेगा अगला।
अच्छा लगा छ: सूत्रीय कार्यक्रम बहुत अच्छी प्रस्तुति।
तटस्थ और ईमानदार अभिव्यक्ति, ऐसा लग रहा था मानों कोई निजी डायरी अनायास हाथ लग गई है. पोस्ट जैसा महत्वपूर्ण और पोस्ट से अधिक रोचक टिप्पणियों पर टिप्पणी, बधाई.
ReplyDeleteकहा जाता है आदमी सिर्फ तीन जगह मूर्ख साबित होता है- पत्नी के सामने, संतान के सामने और आईने के सामने. इसके अतिरिक्त भी कहीं मूर्खता उपलब्ध हो जाए, तब तो परमहंसी मुबारक.
ग़ज़ब की पोस्ट....सच में कभी कभी मुर्खता भी छटपटाती है....
ReplyDeleteI am in haste.... now.... that's why.... just acknowledging ....
ऐसे ऐसे सूत्र देंगे तो नौकरशाहों को तो दुश्मन बना लेने में सफल हो ही जाएंगे आप (निश्चय ही) :-)
ReplyDeleteजब तक पूछा न जाये, स्वतःस्फूर्त प्रश्नों के उत्तर न दें। पूछने पर भी, समझने का समुचित प्रयास करते हुये से तब तक प्रतीत होते रहिये जब तक प्रश्नकर्ता स्वयं ही उत्तर न दे बैठे।
ReplyDeleteजी प्रवीण जी मैं तो ऐसा ही करती हूँ जितना पूछा जाये उतना ही जवाब ...हाँ.या न में .....
हा...हा...हा...पर कई बार डांट खानी पड़ती है इस स्वभाव से ......!!
Its Really nice.
ReplyDeleteजो आनंद मूर्खता में है वो विद्वता में कहाँ...विद्वता से जितनी दूर रहेंगे आनंद उतने ही आपके पास आएगा...
ReplyDeleteनीरज
@ रचना दीक्षित
ReplyDeleteकभी कभी हाथ में वह काम आया देखता हूँ जो कि बहुत पहले ही हो जाना चाहिये था, तब लगता है कि पूर्ववर्ती इस मानसिकता से अभिभूत रहे होंगे।
@ Rahul Singh
हम उन तीनों तरह की मूर्खताओं को स्वयं पर सिद्ध कर चुके हैं। यदि हमारी डायरी किसी के हाथ लग गयी तो उसका ब्लॉग हिट होना तो तय है, साथ ही मेरा भी हिटलिस्ट में आ जाना।
@ महफूज़ अली
आपको क्या कभी कभी नहीं लगता है कि जहाँ पर बौद्धिकता की चासनी बह रही हो, वहाँ पर बुद्धू बने रहना ही उचित?
@ काजल कुमार Kajal Kumar
स्वप्न में यह सब देखने का तो दण्ड नहीं मिलना चाहिये। जिस दिन यह स्वप्न देखा, बहुत अधिक कार्य किया।
@ हरकीरत ' हीर'
मैंने कई बार यह होते देखा है। आप डाँट न खाये, इसके लिये बीच बीच में थोड़ा ज्ञान दे दिया कीजिये।
@ Sheelnidhi
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ नीरज गोस्वामी
लगता है विद्वता व आनन्द में कोई पुरानी दुश्मनी है।
कई डुबकियां लगाने का मन है पार्थ !!
ReplyDelete@ राम त्यागी
ReplyDeleteतब लगा कर आ जाइये, पता तो बहुतों को नहीं लगता। पता नहीं कितने डुबकी लगाये महाशयों को बरस लग गये पहचानने में।
ओह! इतनी जानदार पोस्ट मुझसे छूट गयी थी। वैज्ञानिकों के मुहल्ले में जाने का एक और नुकसान। जब यह रसधार बही होगी तब मैं रेलगाड़ी में बैठकर नखलौ के रास्ते पर रहा हूंगा।
ReplyDeleteबौड़म बने रहने में इतना मजा है कि पूछिए मत। जो ज्यादा बुद्धिमान हैं उनका इनपर झुंझलाना और खम्बा नोचना खूब जमता है। :)
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
ReplyDeleteवैज्ञानिकों के घर में जाने से यह गुण तो आपको मिलने से रहा।