द्वारपाल महोदय आदेश पाकर सतर्क हो बैठ जाते हैं। उन तीन घंटों के लिये उनके हाथों में सारे अधिकार सिमट जाते हैं। आगन्तुक कोई भी हो, उत्तर एक ही मिलता है।
"सर तो बिजी है।"
यदि द्वारपाल महोदय को आप यह मनवा सके कि आप यदि अभी नहीं मिले तो बहुत बड़ा अनर्थ होने वाला है, तभी आपका नाम स्लिप में लिखकर अन्दर पहुँचाया जायेगा। नहीं तो आप कितनी भी अंग्रेजी बोल लें, उनको हिलाना असम्भव। बस एक ही उत्तर।
"सर तो बिजी है।"
एक दिन बाहर से कुछ बहस के स्वर सुनायी पड़े। एक लड़की जिद पकड़कर बैठी थी कि उसे अभी मिलना है। दस मिनट तक ध्यान बँटता रहा तो फाईल बन्द कर उन्हें अन्दर बुला लिया। लड़की उत्तर पूर्व से थी व बंगलोर में अध्ययनरत थी। घर में पिता का स्वास्थ्य ठीक नहीं था और उन्हें उसी दिन गुवाहटी जाना था। पहले उन्हें पानी पिलवाया और उसके बाद एक इन्स्पेक्टर महोदय को बुला त्वरित सहायता कर दी गयी।
तनावमुक्त और अभिभूत हो उन्होने धन्यवाद तो दिया ही पर यह भी कहा कि आपने इतनी शिष्टता से सहायता की पर आपका द्वारपाल तो आने ही नहीं दे रहा था। उसको हटा दीजिये, आपकी छवि खराब कर रहा है। मैंने द्वारपाल के व्यवहार के लिये क्षमा माँग ली और कहा गलती मेरी ही है क्योंकि आदेश मेरा ही था। लड़की ने बताया कि वह भी सिविल सेवा की तैयारी कर रही है और उसमें सफल होने के बारे में मेरे अनुभव भी जानने चाहे। कार्य का क्रम टूट ही चुका था तो मैं भी एक भावी अधिकारी का भविष्य बनाने में लग गया। समय का पता नहीं चला और लाल बत्ती जलती रही।
द्वारपाल बाहर तने बैठे रहे। कई और लोग आये पर अब उनका उत्तर थोड़ा बदल चुका था।
"सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।"
पता नहीं द्वारपाल महोदय लड़की से झगड़े का बदला ले रहे थे या हमारी छवि में चार चाँद लगा रहे थे।
"सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।"
ReplyDelete-हा हा!! :) चार चाँद ही मानिये इसे छबी में.
जरुरत से ज्यादा ईमानदारी कभी- कभी मुसीबत में डाल देती हैं ...:)
ReplyDeleteरोचक संस्मरण ...!
होता है, ऐसा भी।
ReplyDeleteओह... मैं लाल बत्ती धारक तो नहीं पर आपकी दुविधा समझ सकता हूँ. यह स्थिति वाकई संकट में डालनेवाली होती है.
ReplyDeleteऔर द्वारपाल तो ऐसे ही होते हैं:)
सही है।
ReplyDeleteवैसे हम अपने मित्रों से अक्सर कहते रहते हैं- क्या बात है आजकल बहुत बिजी चल रहे हो! कोई कामधाम नहीं है क्या? :)
बिजीनात्मक चिंतन तो धांसू रहा :)
ReplyDeleteलालफीताशाही का सटीक उदाहारण और अच्छा व्यंग्य यह तो बताना आपको बताना ही पड़ेगा वह मैडम कौन थी ,बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteये लाल बत्ती प्राइवेट संस्थानों मे भी कहीं न कहीं दिख जाती और जब उधार का तकादा करने वालों की भीड बढ जाती है तब वह जल उठती है
ReplyDelete"सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।"
ReplyDelete.....हा..हा..हा. आपने चौकिदार की इज्जत में बट्टा लगाया चौकिदार ने आपकी इज्जत में चार चाँद लगा दिया.
सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।"
ReplyDeleteपता नहीं द्वारपाल महोदय लड़की से झगड़े का बदला ले रहे थे या हमारी छवि में चार चाँद लगा रहे थे।
मुस्कुरा रही हूँ ,,,,,,,!!
अगर द्वारपाल में इतनी समझ होती कि उसे कब क्या कहना है तो वो द्वारपाल होता आपकी पोस्ट पर होता .....
अब ध्यान रखियेगा मैडम के साथ बिजी रहने की बात बीवी तक न पहुँच जाये ......
प्रेरित करिये सर अपने द्वारपाल महोदय को, कि आयें ब्लॉगिंग की दुनिया में। हिट हो जायेंगे।
ReplyDeleteद्वारपाल महोदय आपसे एक शिष्ट किस्म का बदला ले रहे थे-आपने एक नाचीज के सामने अपना ही आदेश बदला डाला और उनकी किरकिरी करा दी -आखिर है तो वह भी मानव मन ही? फिर उसने अपने पूर्व उच्चारित वाक्य में एक सारभूत परिशिष्ट के साथ अपने जज्बातों को व्यक्त करना शुरू किया -ये साहब लोग ऐसे ही होते हैं :)
ReplyDelete-देख लीजिये आप लोग!और अब तो मैं बिलकुल ही अन्दर जाने नहीं दूंगा -अन्दर पता नहीं मानवता क्या रंग ला रही हो? प्रकारांतर से यह समय साहब के आमोद प्रमोद का है! काम काज के समय खलल तो फिर भी अलाऊड है मगर इस समय तो बिलकुल नहीं -साथ में एक मैडम भी हैं -बिना कहे सब कुछ कह रहा है यह वाक्यांश !
अगर द्वारपाल ज्यादा कल्पनाशील है तो उसे आप फिलहाल एक दूसरा काम देकर उसके कल्पनाशीलता का लिटमस टेस्ट कर सकते हैं -ब्लॉग में अपनी ओर से की जाने वाली टिप्पणियों का काम उसे आउट सोर्स करके -बहुत हुआ तो यही कहेगा कि साहब आपभी एक मैडम के साथ व्यस्त हैं -फिर ब्लॉग जगत का रिएक्शन भी आपको मिल जायेगा !
हा...हा...हा...हा.....
ReplyDeleteमैं आपके लेख से अधिक खुश कमेंट्स पढ़ कर हूँ ...कैसे कैसों को मिला है ...
कैसी कैसी सोच और समझ ...
आपको हार्दिक शुभकामनाये ..उम्मीद है भविष्य में सोंच कर लिखोगे प्रवीण बाबू ..!
इस बिज़ी होने से याद आ गया एक सवाल, “क्या आपकी पत्नी आपको अभी भी मारती है?”
ReplyDeleteप्रवीण भाई एक बात बताएं कि आप इतना बिजी होने के बाद भी आपने द्वारपाल का कमेण्ट कैसे सुन लिया?
ReplyDeleteमैं ऐसे ही नहीं कहता आपको.... कि आपके लेखन में ... मुझे कई यूरोपियन राइटरज़ के शैडो दिखाई देते हैं.... आज की यह पोस्ट.... सिआमीज़ स्टाइल में बहुत अच्छी लगी.... सैटायर के इस टाइप को सिआमीज़ कहते हैं.... जो कि सिर्फ... यूरोपियन लेखकों में ही दिखाई देता है.... आज की यह पोस्ट भी आपके पर्सनैलिटी के एक नए आयाम को दिखाती हुई .... बहुत अच्छी लगी....
ReplyDeleteहा हा हा ....
ReplyDeleteआखिरी पंक्ति ही पञ्च लाइन है ...साहब तो बहुत बबिजी हैं ....वाकई चार चाँद लग गए छवि पर ..
हा हा...
ReplyDeleteऎसे समझदार द्वारपाल किस्मत वालों को नसीब होते हैं ;) ऑफ़िस जाने का मूड बना गयी ये पोस्ट...
लेकिन यह लाल बत्ती कमाल की चीज है.
ReplyDeleteआपके लिये भाभी जी का फोन आये और आपके मातहत इसी तरह आपकी छवि सुधारने में लगे रहे तो……… :)
ReplyDeleteघर पर जाकर तो शर्तिया छबी में चार चाँद लग जायेंगें जी :)
प्रणाम स्वीकार करें
सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।"
ReplyDeletehahahaa badhiya
praveen ji dwarpaal jo bhi kahe meri najaro me aapki chhvi bahut bahut achhi hai.mushkil tabhi aati hai jab aapki chhvi kore kagaz ki tarah spasht ho fir bhi bahutere log aapki chhavi bigadne me koi kasar nahi chhodate.
ReplyDeletepoonam
इस पोस्ट को भाभीजी को जरूर पढ़वायेंगे |
ReplyDelete"सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।"
ReplyDeleteअरे चार चाँद क्या पूरा ब्रह्माण्ड लग गया छवि पर हा हा हा
बहुत प्रभावी लेखन .
रेडिओ स्टेशन में भी अंदर रेकॉर्डिंग चलती है तो बाहर लाल बत्ती जलती रहती है........अब हम भी सोच रहें हैं कि अंदर रेकॉर्डिंग के बदले कहीं किसी भावी अनाउंसर को ट्रेनिंग तो नहीं मिल रही होती.....:) :)
ReplyDeleteहा हा ..मस्त !! :)
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत अच्छा,
ReplyDeleteऑफिसों में द्वारपालों का भी अहम् रोल होता है
भाईसाहब
ReplyDeleteव्यवस्था में द्वारपाल भी एक अफसर ही है
सुन्दर पोस्ट
हा-हा.. मैं तो द्वारपाल महोदय के धैर्य की दाद देता हूँ ! मैं होता तो ................................................. नौकरी छोड़ देता :)
ReplyDeleteअति सुंदर !! रोजमर्रा के अनुभवों को ब्लाग के माध्यम से प्रस्तुत करने की शैली काबिले दाद है ,
ReplyDeleteक्या आप ON-Demand ब्लाग लिखने का जोखिम उठायेंगें ?? क्योकि आपकी इस ईश्वरीय भेंट [ब्लाग लेखन ] का लाभ उठाने की हार्दिक इच्छा है - मोहन कानपुर
द्वारपाल की अहमियत समझ में तो आती है ..सर बिजी हैं ... सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteएक किस्सा याद आ गया..
ReplyDeleteपापाजी नए नए बेतिया में DDC के पद पर पदस्थापित हुए थे.. मैं पहली दफे बेतिया गया था और मुझे उस समय वहाँ कोई भी पहचानता नहीं था.. यूँ ही तफरी करने के लिए घुमते-घुमते पापाजी के दफ्तर चला गया.. वहाँ उनके रूम के अंदर जाने लगा तो चपरासी ने मुझे रोका.. मैंने अपना परिचय नहीं दिया.. बस कह दिया कि ऐसे ही साहब से मिलना है.. उसने मुझसे पचास रूपये लिए फिर अंदर जाने दिया.. अंदर जाकर आराम से बैठा और पापाजी को सारी बात बतायी, उन्होंने उसी चपरासी को बुलाया और उसे बिना कुछ कहे कुछ पैसे दिए और बोले कि मेरा बेटा पहली बार आया है, इसके खाने के लिए कुछ मिठाई लेते आओ.. उसका चेहरा डर से सफ़ेद हो गया.. उस समय मेरे सामने पापाजी उसे कुछ नहीं बोले.. मैं जब बाहर निकला तो मुझसे भी उसने खूब माफ़ी मांगी.. बाद में पापाजी बिना बोले उसे महीने भर के लिए दफ्तर आने से मना कर दिए.. वो परमानेंट नहीं था, टेम्पररी बेसिस पर था.. उसे लगा कि उसकी नौकरी चली गई है.. एक महीने बाद उसे वापस बुला लिया गया, कम से कम जब तक पापाजी वहाँ रहे तब तक वह ऐसी हरकत करने की कोशिश भी नहीं किया..
वैसे आखिरी वाला पञ्च लाइन सच में मस्त है.. :)
हा हा हा हा....
ReplyDeleteनिसंदेह.... आपकी छवि उज्जवल करते हुए उन्होंने अपने बदले की आग भी बुझा ली...
आपका लेख पढ़ कर मुस्कराहट अपने आप ही चहरे पर आ गयी. बहुत ही सरल और हास्य से भरपूर लेख है. आपकी लेखनी में जादू है.
ReplyDelete"सर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।" अजी चार नही दस चांद लगा रहे थे आप क्र दुवयार पाल जी, ओर मिलने वाले मुस्कुरा रहे होंगे
ReplyDeleteअगर द्वारपाल भ्रष्ट हो तब तो बात समझ में आती है लेकिन आपका यह आदेश द्वारपाल को देना की सबसे कहे साहब बीजी हैं ,ठीक नहीं है किसी भी दृष्टिकोण से ,बड़े पदों पर बैठकर ज्यादा जिम्मेवारी और मेहनत के साथ पूरी ईमानदारी से काम करने वाला ही बड़ा है और वह हमेशा अपनी नजरों में भी बड़ा रहता है अन्यथा वह दूसरों के नजर में तो बड़ा होता है लेकिन अपनी नजरों में गिर जाता है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteरोचक संस्मरण।
आपकी कई टिप्पणियाँ दूसरे ब्लोग्स पर देखी. आज पहली बार ही आपके ब्लॉग पर आया हूँ, आनन्द आया..
ReplyDeleteअगली पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा, आपने एक भावी सिविल सरवंट को क्या शिक्षा देकर भेजा
मनोज खत्री
बढ़िया रहा संस्मरण |आगे शायद" दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है "इस मुहावरे को प्रयोग में लाना पड़े ?
ReplyDeletepost ki shuruaat aur aage padhte hue lagaa ki gambhitram muddaa hai lekin ant tak aate aate chehre par muskaan aa gai, halanki dono ho koN hamare samaye ke sahi soochak hain.....
ReplyDeleteहो हो हो ...
ReplyDeleteकृपानिधान,
द्वारपालों ने जम कर किया आपका कल्याण ...
जब आपने दिया उनको वरदान
कि बंद रखें वो आपकी दूकान
फिर कन्या स्वर में क्यों दिया ध्यान :):)
उनके impression का तो जी
हो गया न...!!
ऊ का कहते हैं ....लुटिया डूबान ...!!
हा हा हा ...
बहुत बढ़िया ...
हाँ नहीं तो..!
कोई कोड वर्ड हो तो बता दीजिए. कभी बंगलोर आना हुआ तो इंतज़ार तो नहीं करेंगे हम. भले अंदर आप किसी मैडम के साथ ही बीजी क्यों न हों :)
ReplyDelete.साहब तो बहुत बिजी हैं
ReplyDeleteजय हो।
अब क्या कहें ....पहले सर ने फूल देखे फिर लाल बत्ती में व्यस्त ...
ReplyDeleteपहल क्यों नहीं करते खुद से इसे हटाने की ...खुद ही मत उपयोग करें ...खैर पर उपदेश कुशल बहुतेरे वाली बात कर रहा हूँ मैं भी
कुल मिलाकर आपका सस्मरण रोचक और इमानदारी से भरा लगा ...जारी रहे ये ईमानदार प्रयास जनाब !!
आपकी शैली और लालबत्ती पर आपके विचार - लालबत्ती की मजबूरी और लालबत्ती की ऐंठ पसंद आये. लेकिन साहब के साथ एक मैडम के होने की बात ने टिप्पणीकारों को इतना प्रभावित किया और उनका मनोरंजन किया, क्या यह चिंताजनक नहीं ?
ReplyDeleteसर तो अबी बहोत बिजी है। अन्दर एक मैडम भी है।" ...
ReplyDeleteअच्छा हुवा किसी चेनल वालों को पता नही चला ... नही तो २ दिन तक खबर सुर्ख़ियों में रहती ....
वैसे हर बात के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू होते हैं ... अच्छा लेख ...
aapki post padhee hai, aur ab tak chehre par ek muskurahat bani hai.
ReplyDeletedhnyavaad.
आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteअधिक चाँद न लगेंगे अब, थोड़ा सतर्क हो गये हैं।
@ वाणी गीत
हमारे द्वारपाल जी बड़े कर्तव्यनिष्ठ हैं। उन्होने तो सत्य ही बोला अन्जाने में, बिना किसी विद्वेष के, पर लगा बड़े ही गहरे हमें। लालबत्ती जलते ही उनके अन्दर रेल सम्हालने के गुण प्रविष्ट हो जाते हैं, उनका कोई दोष नहीं।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
परिस्थितिजन्य प्रकरण यह रूप ले लेते हैं बहुधा।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
हम तो उनकी कर्तव्यनिष्ठा के शिकार हो गये।
@ अनूप शुक्ल
काम भी है, धाम भी है पर अब बिजी होने की हिम्मत न पड़े इन सन्दर्भों में।
@ सतीश पंचम
ReplyDeleteहम भी न समझे, द्वारपाल भी न समझे, पर जो लोग समझे उससे हमारी समझ भी चकरा गयी।
@ Sunil Kumar
अब यदि वह स्वयं याद न दिलायें तो संभवतः न पहचान पाऊँ। परिस्थितिजन्य प्रकरण था इसलिये लिखा भी, व्यक्तिजन्य होता तो न लिख पाता।
@ Ratan Singh Shekhawat
रेल पर तो उधार नहीं है अब तक। पर आपने लालबत्ती के इस उपयोग के बारे में बताकर चिन्ता में डाल दिया।
@ बेचैन आत्मा
चौकीदार को मैंने कभी कुछ भी नहीं कहा। बड़े कर्तव्यनिष्ठ हैं। हो सकता है, हमने अपना नियम तोड़ा, इसलिये ही रूठ गये हों।
@ हरकीरत ' हीर'
मुझे जब अगले आगन्तुक न् यह बात बताई तो मैं न मुस्करा पा रहा था, न क्रोध कर पा रहा था। घर आकर श्रीमती जी को बताई तो उन्हे भी बहुत हँसी आयी। दिन हमारा ही बिजी था।
@ मो सम कौन ?
ReplyDeleteपोस्टवत कार्य तो कर दिया है, संभवतः पोस्टें भी ऐसी झन्नाटेदार लिख डालें।
@ Arvind Mishra
आपका विश्लेषण, लगता है सत्य के सर्वाधिक निकट है। कर्तव्यनिष्ठ प्रवृत्ति के मनुष्यों की जिद भी बड़ी सैद्धान्तिक होती है। उनका ही प्रताप है कि विघ्न हमारे पास नहीं फटक पाते हैं। कईयों की व्यग्रता उनका गुरुत्व देख कर ही उतर जाती है।
@ सतीश सक्सेना
यदि इतना सोच सकते तो यह होता क्यों? यदि होता नहीं तो आपको पता कैसे चलता? लगता है डू लूप में समा गये हैं।
@ सम्वेदना के स्वर
कुछ उत्तर न कभी बदले हैं, न कभी बदलेंगे। हम स्थिरमना हैं।
@ ajit gupta
अगले आगन्तुक ने तुरन्त ही हमारी भूल बता दी थी।
@ महफूज़ अली
ReplyDeleteधुलाई भारतीय शैली में, लिखाई यूरोपियन में। आहतमना के उद्गार निकल गये, यही क्या कम उपकार है लेखनी का, हम पर।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
अब तो अमावस आते आते ही चाँद चमकना कम करेंगे।
@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
ऑफ़िस जाने का मूड बना गयी ये पोस्ट...
किसलिये, अपने द्वारपाल से मिलने या....
@ P.N. Subramanian
अब लगता है कि सारा किया धरा तो लाल बत्ती का ही है।
@ P.N. Subramanian
घर आकर स्वयं ही बता दिये। कोई और रहस्य उद्घाटित करता तो चाँद ही रह पाती।
@ Mithilesh dubey
ReplyDeleteधन्यवाद आपका दिलासा देने का।
@ JHAROKHA
हो सकता है यही कारण रहा हो कि अगले आगन्तुक ने तुरन्त ही बता दिया। यदि बाद में पता चलता तो यह विश्वास भी हो जाता कि चार चाँद लग चुके हैं।
@ नरेश सिह राठौड़
भाभी जी को उसी दिन बता दिया था। अब उनका सारा ध्यान टिप्पणियों में है।
@ shikha varshney
शुक्र है कि बच गये, नहीं तो ब्रह्माण्ड भी कम पड़ता मुँह छिपाने के लिये।
@ rashmi ravija
चलिये जितने बन गये हैं, ठीक है। औरों को तो हमारे द्वारपाल जी ही नहीं बनाने देंगे।
@ abhi
ReplyDeleteआपका आनन्द देख कर अब थोड़ा ठीक लगना प्रारम्भ हुआ।
@ Bhavesh (भावेश )
अब और अधिक रोचक नहीं बनाना है स्वयं को।
@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
सच में कितना अहम रोल है कि अहम ही धो डाला।
@ इलाहाबादी अडडा
सामने तो वही है, हम तो दरवाजे के पीछे बैठे हैं।
@ पी.सी.गोदियाल
हम जैसे बहुत अधिकारियों की द्वारपाली कर लेने के बाद वह अब किसी को नहीं छोड़ने वाले।
@ Mohan
ReplyDeleteयह परिस्थिति, भगवान करे, किसी को On Demand न मिले। मुस्कराने का लाभ तो अभी उठा लीजिये।
@ महेन्द्र मिश्र
हमें भी अब अपने द्वारपाल की अहमियत समझ में आने लगी है।
@ PD
बहुत रोचक प्रकरण है आपका पर हमारे द्वारपाल जी बड़े ही सैद्धान्तिक हैं। बात ऊँची थी, हम समझ न पाये।
@ रंजना
उनके लिये तो बदला न था पर हमें हमारा आदेश बदलने का फल मिल गया।
@ Pooja
खिसियाहट से उत्पन्न मुस्कराहट तो बहुत देर तक हमारे चेहरे पर बिराजी रही।
@ राज भाटिय़ा
ReplyDeleteद्वारपाल जी की वाणी का गाम्भीर्य बढ़ ही गया होगा, कम होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हमने अपना नियम तोड़ा, हो सकता है यह उन्हे और गम्भीर कर गया हो।
@ honesty project democracy
द्वारपाल भी कर्तव्यनिष्ठ थे और मैं भी व्यस्तता का बहाना नहीं बना रहा था। प्रायः आगन्तुकों को यह शिकायत नहीं रहती है।
@ मनोज कुमार
बहुत धन्यवाद।
@ Manoj K
हो सकता है जो भी बताया, उपयोगी हो। अब तो मैं भी कितना कुछ भूल गया इस घटना के बाद।
@ शोभना चौरे
छाछ। वह क्या होता है भला। अब न दूध से रिश्ता, अब न छाछ से नाता।
@ Sanjeet Tripathi
ReplyDeleteअब आप ही बतायें कि दोष किसको दूँ। स्वयं को, लड़की को, द्वारपाल को। चलिये, उस लाल बत्ती को दो सप्ताह का सश्रम कारावास दे दिया।
@ 'अदा'
हमारी रुलाई,
आपके काव्य की अँगड़ाई।
बात सच है पर,
मन क्यों करुण हुआ,
कन्या के स्वर पर।
अब और नहीं।
रुक्ष हृदय कर लेते हैं।
न हो पायेगा,
निष्ठुर हृदय न जी पायेगा,
इतिहास कहेगा,
एक था निष्ठुर।
@ अभिषेक ओझा
हारा सारा कोड डिकोड हो छितरा गया है। अब दरवाजे स्वयं ही खुले रहेंगे।
@ हास्यफुहार
आपको हँसी आ गयी, चलिये हमारी पीड़ा सफल हुयी।
@ राम त्यागी
हटाते हटाते सप्ताह में तीन घंटे ले आये हैं। वाणिज्य, भारतीय रेल और सरकार, तीनों के कारण इससे अधिक समय लालबत्ती को मिल ही नहीं पाता है।
@ hem pandey
ReplyDeleteमैं तो अभी भी सारा दोष लाल बत्ती का ही मानता हूँ।
@ दिगम्बर नासवा
सच कहा आपने। भगवान की कृपा थी कि चैनल वाले एक बन्धु घंटे भर बाद आये। हमारा घंटानाद होने से बच गये।
@ rakesh ravi
किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार,
जीना इसी का नाम है।
@ अनामिका की सदायें ......
धुलाई पूरी हो चुकी है। अब सुझाव देने लायक कुछ बचा ही नहीं।
acha huya ki mai late hu .....malum to ho gaya ki bhabi ji ki nigah ab comments per hai....is liye kuch nahi bolunga....per abhi tak muskra raha hu...
ReplyDeleteअइशा होता है शाब जी!
ReplyDeletesir ji aap bakai Bg the is rachna me
ReplyDeleteshaandar , maaj aa gaya
badhai
busy hai hum bhi,,,, isliye no comment............
ReplyDelete@ Ashish (Ashu)
ReplyDeleteआपकी मुस्कराहट कितना कुछ कह रही है।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
पर अइशा साब जी के साथ ही क्यों होता है?
@ ALOK KHARE
रचना तो उस खिसियाहट को हल्का करने में लिखी गयी जो तब से मन में बिराजी थी।
@ anoop joshi
काश, आपकी व्यस्तता सार्थक हो।