जब भी भावों को व्यक्त करने के लिये माध्यमों की बात होती है, फूलों का स्थान वनस्पति जगत से निकल कर मानवीय आलम्बनों की प्रथम पंक्ति में आ जाता है। प्रकृति के अंगों में रंगों की विविधता लिये एक यही उपमान है, शेष सभी या तो श्वेत-श्याम हैं या एकरंगी हैं। फिल्मों में भी जब कभी दर्शकों को भावों की प्रगाढ़ता सम्प्रेषित करनी हो तो फूलों का टकराना, हिल डुल कर सिहर उठना, कली का खिलना आदि क्रियायें दिखाकर निर्देशकगण अपनी अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा पा जाते हैं। कोई देवालय में, कोई कोट में, कोई गजरे में, कोई पुष्पगुच्छ में और कोई कलाईयों में लपेट कर फूलों के माध्यम से अपने भावों को एक उच्च संवादी-स्वर दे देते हैं। प्रेमीगण रात भर न सो पाने की उलझन, विचारों की व्यग्रता, मन व्यक्त न कर पाने की विवशता और भविष्य की अनिश्चितता आदि के सारे भाव फूलों में समेटकर कह देना चाहते हैं। भावों से संतृप्त फूलों के गाढ़े रंगों को समझ सकने में भी दूसरे पक्ष से आज तक कभी कोई भूल होते नहीं देखी है हमने।
अब भावों की भाषा को सरल बनाते रंग बिरंगे संवाहकों को कोई कैसे केवल सौन्दर्यबोध की श्रेणी में ही रख देने की भूल कर सकता है। फूल पा कर भाव समझ लेना आपकी योग्यता भले न हो पर भाव न समझ पाना मूर्खता व संकट-आमन्त्रण की श्रेणी में अवश्य आ जायेगा। एक बार जब सुबह उठने पर अपने सिरहाने पर रखे गुलदस्ते पर कुछ फूल रखे पाये तो बड़ा अच्छा लगा। हम बिना भाव पढ़े सौन्दर्यबोध में खो गये। दिनभर के रूक्ष पारिवारिक वातावरण में सायं होते होते अपनी भूल समझ में आ गयी। बंगलोर आने के बाद घर मे हुये पहले फूल के बारे में अपने हर्षोद्गार व्यक्त न करना घातक हो सकता था, इसका अनुमान लग गया हमें। दिनभर मानसिक उत्पात के बाद उत्पन्न हुयी बिगड़ी स्थिति को अन्ततः फूलों ने ही सम्हाला हमारे लिये। यदि विश्वास न हो तो आप भी प्रयोग कर के देख लें।
बंगलोर की जलवायु बड़ी मदिर बनी रहती है, वर्षभर। यहाँ के विकास में, जनमानस के स्वभाव में और कार्य का माहौल बनाये रखने के अतिरिक्त फूलों के उत्पादन में भी इसी जलवायु का महत योगदान है। संसार भर में पाये जाने वाले सभी फूलों का उत्पादन कर उनके निर्यात के माध्यम से यहाँ की अर्थव्यवस्था को एक सुदृढ़ भाग प्रदान करता है यहाँ का फूल-व्यवसाय। यहाँ की संस्कृति में फूलों का उपयोग हर प्रकार के धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों में बहुतायत से होता है। महिलाओं के सौन्दर्य प्रसाधन का अभिन्न अंग है, फूलों का गजरा।
यहाँ के जीवन में फूलों की सर्वमान्य उपस्थिति का एक उच्चारण है यहाँ पर होने वाली वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी। पूरे देश से आये फूलों का अप्रतिम व सुन्दरतम प्रदर्शन। गत रविवार हमारे सौभाग्य की कड़ी में एक और अध्याय जुड़ गया जब सपरिवार इस प्रदर्शनी को देखने का अवसर मिला। सुबह शीघ्र पहुँचने से बिना अधिक प्रतीक्षा किये देखने को मिल गया क्योंकि वापस आते समय सैकड़ों की संख्या में नगरवासी टिकटार्थ खड़े थे। मन के कोमल भावों की सुन्दरतम अभिव्यक्ति के वाहकों की प्रदर्शनी न केवल दृष्टि के लिये अमृतवत थी वरन भीनी भीनी सुगन्ध मन को दूसरे लोकों में ले जाने में सक्षम प्रतीत हो रही थी।
मन पूर्णतृप्त था, उपकार फूलों का, जीवन के रंगों में घुल जाते रंग,भावों को कहते अपनों के संग।
आप प्रदर्शनी में दिखाये कुछ दृश्य देखें और अगली बार जब भी कोई फूल दिखे, उसमें छुपाये और सहेजे भावों को पढ़ने का यत्न अवश्य करें।
फूल देख देख मन प्रसन्न हो गया. हालांकि यहाँ हर तरफ यही नजारा है. बहुत आभार.
ReplyDeleteसवेरे सवेरे इतने प्यारे प्यारे फूल दिखा दिये आपने... सवेरे सवेरे इन्हे देखने का भाव ही अलग होता है..
ReplyDelete"फूल पा कर भाव समझ लेना आपकी योग्यता भले न हो पर भाव न समझ पाना मूर्खता व संकट-आमन्त्रण की श्रेणी में अवश्य आ जायेगा। एक बार जब सुबह उठने पर अपने सिरहाने पर रखे गुलदस्ते पर कुछ फूल रखे पाये तो बड़ा अच्छा लगा। हम बिना भाव पढ़े सौन्दर्यबोध में खो गये। दिनभर के रूक्ष पारिवारिक वातावरण में सायं होते होते अपनी भूल समझ में आ गयी। बंगलोर आने के बाद घर मे हुये पहले फूल के बारे में अपने हर्षोद्गार व्यक्त न करना घातक हो सकता था, इसका अनुमान लग गया हमें। दिनभर मानसिक उत्पात के बाद उत्पन्न हुयी बिगड़ी स्थिति को अन्ततः फूलों ने ही सम्हाला हमारे लिये। यदि विश्वास न हो तो आप भी प्रयोग कर के देख लें।"
:-) :-) बढिया सुझाव ;)
इतने सुंदर फूलों और फूलों जैसे ही सुंदर लेख के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteजो भाव और विचार प्रकट करने में होट हिचकिचाते है फूल उन्हें बिना कुछ बोले अभिव्यक्त कर देते है |
ReplyDeleteफूलों ने भावों को साकार किया है. सुन्दर आलेख.
ReplyDelete"यहाँ के जीवन में फूलों की सर्वमान्य उपस्थिति का एक उच्चारण है"
मेरे खयाल से इस पंक्ति में 'उच्चारण' के स्थान पर 'उदाहरण' होना चाहिये.
फ़ूलों पर विश्लेषण गजब का है, फ़ूल के फ़ोटो से ही मन प्रसन्न हो उठा।
ReplyDeleteगार्डेन सिटी में फूलों की बहार है ...
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया ...!
वाह सवेरे सवेरे खूबसूरत फूल दिखा के दिन बना दिया आपने...और बिलकुल आपकी बात सही है - बंगलोर की जलवायु बड़ी मदिर बनी रहती है, वर्षभर
ReplyDeleteहमें तो पता ही नहीं था ये पुष्प प्रदर्शनी के बारे में..वरना हम भी जरूर जाते..फूलों से अपना भी थोड़ा लगाव सा है :)...बैंगलोर में किस जगह ये प्रदर्शनी लगी थी?
और ये बात तो कितनी ज्यादा सही है की - बंगलोर की जलवायु बड़ी मदिर बनी रहती है, वर्षभर...और आज कल तो बैंगलोर की जलवायु कुछ ज्यादा ही रोमांटिक सा हो गया है ;)
हर फ़ूल कुछ कहता है।
ReplyDeleteबताते हैं जी कि फ़ूल भेंट करने में भी फ़ूलों के रंग का बहुत अर्थ होता है, सफ़ेद फ़ूल भेंट किया तो उसका ये अर्थ, पीला गुलाब भेंट किया तो उसका कुछ और लाल रंग का अलग ही अर्थ। लेकिन अपनी कहें तो हमें तो कैसा भी फ़ूल हो, अच्छा ही लगता है।
फ़ूलों सी आपकी पोस्ट बहुत भली लगी, आभार।
वाह ! बहुत सुन्दर ! फूल भी और आपकी पोस्ट भी. भीनी-भीनी महक वाली मनभावन पोस्ट. :-)
ReplyDeleteफूल प्रकृति का नायाब तोहफा हैं। बिगड़ी बात को या तो मुस्कराहट बनाती है या फिर फूल। आप भी गजब करते हैं, कोई सुबह आपके सिरहाने फूल रख जाए और आप उसका प्रतिउत्तर भी ना दे, यह तो गलत है भाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट ..सच है फूलों से मन भी महक स जाता है ...प्रदर्शनी दिखाने का आभार
ReplyDeleteफूलों को देख कर मन फूलों की तरह खिल उठा। ये प्रकृ्ति की अनुपम भेंट है इन्सान को कुछ सीखने और समझने के लिये। आभार और शुभकामनायें
ReplyDeleteफूल फूल के फूल है
ReplyDeleteफूल फूल के फूल
jnaab yeh baat shi he ke vnspti hi insaan ka jivn he kuch vnsptiyaan insaan kaa pet bhrti hen or kuch khusnumaa maahol dekr mn thik krti hen ful pushp bhi in me se hi aek he pyaar ho chahe blidan khushi ho chaahe gm sbhi moqon pr aek ful hi he jo insaan ki mdd krta he or saath nibhaata he aek nivedn he aapke blog pr khilti kli kaa chitr he lekin kepshn me niche us ful likhaa he ho ske or munaasib smjhen to ful ke sthaan pr khilti kliyaan kren mere hiaab se or thik rhegaa saahityik rng bhi milegaa, maafi chaahtaa hun. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteप्रदर्शनी भी देख आये ओर आप की सुंदर सी पोस्ट भी पढ ली, बहुत अच्छा लगा, वेसे भारत के हर शहर मै इन फ़ुलो की प्रदर्शनी लगे तो कितना अच्छा हो, क्योकि हमारे देश का मोसम भी अच्छा है ओर गर्मी से फ़ुलो मै खुशबु भी ज्यादा आती है, धन्यवाद
ReplyDeleteहम तो फूलों से मुस्कराना ही सीख रहे हैं। आपने फिर से याद दिला दिया, लो जी मुस्करा रहे हैं।
ReplyDelete………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....
फिर छिड़ी बात रात फूलो की .....| बहुत सुन्दर दृश्य है | आभार |
ReplyDeleteप्रवीण जी… उफ्फ! बड़ी वेदना छिपी है आपकी इस पोस्ट में...इतनी जल्दी निर्णय न करें.. मैंने पोस्ट पढी भी और पुष्प प्रदर्शनी भी देखी...फूलों के बारे में आपकी राय पढकर मुस्कुराया भी.. लेकिन वेदना दिखी उन सूखे हुए फूलों की जिनके बारे में किसी ने कहा “जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें.”
ReplyDeleteख़ैर दिल खुश हुआ और आँखों को बड़ा सुकून मिला. बेहद सुंदर !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.... फूलों के भी कई तरह तरह के रंग आपने दिखाए...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामना. ...
आप सच कह रहे हैं.... पौधे फूल भी बातें करतें हैं.... फूलों की भाषा को कई बार नहीं समझ पाना भी घातक होता है... मैंने भी पौधों और फूलों को पानी मांगते देखा है.... मेरे घर में बहुत फूल -पौधे लगे हैं.... और मैं रोज़ उनसे १० मिनट बातें भी करता हूँ....पौधों की भी अपनी एक भाषा होती है.......... बस हम इंसानों को वो भाषा समझ में आनी चाहिए.... मैं भी इसका प्रयोग कर चुका हूँ.... मुझे जानवरों से भी उतना ही प्यार है.... अब आप यह समझ लीजिये कि मुझे जानवरों से इतना प्यार है...कि कई बार मैं अपने जैंगो के साथ एक ही प्लेट में खाना खाता हूँ... और दुनिया के किसी भी खतरनाक से खतरनाक कुत्ते को भी दोस्त बना लेता हूँ.... अगर आप मेरे ऑरकुट के एल्बम में देखें तो आप मेरे फूलों और जैंगो और भी मेरे जानवर दोस्तों से मिल सकते हैं..... मुझे कई मुसलमान गाली देते हैं.... कि मैंने कुत्ता पाला है.... मै कहता हूँ कि किसी मुसलमान को पालने से अच्छा मैं कुत्ता पाल लूं.... मैं कुत्ता का झूठा खा सकता हूँ... लेकिन कुत्तों से नफरत करने वालों से मैं उतना ही नफरत करता हूँ जितना कि लोग सूअर या ह्यूमन डिफेकेट से करते हैं... इसी तरह मुझे फूलों से भी बहुत प्यार है...
ReplyDeleteएक बार ऐसे ही मेरे गमले में एक कॉमन वीड निकल आया था... मैं उसे उखाड़ने जा रहा था... एकाएक मन में ख़याल आया कि क्यूँ उखाडू...... यह प्यार का पौधा है अपने आप उग आया है.... मेरे ऑरकुट के अल्बम में मेरे फूलों से ज़रूर मिलिएगा.... बहुत खुश नज़र आयेंगे वो.... मुझे मालूम है आपके पास वो नज़र है कि आप फूलों की ख़ुशी को देख सकें और महसूस कर सकें.... अब ऐसी पोस्ट तो कोई संवेदनशील ....क्रियटिव इन्सान ही ना लिख सकता है.... जिसके पास इतना टेंडर (कोमल) दिल हो.... बहुत ही सुंदर पोस्ट...
फिर छिड़ी रात बात फूलों की ... रात है या बारात फूलों की ...
ReplyDeleteआभार !
फूल और फूलों पर सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletewah...badiya post...badhai...
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteफूलों के पास वो, हम उनसे दूर,
काश हम भी हो सकते इतने मशहूर।
@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
हमारे अनुभव का तनिक भी लाभ हो तो हमें फूल के साथ भिजवा दीजियेगा, कृतज्ञता के भाव।
@ Rajeev Bharol
फूल आपको जीवन में सारे रंग दे जायें।
@ Ratan Singh Shekhawat
कौन कहता है भावों का रंग,रूप व आकार नहीं होता है? एक फूल ध्यान से देख लें, उत्तर मिल जायेंगे।
@ M VERMA
उदाहरण बेहतर शब्द है पर उच्चारण का प्रयोग केवल अभिव्यक्ति की स्पष्टता के लिये ही किया है।
@ Vivek Rastogi
ReplyDeleteइतने भाव ढोते ढोते तो फूल भी थक जाते होंगे।
@ वाणी गीत
यहाँ तो फूल वर्षपर्यन्त होते हैं।
@ abhi
प्रदर्शनी लालबाग में लगी है। बादलों से ढके आसमान से मध्यम प्रकाश छन छन आता रहता है। उसका ही नशा चढ़ा रहता है हफ्तों।
@ मो सम कौन ?
विभिन्न रंगों का संवाद संवहन में क्या अभिप्राय है, इस पर पोस्ट बनायी जा सकती है। अनुभव पर कम है अपना। किसी अनुभवी मानुष से प्रार्थना करते हैं।
@ mukti
झाँसी में एक रातरानी का पेड़ था। सुगन्ध इतनी भीनी व मदिर कि बिना रात में टहले मन नहीं मानता था। अब भी याद आती है वह सुगन्ध।
@ ajit gupta
ReplyDeleteहमारी सामाजिक शिक्षा अनुभवजन्य अधिक है। मूर्खता करने का अधिकार और बैल-सम व्यवहार का कोई अधिक बुरा नहीं मानता अब।
कभी न कभी तो फूलों को शान्ति का नोबल पुरस्कार तो मिलेगा ही।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
इस कठोर जगत में भी फूल हमारे कोमल भावों का संवहन कर रहे हैं।
@ निर्मला कपिला
जब निर्जीव से फूल इतने भाव समेटे हैं, हम तो फिर भी मानव हैं। निसन्देह कितना कुछ सीखने के लिये है फूलों से।
@ डॉ महेश सिन्हा
फूलमय छन्द।
@ Akhtar Khan Akela
आपकी सलाह तुरन्त मान ली गयी। वनस्पतियों पर निश्चय ही हमारी निर्भरता बहुत अधिक है, फूल उस निर्भरता को एक कदम और आगे ले जाते हैं।
@ राज भाटिय़ा
ReplyDeleteविश्व पुष्प प्रदर्शनी के लिये भी बंगलोर एक उपयुक्त स्थान होगा क्योंकि यहाँ पर हर प्रकार के फूलों का उत्पादन व निर्यात होता है।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
हमारी मुस्कराहटों के लिये ही फूलों को अपने घरों से बिछड़ना भी नहीं अखरता।
@ नरेश सिह राठौड़
फूल तो सारे माहौल को खुशनुमा बना देते हैं।
@ सम्वेदना के स्वर
कुछ चिपाये हुये फूल जीवन के अध्याय बन उसी पुस्तक में छप जाते हैं। उनके अन्दर के भाव फिर भी नहीं सूखते।
@ महेन्द्र मिश्र
फूल तो रंग बिखरने के लिये ही धरती में आये हैं।
@ महफूज़ अली
ReplyDeleteमानव स्वभाव को वह हर वस्तु भाती है जो कुछ व्यक्त करती सी लगती है। उनकी अभिव्यक्ति भाषा में न बँध पाये यह भाषा की विवशता हो सकती है पर हृदय वह सब कुछ समझ लेता है।
मेरे मन का तनाव बहुधा घरवाले नहीं समझ पाते हैं पर मेरे कुत्तों को तुरन्त समझ में आ जाता है। आँखों से विचार पढ़ना पहली बार जानवरों के साथ ही सीखा।
फूल पौधे भी भाव रखते हैं, यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। उसी आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि आपके फूल पौधे आपसे बात अवश्य करते होंगे।
@ padmsingh
ReplyDeleteबज़ में आपको ढूढ़ा जा रहा है और आप यहाँ रात की बारात में फूलों के बीच छिपे हैं। चलिये आपको ढूढ़ते ढूढ़ते वे यहाँ भी आ जायेंगे, फूलों की महक लेने।
@ अनामिका की सदायें ......
आपकी वीरताभरी रचना को मेरी फूल-पोस्ट अर्पित है।
फ़ूल नजरो और दिल मे बसाने की चीज है, इसका बाजारीकरन नही होना चहिये था ! प्र्दर्श्नी भा गई !
ReplyDeleteप्रवीणजी
ReplyDeleteपिछले १५ दिनों से बेंगलोर में हूँ और पिछले एक हफ्ते से रोज ही अखबारों में फूलों की प्रदर्शनी के बारे में पढ़ रही हूँ और उपर से आपने इतनी खुबसूरत पोस्ट ने मन ललचा ही दिया लाल बॉग जाने के लिए |बेटे से कहा है ,और उसे भी आपकी पोस्ट दिखाई है ||
और हाँ सच कितने ही रंग बिरंगे फूल यहाँ पूजा और दुसरे अनुष्ठ्नो में सजते है वे बेमिसाल है |खुबसूरत फूलो की तरह ही खुबसूरत परिवार का चित्र और खुबसूरत पोस्ट |
शुभकामनाये |
फूलों की वस्तविकता को दर्शाता ये लेख फूलों सा सुंदर है।
ReplyDeleteफूलों पर कुछ भी कहा जाए कम ही होगा...फिर भी आपने बहुत ही सुन्दरता से बहुत कुछ कह दिया...
ReplyDeleteबात उठी है की कौन सा फूल किस अवसर पर दिया जाए...
तो कुछ कह देती हूँ जो मुझे मालूम है...
लिली...इस फूल को दिया जा सकता है किसी भी धर्मिक अनुष्ठान के लिए ...आध्यात्म का प्रतीक है ये
ऑर्किड ...प्रतीक है सुन्दरता और शुद्धता का ...यह फूल बहुत दिनों तक टिकता है...जन्मदिनों और धन्यवाद ज्ञापन के लिए आप इसे दे सकते हैं
गुलाब...रोमांस, प्रेम, प्यार का प्रतीक है ...कहा जाता है सफ़ेद गुला...प्रेम के लिए दीजिये, लाल गुलाब उसके लिए जिसके लिए आप कुछ भी कर गुजरेंगे...और पीला गुलाब दोस्ती के लिए...गुलाबी गुलाब किसी भी ख़ुशी के मौके के लिए दिया जा सकता है ...और अगर आपको पहली नज़र में प्रेम हुआ है तो...हल्का बैंगनी रंग का गुलाब दीजिये..
चमेली...का फूल उसके लिए जिसे आप बताना चाहते हैं कि वो बहुत ही शानदार व्यक्ति है..
दहीलिया...के फूल शोक में दिए जाते हैं...
और भी सोचती हूँ...अगर कुछ याद आया तो लिखूंगी...
लाल बाग की तस्वीरें देख कर बरसों पहले की हुई अपनी बेंगलोर (बंगळुरू) यात्रा याद आ गई । फूलों का तो काम ही है आप को आकर्षित करना तोकि उनका भी काम हो और आपका भी । आपकी बिगडी स्थिति को भी फूलों ने आखिर सम्हाल ही लिया ।
ReplyDeleteफूल बडे नाजुक होते हैं ।
फूलों जैसे ही सुंदर लेख के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत खूब !
अंग्रेजों से प्राप्त मुक्ति-पर्व
..मुबारक हो!
समय हो तो एक नज़र यहाँ भी:
आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html
@ योगेन्द्र मौदगिल
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपके उत्साहवर्धन का।
@ पी.सी.गोदियाल
फूलों का बाजारीकरण हो चुका है, उनमें छिपे भावों का अभी तक तो नहीं हुआ है पर संभावनायें निकट ही मँडरा रही हैं।
@ शोभना चौरे
बंगलोर के वातावरण का लाभ तो बागों में घूमने से ही होता है। बड़ी सुन्दर प्रदर्शनी है, आप देख अवश्य आयें। यहाँ पर हर जगह फूलों का प्रयोग बहुतायत से होता है।
@ मनोज कुमार
मानवीय भावों को तो फूल वहन कर लेते हैं, फूलों के भावों को दर्शाने का थोड़ा दायित्व तो हमारा भी बनता है।
@ 'अदा'
आशानुरूप बड़ी ही सुन्दर जानकारी दी आपने। हमें तो रह सह कर गुलाब में ही अपने प्रयासों का निष्कर्ष दिखता है।
@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteफूल बड़े कोमल होते हैं, संभवतः यही कारण है कि अपने अन्दर कोमल भावों को संजोकर रख पाते हैं।
@ शहरोज़
आपका बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन का।
आजादी के दिन ये खूबसूरत फुल बहुत कुछ कह जाते हैं....स्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
ReplyDeleteअद्भुत ,उत्तम ,नयनाभिराम !मगर एक छोटी सी अभिलाषा क्यूं आयी याद आज के दिन -
ReplyDeleteचाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूथा जाऊं
चाह नहीं देवों के सर पर चढ़ूँ,भाग्य पर इतराऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली ,देना उस पथ पर फेक
मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पर जाएँ वीर अनेक
man baag baag ho gaya! sunder aaleksh.. taajgi liye vishay aur varnan !
ReplyDeleteस्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट! फ़ूल देखकर मन खुश हो गया। पारिवारिक फ़ोटो कई बार देखा। बहुत खूब!
ReplyDeleteफूल और उनका खिलना बहुत ऊर्जा देता हैं!!
ReplyDelete@ Akanksha~आकांक्षा
ReplyDeleteचाह नहीं मैं, सुरबाला...
.
.
....जिस पथ जायें वीर अनेक।
फूल सदैव से ही स्वातन्त्र्य वीरों के उपासक रहे हैं।
@ Arvind Mishra
आपकी पंक्तियाँ उद्धृत कर चुका हूँ। स्वतन्त्रता दिवस में फूलों की इससे सुन्दर अपर्णांजलि क्या हो सकती है भला।
@ arun c roy
आपकी कविताओं को पढ़कर ऐसे ही मधुरिम भावों में हम भी उतराते रहते हैं।
बहुत खूब,
ReplyDeleteसुंदर फूलों के लिए धन्यवाद!
@ वन्दना अवस्थी दुबे
ReplyDeleteआपको भी इस दिन की ढेरों बधाईयाँ।
@ अनूप शुक्ल
फूलों का स्वभाव है औरों के भावों का संवहन करना। अतः आपके संग उनकी भी प्रसन्नता स्वाभाविक है।
@ राम त्यागी
फूल सदैव ही ऊर्जा व नयेपन के प्रतीक हैं। फूल देखते ही मन अनायास स्थिर सा हो जाता है भावों में।
बहुत खूबसूरत पोस्ट!
ReplyDeleteजीवन में फूलों का जितना महत्व है, शायद ही किसी और चीज का होगा. बात-बात पर फूल का उपयोग किया जा सकता है.
आपका एल्बम बहुत सुन्दर है. मैं इसे कॉपी कर सकता हूँ?
fool dekh kar to har kisi ko acha lagta hai.. badiya post...
ReplyDeleteBanned Area News : Karnataka News
Get your book published.. become an author..let the world know of your creativity. You can also get published your own blog book!
ReplyDeletewww.hummingwords.in
आपके आनंद की कल्पना कर सकती हूँ...चित्र ने ही जब हमारा यह हाल किया है,तो साक्षात दर्शन ने क्या किया होगा,समझना मुश्किल नहीं...
ReplyDeleteहमारे यहाँ भी पुष्प प्रदर्शनी फरवरी के मौसम में लगती है...और वहां जाकर तो सुध बुध गुम जाता है...
टिपण्णी मोडरेशन की आवश्यकता है ?????
ReplyDelete@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
ReplyDeleteफूलों की सुगन्ध आपका जीवन महकाये।
@ Shiv
महत्व तो फूल और फूलों, दोनो का है। एल्बम के सारे फूल आपको समर्पित हों।
@ Sonal
फूलों की सुगन्ध से आपका जीवन सुवासित हो।
@ HUMMING WORDS PUBLISHERS
आभार
@ रंजना
वातावरण बहुत ही मनोहारी था। जिस ओर दृष्टि उठती थी, मन उल्लसित हो उठता था। 15 अगस्त के दिन वहाँ 2 लाख से भी अधिक लोग देखने आये थे।
टिप्पणियों को सर्वप्रथम पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ।
फूलों जैसे ही सुंदर लेख के लिए बहुत आभार.
ReplyDeleteफूलों की खुशबू अभी तक आ रही है....
ReplyDelete_________________________
'शब्द-शिखर' पर प्रस्तुति सबसे बड़ा दान है देहदान, नेत्रदान
फूलों पर सुंदर आलेख और जानकारीयुक्त विवरण मज़ा आगया. सोने पे सुहाग आरहे फूलों के चित्र और आपका सुंदर सा परिवार. बहुत बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteफूल अभिव्यक्ति का शशक्त माध्यम हैं ... हर तरह के भाव फूलों द्वारा बिंबित किए जा सकते हैं ... और आज तो ये वाणिज्य में भी भरपूर दखल रखते हैं ... रोचक लेख ...
ReplyDelete@ Sunil Kumar
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
@ Akanksha~आकांक्षा
इनकी खुशबू शान्ति बन कर सारी दुनिया में फैले।
@ रचना दीक्षित
फूल तो सबको सम्मोहित करते हैं।
@ दिगम्बर नासवा
बहुत सही बातों पर जोर दिया है आपने।
Acha lagtha hey!
ReplyDeleteWarm Regards
@ Pranavam Ravikumar a.k.a. Kochuravi
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका।
आज दिनांक 21 अगस्त 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट कहानी में फूल शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए जनसत्ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।
ReplyDeletePhool to sundar hain hi lekin pehla paragraph bhi phoolon jitna hi sundar hai.
ReplyDelete-Tarun
@ अविनाश वाचस्पति
ReplyDeleteअखबार में पहली बार अपना लेख पढ़ बहुत ही सुखमयी अनुभूति हो रही है। बहुत आभार आपका।
@ Readers Cafe
भावों के संवाहक फूलों के बारे में लिखना अच्छा लगता है।