बड़े घर की समस्या यह है कि सबको अपने अपने कमरे चाहिये होते हैं। मुझे तो पहली बार अपना कमरा आईआईटी के तीसरे वर्ष में जाकर मिला था अतः मेरा अनुभव इस समस्या के बारे में कम ही था। पृथु और देवला अभी तक एक कमरे मे ही थे। देवला की सहेलियों की गुड़िया-प्राधान्य बातों से व्यथित हो, पृथु ने अलग कमरे की माँग रख दी। एक अतिरिक्त कमरा था, अतः दे दिया गया।
मेरा देश भी बड़ा है, सबके अपने अपने कमरे हैं। अब घर के हर कमरे में यदि एक दरवाज़ा बना दिया जाये बाहर जाने के लिये तो घर का स्वरूप कैसा होगा। कश्मीर अपना दरवाज़ा खोलकर बैठा है, उत्तरपूर्व अपना दरवाज़ा खोलकर बैठा है। सूराख और सेंधें तो दसियों लगी हैं। घर के अन्दर कमरों में बैठे लोगों ने अपना स्वातन्त्र्य घोषित कर दिया है। नक्सल अपना मानचित्र बनाये बैठे हैं। मुम्बई के मानचित्र को कोई अपना बता चुका है। कोई जाति विशेष, धर्म विशेष के कमरों का प्रतिनिधि बना बैठा है देश के सबसे बड़े कमरे में। देश को कब्जा कर लेने की प्रक्रिया चल रही है, देश के मानचित्र में अपने प्रभुत्व की रेखायें खींच रहे हैं कुछ ठेकेदार, यह भी नहीं जान पा रहे हैं कि अब उससे रक्त की धार बहने लगी है। देश की चीत्कार नहीं सुन पा रहे हैं, संभव है कि उसकी मृत्यु का संकेत भी न समझ पायें ये रक्तपिपासु।
इतनी ढेर सारी क्षेत्रीय समस्यायें देख कर तो लगता है कि समस्यायें भी मदिरा की भाँति होती हैं। जितनी पुरानी, उतना नशे में डूबी। यदि तुरन्त सुलझ गयीं तो क्या आनन्द? सारा देश इसी नशे में आकण्ठ डूबा है।
मेरे घर का छोटा सा विवाद, बिटिया की सुलझाने की इच्छा व दृढ़विश्वास, समाधान एक मानचित्र के रूप में आ गया।
मेरे घर का मानचित्र तो बिटिया बना लाई, मेरे देश का मानचित्र कौन बनायेगा?
का चुप साधि रहा बलवाना।
मेरा विश्वास है कि मेरा नैराश्य मेरी मृत्यु तक जीवित नहीं रहेगा क्योंकि यदि मेरी बिटिया में घर का मानचित्र बनाकर मेरे सम्मुख रख देने का साहस है तो वह और उसके सरीखे अनेक बच्चे कल हमारे हाथों से निर्णय का अधिकार छीनकर देश का मानचित्र भी बना देंगे।
बच्चे ही बना सकेंगे इस देश और दुनिया का मानचित्र!
ReplyDeleteआप कितनी सरलता से दिन प्रतिदिन की बातों के माध्यम से देश की बहुत ही गंभीर समस्या का चित्रद कर देतें हैं . आशा करते है की भविष्य में हमारे पृथु और देवला की पीढ़ी इस समस्या से मुक्त हो.
ReplyDeleteइस देश का मानचित्र वही बना सकता है जो हर अलगाववादी विचारधारा को पनपने से पहले ही कुचलने की क्षमता रखता हो पर अफ़सोस की कि देश की सेकुलर राजनीती इस नक़्शे के हर कमरे में अलग अलग दरवाजे बनाने वालों का तुष्टिकरण कर उनका हौसला बढाती आई है और ये कुचक्र अभी भी चालू है
ReplyDeleteकुछ सोंचने को मजबूर करता आलेख .. अंत के आपके सकारात्मक सोंच से राहत मिली कि जितनी निकम्मी आज की पीढी है .. उतनी आनेवाली नहीं होगी .. क्यूंकि हमारे करामातों से बचपन से समस्याओं से ही उनका सामना होता रहा है .. हमारे पूर्वजों ने तो हमें स्वतंत्र और विकसित होता भारत सौंपा था !!
ReplyDeleteकितना सही लिखा है आपने . ....... देश का वर्तमान मानचित्र तो यही बच्चे सुरक्षित रख सकते है . हमारी और आपकी पीढी तो ९९ के फ़ेर मे है .और हमसे पहली वाली जो शासक है वह वोटो के फ़ेर मे मकान के खुलते दरवाजो को जानबूझ कर अनदेखा कर रही है
ReplyDeleteनई पीढ़ी और ज्यादा ऊर्जावान है, अभी देखने से ही पता चलता है और वे अपना और राष्ट्र का भविष्य देखने और बनाने का माद्दा रखते हैं।
ReplyDeleteबहुत सी बातों का हम विरोध नहीं कर पाते हैं, पर नई पीढ़ी प्रखर विरोध करती है, राष्ट्र का नवनिर्माण के प्रति आशान्वित !!!
देश कि समस्याओं को कितने सरल भाव से लिखा है अगर हमारे नेता अभी भी नही समझ सकें
ReplyDeleteतो हम क्या करें सार्थक पोस्ट बहुत बहुत बधाई
विचार परक ,६३वे पंद्रह अगस्त पर यह मुद्दा रायशुमारी का होना चाहिए -जो भी हो घर के कई दरवाजे हुए तो घर का स्वरुप बिगड़ता ही तो जाएगा ...अब तो बच्चों से ही उमीदें हैं !
ReplyDeleteबहुत ही करारा व्यंग्य क्षेत्रवाद और अनेकता में एकता जैसे नारों की धज्जियाँ उड़ाने वालों पर !!
ReplyDeleteजब तक हम और आप जैसे लोग सच्चे दिल से प्रजातंत्र को सच्चे अर्थों में , अपने क्रियाकलापों में नहीं ढालते, तब तक आप दिवाला को क़ानून बनाने की गद्दी पर नहीं बिठा पाओगे ,बल्कि राबड़ी और मुंडा जैसे लोगों को ही बिठा पाओगे ...हम बड़ी बड़ी बात करने वालो को भी वोट डालना होगा और सही लोगों को चुनना होगा ....सपनों को सच करने के लिए कर्म तो करना ही होगा ...कितने बुद्धिजीवी वोट डालने जाते हैं ?? कितने लोग एक बुद्धिजीवी lagislator को चुनते हैं ? हर जगह तो मायावती , मुलायम या फिर बस वही सब घोटालेबाज जीतते हैं ...
खरी पर सच्ची बात - हम सुधरेंगे - युग सुधरेगा !!
चलो लाये भारत में सच्चा प्रजातंत्र और बिठाए आज की दिवाला को कल संसद में .....
चिन्तनीय हो लिया मेरे लिए..मगर सच है कि बच्चे खींचेंगे..मानचित्र इस देश का...बढ़िया मसला दिया.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteविचारोत्तेजक!
बच्चे जब करेंगे तब करेंगे अभी तो यह हमारा ही कर्तव्य है कि इस समस्या के बारे में सोचें और अधिक से अधिक सार्थक प्रयास करें..
ReplyDeleteकाश आज सरदार पटेल होते? उन्होंने पूर्व में भी 565 रियासतों में बंटे इस देश को एक सूत्र में पिरोया था और आज भी उनकी मानसिकता और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति की ही इस देश को आवश्यकता है। जब घर का मुखिया कमजोर होता है तब सभी सदस्य अपनी मनमानी करने लगते हैं। हमारा मुखिया तो मौन है। अब कौन मुखर बने? अच्छा प्रश्न अच्छे संकेत से उठाया है, बधाई।
ReplyDeleteप्रवीण भाई... सब ने कह दिया बच्चे बनाएंगे देश का मानचित्र... लेकिन जब ये बात हमारे आपके मस्तिष्क में आ रही है तो क्या उनके दिमाग़ खोखले हैं, जिन्हें हमने ये ज़िम्मेदारी सौंप रखी है... उन्होंने यह पहले ही सोच रखा है कि बच्चे ही देश का नक्शा खींच सकते हैं... इसलिए उन्होंने पहले ही बच्चों के काँधों पर बूट पॉलिश, कचरा बीनना, मज़दूरी करना, अशिक्षा जैसे इतने बोझ डाल दिए हैं कि बेचारे नज़र उठे, तब तो देख पाएँ... अभी तो बस सपना है कि
ReplyDeleteकब नज़र में आएगी बेदाग़ सब्ज़े की बहार
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद! (राही मासूम).
सच में, अत्यंत सरल शब्दों में आपने कितनी बड़ी समस्या लोगों के सामने प्रस्तुत कर दी और उसका संभावित समाधान भी सुझा दिया. ये बात आपने बहुत पते की कही है--"इतनी ढेर सारी क्षेत्रीय समस्यायें देख कर तो लगता है कि समस्यायें भी मदिरा की भाँति होती हैं। जितनी पुरानी, उतना नशे में डूबी। यदि तुरन्त सुलझ गयीं तो क्या आनन्द? सारा देश इसी नशे में आकण्ठ डूबा है।"
ReplyDeleteहो सकता है कि हमारी या हमारे बाद वाली पीढ़ी कोई नया मानचित्र बना सके. आमीन.
bhut hi smvednsheel mudda uthaya hai aapne .aise lekh bhut prerk hote hai . jha tk mai smjhti hu aa rhi pidhi ke pairo me grd na lge iske liye hme apne apne aangn me jhadu buharna hoga . unse apeksha krne se phle hme dhratl ki ksauti pr khre utrna hoga .
ReplyDeleteआपकी भावनाओं को नमन. यह काम अब युवा पीढ़ी पर छोड़ दिया जाए.
ReplyDeleteकहा जाता है वसुधैव कुटुम्बकम ..तो घर हो या देश नियम तो वही लागु होते हैं ...बहुत ही अच्छा आलेख लिखा है आपने ..
ReplyDeleteअब बच्चों पर ही आशाएं लगी हैं ..
sahi maayne me duniya ka maanchitr tabhi kheenchaa jaa sakataa hai jab sabhi "vasudhaiv kutumbkam" ki avdhaarnaa ko aatmsaat karen. Nayee peedhi se ummeed to kee hi jaa sakti hai par vartmaan parivesh ko dekhte hue ummeed ko amal me laana jara jatil maloom padta hai. Apka yah aalekh bahut hi sateek taarife kaabil hai. aabhaar!!!!
ReplyDelete@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
ReplyDeleteयदि हमारी पीढ़ी यह कार्य न कर सकी और यह विश्व मानचित्र बनाने लायक रहा तो निश्चय ही बच्चे बनायेंगे मानचित्र।
@ Pooja
प्रयास हम सबका रहना होगा, इस क्षेत्रीयता से मुक्त होने का, तभी उस प्रयास को आगे ले जा बच्चे वसुधैव कुटुम्बकम् को ला पायेंगे। अभी तो प्राथमिकता राजनीति है, जननीति कब आयेगी पता नहीं।
@ Ratan Singh Shekhawat
आपका विचार यदि हमारे पालनहारों का विचार हो जाता तो इतनी समस्याओं का भण्डारण कर हम न बैठे होते। मानचित्र जन मानस में बस गया होता अब तक।
@ संगीता पुरी
सच कहा आपने। हमारे पूर्वज अपना जीवन बलिदान कर स्वर्ग में बैठे तो होंगे पर अपनी सन्ततियों की कापुरुषता देख पीड़ा झेल रहे होंगे।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
पता नहीं, आने वाली पीढ़ी को अधिक सुविधा या अधिक समस्या छोड़कर जायेंगे हम लोग।
प्रवीण भाई , आपके व्यक्तित्व के इस पहलु [ब्लाग लेखन] का नशा भी मदिरा की भांति दिन पर दिन बढता ही जा रहा है , आचार्य श्री ओम शंकर जी को आपके कुछ ब्लाग प्रिंट रूप में उपलब्ध करा दिए थे, उनका आशीर्वाद तो आपके साथ हमेशा ही है , शायद लेखनी में भी अब उस आशीर्वाद की झलक मिलने लगी है - मोहन कानपुर
ReplyDelete@ Vivek Rastogi
ReplyDeleteहमारे पूर्वजों ने भी हमसे आशायें रखी होंगी। आज के समाज ने उनके सपनों को तहस नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है मगर। इतना विभाजित समाज आज के पहले कभी न रहा हो संभवतः।
@ Sunil Kumar
गरल कितना भी सरल दिखे, विनाश तो करता ही है। नेताओं को अपनी राजनीति की दिशा संगठित समाज प्राप्त करने हेतु निर्धारित करनी होगी।
@ Arvind Mishra
हमें पुरानी समस्याओं के नशे में डूबने में भले ही आनन्द आये पर नयी पीढ़ी को बहुधा इससे अकुलाहट ही होती है। तब उनके समाधान हमें सहने होंगे। हो सकता है कि तब उतने मर्यादित न प्रतीत हो उनके समाधान।
@ राम त्यागी
ReplyDeleteकोई भी समस्या हो, हमारी ऊर्जा का क्षरण करती है। जिस गति से हम विकास की दौड़ में चल रहे हैं, एक दिन हमारे पीछे अनुकरण करने वाला कोई न होगा।
हमे जब यह निर्धारित करना होता है कि हम कौन सा ऐसा कार्य करें जिससे देश का विकास हो, हम इस पचड़े में उलझ जाते हैं कि मुम्बई में मलेरिया कौन लाया? जब बात नये उद्योगों की होनी चाहिये, हम इस बात पर लड़ते हैं कि वर्तमान उद्योगों में आरक्षण लाया जाय कि नहीं।
जाति, धर्म, क्षेत्र, प्रान्त में अपनी ऊर्जा को उलझाकर रख दिया है हमने और ऐसी स्थिति में रहना सीख लिया है हमने। आने वाली पीढ़ी में इतना धैर्य न हो संभवतः।
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteयदि हम खींचने में असफल रहे तो बच्चों को ही करना पड़ेगा यह कार्य।
@ हास्यफुहार
समाज को विभाजित और संकुचित रहने में आनन्द सा आने लगा है, पर बच्चे उन्मुक्त गगन के प्राणी हैं।
@ बेचैन आत्मा
एक और नशीली समस्या देने से अच्छा तो यही होगा कि उन्हे समाधान मिले और उनकी ऊर्जा अन्य कार्यों में लगे।
@ ajit gupta
सरदार पटेल का नाम लेकर आपने इस पोस्ट को धन्य कर दिया। सही अर्थों में देश का मानचित्र उनके ही द्वारा बनाया गया। अब उसी मानचित्र को पुनः स्थापित करने के लिये एक और लौहपुरुष चाहिये।
@ सम्वेदना के स्वर
बहुत ही सम्वेदनात्मक बात कह दी आपने। अपने उत्तरदायित्व आने वासी पीढ़ियों पर छोड़ तो दिये पर पीढ़ी को इतना अशक्त बना दिया कि समस्याओं का नशा यथावत रहे। पीड़ा का चरमोत्कर्ष है यह देश के लिये।
मुझे लगता है आपने शीर्षक थोड़ा गलत दे दिया इसे होना चाहिए था " मेरे देश का मानचित्र कौन बिगाड़ेगा ?
ReplyDelete@ aradhana
ReplyDeleteजब समस्या का नशा उतरेगा तब कहीं जाकर सार्थक प्रयास प्रारम्भ होंगे। मैं भी आशावादी हूँ कि देश यह जहर बहुत देर तक सहन नहीं करेगा।
@ RAJWANT RAJ
विडम्बना यह है कि गर्द हटाने की जगह हम आँगन में काँटों की बेल बो रहे हैं। हमने विकास की कोई कसौटी नहीं बनायी है, विनाश के विषबीज बोये हैं आने वाली पीढ़ी के लिये।
@ P.N. Subramanian
यदि हम अक्षम रहे तब उन्ही को करना पड़ेगा यह कार्य।
@ shikha varshney
वर्तमान जब निराश करता है तो भविष्य पर आशाओं का अंबार टिक जाता है।
@ सूर्यकान्त गुप्ता
वसुधैव कुटुम्कम् हमारा ध्येय है पर जब कुटुम्ब की वसुधा की छाती में विभाजन की दीवारें खड़ी कर दी जायें तो एक बार धैर्यवान धरती भी चीत्कार कर उठती होगी। जहाँ तक संभव है, वहाँ तक हम अपने आप को बाँट चुके हैं।
अच्छी तुलना है। देश का नया मानचित्र बनाने वालों को अभी समझदार और परिपक्व होने मे काफी समय लगेगा
ReplyDeletesb kanto ki bel bo rhe hai to ye jroori to nhi ki hm jante bujhte ye glti kre .
ReplyDeleteaagaz hoga tbhi to anjam hasil hoga bhai ! aise me skaratmk drishtikon apnana bhut jroori hai .beshk mushkil hai mgr asmbhv nhi .
ज्वलंत प्रश्न है। सरकार ने कश्मीर को स्वायत्ता देने की बात की है । क्या यह सही उदाहरण होगा आज की परिस्थिति में !!
ReplyDeleteप्रवीण सर,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत तरीके से आपने अपनी चिन्तायें और आशायें रख दीं।
वैसे आपके घर का नक्शा इसलिये सुगमता से बन भी गया और स्वीकृत भी हो गया क्योंकि आप सब इस बात को समझ रहे हैं, देश के साथ शायद ऐसा नहीं है।
याद हैं वो पंक्तियां,
’जहां शस्त्र बल नहीं, शास्त्र भी सिसकते है और रोते हैं,
ऋषियों को भी तप से सिद्धि तभी प्राप्त होती है, जब पहरे पर स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं।"
कुछ भड़काऊ लगे तो बेशक मत छापियेगा।
आभार।
निश्चित ही युवा शक्ति ये मान चित्र बनायेगी। आपकी पोस्ट पढ कर मन मे प्रेरणा का संचार होता है। आशा है आगे भी ऐसे ही रोचक और प्रेरक बातें लिख कर युवा शक्ति को उत्साहित करते रहेंगे। बधाई और शुभकामनायें।
ReplyDeleteजयहिद।
@ Mohan
ReplyDeleteओमशंकर जी का योगदान संस्कारवान व ऊर्जावान व्यक्तित्वों के निर्माण में सदा ही रहा है और सम्प्रति भी चल रहा है। मैं स्वयं को शिष्यत्व की अग्रिम पंक्ति में कभी न पा पाया। दूर रह कर भी बहुत कुछ सीखने की धृष्टता कर ली है। अपराध क्षम्य हो।
@ पी.सी.गोदियाल
अब लगने लगा कि आपका दिया शीर्षक ही रखना था।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
उस परिपक्वता के लिये क्या 63 वर्ष कम है?
@ RAJWANT RAJ
सहमत हूँ। दृष्टिकोण निश्चय ही सकारात्मक रखना होगा।
@ डॉ महेश सिन्हा
यह स्वायत्ता का ही परिणाम तो नहीं कि आज इतना जिद्दी हो गया है?
बहुत बढ़िया समवेदनशील लेख ...मगर निश्चिन्ता रहें प्रथू और देवला के हाथ में देश सुरक्षित है अगले २० सालों में देश कई गुनी रफ़्तार से आगे जाएगा !
ReplyDeleteह्मारे मां बाप सोचते थे हम खींचेगे इस देश का नया नक्शा, ओर हम सोचते है कि बच्चे खींचेगे इस देश का नकशा? क्या हम ने बच्चो को देश ओरेम की शिक्षा दी है?? क्या उन्हे देश की भाषा से प्यार करना उस की इज्जत करनी सिखाई है??? सपने देखना बहुत आसान है, उन्हे हकीकत मै बदलने के लिये तो कुर्बानियां देनी पडती है...... आप की पोस्ट सोचने को तो मजबुर करती ही है, लेकिन बहुत से सवाल भी हम सब के लिये छोड देती है...
ReplyDeleteदेश का मानचित्र निश्चित ही आने वाले कल में जो आज बच्चे है वो बनायेगे \क्योकि उनमे अपने रास्ते खुद चुनने की भरपूर क्षमता है |कोई अनुसरण शीलता ,कोई अनुकरण शीलता से भ्रमित नहीं है वो |
ReplyDeleteबच्चो के माध्यम से आज की परिस्थितियों का बहुत सही खाका खीचा है आपने |
luv ths post n luv the kids jinke karan aapne itni sarthak aur saargarbhit post likhi. bahut hi jwalant mudde par. is baat se koi do raay nahi ho sakti ki desh ko fir se ek lauhpurush ki jarurat hai basharte vo Adwani ya unke jaise na ho vakai me "sardar" ho.....
ReplyDeleteआपका ब्लॉग अपने पठन सूची में देख कर प्रसन्नता हुई। अगर कमरे से एक दरवाजा बहार को खुले तो फिर यह तो घर नहीं होगा बाज़ार हो जायेगा। अपने घर की बातों से बात निकल कर देश की बात हो गयी। देश भी बस बाज़ार बनता जा रहा है। नयी पीढ़ी हमारी आशा हैं। मगर हमें उनके लायक ज़मीन तैयार करनी होगी.
ReplyDelete@ मो सम कौन ?
ReplyDeleteयदि हमें समस्यायें आम क्रियाकलापों जैसी लगेंगी तो उन पर अधिक ध्यान न देने की और उन्हे टाल देने की प्रवृत्ति बनी रहेगी। समस्यायें कितना भविष्य लील जायेंगी, यदि इसका तनिक भी भान रहे, तो हम उनके निराकरण में तत्पर रहेंगे। कोई पीढ़ी पूर्वजों के द्वारा समस्या पर गर्व नहीं कर सकती है।
@ निर्मला कपिला
विडम्बना इस बात की है कि जो मुद्दे देश और समाज को बाटते हैं उन्ही मुद्दों पर चुनाव जीते जाते हैं। सरकारें सम्हाली जायें या देश?
@ सतीश सक्सेना
सुरक्षित तो देश अभी भी कहा जा सकता है पर यह गर्व कितने दिन रह पायेगा, कहना कठिन है। सुदृढ़ नींव देना हमारा कर्तव्य है, भव्यता वे दिखायेंगे।
@ राज भाटिय़ा
प्रश्न सबके लिये है। हमारी अकर्यमण्यता का बोझ यदि आने वाली पीढ़ी को उठाना पड़े तो इससे अधिक शर्मनाक और क्या हो सकता है हमारे लिये।
@ शोभना चौरे
ReplyDeleteआने वाली पीढ़ी में न विचारशून्यता है न पन्थों का दिग्भ्रम है। आत्मीयतावश जितना क्षोभ हमें होता है वर्तमान देख कर, उतने ही निर्मम समाधान देने में नयी पीढ़ी सक्षम है।
@ Sanjeet Tripathi
सच में आवश्यकता है एक और सरदार की। अलगाववाद के फन कुचलने का जज़्बा हो जिसमें।
@ rakesh ravi
सच में बाज़ार बन गया है। बातचीत की पहली शर्त यह हो कि आप बाहर का दरवाज़ा बन्द करें और घर की बातें घर में रखें।
देखिये....... वक़्त की कमी की वजह से मैं लेट हो गया... मैं ऐसे ही नहीं आपका फैन हूँ.... आपसे बताऊँ... तो मेरा एक इंटरवीऊ था .... रिसर्च डेवलपमेंट काउन्सिल में.... तो वहां इंटरवीऊ से पहले हर जगह की तरह पर्सनल इन्फोर्मेशन क्वेश्चनेयर फॉर्म भरवाते हैं.... हौबीज़ वाले कॉलम में ... अपनी हौबीज़ भरीं.... फिर जब इंटरवीऊ दिया तो सवाल हुआ लिखने पर.... फैवरिट राइटर्स पूछे गए... बोर्ड को बताया भी... ब्लॉग्गिंग के बारे में भी बताया..... जब आपका नाम लिया ...तो पूछा गया .... कि यह कौन साहब हैं? मैंने बताया.... पर आपके बारे में तो जानता था नहीं.... फिर उन्हें ब्लॉग खोल कर दिखाया... सबको अच्छा लगा... एक फायदा यह हुआ कि इंटरवीऊ के बाद बोर्ड के मेम्बेर्ज़ में से कुछ ने मुझसे ब्लॉग लिखने की जानकारी ली... और एक सलाह और दी कि ... अपने फैवरिट राइटर की नॉलेज होनी चाहिए.... ही ही ही .....
ReplyDeleteअब इस पोस्ट को ही देखिये ना... कितने इज़ी वे में आपने देश की समस्या को सामने लाया है... सच कह रहे हैं आप... अपने देश का मैप कौन बनाएगा....?
तोड़क सदा तोड़ने की कोशिश करते रहे हैं, करते रहेंगे
ReplyDeleteजोड़ने वाले भी कमजोर नहीं हैं
जिसमें दम होगा परिवर्तन की आँधियों में भी
चिराग जलाये रखेंगे।
बहुत पहले एक ने किसी अच्छे दिन कहा था
कुछ तो बात है कि मिटती नहीं हस्ती हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा
bahut hi acha blog hai apka..
ReplyDeletewaise to bachhe hi bana sakte hai desh ka maanchitr...
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : Foundation stone of ISB's second campus in Mohali laid
कठिन समस्याओं को बहुत ही सहज तरीके से उकेरा है आपने।
ReplyDeleteप्रवीण जी आपने क्या समाधान निकाला था अपने घर का .....?
ReplyDeleteआखिर बंटवारा तो हुआ ही होगा .....?
सबको अलग अलग संतुष्ट किया गया होगा .....?
शायद आपने बच्चों के लिए कुछ बलिदान भी दिया हो .....?
हाँ इस तरह फैसले तो हो सकते है ....अगर गुटबंदियां न हों तो ?
....यहाँ फैसले होने कौन देता है ....?
क्या कहूँ....आहत व्यथित मन आपके प्रत्येक शब्द में अपने आंसू मिला रहा है...
ReplyDeleteशायद ,यह अगली पीढी कुछ करे....
बहुत ही अच्छी पोस्ट और इस विषय की प्रस्तुति भी ..एक मासूम शुरुआत के साथ एक गंभीर विषय !
ReplyDeleteआप के सवाल का जवाब मिलना बहुत मुश्किल है क्योंकि ९० के बाद के जन्मे बच्चे आधुनिक तकनीकी युग में जन्मे हैं और हर काम का नतीजा इंस्टेंट चाहते हैं.
जो काम ६३ सालों में इतनी समझदार और सयंमी पीढियां नहीं कर पायीं उस का इस अति बुद्धिमान परन्तु तुलनात्मक रूप से अधिक उतावली .पीढ़ी से आशा लगाये रखना कितना सही है?
रतन जी की बात से सहमत हूँ कि इस देश का मानचित्र वही बना सकता है जो हर अलगाववादी विचारधारा को पनपने से पहले ही कुचलने की क्षमता रखता हो .
आपकी यही खासियत तो हमें पसंद है | छोटी छोटी बातो से भी आप देश् दुनिया को जोड़ देते है |
ReplyDelete@ महफूज़ अली
ReplyDeleteहर बार मैं थोड़ा स्वयं उठने का प्रयास करता हूँ, हर बार थोड़ा आप उठा देते हैं। आपके द्वारा चढ़ाया गया सोने का पानी रिस रिस कर अन्दर तक आने लगा है और मन काँचनमय हो जाना चाहता है। ऐसा अनुभव संभवतः आज तक नहीं हुआ जब उत्कृष्टता बंधन हो जाये। पर यह तो निश्चित है कि जहाँ तक संभव होगा आपके विश्वास को स्वयं में जी लेने का प्रयत्न करूँगा और जो भी बना पाया स्वयं को, आधार में आपका योगदान सदा जीवन्त पाऊँगा।
साक्षात्कार में ब्लॉग की चर्चा और उस विषय पर उत्सुकता इसका प्रमाण है कि आपकी रुचियाँ औरों को कितना भाती हैं।
@ swaarth
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही है आपने। किसी टिप्पणी में लिखा याद आ रहा है।
कर लो प्रारम्भ महाभारत, निष्कर्ष बताने बैठा हूँ,
तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ ।
@ Sonal
बच्चे तो निश्चय ही बना देंगे यदि हम सब असफल रहे।
@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
समस्या कठिन है अभी, यदि सही समय पर ध्यान न दिया गया तो हिंसा बन फैल जायेगी सारे देश में। हिंसा के निष्कर्ष सदा ही बड़े कड़ुवे रहे हैं।
@ हरकीरत ' हीर'
ReplyDeleteबड़े गहरे प्रश्न पूछ रही हैं आप। हमारी निपटारा करने की विधि में संभवतः देश को सम्हालने के सारे सूत्र न निकल पायें क्योंकि यह समस्या नयी थी।
मानचित्र बनते ही सबसे पहले तो समस्या स्वीकार कर ली गयी और कहा गया कि हाँ अन्याय तो हो गया है, जो सच भी था। यह मान लेने से मानचित्र मेज पर रख दिया गया। उसके बाद उस निर्णय का सच कारण बताया गया तो क्रोध और भी शान्त हुआ।
उसके बाद यह पूछा कि उसे क्या क्या असुविधा होगी और कैसे उसे ठीक किया जा सकता है। क्या और कोई उपाय है इस बारे में?
अन्त में सारी स्थान्तरित हुयी सुविधाओं के उपयोग का अधिकार देवला को मिला। पृथु के कमरे में उनका उपयोग होने से पृथु के गुल्लक में मासिक रॉयल्टी हमें भरनी पड़ी।
समाधान का आर्थिक बोझ हम पर तो पड़ा पर सब प्रसन्न हो गये।
@ रंजना
ReplyDeleteमन तो आहत ही हो जाता है इतनी क्षेत्रीयता में तिक्त मानसिकता देख। आने वाली पीढ़ी एक ऐसा विश्व तैयार करेगी जिसमें विभाजन न्यूनतम हो।
@ अल्पना वर्मा
समस्यायें हल करने का उतावलापन, समस्या के स्वतः हल हो जाने की मूर्खता से कम घातक है। कई समस्याओं में तो घी डालने का कार्य हुआ है।
@ नरेश सिह राठौड़
छोटी छोटी बातें ही इतनी बड़ी दुनिया बना देती हैं।
आज से कल बेहतर ही होगा. मुझे विश्वास है.
ReplyDeleteकाश इतनी ही आसानी से वो समस्याएं भी हल हो जाती !
ReplyDeleteमुझे लग रहा है कि देश एक प्रक्रिया के तहत ही बन बिगड़ रहा है...संतुलन आते आते न जाने कितने खंड बन जाएंगे और जब सभी ओर से संतुलन मान लिया जायगा कि हां सब को अपना अपना हिस्सा मिल गया है तब शायद फिर से कोई एडवेंचरात्मक प्रवृत्ति जन्में और कहे कि अब कुछ जोड़ होना चाहिए....वह हिस्सा भी हमारा...वो उधर वाला भी हमारा ...और फिर शुरू होगी एक नई प्रक्रिया।
ReplyDeleteमहाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच का बेलगाम मुद्दा इसी एडवेंचरर वाली प्रवृत्ति को दर्शा रहा है।
अच्छी पोस्ट।
सार्थक चिंतन ..शायद कोई सरदार पटेल बन सके ...लेकिन विडंबना यही है कि पटेल जैसों को अवसर नहीं मिलता ...पटेल साहब को भी नहीं मिला ..यह हमारे देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ...कश्मीर की समस्या को आज तक भुगत रहे हैं भारतीय ..काश वहाँ पटेल जाते ..आज कोई समस्या नहीं होती ...आने वाली पीढ़ी से उम्मीदें ज्यादा हैं ..पर उनमे जज़्बा कम लगता है..आज की पीढ़ी स्वयं को सबसे आगे देखना चाहती है ..अपना काम निकालना जानती है ...अपने लिए मानचित्र बना सकती है ...
ReplyDeleteफिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है ....
विचारणीय लेख
आपके विचारों ने मुझे आपका अनुसरण करने पर बाध्य कर दिया.
ReplyDeleteप्रवीण भाई क्या सहजता से आप गंभीर बाते करते हैं.. मैं अपनी पत्नी भाइयों और मित्रो को कहता हूँ.. साथ रहो प्रेम बढेगा.. हम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एअक ही बिस्तर पर लड़ झगर कर कशमकश में बहुत गहरी नींद में सोते हैं और देश से भी यही अपेक्षा करते हैं.. . मेरी एक छोटी कविता भी है :
ReplyDelete"मेरे बच्चे
नही चाहते
मम्मी पापा और अपने लिए
अलग अलग कमरा
परदे लगे बंद दरवाजे
वे चाहते हैं
खुली खिड़की
कि हवा पानी अन्दर आए और
सब मिलकर
गहरी नींद सोयें !"(http://aruncroy.blogspot.com/2009/08/blog-post_28.हटमल)
घरों से ही मिलकर देश बना है.. जिस दिन हम सोच लेंगे ये.. समस्या स्वतः समाप्त हो जाएँगी. लेकिन शुरुआत घर से ही होगी..
बहुत बढ़िया शानदार प्रस्तुति.... .आभार
ReplyDelete@ काजल कुमार Kajal Kumar
ReplyDeleteपता नहीं कितनी पीढ़ियों का बोझ हम कल पर डाले बैठे हैं।
@ अभिषेक ओझा
प्रयास पहले होता तो निश्चय ही हल हो जाती। जो हुआ सो हुआ, अब आज की समस्याओं को निपटा लें।
@ सतीश पंचम
संतुलन की अवस्था उस पर निर्भर करेगी कि कितनी ऊर्जा और साहस हम अपने निर्णयों को दे पाते हैं। पड़ी रहने से तो सारी वस्तुयें सड़ती ही हैं।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
आने वाली पीढ़ी उतना ही कर पायेगी जितना हम उसे दिशा दे पायेंगे। अन्ततः वह कर्तव्य भी हमारा ही है। साथ ही साथ उनके लिये व्यर्थ की समस्यायें भी न रहें, उस दिशा में भी हमारे प्रयास रहें।
@ सत्यप्रकाश पाण्डेय
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन का।
@ arun c roy
बड़ी सुन्दर बात कही है आपने। मेरा बचपन ऐसे ही बीता है। अन्ततः बच्चे अकेले नहीं सोते है पर अन्य कार्यों में स्वायत्ता हेतु ही अलग अलग कमरे दिये हैं।
@ महेन्द्र मिश्र
बहुत धन्यवाद आपका।
BAHUT HEE ACHCHHI JANKARI MILI AAPKE BLOG PAR JO KISI KO BHEE BAHUT KUCHH SOCHNE PAR MAJBOOR KAR DE ..ITNEE MAHATWPURN LEKH KE LIYE BADHAI.. AAPKE BLOG PAR PAHALI BAR AAYA HOO AUR ITNA ACHCHHA LEKH PADH KAR BAHUT HEE ACHCHHA LGA
ReplyDeleteआपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। आज की वस्तविकता को दर्शाता ये लेख बहुत ही सुंदर है।
ReplyDeleteउम्मीद तो बहुत है बच्चों से मगर जिस माहौल में पल रहे हैं वे ...कुंठाएं बढती जा रही है ...
ReplyDeleteमगर फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है ...
ऐसे विश्वास और संस्कारों की शुरआत हम घर से करें ...तो क्या मुश्किल है ...सोचते तो हर अभिभावक होंगे मगर ....साहस ????
well said sir. Reading you since last few days and coming back again and again.
ReplyDeleteVery refreshing!!! And Today's Kids are just anything. You see any talent show and you will come to know about how fertile is our Land.
Wishing you,
Happy Independence day.
Love
Rahul
http://rahulpaliwal.blogspot.com/
पहले ही पढ़ा था इसे। बहुत सुन्दर पोस्ट है। अच्छा लगा दुबारा पढ़कर।
ReplyDelete@ VIJAY KUMAR VERMA
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद आने के लिये और उत्साहवर्धन करने के लिये। देश का विषय तो सदा ही मन की तह तक छू जाता है।
@ मनोज कुमार
क्षेत्रीयता जैसी समस्या को स्वतः ही सुलझ जाने के लिये छोड़ दिया गया है। अब स्थिति यह है कि यह दावानल सी फैल रही है।
@ वाणी गीत
निर्भयता के संस्कार रहेंगे तो कठिन निर्णय लेने में भी नहीं हिचकिचायेंगे।
@ Rahul Kumar Paliwal
देखकर तो लगता है कि हम जैसे नकारा तो नहीं ही होंगे।
@ अनूप शुक्ल
आपको भाया है तब तो निश्चय ही स्वयं पर विश्वास बढ़ गया हमारा।
ये सही है की भावी पीडी देश का मानचित्र बना देगी ... पर आज के सन्दर्भ में कुछ डर सा लगता है ... पता नही कितने टुकड़े और हो जाएँ अपने देश के ....
ReplyDelete@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteपर अन्ततः मेरी आशा, मेरे भय पर विजय अवश्य पायेगी।