वर्ल्डकप समापन की ओर बढ़ रहा है। यूरोपियन पॉवर गेम ने लैटिन अमेरिका के स्किल गेम को धूल धूसरित कर दिया है। दर्शकों का उन्माद चरम पर है और पार्श्व में अनवरत गूँजता यूयूज़ेला का स्वर। बड़ी बड़ी स्क्रीनों के सामने बैठे इस महायज्ञ में ज्ञान की आहुति चढ़ाते विशेषज्ञ। एक फुटबाल को निहारती करोड़ों आँखें।
यह खेल देखना जितना रुचिकर है, खेलना उतना ही कठिन। मैं उतनी ही बातें करूँगा जितनी अनुभवजन्य हैं, एक खिलाड़ी के रूप में।
तीन दायित्व हैं, फॉरवर्ड, मिडफील्डर और डिफेन्डर।
ज्ञाता बताते हैं कि फुटबॉल के लिये 3 'S' की आवश्यकता होती है। गति(Speed), सहनशक्ति(Stamina) और कुशलता(Skill)।
तेज गति फुटबॉल की तेज पास के द्वारा, तेज गति आपकी जब फुटबॉल आपके पैरों के बीच हो और तेज गति वापस अपने पाले में आने की जब फुटबॉल विपक्षी के पास हो। अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी 100 मी की दौड़ 13 सेकेण्ड में पूरी कर लेते हैं, वह भी फुटबॉल के साथ। मैराडोना के पैरों में तो बिजली सी दौड़ जाती थी, फुटबॉल पैरों में आते ही। गति पूरे समय बनाये रखना संभव नहीं है। किस समय कितनी गति बना कर रखनी है, इसका निर्धारण मिडफील्डर करते हैं। उन्ही के पास अटैक की रूपरेखा रहती है।
सहनशक्ति गति को 90 मिनट तक बनाये रखने में सहायक सिद्ध होती है। एक व्यस्त खिलाड़ी उन 90 मिनटों में लगभग 10-12 किमी तक दौड़ लेता है, लगभग 30 प्रतिशत समय तेज गति से। यदि प्रारम्भिक खेल में ही सारी ऊर्जा व्यय कर दी तो बाद में विपक्षी हावी हो जायेगा। कब बॉल के साथ दौड़ना है, कब पास देना है, कब बॉल छीनने के लिये दौड़ना है, कब अन्य खिलाड़ी को मार्क करना है, यह सब सतत निर्णय लेने में मानसिक सहनशीलता भी दिखने लगती है। गति के बाद खेल के भाग्य खिलाडियों की सहनशीलता निर्धारित करती हैं।
कुशलता का मानक है नियन्त्रण। नियन्त्रण गति के साथ, थकान में, विपक्षियों के घेरे जाने पर, धक्का दिये जाने पर, पास दिये जाने पर, शॉट मारने में, शॉट रोकने में, अपने शरीर पर, फुटबॉल पर, हवा में, ज़मीन में, गुस्से में, निराशा में। पेले, रोसी और मैराडोना के पैरों में फुटबॉल नृत्य करती हुयी सी लगती है, पैरों का कहना मानती हुयी लिपट जाती है बूटों के इर्द गिर्द।
स्किल एकान्त में नहीं जीती है, जब तक टीम गेम न हो स्किल उभर कर सामने भी नहीं आती है। आपसी समन्वय और विपक्षी का खेल प्रारूप पढ़ पाने की क्षमता खेल को और गहराई दे जाते हैं।
जर्मनी, स्पेन और हॉलैण्ड ने गति और सहनशीलता से अर्जेन्टीना, पैरागुवे व ब्राजील के स्किल गेम को स्तब्ध कर दिया। सारे समय लैटिन टीमें घात का उत्तर ढूढ़ती हुयी दिखायी पड़ीं। गज़ब की तैयारी कर रखी थी यूरोपियन टीमों ने विपक्षी खिलाड़ियों की क्षमताओं पर। मेसी, रॉबिन्हो, रोनाल्डो आदि जैसे खिलाड़ियों को हमेशा चार खिलाड़ी घेर कर खड़े रहे और उन्हें निष्क्रिय कर दिया। साथ ही साथ जिस गति से खेल नियन्त्रित किया, विपक्षी डिफेन्स हर ओर से ढहता हुआ दिखा।
ऑक्टोपस महाराज की भविष्यवाणी से निराश जर्मनी की टीम स्पेन के सामने नतमस्तक हो गयी और भविष्यवाणी सच कर बैठी। लग रहा था उनके पैरों में ऑक्टोपस महाराज चिपक कर बैठे हों।
हॉलैण्ड और स्पेन में विजेता का निर्धारण होगा पर अब निर्णय स्किल पर होगा। दोनों ही टीमें पॉवर गेम में महारथी हैं। जो सामने वाले को आश्चर्यचकित कर ले जायेगा अपनी क्षेत्रसज्जा और स्किल से, वही जीतेगा।
ऑक्टोपस महाराज की भविष्यवाणी से निराश जर्मनी की टीम स्पेन के सामने नतमस्तक हो गयी और भविष्यवाणी सच कर बैठी। लग रहा था उनके पैरों में ऑक्टोपस महाराज चिपक कर बैठे हों।
हॉलैण्ड और स्पेन में विजेता का निर्धारण होगा पर अब निर्णय स्किल पर होगा। दोनों ही टीमें पॉवर गेम में महारथी हैं। जो सामने वाले को आश्चर्यचकित कर ले जायेगा अपनी क्षेत्रसज्जा और स्किल से, वही जीतेगा।
मेरी पसंदीदा टीम तो ब्राजील ही रही है ...इस बार मैच देखे नहीं इसलिए इस जानकारी से ज्ञानवर्धन हुआ ...
ReplyDeleteआभार..!
खेल के बारे में बढ़िया जानकारी दी आपने |
ReplyDeleteआपके इस आलेख ने इलियास की याद दिला दी इलियास के भी पैरों में एक बार बॉल आ जाती थी तब उसी की होकर रह जाती थी गोल करने तक |
उसके पैरों में भी पता नहीं क्या जादू था कि वो जिधर दौड़ता बॉल उसके पैरों के बीच साथ-साथ दौड़ती रहती थी पर वह दुबई रहता था इसलिए चाह कर हमारी स्कूल वाले उसे अपनी टीम में नहीं शामिल कर सके | हाँ जब भी दुबई से आता था तो खेलने रोज स्कूल के मैदान में पहुँच जाता था |
फुटबाल की बारीक जानकारियों पर रोचक पोस्ट
ReplyDeleteसही विश्लेषण । समझते हुए भी खिलाड़ी न होने के कारण अभिव्यक्त न कर पाने वालों के मन की बात आप ने बखूबी बयाँ कर दी।
ReplyDeleteआँकड़ों से ज्ञानवर्धन हुआ है। आभार।
मेराडोना का निराश दिखना मुझे अच्छा नहीं लग रह था....लेकिन क्या किया जाय...यह खेल है, हार जीत तो लगा ही रहता है।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट।
जानकारी अच्छी है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी तरह खेल की बारीकियों से परिचित करवाया है. पहले सिर्फ मेरी क्रिकेट देखने में ही रूचि थी. पर मेरे घर मे ही दो फुटबालर अवतरित हो गए हैं.
ReplyDeleteबच्चों का कमरा सिर्फ फुटबाल खिलाड़ियों के पोस्टर्स और कटिंग्स से भरा पड़ा है. और चौबीसों घंटे मय -एक्शन के फ़ुटबाल के चर्चे. बिलकुल जानी-पहचानी सी लगी ये पोस्ट.
और औक्टोपस महाशय के सामने अब सिंगापुर के तोते आ गए हैं.देखें किनकी भविष्यवाणी सही होती है.
मैच अच्छा होना चाहिए. बस बात पेनाल्टी शूट और sudden death तक ना पहुंचे...मैदानी गोल ही अच्छे लगते हैं.
बहुत सुंदर विशलेषण किया आप ने, यह सभी गुण होने चाहिये जी एक फ़ुटबाल खिलाडी मै. धन्यवाद
ReplyDeleteस्पेन के खिलाफ़ जर्मनी को म्यूलर की कमी खली। काफ़ी जगहो पर वो अच्छे मूव्स बनाने मे नाकाम रहे और अपनी आक्रामकता के लिये प्रसिद्ध जर्मनी पूरे गेम मे डिफ़ेन्स करती ही दिखी...
ReplyDeleteस्पेन ने इस पूरे सीजन अच्छा फ़ुटबाल खेला है.. वो यूरो कप विजेता भी है.. और विया जिस अन्दाज़ से गोलपोस्ट्स मे गोल दाग रहे है उससे स्पेन के चान्सेज ज्यादा लगते है..
आपने अच्छी एनालिसिस की... Let the best team win this cup.. Amen!!
मुझे नहीं लगता कि यह लातिन अमेरिकेन शैली की मात थी. अगर ऐसा होता तो क्वाटर फाइनल में दक्षिण अमेरिका की इतनी टीमें नहीं पहुँचती. उरुग्वे और पराग्वे की टीम्स पहली बार वहां पहुंची है.
ReplyDeleteअसलियत यह है कि इस बार ब्रासील की टीम काफी कमज़ोर थी (पिछली कई बार के मुकाबले) और अर्जन्टीना बमुश्किल क्वालीफाई कर पाया था.
और बात रही यूरोपियन पॉवर गेम की तो हौलेंड को उनके 'शैली भरे' खेल के लिए यूरोप का ब्रासील कहा जाता है.
kash mera Bharat bhi World Cup mei Khele our jeete
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteअर्जेंटीना और जर्मनी के बीच क्वार्टर फाइनल मैच में जैसे-जैसे समय बीत रहा था मैराडोना जी की एक्टिंग स्किल्स बेहतर होती जा रही थी. एक समय के बाद लगा कि एक्टिंग में केवल दिलीप कुमार जी ही उनका मुकाबला कर
सकते हैं. यूरोपीय देशों का खेल केवल पॉवर पर डिपेंड करता है, मुझे लगता है यह कहना ठीक नहीं होगा. ऐसा शायद इसलिए कहा जाता है क्योंकि फ़ुटबाल का व्यवसायीकरण यूरोप में ज्यादा हुआ है.
@सौरभ जी,
उरुग्वे पहले दो बार विश्व विजेता रह चुका है.
फ़ुटबाल को भी ब्लॉग के मुहावरे में समझा दिया आपने .
ReplyDeleteइसके लिए भी थिरी एस. चाहिए .
अब तो फाइनल की बाट जोह रहा हूँ .
ब्राजील रहता तो और मजा आता ! आभार !
@शिव जी,
ReplyDeleteक्षमा करें, लगता है कुछ भूल हुई. उरुग्वे तो प्रथम विश्व कप का मेजबान और विजेता दोनों ही था! =)
बहुत पहले जाना था hockey by practice ,football by power ,cricket by chance
ReplyDeleteआज फ़ुटबाल के बारे मे विशेष जानकारी दी आपने .जो जिन्दगी के खेल मे भी काम देगी
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 11.07.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
हम तो बिलकुल अज्ञानी है इस खेल में \घर में बहू बेटा और उनके पापा की चर्चाये चलती रहती है तब हम उन्हें निहारा करते है |आपके लेख से अच्छी जानकारी मिली शायद अब रूचि बन जाये इस खेल में |
ReplyDeletemujhe aisa laga jaise mai apni 10th class ke samay me playgraund me hu aur mere sports teacher mujhe footbal ke maidan me sikha rahe hon..... bengali sir the, sirname tha
ReplyDeleteRAHA, 2 sal unke nirdeshan me khela, school ki team se...... fir jab 12 ke natije aaye to ghar walo ko lagaa ki kam ho rahe hain so mera deshnikala ho gaya, matlab raipur se bahar bade bhaiya ki posting wali jagah pe bhej diya gaya aage padhne ke liye.... lekin aaj bhi yaad hai tab k sikhaye hue football ke gur, vaise dekhein to ye sabhi gur na keval footbal ke maidan me balki jeevan me bhi kaam aate hain.....
जर्मनी हारी तभी दिल टूट गया था ...यूयूज़ेला का स्वर कल बंद हो जाएगा :)
ReplyDeleteफूटबाल की अच्छी जानकारी के साथ साथ भाषा पर आपकी पकड़ बहुत बढ़िया है .. सुंदर लगा पोस्ट
ReplyDeleteप्रवीन भाई एक निपुण खेल विशेषग्य की तरह बड़े ही सुन्दर तथ्यों से अवगत कराया तारीफ करनी होगी इनकी यहाँ पर !
ReplyDeleteमेराडोना ki narasha bahut dukh de rahi hai.
ReplyDeleteLet's see who's gonna win?
Octopus of 'Mani' parrot ?
मेरी तो समझ नहीं आता कि काहे एक ही गेंद के पीछे २२-२२ लोग पड़े रहते हैं? सबको १-१ काहे नहीं दे देते.. :) उम्दा रहा आलेख.. पर जिदेन का नाम ना देख कर दुःख हुआ.. :(
ReplyDeleteमेरी खेल में कोई रूचि नहीं है लेकिन फिर भी आपकी पोस्ट को एक बार में ही पढ़ गया.
ReplyDeleteइतना सरल व प्रवाह में लिखा है आपने कि मजा आ गया.
आपको बधाई.
बचपन में कभी स्कूल के मैदान में फूटबाल खेला था | अब ना देखने का समय ना ही खेलने का है | इस खेल पर आपने अच्छा विश्लेषण किया है |
ReplyDelete..यह खेल देखना जितना रुचिकर है, खेलना उतना ही कठिन..
ReplyDelete......मुझे भी ऐसा ही लगता है. मैंने भी यह खेल नहीं खेला. इस बार रोचकता बढ़ने में आक्टोपस का भी हाथ था.
सही विश्लेषण किया..मगर हम तो सट्टा हार जाने से दुखी हैं. हम समझे पॉल बाबा मैच फिक्सिंग कराये होंगे तो हॉलैण्ड की तरफ लगाये दिये उल्टा होशियारी में और निपट गये. :)
ReplyDeleteaapka aalekh bada hi rochakta purn raha.
ReplyDeletevaise khushi ki baat hai ki maine apni dost se shart lagaai thi aur mai jeet shart jeet gai.
poonam
जो होना था सो हो चुका.. जो जीता वाह कप लेकर जा चुका.. हम भी यहाँ आकर पोस्ट के साथ सारे कमेंट्स भी पढ़ डाले.. आनंद आ गया.. :)
ReplyDeleteफालतू का खेल !!
ReplyDeleteमुझे पसन्द नहीं.
हम अपनी नियमितता और निरन्तरता इस खेल तो क्या क्रिकेट के लिए भी भंग नहीं करते.
प-: