प्रबुद्धजी व्यस्त पुरुष हैं अतः गोता लगा कर अगले 8 वर्ष आगे का समाचार ही ला पाये। सप्ताहान्त में पूरे समय मैं गोते में ही रहा और ढूढ़कर लाया इस हादसे पर चल रहे मुकदमे के निर्णय का क्षण। बस पढ़ लें आप एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र में प्रकाशित यह समाचार।
अर्चना चावजी द्वारा
सन 2050, 32 साल की मुकदमेबाजी के बाद आज न्यायालय ने लखनऊ न्यूक्लियर त्रासदी का निर्णय सुना दिया है। सारे पक्षों के अनवरत तर्क सुनने के पश्चात इस त्रासदी का उत्तरदायी उस चौकीदार को माना है जिसने त्रासदी को पॉवर प्लांट से बिना गेट परमिट बनवाये ही निकल जाने दिया। अपने चौकीदारीय कर्तव्य का निर्वाह न करने के लिये उन्हे 2 महीने के सश्रम कारावास का दण्ड सुनाया गया है। सभी पक्षों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे देर से किन्तु सही दिशा में लिया गया कदम बताया है।
इतिहास से सीख लेने की परिपाटी को निभाने के लिये तत्कालीन सरकारों की भी भूरि भूरि प्रशंसा हुयी है। भोपाल गैस कांड के समय की गयी गलतियों को ठीक करके हमने अपना सुधारात्मक चरित्र पूरी दुनिया को समझा दिया है। आपको बताते चलें कि इस बार विदेशी दोषियों को भगाने में विशेष सावधानी बरती गयी। धारायें ऐसी लगायी गयीं जिस पर 32 साल बाद भी प्रतिपक्ष कोई विवाद का विषय न बना सके। एक विशेष विक्रम ऑटो से एयरपोर्ट तक भेजा गया और प्राइवेट एयरलाइन का उपयोग कर सीधे विदेश भेज दिया गया। उस समय सारे सरकारी वाहन उस रोड से हटा लिये गये थे। उनके भागने के रास्ते में कोई भी सरकारी चिन्ह सहायता करता हुआ नहीं दिखा। विदेश नीति के विशेषज्ञों ने इसे एक महत्वपूर्ण और सोचा समझा हुआ कदम बताया था। जहाँ एक ओर अमेरिकन सरकार ने भारत के इस प्रयास की भूरि भूरि प्रशंसा कर इसे लोकतन्त्र की परिपक्वता का एक प्रमाण बताया वहीं दूसरी ओर, भारत की विदेश नीति को आगे भी अवसर मिलता रहे, इसके लिये 5 नये न्यूक्लियर पॉवर प्लांट शून्य प्रतिशत ब्याज पर लगाने की घोषणा की है।
कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने इस त्रासदी के निर्णय में पिछले निर्णयों से 6 वर्ष अधिक लेने पर सरकार की कार्य क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाया है। सरकार के प्रवक्ता ने उन्हें सरकारी कामकाज के तरीकों को बिना सोचे समझे बयानबाजी न करने की सलाह दी और "लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स" पर हुये पिछले 50 वार्षिक सेमिनारों की रिपोर्टें भी अध्ययन करने को कहा। बताया जाता है कि 40000 मृतकों की पहचान व फाइलें बनाने में इतना समय लगा।
वहीं दूसरी ओर कुछ पीड़ितों ने यह दावा किया कि इसमें न्यूक्लियर प्लांट का कोई दोष नहीं, क्योंकि हवा के प्रदूषण से वैसे ही दो माह में उनकी मत्यु होने वाली थी। उन्हे तो इस त्रासदी से लाभ ही हुआ। वैज्ञानिक बताते हैं कि न्यूक्लियरीय विकिरण के कुछ विशेष गुणों से उनमें प्रदूषण प्रतिरोधी कोशिकाओं का विकास हुआ जिसके फलस्वरूप वे 32 वर्ष और जी सके। इस उपलब्धि के लिये जहाँ एक ओर उस कम्पनी को भौतिकी, रासायनिकी व शान्ति के नोबल पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कई प्रदूषित शहरों में इस तरह के त्रासदीय न्यूक्लियर पॉवर प्लांट लगाने के लिये राज्य सरकारें उत्सुक दिख रही हैं। बढ़ती माँग देखकर कम्पनी ने प्लांट की डिजाइन व त्रासदी की विधि का पैटेन्ट करा लिया है।
अमेरिकन कम्पनी पर 500 करोड़ की जुर्माने की बात पर भी भारत ने अपऩी स्थिति आज स्पष्ट कर दी। मित्र राष्ट्र होने के नाते यह राशि भारत ने अपने खजाने से देकर मित्रता को और प्रगाढ़ कर लिया है और साथ ही साथ एक जुट खड़े हुये देशवासियों को टैक्स के माध्यम से दिवंगतों को श्रद्धान्जलि देने का अवसर भी प्रदान किया है।
यदि त्रासदियों से इतने लाभ हों, तो त्रासदियाँ तो अच्छी हुयी ना।
शानदार और सन्नाट कटाक्ष!
ReplyDeleteसुन्दर लेखन।
ReplyDeleteवाह महराज !
ReplyDeleteऐब्सर्डिटी को तह दर तह खोल कर दिखा दिए।
वाह वाही देते भी शरम आ रही है लेकिन हक़ीकत यही है कि आज भी हमारे कितने ही दुर्घटना सम्वेदी प्रतिष्ठानों के हाल बेहाल हैं।
जयपुर तेल डिपो दुर्घटना के सिलसिले में 8 उच्च अधिकारियों की गिरफ्तारी की खबर आई है। बेचारे अमेरिका के नहीं थे और वहाँ जा भी नहीं पाए !
अफसोस ।
अच्छा लिखा है। वैसे अपने देश में होने वाली हर बड़ी दुर्घटना के बाद होने वाली अफ़रा-तफ़री को देखकर मुझे यह लगता है- किसी दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा हल्ला जिस चीज का मचता है उसे सेफ्टी कहते हैं.सेफ्टी का जन्म दुर्घटना के गर्भ से होता है.
ReplyDeleteसच में, बहुत ही तीक्ष्ण व्यंग्य है. जाने हमारे देश की व्यवस्था कब लोगों के हिट को लेकर चलेगी ना कि उद्योगपतियों के इशारे पर.
ReplyDeleteयह तो साईंस फिक्शनल(भविष्य का पूर्वावलोकन !) पोस्ट हो गयी और सिस्टम पर सटीक सटायर ......ईश्वर करें हम ऐसे भविष्य को अंगीकार न कर पायें ....वैसे नाभकीय ऊर्जा को लेकर सरगर्मियां बढ़ चली हैं और राजनीति में तो फिर फिर अघटित घटित होता है ..उस लिहाज से यह एक सचेतक पोस्ट है{महज एक अच्छी पोस्ट भर ही नहीं :) } -शुक्रिया !
ReplyDeleteधमाकेदार व्यंग्य !!
ReplyDeleteआपने फिल्म Love story 2020 की याद दिला दी, वो तो पिट गयी थी, पर आप का ये व्यंग्य नहीं पिटता दिख रहा ....
वैसे आज से ३० साल बाद हो सकता है कि हम अमेरिका हों :)
चलो बढ़िया सप्ताहांत कि शुरुआत कराई है ...इधर अमेरिका में ये लॉन्ग वीक एंड है वैसे :)
मेरी पोस्ट भी संयोगवस भारत के राजनीतिक ढाँचे पर है आज की ...सोच मिलती दिख रही है पर अभिव्यक्ति आपकी उत्कृष्ट है !!
क्या पोस्ट बनायी है महाराज.....आपके इंटेलिजेंस के कायल तो थे ही, आपकी संवेदनशीलता भी गहरे स्पर्श कर गयी है..!
ReplyDeleteबिलकुल सटीक व्यंग है। शुभकामनायें
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteबहूत दूर तक सोची गई एक तरह की सचेतक पोस्ट। व्यंग्य की धार एकदम रापचीक...तेज.. है।
वैसे अब लोगों के मन-मानस में यह बात पैठ जमा चुकी है कि किसी सरकार से यह अपेक्षा कत्तई न करो कि वह तुम्हें किसी मुआवजे आदि के नाम पर कोई गारंटी दे सकती है।
सुना है कि कहीं कहीं पुलिस वाले खुद के पैसे से बुलेट प्रूफ जैकेट खरीद रहे हैं क्योंकि जब तक सरकार जैकेट देगी (पतली शीट वाली) तब तक
कहीं टै न हो जांय....। और उसके बाद मिलने वाला मुआवजा....हुँह...।
दूसरी ओर भारत का संविधान नाम की एक लुप्तप्राय किताब में कहीं लिखा गया है कि सभी लोगों को जीने का मौलिक अधिकार है।
लेकिन यह भी एक सच है कि मौलिकता, मुआवजे की बहन है जो कि राखी बांधने साल में एक बार आती है और मुआवजे को राखी बांधकर चली जाती है इस आश्वासन के साथ कि तुम मेरी रक्षा करोगे।
उधर मुआवजे भाई साहब मौलिक अधिकारों वाली थाली में पचास का नोट रख कर कह देते हैं कि दे तो दिया अब और पैसे की उम्मीद न रखियो.....अरे पैसा मत देख...भाई का प्यार देख....
मुआवजे भाई साहब भूल जाते हैं कि आजकल मिठाई का रेट आसमान छू रहा है, दीपक जलाने वाले तेल और माथे पर लगने वाले तिलक...रोली...राखी आदि की कीमत जोड़ जाड़ कर मुआवजे भाई साहब के सौ रूपल्ली से कहीं ज्यादा बैठती है :)
अहा त्रासदी अच्छी है ...............
ReplyDelete"ग्रीन पीस " द्वारा एक पिटीशन की शक्ल में एक आवेदन साइन करने की मुहिम पर आज हस्ताक्षर किये हैं ! साइंस एंड टैक्नालोजी पर संसदीय कमेटी के अध्यक्ष को लिखित पत्र पर अब तक लगभग २ लाख लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं ...
ReplyDeleteकुछ अच्छे की कामना करते हैं..
सादर
बहुत खूब.
ReplyDeleteत्रासदियाँ सदियों तक चलेंगी. विक्रम ऑटो से चलेंगी. हवाई जहाज से चलेंगी. चलती रहेंगी. हम हैं न झेलने के लिए.
जैसे चल रहा है.. उससे तो ये ही लगता है.. पता नहीं को कृष्ण अवतार या रामावतार हो बेडा पार लगाने वाला... हम तो हाथ पर हाथ धरे इंतज़ार कर रहे है..
ReplyDeleteहमारे देश मै सब जायज है, यह पावर जो मनमोहन जी लाये है अब युरोप मै धीरे धीरे बन्द हो रहे है, अमेरिका ने अपने देश का गंद हमे बेच दिया ... हमारे यहां कोई पूछने वाला नही, कोई कानून नही, जिस की जो मर्जी आती है वो करता है. जनता सिर्फ़ वोट देना जानती है अपने हक के लिये जाग्रुक नही है, यह सब जनता ही रोक सकती है, आप ने बहुत सुंदर लिखा, काश सभी लोग ऎसे ही जागरुक बने
ReplyDeleteबहुत गहरा वार, एकदम भिगोकर मारने वाले अंदाज में। बस आपकी तारीफ में इससे अच्छे शब्द नहीं मिल रहे।
ReplyDelete................
अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।
वाह ! धारदार व्यंग्य !!
ReplyDeleteकटाक्ष भी और भविष्यकथा सा भी.. वाह..
ReplyDeleteअच्छा दिया है भिगो भिगो कर
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे ०४7.0७.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
पाण्डेय जी, भारत अंग्रेजों से तो आजाद हो गया लेकिन स्वतन्त्र नहीं हो पाया. बस ट्रांसफर आफ पावर हो गया.. जिस देश में चौथाई शीर्ष अधिकारी भी संवेदनशील नहीं हैं वहां इसके सिवा क्या होगा. नेताओं को छोड़ दीजिये. ये तो मूल हैं. लेकिन अफसर क्या करते हैं? यदि चौथाई भी सफेद को सफेद और काले को काला कहने लगें तो किसी की क्या मजाल है जो देश और देशवासियों की तरफ तिरछी निगाह डाल सके. लेकिन अफसोस कि चौथाई भी नहीं मिल सकते हैं
ReplyDeleteलोकतंत्र के दो सशक्त स्तम्भ न्यायपालिका और विधायिका पर जो थूका है आपने वो श्रीलाल शुक्ल की बरबस याद दिला देते हैं... असभ्यता की वर्जना न होती तो मात्र थूका है कहकर संतोष न करता... कम कहे को ज़्यादा समझें और हमारी बधाई स्वीकरें!!
ReplyDelete"---बताया जाता है कि 40000 मृतकों की पहचान व फाइलें बनाने में इतना समय लगा ।"
ReplyDelete---क्योंकि उनके परिवार वाले खुद को ही नहीं पहचान पा रहे थे .....मृतकों के बारे में बताने में असमर्थ थे.....
Is post se hm siikh sakte hain ki bade hadase agar chhota muavaja denge to bade vyangy ka janm hota hai. jise vidvan log padh kar aanand le sakte hain.muavaja dene vaale ise padhkar apni chaalaki par itara sakte hain.
ReplyDelete...dono post padhi. yah bhi aur vah bhi jiska aapne link diya hai. dono hii shandaar hai.
This is the irony !
ReplyDeleteThe pseudo patriots are ruling the country at the cost of innocent people. If we common people are dying like insects, then also they are celebrating their victory.
Shame on the people in power !
भेज दीजिये इसे Steven Spielberg को कोई फिल्म बन जायेगी....
ReplyDeleteक्या लिखते हैं आप...ग ज़ ब.....
त्रासदी की अच्छी व्याख्या
ReplyDeleteबहुत धमाकेदार व्यंग्य है ये लेकिन मुझे नहीं लगता आज से ३० साल बाद भी अमेरिका इतना ताकतवर रह पायेगा...और हम इस हाल में होंगे..
ReplyDeleteव्यंग्य आजकल कम लिखा जाता है...कम पढ़ा जाता है। लेकिन शरद जोशी होते तो आपको आशीष ज़रूर देते। मैंने जो लिखा वो महज़ रिपोर्ताज था लेकिन आप उसको सही जगह तक छोड़ कर आए हैं। बेबसी के इस आलम में इस रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteमजा आ गया प्रवीन जी , बहुत जोरदार तमाचा जडा है आपने
ReplyDeleteसबसे बड़ी बात कि और हम कर भी क्या सकते हैं? इन्हीं सब का परिणाम है कि आज हर घर में आपको दो मरीज मिल जायेंगे ,मैं तो देख देख कर खिन्न हो जाती हूँ
धारदार, सटीक और दु:खद कि इस भविष्यकथन के सच होने की तीव्र संभावनाएँ दिख रही हैं।
ReplyDeletemuaafi chahunga, apne Bapy ki baarat me gaya hua tha isliye aaj padh raha hu aapki yah post aur bas yahi soch raha hu ki kaise itne shandar tarike se dhoya hai aapne ki bas TV add ki tarah kahne ka mann ho raha ki " Dho Dalaaa"
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteसन्नाटा तो निर्णय सुनने के बाद का पसरा है अभी तक ।
@ आचार्य उदय
धन्यवाद
@ गिरिजेश राव
चाणक्य के परंपरा में हैं हम सब, संभवतः यही कारण है कि देश के लिये समाज की व समाज के लिये व्यक्ति की बलि देने में नहीं चूकते हम लोग ।
@ अनूप शुक्ल
पता नहीं कितने प्ला़ट सेफ्टी के ओवरडोज़ में डूब जाते हैं ऐसी घटनाओं के बाद ।
@ mukti
कई देशों की प्रतिबन्धित तकनीक हम समेटने को उत्सुक दिखते हैं । मानव जीवन का मूल्य नहीं है हमारे लिये ।
@ Arvind Mishra
सचेतक पोस्ट हो सकती है नाभिकीय ऊर्जा के लिये
पर जो भूलें हम करे बैठे हैं उन पर हमें दुख और ग्लानि के अलावा और क्या करना चाहिये ।
@ राम त्यागी
आप की ही सोच चुराकर लाये हैं । आप ऐसे ही विचारते रहें, हम चुराते रहेंगे ।
@ श्रीश पाठक 'प्रखर'
हमको तो मृतकों का चित्र रुला गया और उस पर यह निर्णय ।
@ निर्मला कपिला
ReplyDeleteधन्यवाद
@ सतीश पंचम
आपके विचारों से सहमत । मुआवज़े से अधिक मूल्य जीवन का है । दोषियों के उन्मुक्त घूमने से मृत्यु को लाइसेन्स मिल गया है ।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
पर लोग समझते नहीं ।:)
@ सतीश सक्सेना
भगवान करे कि बुरा न हो और बुरों के साथ अच्छा न हो ।
@ Shiv
हम आगे आगे, त्रासदी पीछे पीछे ।
@ रंजन
हम अवतारियों पर इतना निर्भर हो गये हैं कि अच्छी चीज़े अवतारी इन्स्टालमेन्ट में आने लगी हैं ।
@ राज भाटिय़ा
त्यक्त तकनीक से बना भारत व्यक्त करने की क्षमता नहीं है भविष्य में ।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
भिगोकर तो मारे गये भोपाल वाले ।
@ Ratan Singh Shekhawat
ReplyDeleteधन्यवाद
@ दीपक 'मशाल'
भविष्य इससे भी भयावह हो सकता है ।
@ काजल कुमार Kajal Kumar
भीगा तो भापाल का उर है ।
@ मनोज कुमार
अतिशय धन्यवाद ।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
भारतीय महान हैं क्योंकि हमारी सहनशीलता अपरिमित है ।
@ सम्वेदना के स्वर
परिस्थितियाँ ऐसी भी नहीं कि जिन पर गर्व हो सके ।
@ Archana
सम्प्रति न्यायिक प्रक्रिया में देरी स्वाभाविक है । कुछ ऐसै तरीके निकालने होंगे जिससे ये मुकदमे शीघ्र निपट सकें ।
@ बेचैन आत्मा
व्यंग का जन्म दुख की प्रगाढ़ता से होता है ।
@ Divya
ReplyDeleteमानव जीवन का मूल्य क्या हो ? विदेशों में एक जीवन बचाने को सारे संशाधन झोंक दिये जाते हैं । और अपने यहाँ ।
@ 'अदा'
एक फिल्म और बन जायेगी । त्रासदी का एक और लाभ ।
@ डॉ महेश सिन्हा
उदाहरण तो बिखरे पड़े हैं देश में ।
@ अनामिका की सदाये......
हो सकता हो तब हम दयावश हो यही सब कर बैठें ।
@ prabuddhajain.com
यह तो आपकी पोस्ट द्वारा चिन्तन दिये जाने पर ही बनी है । वेदना और हताशा की पराकाष्ठा ही व्यंग को जन्म देती हैं ।
@ merasamast.com
समस्यायें इतनी हो गयी हैं कि हर पर बोलना भी सम्भव नहीं ।
@ हिमान्शु मोहन
सत्य कहा आपने । अधिक अंतर नहीं है सत्य और व्यंग में । सब सच होकर रहेगा ।
@ Sanjeet Tripathi
धुले तो लोग तब थे जब निर्णय आया था ।
शुक्रिया
ReplyDeleteअच्छा तंज़
'माँ' मर्मस्पर्शी .
जोरदार लेखन की बधाई ।
ReplyDeleteऔद्योगिक दुर्घटना से उत्पन्न त्रासदी को टालने के लिए गम्भीर प्रयास की जरूरत है। किसी भी प्लान्ट को लगाने से पहले सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम देखकर ही अनुमति दी जानी चाहिए। विकसित देश इस प्रकार की त्रासदी अपने देश से बाहर रखने के लिए ऐसे प्लान्ट तीसरी दुनिया में लगाकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर लेते हैं। मरने के लिए गरीब देशों के नागरिक तो हैं ही। इधर फैक्ट्री लगाना सस्ता ही पड़ता होगा।
ReplyDeleteआपका व्यंग्य बहुत जोरदार है। साधुवाद।
बहुत सुन्दर व्यंग्य. ...
ReplyDelete__________________
"पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
मानवाधिकार वाले शांत है ऐसे समय |असल में नाटक बहुत दिनों तक कायम नहीं रहता |
ReplyDeleteमुझे तो "मुआवजा "शब्द ही काटता है |बहुत सटीक व्यग्य |
हा चोरी करने की आपकी बात ने हमारा तो काम ही बना दिया :) अब तो आप हलुआ पार्टी में शामिल होने की योग्यता भी रखते हैं :-)
ReplyDeleteदाग अच्छे हैं ।
ReplyDeleteकितने दूर की कौडी लाये हैं ।
@ लता 'हया'
ReplyDeleteआपकी रचनायें पढ़कर बड़ी सुखद अनुभूति हुयी ।
@ अरुणेश मिश्र
धन्यवाद
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
सुरक्षा उपायों से खर्चा बहुत बढ़ जाता है, उसे लाभ में बदलकर तिजोरियाँ हरी हो जाती हैं ।
@ Akshita (Pakhi)
धन्यवाद
काश! इन दिवंगतों में नेता भी होते और जज भी। तब शायद न्याय की दिशा कुछ और होती।
ReplyDeleteआप अच्छा सोचते है और लिखते उससे भी ज्यादा अच्छा। बधाई।
@ शोभना चौरे
ReplyDeleteमानवाधिकार तो जीवित मानवों का होता है । जो मर गये पशुवत, उनका ख्याल कौन रखे ।
@ राम त्यागी
IHP - International Halua Party
@ Mrs. Asha Joglekar
सर्फ बेचने के लिये तो दाग भी अच्छे हैं । चार बार मंजन करने का भी विज्ञापन आने वाला है ।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
भगवान सबको सद्बुद्धि दे । दिवंगत तो सबको होना ही है एक दिन ।
आने वाले वर्षो मे मीडिया वाले भी इस त्रासदी की बरसी पर हर बार उस लापरवाह चौकीदार के परिवार लोगो को कोसेगे और उनकी डीटेल्ड पिक्चर दिखायेगे..
ReplyDeleteसीईओ की फ़ेमिली वही अमेरिका मे रहेगी नही तो किसी अन्य खूबसूरत देश मे.. बस ज़िन्दगी चलती जायेगी.. सबकी..
ये सब पढकर, देखकर यही लगता है कि क्या हम कुछ भी नही कर सकते... :(
@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
ReplyDeleteफँसेगा हमेशा चौकीदार ही, चाहें संस्कृति के हों या प्लांट के । उड़ती पवन को कौन बाँध सका है ?
जी पढ़ा और सुना ्भी मज़ेदार
ReplyDelete@ गिरीश बिल्लोरे
ReplyDeleteपर मुझे सुनना पढ़ने से अधिक अच्छा लगा।