"कैंसर ठीक, बीपी ठीक, डायबिटीज़ ठीक, मोटापा ठीक, ऑर्थिराइटिस ठीक, हेपेटाइटिस ठीक............. लाइफ स्टाइल डिसीज़ेज़ ठीक....। मैं आपके क्षयमान अंगों को पुनः ऊर्जान्वित कर दूँगा। तुम बताओ अब मरोगे कैसे ? योग कर लो ना, देखो, मैं तुम्हे मरने नहीं दूँगा।"
सपने में नहीं सुन रहा था पर सपने देखने के समय सुन रहा था।
समय सुबह के 5 बजे, स्थान पैलेस ग्राउण्ड, मौसम मन्द मन्द शीतल बयार, 20000 श्रोता और उद्घोषणा बाबा रामदेव की।
पुरुष चाहे सारा संसार साध ले पर स्वयं के योगक्षेम का अधिकार यदि श्रीमतीजी से हथियाने का प्रयास भी किया तो कई दिन दुर्गास्तुति में निकालने पड़ सकते हैं। शरीर और मन को विद्रोह न करने की मन्त्रणा देकर, चुपचाप सपत्नीक योग शिविर में पहुँच गये।
वैसे तो घंटे भर की प्रशासनिक बैठक में चार बार जम्हाई आ जाती है, यहाँ पर ढाई घंटे तक तन्मयता बनी रही। योग के साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान, संस्कृति के आयाम, सामाजिक समरसता के भाव, पारिवारिक माधुर्य के उपाय आदि बड़ी ही सरलता व सहजता से हृदय के अन्दर उतार गये बाबाजी। ढाई घंटे का कार्यक्रम, चार दिन लगातार, न पता चला और न ही दोपहर में नीँद ही आयी। दिनभर एक नशा सा रहा हल्केपन का, शरीर में, मन में, आत्मा में।
कोई अहंकार नहीं, बाल सुलभ संवाद, प्रसन्नता और आनन्द का प्रवाह मेरी ओर आता हुआ, बीच में और कोई नहीं।
योग मरने नहीं देगा .. पर ये दुनिया .. ये विसंगतियाँ जीने नहीं देंगी.
ReplyDeleteअच्छा आलेख
"कैंसर ठीक, बीपी ठीक, डायबिटीज़ ठीक, मोटापा ठीक, ऑर्थिराइटिस ठीक, हेपेटाइटिस ठीक............. लाइफ स्टाइल डिसीज़ेज़ ठीक.... और दिमाग़ !?! (असली दिक़्कत तो यहीं है )
ReplyDeleteसुबह बाबामयी बनाने के लिए साधुवाद.
सुबह की सैर, मंगला आरती के दर्शन ही इतनी प्रफुल्लता भर देते हैं ...और योग किया जाए तो बात ही क्या ....रोज नियम बनाते हैं रोज टूट जाता है ...आपका नियम बना हुआ है ...अच्छा है ...!!
ReplyDeleteपहली पोस्ट में स्वर्ग के सपने दिखाए थे और इस बार साक्षात् स्वर्ग लोक में ले आये . बढ़िया सचित्र वर्णन रहा ये तो ....ये बाबा और बाबाओं से अलग है, योग को इन्होने घर घर तक पहुंचकर वेदों को सार्थक बना दिया नहीं तो योग इंडिया में तो सिर्फ नाम के लिए ही था! और इनकी दवाइयां भी बड़ी कारगर है. इनका एक दन्त मन्जन और चाय (शायद) हमने उपयोग किये हैं यहाँ पर जब कोई दवाई कम नहीं कर रही थी तब दन्त मंजन ही मेरी पत्नी के दांतों को ठीक कर पाया !
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट ... हमें हर सार्थक प्रयास को प्रोत्साहित और प्रसारित करना चाहिए ...
ReplyDeleteवैसे बिस्तर मे चादर से मुंह निकाल कर दो घंटे रामदेव जी को देखते रहने मे बड़ा मज़ा आता है... फील गुड होता रहता है ... और मानसिक योग भी
मुझे तो कोई योगी अमर नही दिखा . प्रचार की अतिश्योक्ति है . कोई एक सामने आये जिसकी असाध्य रोग सिर्फ़ योग से ठीक हुये .
ReplyDeleteसिर्फ़ योग सिखाते बाबा रामदेव अच्छे लगते है लेकिन उनके हाईपरबोल झिकाते है .
निरन्तरता से आप कुछ भी पा सकते हैं, कुछ भी । जो विचार आपको भायें, बाँटे अवश्य, संकोच में न रहें । जो भी करें, पूर्ण बल से करें, सिंह की तरह ।
ReplyDelete......आपने बिल्कुल सही लिखा है। और वह जम्हाई वाली बात भी पढ़ कर मज़ा आ गया...सच में हम सब के साथ यही होता है।
एक बार फिर से लिख रहा हूं ---आप बढ़िया लिखते हैं।
आप स्वयं को जितना अच्छी तरह समझेंगे, शान्त व सुखी रहना उतना ही सहज हो जायेगा।
ReplyDeleteयोग से यही तो संभव है।
अभी आप पर फील गुड फैक्टर हावी है सो नेगेटिव बात करना ठीक नहीं है। बाबा रामदेव बीकानेर में भी आए थे। हमारे घर के कई अतिरिक्त चर्बी वाले सदस्यों ने सुबह चार बजे उठकर शिविर स्थल पर पहुंचने और प्राणायाम करने की कसरत की थी। जितने दिन शिविर चला घर का माहौल ही बदल गया। वही हल्का सा नशा फैला हुआ था।
ReplyDeleteलेकिन बाबाजी के यहां से जाते ही कुएं की भांग साफ हो गई और पुरानी दिनचर्या शुरू हो गई :)
यही सलाह है कि सुरूर को बनाए रखने के लिए आपको अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeleteसबसे बड़ा सुख तो सुबह उठाना ही है... आधी बीमारी तो उससे ही उड़न छू हो जाती है. आपने सही कहा है कि निरंतरता से सब कुछ पाया जा सकता है... निरंतरता की जगह नियमितता होता तो और सटीक होता. नियमित होना बहुत बड़ी बात है. मैंने देखा है कि जो लोग नियमित होते हैं... सोने-जागने, खाने आदि के मामले में, वे अधिक सुखी होते हैं. मेरे बाऊ जी ने कभी भी व्यायाम नहीं किया, पर खाने के मामले में बड़े वक्त के पाबन्द थे... और हमेशा पौष्टिक भोजन करते थे. इसी कारण अपने अंत समय तक सत्तर वर्ष की आयु तक एकदम टनाटन थे... और खुद अपने हाथ से बनाकर दोनों समय भोजन करते थे.
ReplyDeleteअगर नए दौर में मुग़ले-आज़म बनाई जाए और भारतीय जनता को उसमें अनारकली मान लिया जाए तो सलीम का रोल तो शर्तिया बाबा रामदेव हथिया ले जाएंगे. बाक़ी बचा अकबर का रोल, तो वह किसे सौंपा जाएगा? मेरा ख़याल तो ये है कि यह रोल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) को सौंप दिया जाना चाहिए. लेकिन कहीं ऐसा न हो कि इस पर बहुराष्टीय कंपनियां, मीडिया, बड़े-बड़ पूंजीपति और कई क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी दावे ठोंकने लग जाएं... आप बताइए, आप का क्या ख़याल है?
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख...... उर्जावान ....
ReplyDeleteमेरी एक बचपन कि मित्र है बंगलौर में ही.. रामदेव बाबा कि गजब कि पंखा है.. आज ही फोन करके पूछता हूँ कि वो गई थी या नहीं.. मुझे पूरी उम्मीद है कि वो जरूर गई होगी.. :)
ReplyDelete"मृतप्राय को जीवन, जीवित को निरोग, निरोगी को स्वास्थ्य, स्वस्थ को सुडौलता, सुडौल को कान्ति, कान्तिमय को शान्ति और शान्तिमय को स्थितिप्रज्ञता दे जाता है योग "
ReplyDeleteशब्दशः सहमत....
सकारात्मकता की स्निग्ध छटा बिखेरती कल्याणकारी पोस्ट के लिए साधुवाद...
Praveen,
ReplyDeleteThere are many,who doubt Baba Ramdev,hence your post has not attracted enough commnets.
I personally like Pranayam,but doesn't agree with some of his claims.But that doesn't take away anything from the great work this man is doing.
Finally,you write sooooo.. well.
मै किसी भी अच्छा नही समझता... लेकिन राम बाबा मै कुछ ऎसा है जो अन्य बाबाओ मै नही, अगर वेसे भी हम सुबह सबेरे उठे तो सारा दिन हम तरोताजा रहते है, ओर साथ मै हम योग करे तो ओर भी सुंदर, राम बाबा जी को प्रणाम, आप का धन्यवाद इस सुंदर पोस्ट के लिये
ReplyDeleteकुछ भी हो योग के प्रति जो जागरूकता बाबा रामदेव में जगाई है वह काबिले तारीफ़ है |
ReplyDelete@ M VERMA
ReplyDeleteयोग संभवतः कष्ट सहने की और न सह पाने की स्थिति में उसे कहने की क्षमता दे दे ।
@ काजल कुमार Kajal Kumar
दिमाग का इलाज़ तो भगवान के पास भी नहीं । दिमाग के दुरुपयोग से दुखी हो क्षीरसागर में जा विश्राम करने लगे ।
@ वाणी गीत
जल्दी उठना,प्रात भ्रमण,स्नान,योग और ईश ध्यान से दिन का प्रारम्भ हो तो सोने के पहले तक कोई शारीरिक व मानसिक शैथिल्य नहीं आता है ।
@ राम त्यागी
योग को घर घर में पुनर्जीवित करने के श्रेय का अभिमान उनकी वाणी में, भंगिमाओं में और व्यवहार में ढूढ़ने का प्रयास मैने लगभग 12 घंटे किया, मुझे आभासी सफलता भी नहीं मिली । व्यक्तित्व बालसुलभ, बातें स्पष्ट, तथ्य वैज्ञानिक और चिन्तन गहरा । प्रतिदिन के उपयोग की कुछ उत्पाद श्रीमतीजी ले आयीं थी, उनकी गुणवत्ता बाजार में सबसे मँहगे से भी अच्छी पायी ।
@ पद्म सिंह
आप तो चद्दर के बाहर मलुक मुलुक के निहार लेते हैं, हमने तो आँख बन्द कर ध्यानस्थ प्रवचन सुनने के तर्क को अपनाया है । कोई पूछे कि सो गये ? नहीं तो, अच्छा प्रवचन चल रहा है ।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
सारा अमरत्व तो देव चुरा कर ले गये, हमारे हाथों बाबा रामदेव का योग छोड़ गये । मृत्यु तो हो पर स्वाभाविक हो आयु पूर्ण होने के बाद । रोग अपना कर स्वर्गीय विरह राग छोड़ देने से तो अच्छा है कि योग प्रारम्भ कर दिया जाये ।
@ Dr Parveen
धीरे धीरे निरन्तर बढ़ते रहने से बड़ी बड़ी बाधायें पार हो जाती हैं ।
@ मनोज कुमार
कई बार अन्दर झाँक लेने से कई बड़े प्रश्न सहज रूप से उत्तर पा जाते हैं ।
@ सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi
आपके घर से ही नहीं वरन सबके घरों से ही भांग के कुयें ही लुप्त हो गये ।
"अतः योग तो हम सबके लिये हुआ, किसी भी आयु में, किसी भी देश में । इसके प्रचार के लिये तो झूठे विज्ञापनों की आवश्यकता भी नहीं ।"
ReplyDeleteइस कथन से शब्दशः सहमत हूँ. मेरी एक सहेली ने शौकिया तौर पर योगा के कई कोर्स किए हुए हैं. तीन साल पहले हमसब ने बोल बोल कर,एक तरह से कह सकते हैं,धक्का देकर उस से योगा क्लासेस शुरू करवाईं. उसने कहीं एक बोर्ड तक नहीं लगवाया, कोई पैम्फलेट नहीं छपवाई और आज उसके 5 बैच चलते हैं. और लोग ज्वाइन करने उत्सुक हैं ,पर अब उसके पास जगह नहीं है.
कुछ लोग कह रहें हैं,योगा का प्रचार अधिक है..उतना लाभदायी नहीं. आँखों देखी बात कह रही हूँ, उसके पास ६०,६५ साल की औरतें भी आती हैं. घुटने में दर्द , कमर दर्द, एड़ी में दर्द की वजह से वे सब ठीक से चल नहीं पाती थीं.अब मॉर्निंग वाक के लिए जाती हैं. एसिडिटी ,स्पोंडीलाइटीस ,बैकपेन से भी बहुतों को राहत मिली है.कितनो ने ब्लड प्रेशर की दवा लेनी छोड़ दी.
पर इसमें सिखानेवाली का श्रेय यह है कि वह बिलकुल भी प्रोफेशनल तौर पर नहीं, एक पर्सनल ट्रेनर की तरह सिखाती है.
मैने रामदेव बाबा के प्रोग्राम नहीं देखे हैं,इसलिए उनके दावे के बारे में कुछ नहीं कह सकती. पर यह सत्य है कि योग असाध्य रोग ठीक भले ना करे,पर उनसे दूर जरूर रखता है .और अगर रोग हो तो उसकी पीड़ा को कम जरूर कर देता है.
सामूहिकता की बात भी आपने सही कही. अकेले नहीं हो पाता,यही वजह है कि चार दिन शिविर अटेंड करने के बाद लोग नियमित नहीं रहते.मेरा तो यही कहना है.उन्हें तीन,चार लोगों का ही सही,एक ग्रुप बना लेना चाहिए और साथ में योगा करना चाहिए.योगा दिन के किसी भी समय किया जा सकता है.बस करने के पहले २ घंटे तक कुछ ना खाएं.
एक लम्बा कमेन्ट लिख चुकी हूँ,पर एक चुटकुले का जिक्र करने का लोभ नहीं संवरण कर पा रही,जो उसी योगा सिखानेवाली सहेली ने सुनाया था.
ReplyDeleteएक वृद्ध व्यक्ति मृत्य के बाद स्वर्ग में गया ,वहाँ का सुन्दर वातावरण,अप्सराएं, अच्छा भोजन, सब देखकर भगवान से अनुमति मांगी मुझे सिर्फ एक मिनट के लिए पृथ्वी पर भेज दें, मुझे किसी को एक थप्पड़ मारना है. उसकी व्यग्रता देख भगवान ने उसकी इच्छा मान ली.
पृथ्वी पर आकर उसने अपने योगा गुरु को एक थप्पड़ लगाया और कहा,"बरसों तक तुमने इतने सुन्दर स्वर्ग में जाने से, मुझे दूर रखा?"
@ aradhana
ReplyDeleteनियमितता निरन्तरता का व्यवहारिक रूपान्तरण है । कई अर्थों में जब हम दिन को जीवन का प्रतिरूप बना जीने लगते हैं तो वही नियमितता हमारी निरन्तरता का प्रतीक बन जाती है । निरन्तरता उससे कहीं व्यापकता मानता हूँ मैं । लक्ष्य निर्धारित करके उन्हे पाना और उसी दिशा में और ऊँचे लक्ष्यों का निर्धारण निरन्तरता का द्योतक है । बड़े कालखण्डो पर विजय की ध्वजा निरन्तरता ने फैलायी है ।
सुबह उठना, समय पर समुचित आहार और व्यवस्थित दिनचर्या एक स्वस्थ शरीर के रक्षण के अभिन्न अंग हैं । योग उस साम्य को और उभारता है ।
@ इष्ट देव सांकृत्यायन
सबको सबका इच्छित रोल मिले पर जब भी योग कर उठता हूँ, दो शब्द साधुवाद के अवश्य देता हूँ बाबा जी को ।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ऊर्जावान तो योग है, लेख तो प्रभावों का प्रकटीकरण है ।
@ PD
पंखे की हवा आपको भी लगी कि अभी भी गर्मी झेल रहे हैं ।
@ रंजना
यदि मृतप्राय को स्थितिअज्ञता समझा जाये तो "स्थितिअज्ञता से स्थितिप्रज्ञता तक ले जाता है योग"
@ raj
शंकालुओं में व ईर्ष्यालुओं में अपने इष्ट के प्रति गज़ब का आकर्षण होता है । ठीक है कह के तो शुभेच्छु निकल लेते हैं ।
@ राज भाटिय़ा
5 बजे उठकर 30 मिनट योग = सोने में सुहागा
@ Ratan Singh Shekhawat
सुबह 5 बजे 20000 लोगों का एकत्र हो जाना संभवतः इसी बात का द्योतक है ।
@ rashmi ravija
आपके अवलोकन से शब्दशः सहमत । सामूहिकता समूह के साथ प्रस्थान कर जाती है ।
रोगी को तो अपनी सूरत नहीं सुहाती । वह व्यक्ति स्वस्थ अवस्था में स्वर्ग गया तभी उसे वहाँ के रंग सुहाये । उसे तो वापस आकर साक्षात दण्डवत करना था ।
महात्म्य प्रेरित मैं भी सुबह उठा -बाबा का दर्शन कराया और खुद करते हुए दुहरा पुण्य कमाया .....
ReplyDeleteक्या पुण्य की झोली कभी भी नहीं भरती क्या ? .
समूहोपासना का अद्भुत दृश्य ....बाबा तव दर्शनात मुक्तिः !
योगा से परिचय स्कूल के दिनों में हुआ था । तब मजा इसलिए आता था क्योंकि गेम्स के अतिरिक्त एक और वो क्लास थी जिसमें पढाई लिखाई की बात नहीं थी । इसके बाद धीरे धीरे जाने कितने आसन सीखे और फ़िर उन्हें दूसरों को कर के दिखाने में मजा आने लगा । यहां दिल्ली पहुंचने से बहुत पहले ही योग छूट चुका था ...मगर यहां योग के बदले रोग मिल गया । कमब्खत उसके लिए न सुबह उठने की जरूरत न ही सामूहिकता की , मजे में चला आया , और सबके घरों मे चला आया । अब उसे भगाने के लिए दोबारा से योग को बुलाने की मुहिम चलानी पडेगी ...........देखिए कब तक हो पाता है ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteVery appealing post ! I also believe in yoga.
Health is wealth !
.
योग से ही मुझे मानसिक बल मिला...और ....विषम परिस्थियों से लडने की शक्ती भी ....(बाबा रामदेव के आने के पहले ही सीखने का सौभाग्य मिला था )
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 27.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बढ़िया पोस्ट है जी....एकदम बाबा रामदेव माफिक।
ReplyDeleteबढ़िया लिखा।
baaki sab thik hai prabhu, yog ki mahtta samajh me aati hai lekin jaha baat alasbhor 5-6 baje uthne ki aati hai, ham sab samjhna bhul jate hain....kaam dhaam hi aisa hai ki raat ke 1 baje to aake khana khate hain......2-3 baje sote hain, ab batayein baba ramdev ji, ham ka karein bhalaa....
ReplyDelete@ Arvind Mishra
ReplyDeleteसुबह से आप अध्यात्म का पॉवर डोज़ ले रहे हैं, कुछ कृपा हम पर भी कर दी जाये ।
@ अजय कुमार झा
आपकी दुविधा में सहयात्री हम भी हैं । कई बार छोड़ छोड़ अपनाये हैं । आलस्य घेरे है ।
@ Divya
स्वास्थ्य रहे तो आत्मोन्नति भी सुहाती है ।
@ Archana
मन की शक्ति भी बढ़ती है योग से । कई बार अनुभव किया है हमने ।
@ मनोज कुमार
शतशः धन्यवाद
@ सतीश पंचम
कपालभाती, कहा जाता है, हर श्वास में विकार निकाल देता है । ब्लॉगजगत की कपालभाती कैसी हो ?
@ Sanjeet Tripathi
हमें तो शयन जल्दी होने के बाद भी सुबह उठने की इच्छा नहीं होती । :)
यो का अनुभव और लाभ मैने हमेशा लिया और वो भी बाबा रामदेव जी को टी वी पर देख कर सही कहा आपने निरन्तरता बहुत जरूरी है। मगर आब उनका ध्यान योग से अधिक सत्ता मे है। संतों को सत्त के सुख से दूर रह कर कल्यानकारी काम ही शोभा देते हैं। क्या ये भी जनता के पसे का दुरुपयोग नही? इसी पैसे से गरीबों का मुफ्त ईलाज और दवायें हो सकती थी। खैर बाबा जी का जिक्र आया तो ये बात साझा करने का मन किया। वैसे योगा के क्षेत्र मे उनका योग दान निस्संदेह प्रशंस्नीय और साधू समाज के लिये अनुकरन योग्य है । धन्यवाद्
ReplyDeleteप्रवीण भाई, विज्ञान बहुत तरक्की कर गया है। कोई ऎसा तरीका बताईये जिसमें बिना कुछ किये अष्टांग योग के लाभ मिल सकें ! सुंदर।
ReplyDeleteबावा रामदेव ने अपनी आम भाषा में योग को जितना लोकप्रिय बनाया है शायद सैकड़ो किताबों से उसका शतांश भी नहीं हो पाया ! इनकी मेहनत को प्रणाम
ReplyDelete"निरन्तरता से आप कुछ भी पा सकते हैं, कुछ भी । जो विचार आपको भायें, बाँटे अवश्य, संकोच में न रहें । जो भी करें, पूर्ण बल से करें, सिंह की तरह । इस तरह के कई वाक्य सीधे सीधे मन में अनुनादित हो रहे थे, बौद्धिक चुहुलबाजी से बहुत दूर ।"
ReplyDeleteकोई अहंकार नहीं, बाल सुलभ संवाद, प्रसन्नता और आनन्द का प्रवाह मेरी ओर आता हुआ, बीच में और कोई नहीं ।
मानव को सबसे बडा भय होता है म्रित्यु का। क्योंकि वह म्रित्यु का ही चितन करना नहीं चाहता। म्रित्यु से भागता है। जो म्रित्यु को जान लेगा वह जीवन के अर्थ को जान लेगा। फिर म्रित्यु से भागेगा नहीं, जीवन में प्रवेश करेगा, जीवन के आनन्द का अनुभव करेगा। सच्चा योग हमें जीवन के इसी आनन्द की अनुभूति कराता है।
आप अंतिम लाइनों में इसी आनन्द की अनुभूति का जिक्र है। बधाई, आपने जीवन को जान लिया है।
"मैं तुम्हे मरने नहीं दूँगा" -वाह! क्या जबरदस्ती है!
ReplyDeleteनिरन्तरता से आप कुछ भी पा सकते हैं, कुछ भी ।
ReplyDelete...मूल मन्त्र तो यही है. अब आप इतनी जल्दी-जल्दी पोस्ट लिखेंगे तो मुझे पंखा बनना ही पड़ेगा. मेरा मतलब है 'फैन'
बाबा रामदेव के आस्था चैनल पर कार्यक्रम हम भी देखते हैं उनके साथ प्राणायाम करते भी है और सचमुच मन प्रसन्न और शरीर हल्का महसूस होता है ।
ReplyDeleteकोई अहंकार नहीं, बाल सुलभ संवाद, प्रसन्नता और आनन्द का प्रवाह मेरी ओर आता हुआ, बीच में और कोई नहीं....Sundar anubhuti !!
ReplyDelete______________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
@ निर्मला कपिला
ReplyDeleteसंतों को सत्ता से दूर रखना कदाचित हमारा संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्त हो पर सन्तों की वाणी और योग के लाभ संस्कृति की अप्रतिम धरोहर हैं और उन पर हम सबका अधिकार है ।
@ sumant
बिना कुछ किये तो लाभ भी बिना कुछ प्रभाव लिये ही होंगे ।
@ सतीश सक्सेना
उनकी मेहनत तो हो गयी अब हम लोगों के ऊपर मेहनत की तलवार लटकी हुयी है और उसकी डोर श्रीमती जी के हाथों में है ।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
मृत्यु तो इस जीवन का अन्तिम हस्ताक्षर है पर उस हस्ताक्षर के पहले पूरा इतिहास लिखा जाना शेष है ।
@ अनूप शुक्ल
बाबा रामदेव जी को अभी कनपुरिया झोंका नहीं पड़ा है । आप वहाँ रह रहे हैं, हम वहाँ की सह रहे हैं ।
@ बेचैन आत्मा
बाबा रामदेव ने पेट के साथ हृदय भी हिला दिया और निकल गयी यह पोस्ट । आगे से हृदय बचा कर रखेंगे ।
@ Mrs. Asha Joglekar
हमारे घर में उस समय बाकी कार्यक्रम प्रतिबन्धित हैं । फुटबॉल मैच भी क्लब जाकर देखने पड़ते हैं ।
@ Akshita (Pakhi)
समय शून्यता का अनुभव हुआ उस समय ।
प्रवीणता से समेट लिए योगाभ्यास
ReplyDeleteके कई आयाम,
हास्य भी और गाम्भीर्य भी
रचनात्मक प्राणायाम
बहुत अच्छे, धन्यवाद
इतना सुन्दर अनुभव बांटने के लिये आभार. सच है, सामूहिकता का अलग ही आनंद है, वो चाहे योग हो या कोई दूसरा कार्य. मेरी भी बहुत इच्छा है रामदेव जी के शिविर में शामिल होने की, देखिये कब पूरी होती है.
ReplyDelete'मैं तुम्हे मरने नहीं दूंगा' फ़िल्मी डायलोग सा लग रहा है :)
ReplyDeleteकॉलेज में हमने कम्पलसरी फिजिकल एजुकेशन में योग लिया था. सीनियर ने सलाह दी थी... आराम से बिना मेहनत किये पास हो जाओगे. एनसीसी में जूते पटकने से अच्छा है. और हमने दो सेमेस्टर योग किया था. बस मेरा योग से इतना ही परिचय है तो कुछ ज्यादा कमेन्ट कर नहीं सकता.
@ Ashok Vyas
ReplyDeleteन हास्य कहीं, गाम्भीर्य कहीं,
था अनुभव का प्राकट्य मात्र,
बस अन्तरतम का मर्म व्यक्त,
यदि सहज कहीं भर गया पात्र ।
@ वन्दना अवस्थी दुबे
भगवान करे आपकी इच्छा शीघ्र पूरी हो ।
@ अभिषेक ओझा
मुझे भी फिल्मी डायलॉग लगा, तभी नींद खुल गयी ।
The way in which you presented the view is very nice, very live.
ReplyDeleteकभी कभी तो ऐसा लगता है बाबा की बाते सुनने से ही हम ठीक हो जायेंगे |(वैसे ये आलसी लोगो का विचार है )
ReplyDeleteजैसे बाबा ने रामचरित मानस रचकर राम को जन जन तक पहुँचाया ,वैसे ही बाबा ने योग को जन जन में प्रचरित कर नै उर्जा का संचार किया |
इस लेख से और प्रेरणा ही मिलेगी |
अतिसुन्दर।
ReplyDeleteकैंसर ठीक, बीपी ठीक, डायबिटीज़ ठीक, मोटापा ठीक, ऑर्थिराइटिस ठीक, हेपेटाइटिस ठीक............. लाइफ स्टाइल डिसीज़ेज़ ठीक....और ब्लोगिंग ठीक .....
ReplyDeleteअपनी योग करते की तस्वीर तो लगते ....हम भी देखते कितने हलके हुए .....?
आपकी और रश्मि जी की बातों से शतप्रतिशत सहमत हूँ ......
अभी तो उठते सार ही काम में व्यस्त होना पड़ता है .....फिर भी आपकी बात ध्यान में रखी जाएगी .....
सुना है बाबा जी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं ....
@ Hari Shanker Rarhi
ReplyDeleteअनुभव प्रस्तुति से अधिक घना था ।
@ शोभना चौरे
बाबा की बातें सुनने से ठीक भले ही न हों पर पूर्वजों की विरासत को अब तक छोड़ बैठे हम ग्लानिग्रस्त अवश्य हो जायेंगे ।
@ आचार्य जी
आशीर्वाद के लिये धन्यवाद ।
@ हरकीरत ' हीर'
हम पहले से ही दुबले हैं अतः सामूहिकता का ही आनन्द ले पाये ।
योग को लेकर हर दिन हमारी भी लड़ाई होती है, अपने मन से ।
जिस तरह मदारी द्वारा बंदर भालू का खेल ठीक हैं ताबिज बेचना गलत उसी तरह योग ठीक हैं इलाज के नाम पर जो किया जा रहा हैं वो गलत....सतीश कुमार चौहान भिलाई
ReplyDelete@ सतीश कुमार चौहान
ReplyDeleteयोग का प्रमाण संभवतः अभ्यास है । यदि करने से शरीर में ऊर्जा और हल्कापन आता है तो निश्चय ही वही प्रभाव रोग ठीक करने में सहायक सिद्ध होंगे । करने में कोई धन व्यय और साइड एफेक्ट्स भी तो नहीं ।