नहीं, यह यात्रा वृत्तान्त नहीं है और अभी स्वर्ग के वीज़ा के लिये आवेदन भी नहीं देना है। यह घर को ही स्वर्ग बनाने का एक प्रयास है जो भारत की संस्कृति में कूट कूट कर भरा है। इस स्वर्गतुल्य अनुभव को व्यक्त करने में आपको थोड़ी झिझक हो सकती है, मैं आपकी वेदना को हल्का किये देता हूँ।
विवाह के समय माँ अपनी बेटी को सीख देती है कि बेटी तू जिस घर में जा रही है, उसे स्वर्ग बना देना। विवाह की बेला तो वैसे ही सपनों में तैरने की बेला होती है, बेटी भी मना नहीं करती है। अब नये घर के काम काज भी ढेर सारे होते हैं, नये सम्बन्धी, नयी खरीददारी, ढेर सारी बातें मायके की, ससुराल की। कई तथ्य जो कुलबुला रहे होते हैं, उनको निष्पत्ति मिल जाने तक नवविवाहिता को कहाँ विश्राम। इस आपाधापी में बेटी को माँ की शिक्षा याद ही नहीं रहती है।
जिस प्रकार दुष्यन्त को अँगूठी देखकर शकुन्तला की याद आयी थी, विवाह के कई वर्षों बाद बेटी को अँगूठी के सन्दर्भ में ही माँ की दी शिक्षा याद आ जाती है, घर को स्वर्ग बनाने की।
"अमुक के उनने, अमुक अवसर पर एक हार दिया, आप अँगूठी भी नहीं दे सकते?" अब इसे पढ़ा जाये कि लोग अपनी पत्नियों को हार के (बराबर) प्यार करते हैं, आप अँगूठी के बराबर भी नहीं? ब्रम्हास्त्र छूट चुका था, घात करना ही था। आप आगे आगे, बात पीछे पीछे।
एक सुलझे कूटनीतिज्ञ की तरह दबाव बनाने के लिये बोलचाल भी बन्द।
अब यहाँ से प्रारम्भ होता है आप का स्वर्ग भ्रमण।
कहते हैं कि स्वर्ग में हर शब्द गीत है और हर पग नृत्य।
यहाँ भी कोई शब्द बोले नहीं जा रहे हैं, केवल गीत सुनाये जा रहे हैं। गीतों के माध्यम से संवाद चल रहे हैं। हर शब्द गीत हो गया। इन अवसरों के लिये हर अच्छे गायक ने ढेर सारे गीत गाये हैं, वही बजते रहते हैं। आप आप नहीं रहते हैं, खो जाते हैं गीत के अभिनेता के किरदार की संवेदना में। है न स्वर्ग की अनुभूति।
अब कोई सामने आते आते ठुमककर बगल से निकल जाये तो क्या वह किसी नृत्य से कम है? आपको ज्ञात नहीं कि क्या वस्तु कहाँ मिलेगी, आप पूरे घर में नृत्य करते रहते हैं। पार्श्व में गीत-संगीत और घर में दोनों का नृत्य। आपका अनियन्त्रित, उनका सुनियोजित। है न स्वर्ग की अनुभूति।
बिजली की तरह ही प्रेम को भी बाँधा नहीं जा सकता है। इस दशा में दोनों का ही प्रेम बहता और बढ़ता है बच्चों की ओर। अब इतना प्यार जिस घर में बच्चों को मिले तो वह घर स्वर्ग ही हो गया। जब सारा प्यार बच्चों पर प्रवाहित हो रहा है तो भोजन भी उनकी पसन्द का ही बन रहा है, निसन्देह अच्छा ही बन रहा है। है न स्वर्ग की अनुभूति।
संवाद मध्यस्थों के माध्यम से हो रहा है। केवल काम की बातें, जितनी न्यूनतम आवश्यक हों। जब कार्य अत्यधिक सचेत रह कर किया जाये तो गुणवत्ता अपने आप बढ़ जाती है। हम भी सजग कि कहीं करेले पर नीम न चढ़ जाये। उन्हे यह सिद्ध करने की उत्कट चाह कि वह अँगूठी के योग्य हैं। जापान ने हड़ताल के समय अधिक उत्पादन का मन्त्र संभवतः भारत की रुष्ट गृहणियों से सीखा हो। है न स्वर्ग की अनुभूति।
किसी को मत बताईयेगा, हमें ब्लॉग लिखने व पढ़ने का भरपूर समय भी मिल रहा है। है न स्वर्ग की अनुभूति।
दिन भर के स्वर्गीय सुखों से तृप्त जब सोने का प्रयास कर रहा हूँ तो रेडियो में जगजीत सिंह गा रहे हैं "तुमने बदले हमसे गिन गिन कर लिये, हमने क्या चाहा था इस दिन के लिये?" अब स्वर्ग में इस गज़ल का क्या मतलब?
आपके घर में इस यात्रा का अन्त कैसे होता है, बताईये? हम तो पकने लगे हैं। हमें पुनः पृथ्वीलोक जाना है। अब समझ में आया कि स्वर्ग में तथाकथित आनन्द से रहने वाले देवता पृथ्वीलोक में क्यों जन्म लेना चाहते हैं?
पहले तो स्वागत है आपका स्वर्ग में ...मेरे कहने का मतलब था नए नवेले ब्लॉग पर.
ReplyDeleteस्वर्ग का आनंद ले रहे हो और सामने वाला बेचारा अपना हाल खराब कर रहा है नृत्य और अन्य विदों के जरिये ...
नत मस्तक हो जाओ और प्रथ्वी लोक पर वापस आओ जल्दी वत्श :)
ठीक ठाक है। कुछ पकड़ कम है। टेस्ट ड्राइव है इसलिए चल भी जाएगा।
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteबहुत ही हल्के फुल्के अंदाज में रोचकता से लिखी गई पोस्ट है। अब यह तो हर ओर की कहानी है.....इससे मुंह तो नहीं चुराया जा सकता :)
शादी से पहले पति अक्सर गाया करता है कि - अगर तुम मिल जाओ तो जमाना छोड़ देंगे हम
शादी के बाद जब बच्चे कच्चे हो जाते हैं, धीरे धीरे जिम्मेदारियों के बढ़ने का एहसास होता है, तब वही पति गाने लगता है -
ऐ जाते हुए लम्हो जरा ठहरो...जरा ठहरो...
और बाद में जब जिम्मेदारियां और तेजी से बढ़ती हैं .....बच्चों की फीस, किताबें, सब्जी, डोनेशन, ट्यूशन, आपसी झग़डे, बोलाचाली बंद .....तब वही पति गाने लगता है -
दिल ढूँढता है.... फिर वही, फुरसत के रात दिन :)
यह तो प्यार जिसे आपने बिजली की संज्ञा से नवाजा है, उसकी लोड शेडिंग है. अपने आप बिजली आ जाती है वापस. कभी भुकभुका कर तो कभी एकाएक..आप चाह रहे हैं कोई सिद्ध मंत्र..वो भला इन बातों का कब हुआ है. :)
ReplyDeleteमस्त है..करिये स्वर्ग यात्रा...हम तो अभी चार दिन पूर्व ही पृथ्वी पर स्वतः लौट आये दो दिन की यात्रा के बाद. :)
प्रवीण जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ... बधाई
बढ़िया अभिव्यक्ति --ब्लॉग शुरू करने के लिये बधाई। धन्यवाद।
ReplyDeleteस्वागत है, बधाई हो!
ReplyDeleteअरे वाह! इतना सुन्दर ब्लौग बना लिया!
ReplyDeleteयहाँ कुछ समय की मारामारी हो चली है. कुछ कामकाज का दबाव और कुछ पारिवारिक कमिटमेंट्स जिनके चलते कम्प्यूटर पर कम बैठना हो पा रहा है. अपने ब्लौग पर कुछ पोस्टें शेड्यूल करके रखीं हैं ताकि तारतम्य न टूटे.
आपके प्रश्नों के उत्तर की खोज में लगा हूँ. जल्द वापस आऊँगा.
पहले तो इस -ब्लागावतरण पर अनिर्वचनीय आह्लाद का उदगार -बधाई..अपरंच हम कभी देव हुए ही कहाँ ..हम तो मनु पुत्र हैं ..और मनु श्रद्धा कब अलग हुए हैं भला ...सृष्टि का स्पंदन ही नहीं रुक जायेगा तब .....? हमने सदैव धरती पर ही स्वार्गिक अनुभूतियों का जुगाड़ किया है .....
ReplyDeleteधरती पर ही स्वर्ग को आहूत करें आर्यजन !
पहले तो इस -ब्लागावतरण पर अनिर्वचनीय आह्लाद का उदगार -बधाई..अपरंच हम कभी देव हुए ही कहाँ ..हम तो मनु पुत्र हैं ..और मनु श्रद्धा कब अलग हुए हैं भला ...सृष्टि का स्पंदन ही नहीं रुक जायेगा तब .....? हमने सदैव धरती पर ही स्वार्गिक अनुभूतियों का जुगाड़ किया है .....
ReplyDeleteधरती पर ही स्वर्ग को आहूत करें आर्यजन !
अपना स्वयं का ब्लाग बना लेने पर आप का एक बार पुनः हिन्दी ब्लाग जगत में स्वागत है।
ReplyDeleteनए ब्लॉग और पृथ्वी पर यह स्वर्ग का आनंद ... . की बधाई .अच्छी सोच .
ReplyDeleteनये ब्लॉग के साथ स्वागत है आपका, आपके स्वर्ग को देखते हैं :) क्योंकि हम तो स्वर्गवासी हो चुके हैं।
ReplyDeleteससुराल स्वर्ग बन जाएगा और ससुराल वाले....
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteआपकी सादगी और यह लेख दोनों ही पसंद आये !
नए ब्लॉग के लिए बधाइयाँ ..
ReplyDeleteस्वर्ग किसे चाहिए मृत्युलोक के प्राणियों में से ...:):)..
ReplyDeleteनए ब्लॉग की शुरुआत ही शानदार ....
शुभकामनायें ...!!
"नानक दुखिया सब संसार"
ReplyDeleteआना जाना लगा रहता है स्वर्ग और धरती की बीच तभी आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है
अब नए ब्लाग की शुरुवात ऐसे पोस्ट से !
अरे हाँ बधाई देना तो भूल ही गए .
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ
स्वागत !
ReplyDeleteबधाई हो!
नए घर की बधाई !
ReplyDeleteआज केवल स्वागतम !
बहुत बढ़िया पोस्ट. स्वर्ग की बात बहुत जमी. केवल खोजना है. स्वर्ग मिल जाएगा. न तो उस सीढ़ी पर जाने की दरकार और न ही कुत्ते को संग ले जाने की बात....:-)
ReplyDeleteतेरा तुझको अर्पण -
ReplyDeleteदेर से आए, मगर आ तो गए
देखिए - मौसम सुहाना हो गया
स्वर्ग से धरती तक सुरसरि को लाने की भगीरथी क़वायद का स्वागत है। देव! पधारें!!
जब आनन्द की अति हो जाए - तो धरा की आकांक्षा का बलवती होना स्वाभाविक है - और यह धरा ही है जहाँ कर्म और कर्मफल के सिद्धान्त लागू हैं अत: आप 'योग' पर ध्यान दें, स्वर्ग मात्र 'भोग' के लिए है और कर्मफल के क्षय के उपरान्त वहाँ से पतन अवश्यम्भावी।
अस्तु, स्वर्ग भी रहे और आनन्द भी, इसलिए कर्मफल का सञ्चित होना अनिवार्य है।
तात! मुद्रिका लाओ शीघ्र।
बधाई पदार्पण हेतु, "इह" (ब्लॉग) लोक में।
"घर में दोनों का नृत्य । आपका अनियन्त्रित, उनका सुनियोजित". स्वर्गीय आनंद की प्राप्ति हुई. आभार.
ReplyDeleteयही तो लाईफ का लीम्बू सोडा है..
ReplyDeleteनए ब्लॉग के लिए बधाई वाला तार भेजता हूँ..
अहुत सुंदर लिखा,लेकिन अजीत गुप्ता जी की बात से सहमत हुं. लेकिन शुरु आत बहुत सुंदर लगी. धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत उत्सुकता से आपकी पोस्ट का इन्तेजार कर रही थी. बहुत अच्छा, कसा हुआ व्यंग्य है. अगर ढूँढने की इच्छा हो तो वाकई ऐसा स्वर्ग सब के घर में मिल जाएगा. स्वर्ग की सीढियां दिखाने के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete@ राम त्यागी
ReplyDeleteमैं तो सोच रहा था कि आप दूसरे चित्र के विरोध में आवाज़ बुलन्द करेंगे । आप तो सहमत दिख रहे हैं । :)
@ ajit gupta
आपने अच्छा किया कि चेता दिया नहीं तो अगली पोस्ट पर अगला गेयर लगाने वाला था । जब तक पकड़ नहीं आती है, आशीर्वाद बरसाये रहिये ।
@ सतीश पंचम
हमारे 11 वर्ष हो गये, हम तीसरा गाना गाने वालों में से हैं । उर्वशी में दिनकर का पाठ जीवन में चरित्रार्थ होते देखा है । कौन सा ? इन्द्र का आयुध पुरुष जो.....
@ Udan Tashtari
आपको तो ओवरवोल्टेज़ का अनुभव भी अवश्य होगा । यन्त्रों के फ्यूज़ उड़ जाते हैं । आपने क्या कर चुकाया पृथ्वी में वापस आने के लिये ?
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
उत्तर शीघ्र मिल जाते तो पृथ्वी पर शीघ्र आ जायेंगे । इसे भी आवश्यक कार्य समझें ।
@ Arvind Mishra
यह स्वर्ग तो हमारे ऊपर थोपा हुआ है । अनुभव गंगा में नहा लिये । मार्ग बतायें गुरुवर ।
@ आभा
यदि यही सुख मिलता रहा तो शीघ्र सोचना भी रुद्ध हो जायेगा ।
@ Vivek Rastogi
गुरुवर, केवल देखिये मत । इस स्वर्ग का आर्थिक पहलू भी है । उपाय बतायें, आज पाँचवाँ दिन है ।
शादी से पहले.....
ReplyDeleteपतिः देर किस बात की है।
पत्नीः क्या तुम चाहते हो मैं चली जाऊँ?
पतिः नहीं, ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता।
पत्नीः क्या तुम मुझे प्यार करते हो?
पतिः अवश्य! एक नहीं अनेकों बार!!
पत्नीः क्या तुमने मुझे कभी धोखा दिया है?
पतिः कभी नहीं! तुम अच्छी तरह से जानती हो, फिर क्यों पूछ रही हो?
पत्नीः अब क्या तुम मेरा मुख चूमोगे?
पतिः इसके लिये तो मैं तो कोई भी अवसर नहीं छोड़ने वाला।
पत्नीः क्या तुम मुझे मारोगे?
पतिः मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूँगा?
पत्नीः क्या तुम मुझ पर विश्वास करते हो?
पतिः हाँ!
पत्नीः डार्लिंग!
शादी से बाद के लिये कृपया नीचे से ऊपर पढ़ें
बढ़िया अभिव्यक्ति...
ब्लॉग शुरू करने के लिये बधाई..
धन्यवाद...
बहुत दिनों से यहाँ 'न पोस्टम चल पलायनम' की स्थिति थी. अब आये तो पता चला कि हम भी साधारण मानव नहीं हैं ..अपितु स्वर्गवासी हो चुके हैं.
ReplyDeleteबेचैन आत्मा को अपनी स्थिति जान कर खुशी हुई.
एक बार हमने लिखा था...
बिसरल बसंत अब त राजा आयल वेलेन्टाइन
आन क़ लागे सोन चिरैया आपन लागे डाइन
...आपकी इस शानदार पोस्ट ने उसी तरह की गुदगुदी मचा दी है दिल में.
..बधाई.
यह सिद्ध करने की उत्कट चाह कि हम अँगूठी के योग्य हैं ;-)
ReplyDeleteई समस्या त आपे न खड़ी किये हैं !!
ReplyDeleteअरे रेडवा भी त आपे न बजा रहे हैं, ऊहो सोते समय : 'तुमने बदले हमसे गिन-गिन कर लिये, हमने क्या चाहा था इस दिन के लिये ?'
दिलकश गज़ल सुनिये : बढिए गज़ल ऊ पी.डी. से पूछिए सबकी मदद करता है, ऊहो फ्री में.
अउर न करे त हमार नाव बता दीजियेगा.
ही ही ही
देखिये तो...आपके तो 'टेस्ट पोस्ट' पर भी ससुरा २१ ठो मेसेज आया है...इसको कहते हैं पारी का सुरुवात. :D
ReplyDeleteआपके टिपण्णी से इतना तो आइडिया लग गया था की आप धासु लिखते हैं...अब ब्लॉग हो जाने से हमलोग को इधर उधर नहीं भटकना पड़ेगा आपका टिपण्णी रुपी लेख पढने के लिए :D
@ सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi
ReplyDeleteस्वर्गीय की मूल धारणा में कहीं वैवाहिक तत्व तो नहीं छिपा है । वडनेरकर जी से पूछते हैं ।
@ सतीश सक्सेना
त्रासदी की सादगी में वेदना का लेख ।
आ के देख भगवन, आ के यहाँ देख ।
@ वाणी गीत
हम तो अनन्तकाल तक पृथ्वी पर ही टिके रहना चाहते हैं ।
@ डॉ महेश सिन्हा
आपके ज्ञान ने यह तो बता दिया कि
अकेले हम ही नहीं हैं इश्क के समन्दर में, यह समन्दर तो हमने मिल के बनाया है ।
@ Shiv
पर हम तो वहाँ से उतरने की सीढ़ी ढूढ़ रहे हैं । या कोई पैराशूटीय विधि बतायी जाये । अब समझ में आया कि युधिष्ठिर कुत्ता क्यों ले जा रहे थे । उस असीम शान्ति में कुकर के कुँकुवाने से ही हमें वास्तविक धरातल पर लौटना याद रहेगा ।
@ हिमान्शु मोहन
पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये,
अब निकलने हेतु गंगा फिर निकलनी चाहिये ।
आपका बंगलोर आगमन कब हो रहा है ? हमें आपके फाइव स्टारीय स्वागत के आदेश मिले हैं । किससे ? उनसे जिन्होने आपकी यह मुद्रिका समर्पणात्मक टिप्पणी पढ़ ली है ।
@ P.N. Subramanian
विवाह के समय बाकी सब नृत्य करते हैं, विवाह के बाद दूल्हा ।
@ कुश
आपके लीम्बू सोडा का स्वाद आ रहा है । रह रह के ।
@ राज भाटिय़ा
पकड़ बनाने के सार्थक प्रयासों में लगे हैं । अब कूद पड़े हैं तो तैरना सीख के ही निकलेंगे । आशीर्वाद बनाये रखें ।
@ Puja
कसा हुआ व्यंग या कसे हुये का रंग ? हमको तो बिना हमारे पुण्य के स्वर्ग पहँचा दिया गया है । हमें उतरने की सीढ़ियाँ नहीं मिल रही हैं । कोई तो दिखाये ।
@ 'अदा'
पीड़ित पर तो दया दिखायें,
विस्फोटक रचना न पढ़ायें ।
हो सके तो उपाय बतायें,
@ बेचैन आत्मा
बिसरल बसंत अब त राजा आयल वेलेन्टाइन
आन क़ लागे सोन चिरैया आपन लागे डाइन
स्वर्ग से बाहर आने का रास्ता तो नहीं मिला पर मन हल्का हो गया ।
@ E-Guru Rajeev
कोई जबाबी दिलकश गज़ल बताया जाये या रोज रोज गजंल न सुनने का उपाय । पी डी जी दूर नहीं हैं ।
आपकी चेष्टाएं झिलमिला उठीं हैं। सरस, रोचक और एक सांस में पठनीय रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteन दैन्यं न पलायनम् का मत्लब ? और पुरा "jist" समझ नहिन आया ...
ReplyDeletechalo ji apni to aadat hai ki sabse der se pahuchte hai, ab ye pata nai ki durust pahchte hai ya nahi ;)..
ReplyDeletebaaki mai aaj subah ye hi soch raha tha ki is se pahle kya kabhi aisa hua hai ki kisi sajjan ne apne new blog pe mahaj test post dala ho aur itne comment aa gaye ho.....khyal nahi aata.. is se jahir hua ki aapko padhne ki "Utkantha" bahutere logo me hai.
khair is pahli post ke baare me kahu to bas itna ki apan to single, arthat kuware aadti hai, swarg ya dharti jo hai filhal vahi hain, so koi tension nai........
;)
@ Stuti Pandey
ReplyDelete20-20 के जमाने में भी यदि टेस्ट पॉपुलर है, इसका अर्थ है कि सुधीजन अभी भी टेकनीक को मान्यता देते हैं । आपसे तो यही अपेक्षा है कि आप किसी तरह अलबर्ट जी को हिन्दी सिखाकर हमारे ब्लॉग पढ़वाना प्रारम्भ करवा दें ।
@ मनोज कुमार
आपको आशीर्वाद बरसाने के लिये साधुवाद । "झिलमिल सितारों का आँगन होगा" गाना बहुत सुहाता है ।
@ CognieDude
शाब्दिक अर्थ है, न व्यक्तित्व की दीनता दिखाना और न ही परिस्थितियों से पलायन करना । संदर्भ महाभारत का है, उद्घोषक अर्जुन हैं ।
अटल बिहारी बाजपेयी की एक कविता की समाप्ति इस उद्घोष से की गयी है ।
सर्च इंजन में डालेंगे तो गूगल महाराज, बिग प्रसाद इत्यादि सभी अपनी हल्के फुल्के ज्ञान के साथ प्रकट हो जायेंगे, निश्चित और मौलिक संदर्भों से परे ।
आपका सर्च एलगॉरिदम कब तक आ रहा है, अब उसी से ही ज्ञान बढ़ाया जायेगा । :)
@ Sanjeet Tripathi
देर से आने का लाभ है कि विषय पर पकड़ पूरी रहती है और निर्णयात्मक टिप्पणी डाली जा सकती है ।
आप आनन्द में हैं, स्वर्ग क्यों जाना चाहते हैं ? "दीवानों से ये मत पूछो, दीवानों पे क्या गुज़री है ?"
बढ़िया है...स्वर्ग यहाँ, नरक यहाँ.
ReplyDelete________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' जरुर देखने आयें !!
कविवर पन्त ने कहा है -
ReplyDeleteयदि स्वर्ग कहीं है इस भू पर
तो वह नारी उर के भीतर.
- - - - - - - - - -
- - - - - - - - - -
यदि नरक कहीं है इस भू पर
तो वह भी नारी के अन्दर.
कल पढ़कर ज्यों ही टिपण्णी देने को हुई,नेट बाबा ने बाय कह दिया...
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपका स्वागत है...बड़ी इच्छा थी कि आप जैसे लेखक का नियमित पढने को मिली...अब आपने अपना ब्लॉग बना लिया है तो नियमित लेखन की बाध्यता में भी बांध ही गए...यह हमारे लिए सुखकर है...
पोस्ट की क्या कहूँ.....सम्पूर्ण स्वर्गारोहण देख लिया....एकदम आनंद आ गया...
सुन्दर सार्थक नियमित लिखते रहें... अनंत शुभकामनाएं...
swagat hai
ReplyDeleteइसी बहाने जीवन के गूढ रहस्य को समझा दिया आपने।
ReplyDelete---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
प्रवीण जी ,
ReplyDeleteअब तक अंगूठी दान हो जाना चहिये था .....आप भी !
पिय हिय की सिय जाननिहारी मन मुंदरी तव रही उतारी
संदर्भ बदले अवसर बदले ...दस्तूर बदले ..कहाँ खोये हुए हो आप ?
@ Akshita (Pakhi)
ReplyDeleteनरक तो देखा नहीं, पके तो स्वर्ग में ही हैं ।
@ hem pandey
नारी उर के भीतर का स्वर्ग तो देख ही लिया, शेष कल्पना पर छोड़ दिया है ।
@ रंजना
सच कह रहीं हैं आप । नियमित होने का अतिरिक्त भार ले लिया जीवन में ।
@ सर्प संसार
अब आपके रहस्य समझने चलते हैं ।
@ Arvind Mishra
सन्धिपत्र पर हस्ताक्षर हो गये हैं, शुभ मुहूर्त देख हेममुद्रिका अंगुली में बिराजेगी । मन रखने के लिये नहीं कह रहे हैं, चित्र लगाये जायेंगे उड़न तश्तरी जी द्वारा बतायी विधि से । सन्धिपत्र की शेष शर्तें खुलासा करने से मना किया गया है । मुद्रिका समर्थकों का श्रीमती जी की ओर से बंगलोर में स्वागत है ।
भाई प्रवीण, पहले आप का स्वर्ग देखा, फिर नरक में आया. वो मेरी जानी -पह्चानी जगह है पर वहां इतनी मारा-मारी मिली कि मुश्किल से पांव टिका पाया. यह तो मैं समझ रहा हूं, असल में पांव टिके हैं या उखडे, यह तो तब समझ में आयेगा, जब मैं यहां से सकुशल निकल जाऊं. चलिये पतली गली से निकलता हूं. आप जवाब देने से तो बाज आयेंगे नहीं, पर उसके लिये रूकूंगा नहीं, क्योंकि पता नहीं यहां कितनी ठेला-ठेली मचने वाली है. पर नरक से भी निकला तो जाऊंगा कहां?
ReplyDeleteपढ़कर मन को तसल्ली हुई, मैं अकेला नहीं हूं. :)
ReplyDeleteफीड सब्सक्राईब कर लिया है, दुख दर्द मेल में पढ़ते रहेंगें. धन्यवाद.
भई! हम तो आपका अपना ब्लोग शुरू होने पर जगजीत सिंह के शब्दों में ही कहेंगे-
ReplyDeleteतेरे आने की जब खबर महके।
तेरी खुशबू से सारा घर महके॥
तो आपके ब्लोग की खुशबू हर पा्ठक के दिल तक पहुंचे, यही कामना।
@ डा.सुभाष राय
ReplyDeleteस्वर्ग हो या नर्क, जो भी हो, अपना हो ।
@ संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari
बरसाओ आग जमकर, पर यह भी सोचना,
ए जिन्दगी की मुश्किलों, तनहा नहीं हूँ मैं ।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
बहुत सुन्दर गज़ल सुझायी है आपने, अब तो यही बजेगी ।
चलिए स्वर्ग के सैर के बाद अब तो पृथ्वी लोक की महत्ता पता चली,ना...:)
ReplyDeleteबधाई नए ब्लॉग की..आगाज़ तो शानदार है...शुभकामनाएं
सर रेल परिवार का ही हिस्सा होने के नाते आपके और आपके लेखन के बारे में कुछ लोगों से थोडा बहुत सुन रखा था. आज इत्मिनान से आपका ब्लॉग पढ़ कर आनंद आ गया. आपके अनुसरनकर्ताओं में शामिल होना भविष्य में और आनंद प्राप्ति के लिए श्रेयष्कर होगा.
ReplyDeleteमेरे घर में स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक से नरकलोक तक आवा गमन के लिए एक्सप्रेस वे बना ही हुआ है. लेकिन कभी कभार स्वर्ग की यात्रा डांडी यात्रा की तरह अनवरत चलती ही रहती है. मज़े की बात बस यह है की डांडी यात्रा भी नमक बनाने के साथ समाप्त हो गयी थी..
ब्लाग बनाने की बधाई. नीचे वाली फोटो में पिटने वाली शरारत करता लग रहा है ये शख़्स :)
ReplyDeleteहेहे :) आपकी स्वर्ग की अनुभूति पढकर आनन्द आया.. अब क्या किया जाय आजकल का इन्सान सैडिस्टिक हो गया है..
ReplyDeleteक्या लिखते है आप... जबसे आपने ये पोस्ट डाली है, तभी से इसे सहेज कर रखा था कि आराम से पढूगा क्यूकि आजकल ओफ़िस वाले आराम करने की फ़ुर्सत भी नही देते...
जैसी शुरुआत की थी वैसा ही समापन और वाह, जगजीत सिंह की सिचुएशनल गज़ल के साथ.. हा हा .. तो बदले अभी तक लिये और दिये जा रहे है..? :) अँगूठी रहने दीजिये अब तो हार बनता है :)
मन प्रसन्न कर दिया आपने और आने वाले स्वर्गनुमा खतरो के बारे मे सचेत भी कर दिया आपने.. शुक्रिया :)
@ rashmi ravija
ReplyDeleteधरती में पैर जमें रहेंगे तो भटकेंगे नहीं । नहीं तो यह स्वर्गिक उड़ानें जीवन कहाँ ले जायेंगी ?
@ Vinamra
एक्सप्रेस वे है, प्रगति का प्रतीक है । कम से कम त्वरित वापसी तो होती होगी । विवाह के 11 वर्ष बाद भी हम अभिमन्यु ही हैं, चक्रव्यूहीय स्वर्ग में घुसने के बाद निकलने का मार्ग नहीं ज्ञात ।
गाँधी जी तो अपनी डांडी यात्रा नमक बना कर समाप्त कर दिये पर यह नहीं बताये कि सब्जी में कितना डालना है । यही कारण है कि घरों में अभी भी चल रही है ।
@ काजल कुमार Kajal Kumar
एक तो सन्तोष है कि क्रेडिट कार्ड में यूरो का चिन्ह है । शरारत करने पर यूरोप की हानि । हम तो रुपये का चिन्ह बनाने में दो तीन पीढ़ी निकाल देंगे । चुने गये 5 चिन्हों में कोई नहीं जम रहा है ।
@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
जाके पैर न पड़ी बिवाई, सो का जाने पीर पराई ।
आनन्द लेने का कोई अवसर न गवाँयें आप पंकज जी । विवाह हो जाने के बाद यही स्वर संवेदना के हो जायेगें ।
अँगूठी पर सहमति हो चुकी है, हार की याद दिला काहे समझौते का उल्लंघन कराने पर तुले हैं । कल आपका भी विवाह होगा, हम आपका वक्तव्य मढ़वा कर आपकी अर्धांगिनी को भिजवा देंगे, तब शब्दों का मूल्य पता चलेगा । :)
svrg to keval klpna hai .prthvi hi saty hai bhai .
ReplyDeletebahut bahut badhai nye blog ki aur is khubsurt post ki .
@ शोभना चौरे
ReplyDeleteहम भी स्वर्ग को कल्पना के माध्यम से समझ लिये हैं । धरती पर ही रहना है ।
परवीन जी! हम भी आ गया हूँ ....बस ...ऐसे ही ...ई जानने के लिए की ऊ कौन सा कंडीसन आ गया है की ई महाभारत वाला उदघोस कर दिए आप. अब आये हैं त सुरुए से न चलेंगे ...हमारा रफ़्तार तनी कम है. बाकी रेतिया में से सोना खोजिये लिए आप ......बधाई हो अइसन सरजनसीलता के लिए.
ReplyDeleteजय हो जय हो जय हो …………स्वर्गिक आनन्द लीजिये
ReplyDeleteपृथ्वी पर ही स्वार्गिक सुख की अनुभूति हो रही है ... सुंदर लेख
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-02 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
आज की नयी पुरानी हलचल में ..... मर जाना , पर इश्क़ ज़रूर करना ...
संगीता स्वरूप
.
प्रवीण भाई बहुत बहुत बधाई नए ब्लॉग पर | साब हम तो अभी तक स्वर्ग क्या है यही खोजने में लगे हैं | 'कभी तो मिलेगा, कहीं तो मिलेगा, आज नहीं तो कल,.....स्वर्गधरातल | अच्छा लगा लेख | मज़ा आया | बधाई |
ReplyDeleteआप को निमंत्रण है और अनुरोध भी कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें और अपने मूल्यवान विचार ज़ाहिर करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बधाई क्या बधाई नामा। अभिनव ब्लॉग की नै परवाज़।
ReplyDeleteबहुत रोचक शैली व विषय👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद उषाजी
Deleteबहुत रोचक शैली व विषय👌👌
ReplyDeleteबहुत रोचक शैली व विषय👌👌
ReplyDeleteबहुत रोचक शैली व विषय👌👌
ReplyDeleteबहुत रोचक शैली व विषय👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
Deleteरोचकता से भरपूर सुंदर शैली ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख।
आभार आपका।
Deleteबहुत ही बेहतरीन आलेख ...
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
Deleteआपके लेख ने सचमुच पृथ्वी के अनजाने स्वर्ग से परिचय करा दिया,आनंद की अनुभूति भी हुई,सुंदर रोचक लेख।
ReplyDeleteयह पृथ्वी का स्वर्ग है, इसका अपना आनन्द है। आभार आपका।
Delete