आज का दिन मेरे लिये विशेष है । आज माँ सेवा-निवृत्त हो रही हैं । माँ के प्रति लाड़-प्यार के अतिरिक्त कोई और भाव मन में कभी उभरा ही नहीं पर आज मन स्थिर है, नयन आर्द्र हैं । लिख रहा हूँ, माँ पढ़ेगी तो डाँटेगी । भावुक हूँ, न लिखूँगा तो कदाचित मन को न कह पाने का बोझ लिये रहूँगा ।
कहते हैं जिस लड़के की सूरत माँ पर जाती है वह बहुत भाग्यशाली होता है। मेरी तो सूरत ही नहीं वरन पूरा का पूरा भाग्य ही माँ पर गया है। यदि माँ पंख फैला सहारा नहीं देती, कदाचित भाग्य भी सुविधाजनक स्थान ढूढ़ने कहीं और चला गया होता। मैंने जन्म के समय माँ को कितना कष्ट दिया, वह तो याद नहीं, पर स्मृति पटल स्पष्ट होने से अब तक जीवन में जो भी कठिन मोड़ दिखायी पड़े, माँ को साथ खड़ा पाया।
नये घर में, खेती से सम्पन्न घर की छोटी बहू को घर का सारा अर्थतन्त्र बड़ों के हाथ में छिना हुआ दिखा और पति का उस कारण से उपद्रव न मचाने का निश्चय भी। बिना भाग्य को कोसे व व्यर्थ समय गवाँये पहले अपनी पढ़ाई पूरी की और तत्पश्चात प्राइमरी विद्यालय में एक अध्यापिका के रूप में नौकरी प्रारम्भ की। एक नारी के द्वारा नौकरी करना कदाचित उस परिवेश के लिये एक अमर्यादित निर्णय था जिसका तत्कालीन सभी प्रबुद्धों ने प्रबल विरोध किया। परिवेशीय घुटन के बाहर परिवार का भविष्य है, इस तर्क पर ससुर के समर्थन को अपना सम्बल मान आधुनिका कहे जाने के सारे वाक्दंश सहे। मुझे गर्भ में सम्भवतः यही शिक्षा प्राप्त हुयी है, जुझारूपन की। माँ ने हृदय की अग्नि की आँच सदा अन्दर ही रखी और कभी व्यक्त भी हुयी तो परिश्रम व त्याग के रूप में, गृह-धारिणी के रूप में।
आज मैं, छोटा भाई व सबसे छोटी बहन, तीनों समुचित और उत्तम शिक्षा पाकर, अपने पैरों पर खड़े हैं, पर उसके पीछे माँ का अथक परिश्रम था जो स्मृतियों में अभी भी अप्रतिम धरोहर के रूप में संजोयें हैं हम सभी। माँ तो उसके बाद भी लगी रही कई और बच्चों का भविष्य बनाने में, कहती रही कि बच्चे अच्छे लगते हैं, मन लगा रहता है।
आज माँ सेवा-निवृत्त हो रही है।
बचपन नहीं भूलता है, माँ का पैदल 3 किमी विद्यालय जाना। कई बार हमने चिढ़ाया कि रिक्शा नहीं करती, पैसे बचाती है। हँस कर झूठ बोलती, नहीं, पैदल चलने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। भगवान करे उस झूठ का सारा दण्ड मुझे मिलता रहे, शाश्वत, मेरे लिये बोला गया वह झूठ।
आज उस तपस्या का अन्तिम दिन है, आज माँ सेवा-निवृत्त हो रही है, 37 वर्षों की अथक व निःस्वार्थ यात्रा के पश्चात।
सरल-हृदया की आन्तरिक सहनीयता आज मेरी आँखों से टपक रही है, रुकना नहीं चाहती है।
पुरुष प्रधान इस जगत में मेरे हृदय को यदि किसी का पुरुषार्थ अभिभूत करता है तो वह मेरी माँ का।
माँ को मेरा प्रणाम.
ReplyDeleteबहुत भावुक कर गई आपकी पोस्ट. माँ स्वस्थ, प्रसन्न एवं दीर्घायु हों, हमें सदैव उनका शुभाशीष मिलता रहे, प्रभु से यही प्रार्थना है.
दुनिया में माँ और पिता का अतुलनीय योगदान कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है ... और उनसे बढ़कर पूज्य कोई हो नहीं सकता हैं ..
ReplyDeleteयदि न लिखते तो सच में बहुत बोझ रहता आपके मन पर।
ReplyDeleteमाताजी की सुखद रिटायर्ड लाईफ़ के लिये शुभकामनायें।
प्रवीण जी, आपको पढना हमेशा अच्छा लगता है इसलिये नही कि आप शब्दो और भाषा के ज्ञानी हैं.. वो तो है ही... बल्कि इसलिये की आपकी हर पोस्ट एक ईमानदार पोस्ट होती है... पिज़्ज़े को फ़ोर्क से खाते है तो वो भी लिखते है.. किसी विकास समारोह मे बतौर अतिथि भी जाते है तो वो भी लिखते है और पाठको के सवालो का जवाब कविता से देते है... बाबा रामदेव के कैम्प को भी लेखनी से उडेल देते है.. और आज की पोस्ट..
ReplyDeleteभावुक मन से लिखी हुयी एक और ईमानदार पोस्ट.. माँ जी को मेरा भी प्रणाम कहियेगा और हो सके तो उनसे भी कुछ लिखवाईये... जिनके सन्सकारो ने आपको इतना खूबसूरत इन्सान बनाया, उन्हे पढना बहुत अच्छा रहेगा.. आपके व्यक्तित्व को उनके नज़रिये से देखना काफ़ी खूबसूरत होगा...
आत्मा वै जायते पुत्रः -आज यह एक माँ बेटे के सम्बन्ध को सही निरूपण दे रहा है --- आपमें वही तो हैं ....उनका त्याग और परिश्रम आज आप सभी में ही तो ज्योतित हो रहा है ....माता जी के सरकारी सेवा से विदाई पर उनके सुखी जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएं -जीवेम शरद शतं ......
ReplyDeleteऔर अपनी वंश परम्परा में तो उन्होंने अपना जीवन सुफल कर ही लिया-
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुंधरा भाग्यवती च तेन ..
अगर मैं अपनी मम्मी के बारे में लिखता तो बिलकुल ऐसा ही लिखता... वैसे आज मेरे पापा रिटायर हो रहे है.. मम्मी २ साल बाद.. कितना समझा रहे थे/है की आप भी रिटायरमेंट ले लो.. पर मम्मी...
ReplyDeleteआदरणीया माता जी को सादर प्रणाम, आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसेवानिवृत्ति का अवसर तो सन्तुष्टि और प्रसन्नता का अवसर है। माताजी की अहर्निश तपस्या आज पूरी हो रही है। आज देवी-देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद और वरदान दे रहे होंगे। अब उन्हें अपने मन का करने की छूट होगी। अपने बच्चों के पास आने-जाने और उनके सिर पर स्नेह से हाथ फिराने की फुरसत मिलेगी।
आप भावुक होकर आँखें नम न करें। एक जश्न की तैयारी करें। माता जी आपके पास आएं, हम सबको भी बुलाएं, आशीर्वाद दें। खुशियाँ ही खुशियाँ...।
आपकी माताजी के सेवानिवृत्ति पश्चात जीवन के लिए शुभकामनायें. अब यह देखना होगा की एकाएक कामकाज में कमी आ जाने पर उसका शरीर और मन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े. बहुधा लोग ऊब के कारण परेशान हो उठते हैं.
ReplyDeleteसाठ वर्षों के बाद मन को नवीनता नहीं लुभाती और दूसरों को अपने-अपने क्रियाकलापों में रत-व्यस्त देखकर खीझ आना स्वाभाविक है. मेरे पिता कुछ वर्षों पूर्व सेवानिवृत्त हुए और मैंने उनमें यह सब धीरे-धीरे घटित होते देखा जबकि वे बहुत जिंदादिल और खुशमिजाज व्यक्ति हैं.
उम्र के इस दौर में शरीर और मन दोनों ही सकारात्मक ऊर्जा से भरे रहें इसके लिए परिजनों को भी प्रयास करते रहना चाहिए.
आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा. पंकज ने सच ही कहा है कि आपका लेखन वाकई बहुत ईमानदारी और मासूमियत से भरा होता है.
ईश्वर आपकी माताजी को दीर्घायु करें यही मेरी कामना है.
Hey maan, teri surat se alag, bhagwaan ki surat kya hogi ?
ReplyDeleteMamtamayee maan ko mera Charan-sparsh pahuchaiyega.
हमारा भी परिवार सहित प्रणाम माँ को !!
ReplyDeleteआपके संस्कार और लेखनी और भाषा उनके द्वारा दिए गए संस्कारों को परिभाषित करती है.
आपका सौभाग्य है कि आप वहाँ हैं और मैं आपकी पोस्ट को टोरोंटो के होटल में पढके भावुक होकर आंसू ही बहा सकता हूँ, माँ, पिताजी भारत में अभी भी संघर्ष कर रहे है, और मेरी बात जोह रहे हैं. कब तक दूर रहूँगा और कब तक बच्चों को उनसे दूर रखूँगा !!
हमेशा की तरह लेखनी में उत्कृष्टता झलक रही है, जारी रहे ये प्रयास !!
माँ को मेरा प्रणाम
ReplyDeleteअपने बच्चों को मजबूत बना कर, सेवानिवृत्त होतीं वे आज अपने आपको शक्तिशाली मान रहीं होंगी प्रवीण जी ! उनकी पूरी जीवन की मेहनत का फल, आप तीनों के रूप में उनके सामने हो ! उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया !
ReplyDeleteअब आप लोगों की बारी है ...
आप तीनों साथ बैठकर कुछ अभूतपूर्व निर्णय आज लें कि..
कि यह भावनाएं जो आपने व्यक्त कीं हैं ताजिंदगी नहीं भूलेंगे ..
कि उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने देंगे कि वे अब बेकार हैं ...
कि उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने देंगे कि वे अब रिटायर हो चुकी हैं ...
कि अब इस घर में उनकी सलाह की जरूरत नहीं है ...
और अंत में जो सुख़ उन्हें न मिल पाया हो उसके लिए कुछ प्रयत्न कर वह उपलब्ध कराने की चेष्टा ...
मैं अगर अपनी सीमा लांघ गया होऊं तो आप लोग क्षमा करें आशा है बुरा नहीं मानेंगे ! आपकी माँ को भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनायें !
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.
ReplyDelete*
पुत्र जन्म पर्यंत तन,मन,धन, से माँ की सेवा करे तब भी उसके पूर्व उपकार का ऋणी बना रहेगा.
- 'माता का स्नेह' : लेख : बाल क्रष्ण भट्ट
माता जी को सादर प्रणाम!
ReplyDeleteथोडा सा इंतज़ार कीजिये, घूँघट बस उठने ही वाला है - हमारीवाणी.कॉम
आपकी उत्सुकता के लिए बताते चलते हैं कि हमारीवाणी.कॉम जल्द ही अपने डोमेन नेम अर्थात http://hamarivani.com के सर्वर पर अपलोड हो जाएगा। आपको यह जानकार हर्ष होगा कि यह बहुत ही आसान और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाया जा रहा है। इसमें लेखकों को बार-बार फीड नहीं देनी पड़ेगी, एक बार किसी भी ब्लॉग के हमारीवाणी.कॉम के सर्वर से जुड़ने के बाद यह अपने आप ही लेख प्रकाशित करेगा। आप सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए इसका स्वरुप आपका जाना पहचाना और पसंद किया हुआ ही बनाया जा रहा है। लेकिन धीरे-धीरे आपके सुझावों को मानते हुए इसके डिजाईन तथा टूल्स में आपकी पसंद के अनुरूप बदलाव किए जाएँगे।....
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आँखें गीली कर गयी आपकी पोस्ट...
ReplyDeleteकाश हर बेटा आपकी तरह माँ के उस संघर्ष को समझे....और शायद समझता भी है वक़्त आने पर,तभी माँ और संतान का रिश्ता इतना ख़ूबसूरत होता है और माँ का स्थान भगवन से भी ऊपर... सादर नमन माता जी को.
बहुत सुंदर प्रवीण जी , काश सभी बेटे आप जेसे हो तो भारत मै कोई मां दुखी ना हो, हो तो मेरे बेटे के समान लेकिन आज तुम्हे प्रणांम करने को दिल करता है, ओर तुम्हारी मां की त्पस्या ही है जो तुम जेसे नेक बच्चे है उस मां के , नमन है आप की मां को भी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट. जिन भावों को ह्रदय में रखकर आपने यह पोस्ट लिखी है वह हमेशा याद आयेंगे.
ReplyDeleteमाँ के लिए हर शब्द छोटा है...आपने अपनी भावनाएं बड़ी सहजता के साथ प्रस्तुत की...अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteपूत कपूत सुने हैं पर न माता सुनी कुमाता!
ReplyDeleteहर माँ के निश्चल प्रेम और निस्वार्थ त्याग को अलंकृत करती हुई बेहद भावुक पोस्ट है. मुझे भी अपनी माँ की याद हो आई :)
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteमाँ प्रसन्नचित्त हैं और अब अधिक समय निकाल पायेंगी हम सबके साथ रहने के लिये ।
@ महेन्द्र मिश्र
माता पिता का स्नेह तो अहैतुकी है, बरसने हेतु बरसता है ।
@ मो सम कौन ?
आज लिखकर न केवल मन हल्का हो गया अपितु माँ के सम्मान में एक पुष्प अर्पित कर पाया ।
@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
माँ के लिये मैं न कभी बड़ा हुआ हूँ और न कभी होऊँगा । कुछ तो है उस आँचल में कि सारे दुख दूर भाग जाते हैं एक क्षण में ।
@ Arvind Mishra
सोचता हूँ कि क्या कभी इतना त्याग मेरे मन में आ पायेगा अपने बच्चों के प्रति ? यह विचार आते ही माता पिता के प्रति कृतज्ञता भाव द्विगुणित हो जाता है । माँ की कहानियाँ इतिहास में मानवीय संवेदनाओं की सीमायें निर्धारित करती आयीं हैं ।
@ रंजन
आपके माता पिता को प्रणाम । आपके भाव भी पढ़ने की इच्छा है ।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
प्रसन्नता इस बात की है कि अब माँ अधिक समय निकाल पायेगी हम सबके लिये । हम लोगों के साथ बच्चे भी प्रसन्न हैं ।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
एकाएक कामकाज में कमी आने का प्रभाव मैं समझ सकता हूँ । यथासम्भव वह स्थान भरने का प्रयास तो हम लोगों की ही ओर से आयेगा ।
@ Divya
भगवान की परिकल्पना ममतामयी माँ के रूप होती है । बचपन से लेकर अबतक सहारा कौन दे सकता है ।
@ राम त्यागी
ईश्वर करे आपको भी संग रहकर माता पिता की सेवा का अवसर मिले ।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteआपके द्वारा बताये सारे संकल्प शिरोधार्य । आपने सीमायें निर्धारित की हैं, पालन करना हमारा सौभाग्य है ।
@ hem pandey
यह ऋण सदैव बना रहे और मैं सदैव इसे उतारता रहूँ ।
@ हमारीवाणी.कॉम
अतिशय धन्यवाद
@ rashmi ravija
माँ के हृदय को समझने की भावना जिस दिन पुत्रों में आ जायेगी, उस दिन समाज स्वर्ग बन जायेगा ।
@ राज भाटिय़ा
आप आशीर्वाद बनाये रखें कि माँ के प्रति यह भाव और पल्लवित होता रहे ।
@ Shiv
संभवतः इसीलिये इस भाव को व्यक्त कर स्थापित करना आवश्यक था ।
@ KK Yadava
सच कहा । माँ शब्द भले ही सबसे छोटा हो, इसका अर्थ वृहद है ।
@ Saurabh
माँ को याद करना ही जीवन को कोमल भावों संचारित करना है ।
पुरुष प्रधान इस जगत में मेरे हृदय को यदि किसी का पुरुषार्थ अभिभूत करता है तो वह मेरी माँ का ।
ReplyDelete...........
कितने गहरे यह पहुंची है...बता नहीं सकती....
लेकिन जितने गहरे यह पहुंची उतना ही ऊपर आपको उठा गयी ....
माता को भी नमन और पुत्र के इस भाव को भी नमन...
संसार की सभी माएं और संतान ऐसे ही हों...
माँ कभी रिटायर नहीं होती
ReplyDeleteमातृत्व और सघन होता जाता है
भावुकता से भरा आपका पोस्ट, इस शुभ अवसर पर माँ को बधाई
आज सार दिन कर्यालय में कई स्टाफ़ और सहयोगी की सेवानिवृति के विदाई कार्यक्रम और विदाई संदेश सुनते सुनाते बीता। पर आपके इस संदेश को सुनकर मन अंदर तक भींग गया।
ReplyDeleteमां की सीख और तपस्या ही बच्चों को सफलता के सोपान तक पहुंचाती है। अपने अनुभवों और बच्चों के प्राकृतिक गुण और रुझान को देखकर वह कैरियर के लिए सही दिशा देती है। मां तो पहली गुरु है।
सर,
ReplyDeleteकर्क राशि का होने के कारण मेरी मम्मी ही मेरी कमजोरी और मेरा बल दोनों ही रहीं हैं.
अंतिम वाक्य तो ह्रदय-पटल पर कुछ समय तक के लिए अंकित होके रह गया है.
"पुरुष प्रधान इस जगत में मेरे हृदय को यदि किसी का पुरुषार्थ अभिभूत करता है तो वह मेरी माँ का ।"
नि:शब्द.
धन्यवाद सर.
मां एक शब्द जिसे मै १८ साल से मिस कर रहा हूं . आप भाग्यशाली है जो मां के सानिध्य मे पल रहे है .
ReplyDeleteमाताजी के बारे में पढकर अच्छा लगा .. उन्हें मेरा प्रणाम कहिएगा !!
ReplyDeleteसेवानिवृत्ति तो राजकीय सेवा से है, घर पर तो वे आज भी माँ ही हैं और घर की सबसे बड़ी। भारत की यही विशेषता है कि हम बड़ों का सम्मान करते हैं, उन्हें फालतू नहीं समझते। आपने माँ के लिए लिखा बहुत अच्छा लगा बस हमेशा यही भावना मन में संजोकर रखें। बस एक बात कहना चाहती हूँ कि हमारा समाज पुरुष प्रधान नहीं है, आप इसे पितृ सत्तात्मक कह सकते हैं। उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करें।
ReplyDeleteआपके अपनी माता के प्रति उद्गार आपके अभिमन्यु की तरह गर्भ में जीवन शिक्षा ग्रहण करने की कथा वर्णित करता है… बहुत कुछ झलक उस संघर्ष की मैं अपनी माता के जीवन में भी पाता हूँ. वह कथा फिर कभी... मैंने अपनी मन की बात सतीश जी के पोस्ट पर कही है. आपकी माता जी के अवकाशप्राप्तकाल के सहज, सुखद एवं सुमधुर होने की कामना करता हूँ... किंतु क्षमा सहित (वरिष्ठ हूँ वयस में) एक बात कहना चाहूँगा… आप ने लिखा है.. “आज माँ सेवा निवृत हो रही हैं”.. माताएँ कभी सेवा निवृत नहीं होतीं.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आज पहली बार आना हुआ है.... मुझे किसी ने लिंक देकर कहा .... कि देखो तुम्हे यह पोस्ट बहुत पसंद आएगी.... और सच कह रहा हूँ.... मुझे बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....मेरी माँ तो बचपन में चली गयीं.... बचपन के सिर्फ ४ साल उनके साथ गुज़ारे.... वो ४ साल पूरी तरह से याद हैं.... आप बहुत खुशकिस्मत हैं.... आपकी माता जी को मेरा प्रणाम कहियेगा.... आपकी पोस्ट पढ़ते वक़्त बहुत भावुक हो गया हूँ....
ReplyDeleteमैं भी महफूज़ जैसा ही कुछ कहूँगी. आप बहुत भाग्यशाली हैं, जो माँ का साथ मिला मेरी माँ तो बचपन में ही चली गयी थी...पर पिताजी का लंबा साथ रहा...
ReplyDeleteछोटी हूँ आपसे, पर एक सलाह देना चाहूँगी... मैंने पिताजी का रिटायरमेंट देखा है. इस समय एक अजीब सा अकेलापन घेर लेता है वृद्ध जनों को... जब तक नौकरी में रहते हैं अपने महत्त्व का अनुभव करते हैं... कि किसी को उनकी ज़रूरत है... पर सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें अपने महत्त्व में कमी सी आती देख पड़ती है... ये अनुभव बहु दुःखदायक होता है... माँ को ये अनुभव मत होने दीजियेगा... आपके जीवन में उनका महत्त्व कितना है, ये तो आप जानते ही हैं, पर ये बात उन्हें भी महसूस कराते रहिएगा.
मां तो है मां, मां तो है मां...
ReplyDeleteमां जैसा दुनिया में और कोई कहां...
जय हिंद...
आने में देर हो तो लाभ यह है .....कुछ ज्यादा कहने को नहीं रह जाता !
ReplyDeleteबस इतना ही कि मुझे व्यक्तिगत रूप से यह आपकी सबसे उत्तम पोस्ट लगी |
साथ ही ....इस अनजाने विश्वास की पुष्टि के लिए मन भी प्रमुदित कि आप एक अध्यापक पुत्र हैं !!
प्रवीण जी, मैंने ऐसा कई बार किया है की आपकी कमेन्ट पहले पढ़ी है पोस्ट बाद में. आपका ह्रदय झलकता है आपके लेखन में. आपकी माँ को मेरा प्रणाम!
ReplyDeleteहरिवंश बच्चन जी की कविता का एक अंश है -
"पूत सपूत तो क्यूँ धन संचय? और
पूत कपूत तो क्यूँ धन संचय?"
आप पहली पंक्ति को चरितार्थ करते हैं!
@ रंजना
ReplyDeleteजब भी माँ को देखता हूँ, किसी न किसी काम में लगी रहती है । वृहद उद्देश्यों और दैनिक क्रियाकलाप का संमिश्रण है हम सबका जीवन । हम किन्तु उलझ जाते हैं ।
@ M VERMA
सच है, माँ तो कभी रिटायर नहीं होती । अब तो ममता की छाँव और बढ़ेगी ।
@ मनोज कुमार
इस आयु में भी माँ मुझसे अधिक कार्य करती है, मैं तो कुछ सीख ही नहीं पाया ।
@ Vinamra
माँ को बल के रूप में सदा पाया । 10 वर्ष की आयु में छात्रावास रहने चला गया । भविष्य के हेतु ममता को रोक लेना माँ का बल नहीं तो और क्या है ?
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
माँ की ममतामयी यादें ही आपका मानसिक बल बनें ।
@ संगीता पुरी
कुछ समझ में नहीं आता है तो माँ से बतियाने का मन करता है ।
@ ajit gupta
आपसे पूर्णतया सहमत । ममता और सघन होगी अब । परिवार में कभी सत्तात्मक प्रवृत्ति रही ही नहीं, संभवतः इसीलिये यह शब्द मन में आया ही नहीं ।
@ सम्वेदना के स्वर
आपसे सहमत । माँ तो कभी सेवानिवृत्त नहीं होती । हम अभिमन्युओं के लिये तो हर समस्या आठवाँ
द्वार है ।
@ महफूज़ अली
माँ की याद संजोना आपके कोमल भावपक्ष का प्रतीक है । आपकी रचनायें सुहाती हैं ।
@ aradhana
इस विषय में आपका अनुभव एक महत्वपूर्ण पक्ष है । हम सबको यह ध्यान रखना पड़ेगा । आपकी सलाह सदैव आमन्त्रित है ।
@ खुशदीप सहगल
सच कहा आपने ।
@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
मुझे तो गर्व भी है कि माँ अध्यापिका है । विद्यालय में भी अध्यापकों का विशेष कृपा रही मेरा भविष्य ढालने में, कैसे भूल पाउँगा ? एक पोस्ट के माध्यम से पर व्यक्त अवश्य करूँगा ।
@ Stuti Pandey
मुझे तो लगा कि आप व्यस्त होगीं यह निर्णय लेने में कि कहाँ का CEO बनना है । पुत्र की सुपात्रता तो अभी तक सिद्ध नहीं कर पाया हूँ ।
मर्मस्पर्शी पोस्ट. माँ को प्रणाम और शुभकामनाएं! रिटायरमेंट सचमुच एक विशेष दिन है: एक नए जीवन का आरम्भ, नौकरी के पहले दिन से कहीं अलग.
ReplyDeleteइस भावुक पोस्ट को कल ही पढ़ लिया था लेकिन टिप्पणी अब जाकर कर पा रहा हूँ।
ReplyDeleteमाँ के प्रति अपनी भावनाओं का आपने जिस तरह इजहार किया है वह पढ़कर मुझे लगा कि हम सभी की माँएं इसी तरह से अपने बच्चों के प्रति समर्पित और कर्मठ होती है....आपने जिक्र किया कि मां पैदल ही जाती थी ....चिढाने पर बहाना स्वास्थय का बनाती थीं....कितनी तो यादें दिला दीं आपने मेरी अम्मा के बारे में भी मुझे....इन यादों में जो गहरा स्नेह है वह आपकी पोस्ट में बखूबी झलक रहा है।
बहुत भावुक पोस्ट।
आज इस भावुक पोस्ट पर टिप्पणियाँ देखने आई थीं, सबके मर्म को गहरे तक छू गयी है यह पोस्ट.
ReplyDeleteटिप्पणियां देख एक मराठी नाटक याद आ गया, जिसकी मेरे मराठी फ्रेंड्स ने बहुत तारीफ़ की है, "माँ रिटायर होती है". भक्ति बर्वे के शानदार अभिनय में इसके कई सफल मंचन हो चुके हैं.
इसके हिंदी रूपांतरण में जया बच्चन ने अभिनय किया है. पर इसका मंचन सिर्फ अमेरिका,यूरोप में ही हुआ है. वैसे मुंबई में मंचन होने के बावजूद भी शायद ही देख पाती. एक बार "हज़ार चौरासी की माँ" का मंचन हुआ था तो टिकट पूछने पर पता चला,सात हज़ार से तीन हज़ार तक टिकट की कीमत थी. यानि अगर तीन हज़ार खर्च करने की सोच भी ली तो सबसे पिछली सीट पर बैठ कर देखना पड़ेगा. किसी मराठी फ्रेंड के साथ, मराठी नाटक ही देखने की सोचती हूँ
प्रवीण जी
ReplyDeleteआंखे सजल हो आई इस पोस्ट पर |पोस्ट पढ़ते पढ़ते मेरे आँखों के सामने वे साडी माये याद आ गई जिन्होंने उस दौर में ऐसे ही संघर्ष कर अपने बच्चो के साथ ही अपने परिवार (ननदों ,देवरों )को भी शिक्षित बनाकर अपने पावो पर खड़ा किया है |अभी अभी मै गावं में देखकर आई एक दादी ने अपने पोते को padhne के लिए अपनी पेंशन का पूरा पैसा दे दिया |
माताजी को बहुत प्रणाम |जो अपने जीवन में इतनी सक्रीय रही हो निशित ही उन्होंने आगे के लिए अच्छा ही सोचा होगा |
आपकी भावनाएँ मन को छू गयीं, चलिए अब माँ के साथ आप ढेर सारा समय बिता सकेंगे।
ReplyDelete---------
किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?
इतना कह पाने के लिए बधाई,
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम और चरणस्पर्श।
मैं अपनी कह आया बज़ पर, क्या यहाँ दोहराऊँ?
चलो दुहराते हैं -
"जब हृदय अनिर्णय में हो - कि आँखों और क़लम में से किस रास्ते से ज़्यादा आसान है बह निकलना,
जब माँ की ममता और माँ का पुरुषार्थ - सन्नद्ध हों परस्पर श्रेष्ठता सिद्ध करने में,
जब इस योग्य हो पाए संतान कि समझ पाए -
कि बुज़ुर्ग अपने लिए नहीं चाहते कुछ।
यही चाहते हैं कि संतानें उनका दिया सहेजे हुए -
आगे दें संतानों को;
तब उपजती है ऐसी भावभीनी अभिव्यक्ति - जो कहा - बेटे ने, उससे ज़्यादा वो देखिए जो नहीं कहा - माँ ने।
प्रणाम! शत-शत मातृ-शक्ति को, माटी को, माँ को; और प्रवीण - आपकी माताजी को।
हमारा भी नमन - उस जिजीविषा को!"
well expressed praveen
ReplyDeleteप्रवीण जी, मां-बाप तो साक्षात भगवान के स्वरूप हैं... मैं समझ सकता हूं... अपने मां-बाप से छ: सौ किमी दूर जा रहा हूं.. पन्द्रह दिन में एक बार आया करूंगा... आंख नम है.. ईश्वर आपकी माता जी को स्वस्थ और दीर्घायु बनाये...
ReplyDelete@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteनौकरी प्रारम्भ करने के दिन का तो अनुभव तो है रिटायर होने का नहीं । पर सोच सकता हूँ कि कैसा लगता होगा ।
@ सतीश पंचम
माँ की ममता निसन्देह अपने बच्चों की देखभाल से कहीं बढ़कर है । जो बन्धन होता है वह न दिखते हुये भी बहुत गहरा होता है । वह भावना तो अब भी रह रह कर हृदय को भावुक करती रहती है ।
@ rashmi ravija
अब तो वह नाटक देखना ही पड़ेगा । हजार चौरासी की माँ पढ़ी है । मंचन ने कितना रुलाया होगा, कल्पना कर सकता हूँ ।
@ शोभना चौरे
ऐसी माँ को मेरा भी प्रणाम । घर को सम्हाल के रखने की शक्ति और समझ ऐसी देवियों में ही है ।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
माँ शब्द में तो पूरा प्यार सिमटा हुआ है ।
@ हिमान्शु मोहन
तब उपजती है ऐसी भावभीनी अभिव्यक्ति - जो कहा - बेटे ने, उससे ज़्यादा वो देखिए जो नहीं कहा - माँ ने।
अब क्या कहें ? शब्द स्तब्ध हैं ।
@ manoj
बहुत धन्यवाद ।
really nice,
ReplyDeletevivj2000.blogspot.com
पोस्ट कल रात में पढ़ लिया था लेकिन कुछ कहने आज आ रहा हूं।
ReplyDeleteमाताएं एक समान सी क्यों लगती हैं? जवाब मुझे आज तक नहीं मिला। दूसरे पैराग्राफ में जो आपने लिखा वह यथार्थ मिलता हुआ सा है।
आपकी माता जी को प्रणाम।
अपनी माताजी को याद करता हूं, भले ही रोजाना उनसे आज भी डांट खाता हूं आधी रात में घर लौटने के बाद, लेकिन जिजिविषा इसे ही कहते हैं शायद कि कोई महिला अपने बड़े बेटे के साथ तब के मेट्रिक परीक्षा में साथ में ही सम्मिलित हो। हां मेरी माताजी ने बड़े भाई साहब के साथ मेट्रिक की परीक्षा दिलाई फिर हरिजन सेवक संघ में शिक्षिका की नौकरी ज्वाइन की। फिर जब पंजाब आतंकवाद में झुलस रहा था तब शांति के लिए वहां हुई पदयात्रा के जत्थे में भी शामिल थीं। इस सब से पहले जब स्वतंत्रता आंदोलन के चलते कई बार पिताजी को जेल जाना पड़ता था तो सारे घर की जिम्मेदारी अकेले मां ही उठाती रही।
इसीलिए समझ में आता है कि क्यों देश में नारी को शक्ति रुपेण माना जाता है।
माताजी 98 में रिटायर हो चुकी हैं। अब बस प्रभु भजन और घर में ही व्यस्त रहती हैं। आजकल शिकायत कर रही हैं कि वे अपने चश्में से अखबार नहीं पढ़ पा रहीं।
तीन-चार बार डांट खा चुका हूं उनसे उनकी इस शिकायत के चलते, जल्द ही कुछ करना होगा वरना मेरी खैर नहीं।
देखिए, आपने बात माता जी के रिटायरमेंट से की थी और मैं कहां से कहां पहुंच गया। पर मां तो मां है न।
मुआफी।
मां! दुनिया का सबसे प्यारा नाम। आपकी पोस्ट पढकर सबको अपनी मां की बहुत याद आयी होगी। आप भाग्यशाली हैं, मां अब साथ रहेंगी। वह स्वस्थ, प्रसन्न एवं दीर्घायु हों, प्रभु से यही प्रार्थना। उन्हें मेरा प्रणाम ।
ReplyDelete@ Vivek Jain
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद
@ Sanjeet Tripathi
आपकी माँ को मेरा प्रणाम । माँ की डाँट भी प्यारी लगती है । अटपटा तो तब लगता है जब वह नहीं डाँटती । आपका भाग्य आपकी माँ हैं और वह आपके साथ हैं ।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
मुँह से निकले पहले सम्बोधन को उसको समर्पित किया गया है जो उसकी अधिकारिणी है । माँ सच में सबसे प्यारा नाम है, सबके लिये ।
बहुत भावुक लेख.
ReplyDeleteपंजाबी गाने के बोल याद आ रहे हैं.. "माँ हुंदी है माँ ओ दुनिया वालेयो./माँ है रब्ब दा नां ओ दुनिया वालेयो"
मां को हमारा भी प्रणाम । अब आपकी बारी है उनका बुढापा सुखी करने की ।
ReplyDelete@ Rajeev Bharol
ReplyDeleteसंस्कृतियों में माँ के लिये यही प्यार व श्रद्धा दृष्टगोचर है ।
@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteमाँ से मिलकर आज ही लौटा हूँ, माँ प्रसन्न है और शीघ्र ही घर आयेगी ।
एक आदर्श नारी की कथा ....नयी उर्जा प्रदान करती हुई ....मार्गदर्शन देती हुई ..मर्म को छूती हुई रचना ...बधाई इस प्रस्तुति के लिए ....
ReplyDeleteमाँ के प्रति बहुत संवेदनशील उद्दगार .. भावभीनी पोस्ट ..
ReplyDeleteमाँ को चरणस्पर्श प्रणाम!
ReplyDeleteप्रिय प्रवीण पाण्डेय जी अभिवादन -माँ को बहुत बहुत शुभ कामनाएं और उन्हें लम्बी उम्र मिले -सब सौभाग्यशाली हो आप सी माँ मिलें जिससे घर समाज देश सब का कल्याण हो -बहुत ही भावुक कर देने वाला ये लेख आप का मन को छू गया ...
ReplyDeleteकाश सब बच्चे भी अपनी माँ के विषय में ऐसा ही सोचें और उनको भरपूर आदर और प्यार अंत तक मिले ...
शुक्ल भ्रमर ५
बचपन नहीं भूलता है, माँ का पैदल 3 किमी विद्यालय जाना । कई बार हमने चिढ़ाया कि रिक्शा नहीं करती, पैसे बचाती है । हँस कर झूठ बोलती, नहीं, पैदल चलने से स्वास्थ्य ठीक रहता है । भगवान करे उस झूठ का सारा दण्ड मुझे मिलता रहे, शाश्वत, मेरे लिये बोला गया वह झूठ ।
आज उस तपस्या का अन्तिम दिन है, आज माँ सेवा-निवृत्त हो रही है, 37 वर्षों की अथक व निःस्वार्थ यात्रा के पश्चात ।
आज पढ रही हूँ - अनुभव कर रही हूँ - बार-बार , यही सब जो अब
ReplyDeleteबहुत पीछे रह गया है .रिटायर होने के बाद माँ निश्चिंत और प्रसन्न होंगी ,आप सब हैं न !
नमन !
ReplyDeleteसही समय यही होता है माँ के प्रति कृतज्ञता दिखाने का । माँ ने जीवनभर दिया ही दिया अब समय है सन्तान का कि वह माँ को क्या देती है । निश्चित ही अब माँ आराम से अपना समय बिताएंगी ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ कर मुझे अपनी मां बहुत याद आई।
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